"पृष्ठम्:गोपालसहस्रनामस्तोत्रम्.pdf/४३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
इत्यादिकमिह भाव्यम् । ''' |
इत्यादिकमिह भाव्यम् । '''द्वारकावासतत्त्वज्ञः''' द्वारकायां वासस्य तत्त्वं याथात्म्यं |
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जानातीति तादृशः । द्वारकानिलय इत्यर्थः । '''हुताशनवरप्रदा'''- |
जानातीति तादृशः । द्वारकानिलय इत्यर्थः । '''हुताशनवरप्रदा'''- |
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हुताशनस्याग्नेः '''वरं''' प्रददातीति तादृशः । अग्नेर्दाहशक्तिं प्रददातीत्यर्थः ।।२५॥ |
हुताशनस्याग्नेः '''वरं''' प्रददातीति तादृशः । अग्नेर्दाहशक्तिं प्रददातीत्यर्थः ।।२५॥ |
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पङ्क्तिः ११: | पङ्क्तिः ११: | ||
'''यमुनावेगसंहारी''' .- यमुनानद्याः वेगं संहरतीति तादृशः। वसुदेवो |
'''यमुनावेगसंहारी''' .- यमुनानद्याः वेगं संहरतीति तादृशः। वसुदेवो |
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यदा कृष्णं शिरसि |
यदा कृष्णं शिरसि गृहीत्वा ययौ तदा यमुना वेगमुपसंहृत्य जानुमात्रपरिमिता |
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प्रवहति स्मेति प्रसिद्धम् । नीलाम्बरं धरतीति '''नीलाम्बरधरः'''। '''प्रभुः''' -- |
प्रवहति स्मेति प्रसिद्धम् । नीलाम्बरं धरतीति '''नीलाम्बरधरः'''। '''प्रभुः''' -- |
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समर्थः । मनुष्यसधर्मतया अवतरन्नपि भोगापवर्गप्रदानसमर्थ इत्यर्थः । '''विभुः''' |
समर्थः । मनुष्यसधर्मतया अवतरन्नपि भोगापवर्गप्रदानसमर्थ इत्यर्थः । '''विभुः''' |
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सर्वगतः देशपरिच्छेदरहितः। '''शरासनः''' --- शराः शत्रून् प्रति अस्यन्ते |
सर्वगतः देशपरिच्छेदरहितः। '''शरासनः''' --- शराः शत्रून् प्रति अस्यन्ते |
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क्षिप्यन्तेऽनेनेति शरासनः । '''धन्वी''' - शार्ङ्गाख्यं धनुरस्यास्तीति धन्वी । |
क्षिप्यन्तेऽनेनेति शरासनः । '''धन्वी''' - शार्ङ्गाख्यं धनुरस्यास्तीति धन्वी । |
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'''गणेश''': ... गणानां परिवाराणामनन्तगरुडादीनामीशः नियन्ता। ''' |
'''गणेश''': ... गणानां परिवाराणामनन्तगरुडादीनामीशः नियन्ता। '''गणनायकः''' |
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विघ्नसमूहनिवर्तकः । गोपीगणानां नियन्ता गोपीगणानां नेतेति वा अर्थः ॥ २६॥ |
विघ्नसमूहनिवर्तकः । गोपीगणानां नियन्ता गोपीगणानां नेतेति वा अर्थः ॥ २६॥ |
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पङ्क्तिः २६: | पङ्क्तिः २६: | ||
{{gap}}'''लक्ष्मणः''' --- लक्ष्मीसम्पन्न:, लक्ष्मणस्वरूपो वा। '''लक्षणः-''' |
{{gap}}'''लक्ष्मणः''' --- लक्ष्मीसम्पन्न:, लक्ष्मणस्वरूपो वा। '''लक्षणः-''' |
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सर्वं लक्षयति पश्यतीति । करचरणादिषु शुभचिह्नमस्यास्तीति वा । '''लक्ष्यः''' -- |
सर्वं लक्षयति पश्यतीति । करचरणादिषु शुभचिह्नमस्यास्तीति वा । '''लक्ष्यः''' -- |
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योगिदृश्यः । जीवरूपस्य शरस्य वेधस्थानभूत इति वा । 'प्रणवो धनुः शरो |
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पङ्क्तिः ३२: | पङ्क्तिः ३२: | ||
{{gap}}26 a. ग. वेगसंघारी |
{{gap}}26 a. ग. वेगसंघारी |
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{{gap}}27 a ग. ङ. लक्ष्मणो लक्ष्मणो लक्षो |
{{gap}}27 a ग. ङ. लक्ष्मणो लक्ष्मणो लक्षो |
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{{gap}}27 b क. |
{{gap}}27 b क. विनाशकः |
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{{gap}}27 d क. नामनारूढः |
{{gap}}27 d क. नामनारूढः |
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{{gap}}{{gap}}ख. वमनो वमनारूढः |
{{gap}}{{gap}}ख. वमनो वमनारूढः |
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{{gap}}{{gap}}घ. बलिजिद्विक्रमत्रयः for वामनो वामनारुहः |
{{gap}}{{gap}}घ. बलिजिद्विक्रमत्रयः for वामनो वामनारुहः |
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{{gap}}{{gap}}ग. पुस्तके |
{{gap}}{{gap}}ग. पुस्तके एतावच्छ्लोकपर्यन्तमेवोपलभ्यते । |
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