"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१३४" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
उभे यदिन्द्र रोदसी आपप्राथोषा इव |
महान्तं तवामहीनां सम्राजं चर्षणीनां देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत ॥
अव सम दुर्हणायतो मर्तस्य तनुहि सथिरम |
अधस्पदं तमीं कर्धि यो अस्मानादिदेशति देवी जनित्र्यजीजनद भद्राजनित्र्यजीजनत ॥
अव तया बर्हतीरिषो विश्वश्चन्द्रा अमित्रहन |
शचीभिःशक्र धूनुहीन्द्र विश्वाभिरूतिभिर्देवी जनित्र्य ... ॥
 
अव यत तवं शतक्रतविन्द्र विश्वानि धूनुषे |
रयिंन सुन्वते सचा सहस्रिणीभिरूतिभिर्देवी जनित्र्य ... ॥
अव सवेदा इवाभितो विष्वक पतन्तु दिद्यवः |
दूर्वाया इवतन्तवो वयस्मदेतु दुर्मतिर्देवी जनीत्र्य ... ॥
दीर्घं हयङकुशं यथा शक्तिं बिभर्षि मन्तुमः |
पूर्वेण मघवन पदाजो वयां यथा यमो देवी जनित्र्य... ॥
 
नकिर्देवा मिनीमसि नकिरा योपयामसि मन्त्रश्रुत्यंचरामसि |
पक्षेभिरपिकक्षेभिरत्राभि सं रभामहे ॥
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