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पाशबलक्कालेण वशंतशेणि मालिदा, ण मए । [अहो अधिकरणभोजकाः ! किमिति न जानामि ? । तां तादृशीं नगरमण्डनं काञ्चनशतभूषणां |
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जकाः ! किमिति न जानामि ? । तो तादृशीं नगरमण्डनं काञ्चनशतभूषण |
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घृणोति ) |
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{{gap}}'''अधिकरणिकः'''----अहो नगररक्षिणां प्रमादः । भोः |
{{gap}}'''अधिकरणिकः'''----अहो नगररक्षिणां प्रमादः । भोः श्रेष्ठिकायस्थौ ! न मयेति व्यवहारपदं प्रथममभिलिख्यताम् । |
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यस्थौ ! न मयेति व्यवहारपदं प्रथममभिलिझ्यताम् । |
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कायस्थः-जं अज्जो आणवेदि । ( तथा कृत्वा ) अब ! लिहिदं । |
कायस्थः-जं अज्जो आणवेदि । ( तथा कृत्वा ) अब ! लिहिदं । |
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[ यदार्य आज्ञापयति । आर्य ! लिखितम् ।] |
[ यदार्य आज्ञापयति । आर्य ! लिखितम् ।] |
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{{gap}}'''शकारः'''-( |
{{gap}}'''शकारः'''-( स्वगतम् ) हीमादिके, उत्तलाअंतेण विअ पाअशपिंडालकेण अज्ज मए अत्ता एव्व णिण्णाशिदो। भोदु, एव्वं दाव । |
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लकेण अज्ज मए अत्ता एव णिण्णाशिदो। भोदु, एवं दाव । |
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प्रोञ्छति ) |
प्रोञ्छति ) |
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व्यापादिता ?।। |
व्यापादिता ?।। |
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{{gap}}'''शकारः'''--- |
{{gap}}'''शकारः'''---हंहो, णूणं 1पंडिशूणाए मोघट्ठाणाए गीवालिआए |
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णिशुवण्णकेहिं आहलणट्टाणेहिं |
णिशुवण्णकेहिं आहलणट्टाणेहिं तक्केमि । [ हंहो, नूनं परिशून्यया मोघस्थानया ग्रीवालिकया निःसुवर्णकैराभरणस्थानैस्तर्कथामि ।] |
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स्थानया ग्रीवालिकया निःसुवर्णकैराभरणस्थानैस्तर्कथामि ।] |
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पाठा०- शुण्णशूणाए. |
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पाठा०- झुण्णाभूणाए. |