"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१२३" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १०८:
 
 
अभिष्टवे ‘नाके सुपर्णम्' इत्येषा। सूत्रितं च - ‘ नाके सुपर्णमुप यत्पतन्तमिति समाप्य प्रणवेनोपविशेत् ' (आश्व. श्रौ. [https://sa.wikisource.org/s/1auy ४. ७]) इति ॥
 
नाके॑ सुप॒र्णमुप॒ यत्पत॑न्तं हृ॒दा वेन॑न्तो अ॒भ्यच॑क्षत त्वा ।
पङ्क्तिः १५८:
 
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{{टिप्पणी|
१०.१२३.६ नाके सुपर्णमिति --
 
द्र. [https://sa.wikisource.org/s/2a05 यामम्] (ग्रामगेयः)
 
[https://sa.wikisource.org/s/2a06 यामम्] (आरण्यकम्)
}}
 
 
{{ऋग्वेदः मण्डल १०}}
"https://sa.wikisource.org/wiki/ऋग्वेदः_सूक्तं_१०.१२३" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्