"पृष्ठम्:काव्यमाला (बृहत्कथामञ्जरी).pdf/४८७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
→अपरिष्कृतम्: <poem> तमाह मर्कटो दूराद्यतः कार्यस्त्वया सखे । अस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती |
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | ||
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{{rh|left=१४. रत्नप्रभायाम-निश्चयदत्ताख्यायिकां | ] center=बृहत्कथामञ्चरी।right=४८७}} |
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{{rh|left= रनमायाम|center=ताख्यायिका|right=४८७}} |
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
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तमाह मर्कटो |
तमाह मर्कटो दूराद्यत्नः कार्यस्त्वया सखे । |
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अस्व मन्त्रसूत्रस्य दारणे प्रणयादिति ॥ २२१ ॥ |
अस्व मन्त्रसूत्रस्य दारणे प्रणयादिति ॥ २२१ ॥ |
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तथेत्युक्त्वा स संप्राप क्षणांतुहिनभूघरम् । |
तथेत्युक्त्वा स संप्राप क्षणांतुहिनभूघरम् । |
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भासि भासि शशाङ्कानामाकल्पमिव संचयम् ॥ २२२ ॥ |
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अनुरागपरां भेजे न च संगमनिर्वृतः । |
अनुरागपरां भेजे न च संगमनिर्वृतः । |
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गान्धर्वेण विवाहेन स तां तन मृगेक्षणाम् ।। २२३ ॥ |
गान्धर्वेण विवाहेन स तां तन मृगेक्षणाम् ।। २२३ ॥ |
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तया मररसस्सेरभवसंभोगसुन्दरम् । |
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तया स्मररसस्मेरभवसंभोगसुन्दरम् । |
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अवाप |
अवाप प्रेमसर्वस्वमतीतां कथयन्कथाम् ॥ २२४ ।। |
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प्रेयस्या दत्तविद्योऽथ सुहृदं मर्कटं ययौ । |
प्रेयस्या दत्तविद्योऽथ सुहृदं मर्कटं ययौ । |
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द्रष्टुं कदाचित्सोत्कण्ठः कण्ठसूत्रं व्यचिन्तयत् ।। २२५ ॥ |
द्रष्टुं कदाचित्सोत्कण्ठः कण्ठसूत्रं व्यचिन्तयत् ।। २२५ ॥ |
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तस्मिन्गते निर्जनस्थां तो तारुण्यतरङ्गिणीम् । |
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कश्चिद्विद्याधरसुतो ददर्श स्तबकस्तनीम् ॥ २२६ ॥ |
कश्चिद्विद्याधरसुतो ददर्श स्तबकस्तनीम् ॥ २२६ ॥ |
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करिणीदन्तकान्तेषु तस्मा गात्रेषु बिम्बितः । |
करिणीदन्तकान्तेषु तस्मा गात्रेषु बिम्बितः । |
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स |
स सुधालहरीमग्नः शशाङ्कश्रियमाययौ ।। २२७ ।। |
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भज मामिति तेनोक्ता सा लिलेख |
भज मामिति तेनोक्ता सा लिलेख ह्रिया नता। |
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हेलया चरणाग्रेण |
हेलया चरणाग्रेण कटाक्षशबलां भुवम् ॥ २२८ ॥ |
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मौनादत्तावकाशां स तामालिङ्गच ससाध्वसम् । |
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मौनाद्दत्तावकाशां स तामालिङ्ग्य ससाध्वसम् । |
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मा मा परवधूरसि त्व|क्तिगलिताक्षरम् । |
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मा मा परवधूरस्मि त्वर्धोक्तिगलिताक्षरम् । |
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स चुचुम्ब मुखं तस्या लज्जामीलितलोचनम् ।। २३० ॥ |
स चुचुम्ब मुखं तस्या लज्जामीलितलोचनम् ।। २३० ॥ |
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क्षामाननाअपर्यस्तहारफेनप्रकम्पिनीम् । |
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<small><ref>१</ref></small>क्षामाननाब्जपर्यस्तहारफेनप्रकम्पिनीम् । |
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स दूषयित्वा प्रययौ ता मातङ्ग |
स दूषयित्वा प्रययौ ता मातङ्ग इवाब्जिनीम् ।। २३१ ।। |
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तस्मिन्प्रयाते सा तस्थावतृप्ता तत्समागमे । |
तस्मिन्प्रयाते सा तस्थावतृप्ता तत्समागमे । |
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स्वेदासस्तम्मिल्लच्छिन्नहाराङ्कितस्तनी ।। २३२ ।। |
स्वेदासस्तम्मिल्लच्छिन्नहाराङ्कितस्तनी ।। २३२ ।। |
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<small>"१. श्यामान"</small> |