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अथासूत पुनर्देवी |
अथासूत पुनर्देवी तनयामतनुद्युतिम् |
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सत्संगतिरिव प्रीति मनगुलेरिवाश्रयम् ॥ ७२ ।। |
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सत्संगतिरिव प्रीतिं मञ्चगुप्तेरिवाश्रयम् ॥ ७२ ॥ |
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रत्नप्रभाभिधानाभूत्कन्यकासौ. मनोभुवः । |
रत्नप्रभाभिधानाभूत्कन्यकासौ. मनोभुवः । |
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रत्नमालेव विहिता वेधसा वि<small><ref>१</ref></small>हितैर्गुणैः ॥ ७३ ॥ |
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वनप्रभोऽयं युतिमान्युवा क्षीरोदवासिनः । |
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पुत्रीममृतवर्णस्य प्रापामृतवती वधूम् |
पुत्रीममृतवर्णस्य प्रापामृतवती वधूम् ॥ ७४ ।। |
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विद्याधरेन्द्रतनयां स तामासाद्य सुन्दरीम् । |
विद्याधरेन्द्रतनयां स तामासाद्य सुन्दरीम् । |
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बभार |
बभार कान्तिं कामस्य रतिसंभोगशालिनः ॥ ७९ ॥ |
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अथ हेमप्रभो दृष्ट्वा पुत्रमारमगुणाधिकम् । |
अथ हेमप्रभो दृष्ट्वा पुत्रमारमगुणाधिकम् । |
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यौवराज्येऽभिषेच्याशु परां प्रीतिमवाप्तवान् ॥ ७६ ॥ |
यौवराज्येऽभिषेच्याशु परां प्रीतिमवाप्तवान् ॥ ७६ ॥ |
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साहं रत्नप्रभा नाम |
साहं रत्नप्रभा नाम क<small><ref>१</ref></small>न्या हेमप्रभात्मजा! |
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अश्रौषं त्वद्यशः शुनं वर्ण्यमानं पितुर्गुहे ॥ ७७ |
अश्रौषं त्वद्यशः शुनं वर्ण्यमानं पितुर्गुहे ॥ ७७ ॥ |
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तवो मां भृशसंतप्तामभिलाषवशीकृताम् । |
तवो मां भृशसंतप्तामभिलाषवशीकृताम् । |
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उवाच पार्वती |
उवाच पार्वती स्वप्ने पुत्रि मा विप्लवा भव ॥ ७८ ॥ |
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प्रातस्त्वं नरवाहेन मुहूर्ते शुभलक्षणे । |
प्रातस्त्वं नरवाहेन मुहूर्ते शुभलक्षणे । |
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स्वयं गत्वा तदुद्देशं पाणिग्रहणमास्यसि || ७९ ।। |
स्वयं गत्वा तदुद्देशं पाणिग्रहणमास्यसि || ७९ ।। |
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इति |
<small><ref>३</ref></small>इति स्वप्ने यथादिष्टं देव्या मात्रे न्यवेदयम् । |
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तद्विरा स्वामिहस्यं च प्राताहं विद्यया प्रभो ॥ |
तद्विरा स्वामिहस्यं च प्राताहं विद्यया प्रभो ॥ ८०॥ |
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उक्त्वेति लज्जाललितक्षामाक्षरविसंस्थुला। |
उक्त्वेति लज्जाललितक्षामाक्षरविसंस्थुला। |
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नतानना महीं चक्रे इशा नीलोत्पलाकुलाम् ॥ ८१ |
नतानना महीं चक्रे इशा नीलोत्पलाकुलाम् ॥ ८१ ॥ |
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मुखाजसौरभाकृष्टगुञ्जमरविभ्रमम् । |
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मुखाञ्जसौरभाकृष्टगुञ्जमरविभ्रमम् । |
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रत्नप्रभावचः श्रुत्वा जहर्ष नरवाहनः ।। ८२ ॥ |
रत्नप्रभावचः श्रुत्वा जहर्ष नरवाहनः ।। ८२ ॥ |
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भेजे कुण्डलकेयूरकान्तिपिङ्ग से तत्सभाम् ॥ ८४ ।। |
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भेजे कुण्डलकेयूरकान्तिपिङ्गं<small><ref>४</ref></small> से तत्सभाम् ॥ ८४ ।। |
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१."फुलै" ख । २. "देव" स्व । ३."प्रात" ख । ४. "ङ्गा" स्त. |
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