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{{gap}}'''धूता'''--( वसन्तसेनां दृष्ट्वा) दिट्टिआ कुसलिणो |
{{gap}}'''धूता'''--( वसन्तसेनां दृष्ट्वा) दिट्टिआ कुसलिणो बहिणिआ । [ दिष्ट्या |
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कुशलिनी भगिनी । |
कुशलिनी भगिनी । |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''--युष्मत्प्रसादेन । |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''--युष्मत्प्रसादेन । |
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{{gap}}'''शर्विलकः'''–आर्ये वसन्तसेने ! परितुष्टो राजा |
{{gap}}'''शर्विलकः'''–आर्ये वसन्तसेने ! परितुष्टो राजा भवतीं वधूशब्देनानुगृह्णाति ।। |
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नानुगृह्णाति ।। |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! कदत्थम्हि । [ आर्य ! कृतार्थोस्मि ।] |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! कदत्थम्हि । [ आर्य ! कृतार्थोस्मि ।] |
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{{gap}}'''शर्विलकः'''-( |
{{gap}}'''शर्विलकः'''-( वसन्तसेनामव1गुण्ठ्य चारुदत्तं प्रति ) आर्य ! किमस्य |
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भिक्षोः क्रियताम् ।। |
भिक्षोः क्रियताम् ।। |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''-भिक्षो ! किं तव बहुमतम् ? |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''-भिक्षो ! किं तव बहुमतम् ? |
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{{gap}}'''भिक्षुः'''—इमं ईदिशं |
{{gap}}'''भिक्षुः'''—इमं ईदिशं अणिच्चत्तणं पेक्खिअ दिउणतले मे पव्वज्जाए |
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बहुमाणे संवुत्ते । [ |
बहुमाणे संवुत्ते । [इदमीदृशमनित्य1त्वं प्रेक्ष्य द्विगुणतरो मम प्रव्रज्यायां |
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बहुमानः संवृत्तः ।। |
बहुमानः संवृत्तः ।। |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''-सखे ! दृढोऽस्य निश्चयः । तत्पृथिव्यां |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''-सखे ! दृढोऽस्य निश्चयः । तत्पृथिव्यां सर्वविहा2रेषु |
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कुलपतिरयं क्रियताम् ।। |
कुलपतिरयं क्रियताम् ।। |
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{{gap}}'''शर्विलक'''-यथाहार्यः । |
{{gap}}'''शर्विलक'''-यथाहार्यः । |
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{{gap}}''' |
{{gap}}'''भिक्षुः'''–पिअं णो पिअं । [ प्रियं नः प्रियम् ।] |
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टिप्प०-1 वसन्तसेनां |
टिप्प०-1 वसन्तसेनां प्रावारकेणाच्छाद्येत्यर्थः। 2 एतत्संविधानकं विचिन्त्य |
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निखिलं |
निखिलं जगदिदमनित्यमिति विचार्य सर्वपरित्यागेन त्यागी संवृत्तोऽसि । 3 निखिल |
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सौगतदेवालयेषु |
सौगतदेवालयेषु धर्माध्यक्ष इत्यर्थः । |