"पृष्ठम्:गोपालसहस्रनामस्तोत्रम्.pdf/२९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
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{{gap}}पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे |
{{gap}}पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति । |
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{{gap}}तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥' (गी. 9-26)}} |
{{gap}}तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥' (गी. 9-26)}} |
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{{gap}}'अहं त्वा सर्वपापेभ्यो |
{{gap}}'अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयि ष्यामि' (गी. 18-66) |
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इति स्मरणात् । '''विश्वतोमुखः'''- सर्वत्र मुखं यस्य सः । |
इति स्मरणात् । '''विश्वतोमुखः'''- सर्वत्र मुखं यस्य सः । |
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पङ्क्तिः ३०: | पङ्क्तिः ३०: | ||
आदिश्चासौ कर्ता च '''आदिकर्ता''' । महतः विपुलस्य प्रपञ्चस्य कर्ता |
आदिश्चासौ कर्ता च '''आदिकर्ता''' । महतः विपुलस्य प्रपञ्चस्य कर्ता |
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'''महाकर्ता'''। '''महाकालः''' |
'''महाकर्ता'''। '''महाकालः'''-प्रलयकाले महान्तं प्रपञ्चं स्वस्मिन् |
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कलयति सङ्कलयति एकीभावयतीति महाकालः । '''प्रतापवान्''' - |
कलयति सङ्कलयति एकीभावयतीति महाकालः । '''प्रतापवान्''' - |
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परानभिभावनीयत्वं प्रताप: तद्वान् । जगत् जीवयतीति जगज्जीवः |
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सर्वजगत्प्राणनहेतुः । 'को ह्येवान्यात् |
सर्वजगत्प्राणनहेतुः । 'को ह्येवान्यात् |
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