"पृष्ठम्:गोपालसहस्रनामस्तोत्रम्.pdf/२७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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{{gap}}ओं गोविन्दाय शिखायै वषट् ३<br/> |
{{gap}}ओं गोविन्दाय शिखायै वषट् ३<br/> |
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{{gap}}ओं गोपीजन वल्लभाय कवचाय हुं - ४<br/> |
{{gap}}ओं गोपीजन वल्लभाय कवचाय हुं - ४<br/> |
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{{gap}}ओं वल्लभाय नेत्रत्रयाय वौषट् ५<br/> |
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{{gap}}ओं स्वाहा अस्त्राय फट् ---- ६<br/> |
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{{gap}}कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षस्थले कौस्तुभं |
{{gap}}कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षस्थले कौस्तुभं |
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{{gap}}{{gap}}}नासाग्रे <ref> |
{{gap}}{{gap}}}नासाग्रे <ref>ग. गजर्मुक्तिकं.</ref>'वरमौक्तिकं करतले वेणुं करे कङ्कणम् । |
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{{gap}}सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च <ref> |
{{gap}}सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च <ref>मुक्तावलीं.</ref>'मुक्तावलिं |
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{{gap}}{{gap}}गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः ॥ १ ॥}} |
{{gap}}{{gap}}गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः ॥ १ ॥}} |
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{{gap}}<ref>क.कृष्णम्दीवर.</ref>}फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बर्हावतंसप्रियं |
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{{gap}}{{gap}}श्रीवत्साङ्कमुदारकौस्तुभधरं पीताम्बरं सुन्दरम् । |
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{{gap}}गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसङ्घावृतं |
{{gap}}गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसङ्घावृतं |
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{{gap}}{{gap}}गोविन्दं कलवेणुवादनपरं दिव्याङ्गभूषं भजे ॥२॥}} |
{{gap}}{{gap}}गोविन्दं कलवेणुवादनपरं दिव्याङ्गभूषं भजे ॥२॥}} |
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{{gap}}विकसितनीलोत्पलसदृशकान्तिं चन्द्रबिम्बोपमास्यं शिखिपिच्छाख्यं |
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शिरोभूषणं प्रियं यस्य तादृशं श्रीवत्सचिह्नम् उदारकौस्तुभाख्यमणिधारकं पीतपरिधानं रुचिरं गोपीनां नेत्रोत्पलैरर्चिता |
शिरोभूषणं प्रियं यस्य तादृशं श्रीवत्सचिह्नम् उदारकौस्तुभाख्यमणिधारकं पीतपरिधानं रुचिरं गोपीनां नेत्रोत्पलैरर्चिता मूति(र्ति)र्यस्य तादृशं गवां गोपालानां च सङ्घैः परिवेष्टितं मधुरवेणुवादनासक्तं दिव्यभूषणयुक्तविग्रहं गोविन्दं श्रीकृष्णं भजे इत्यर्थः ॥ २ ॥ |
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इत्यर्थः ॥ २ ॥ |
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1. ग. गजर्मुक्तिकं. |
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2. मुक्तावलीं. |
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3.क.कृष्णम्दीवर. |
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