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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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तस्मिन्हते व्योमगतिर्भवितासीति शासनम् । |
तस्मिन्हते व्योमगतिर्भवितासीति शासनम् । |
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स्वप्ने भगवतः प्राप्य तदकार्षं यथोदितम् ॥ २५९ ॥ |
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ततः प्रभृति मे जातः कुबेरो वरदः सखा । |
ततः प्रभृति मे जातः कुबेरो <small><ref>१</ref></small>वरदः सखा । |
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तद्धनैः पूरयाम्येनामद्य वारविलासिनीम् ॥ २६० ॥ |
तद्धनैः पूरयाम्येनामद्य वारविलासिनीम् ॥ २६० ॥ |
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इत्युक्त्वा धनदं ध्यात्वा सुवर्णपुरुषान्ददौ । |
इत्युक्त्वा धनदं ध्यात्वा सुवर्णपुरुषान्ददौ । |
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पञ्च तस्यै सदा येषां |
पञ्च तस्यै सदा येषां छिन्नमङ्गं प्रजायते ॥ २६१ ॥ |
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तान्दत्वा व्योमगो गूढं स निजं नगरं ययौ । |
तान्दत्वा व्योमगो गूढं स निजं नगरं ययौ । |
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तद्वियोगाग्नितप्ता च सा तस्थौ निधनो<small><ref>२</ref></small>द्यता ॥ २६२ ॥ |
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छित्त्वा तान्बहुशो दत्वा द्विजेभ्यः |
छित्त्वा तान्बहुशो दत्वा द्विजेभ्यः काञ्चना<small><ref>३</ref></small>न्नरान् । |
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षण्मासानवधिं चक्रे प्राणत्यागे प्रियं विना ॥ २६३ ॥ |
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भक्ति मदनमालाया भूपतिः पुनराययौ ॥ २६४ ॥ |
भक्ति मदनमालाया भूपतिः पुनराययौ ॥ २६४ ॥ |
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चिर संगमसंतोषप्रत्युज्जीवितया तया । |
चिर संगमसंतोषप्रत्युज्जीवितया तया । |
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रममाणश्चिरं तस्थौ स राजा गुप्तमन्दिरे ॥ २६५ ॥ |
रममाणश्चिरं तस्थौ स राजा गुप्तमन्दिरे ॥ २६५ ॥ |
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मनोरथार्थमुत्तीर्य सौहार्दै तेन भूभुजा ॥ २६८ ॥ |
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मनोरथा<small><ref>७</ref></small>र्थमुत्तीर्य सौहार्दं तेन भूभुजा ॥ २६८ ॥ |
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१."धनदः" ख । २. "त्सुका" ख.। ३."नोत्तरान्" ख । ४. एतात्कोष्टान्तर्गतपाठः खा-पुस्तेके त्रुटितः । <br/> |
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५. xxxxम्नाजा पुरः स्थितः " ख । ७. "ब्धि" ख । ८. "एतत्कोष्टान्तर्गतपाठः ख-पुस्तके त्रुटित्ः ॥ |
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