"पृष्ठम्:काव्यमाला (बृहत्कथामञ्जरी).pdf/४९७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
→अपरिष्कृतम्: <poem> विप्रो विभूतिलोमाख्यो वाराणस्यामभूत्पुरा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती |
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{{rh|left=१४. रत्नप्रभायाम् अजराख्यायिका |
{{rh|left=१४. रत्नप्रभायाम् अजराख्यायिका ॥ |center= बहत्कथामञ्जरी ॥ |right=४९७}} |
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विप्रो विभूतिलोमाख्यो वाराणस्यामभूत्पुरा । |
विप्रो विभूतिलोमाख्यो वाराणस्यामभूत्पुरा । |
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दरिद्रश्च कुलीनामां नित्यं हि श्रीः परामुखी ।। ३४६ ।। |
दरिद्रश्च कुलीनामां नित्यं हि श्रीः परामुखी ।। ३४६ ।। |
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धनितो रूपसंपन्नान्स दृष्ट्वा |
धनितो रूपसंपन्नान्स दृष्ट्वा पर्यतज्यत । |
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किमहं विहितो धात्रा |
किमहं विहितो धात्रा शुष्ककुब्ज इव द्रुमः ॥ ३४७ ॥ |
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मानी तपोवने तीव्रतपःक्षपितविग्रहः ॥ ३४८।। |
मानी तपोवने तीव्रतपःक्षपितविग्रहः ॥ ३४८।। |
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अनेकसयमक्षामं तमेत्य त्रिदिवेश्वरः। |
अनेकसयमक्षामं तमेत्य त्रिदिवेश्वरः। |
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उवाच जम्बुकाकारः |
उवाच जम्बुकाकारः पूतिविस्त्रवणाकुलः(?) ॥ ३४९ ॥ |
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(अहो नैवास्ति संतोवः कस्यचिद्भगवान्द्रिजः । |
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(<small><ref>१</ref></small>अहो नैवास्ति संतोवः कस्यचिद्भगवान्द्विजः । |
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धनार्थी पुण्यमात्मानमिदं न बहु मन्यसे) ॥ |
धनार्थी पुण्यमात्मानमिदं न बहु मन्यसे) ॥ ३५० ।। |
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इति तस्य वचः श्रुत्वा विचिन्य मनसा क्षणाम् । |
इति तस्य वचः श्रुत्वा विचिन्य मनसा क्षणाम् । |
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सत्यमेतदिति ज्ञात्वा त्यक्तकामो ययौ गृहान् ॥ |
सत्यमेतदिति ज्ञात्वा त्यक्तकामो ययौ गृहान् ॥ ३५३ ।। |
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इति |
इति बुद्धिमतां देव देवनस्खलिता मतिः । |
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युक्तिमात्रोपदेशेन सहसैव प्रसीदति ॥ |
युक्तिमात्रोपदेशेन सहसैव प्रसीदति ॥ ३५४ ।। |
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एवं नर्मकथाभिस्ते कोपयन्तः परस्परम् |
एवं नर्मकथाभिस्ते कोपयन्तः परस्परम् |
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सचिवा नरवाहस्य हसन्तश्च मुदं ययुः ॥ |
सचिवा नरवाहस्य हसन्तश्च मुदं ययुः ॥ ३५५ ॥ |
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१.एतत्कोष्ठान्तर्गतपाठः ख्-पुस्तके त्रुतितः । २. "ना राज्ञा यस्त्वंलमुपय्जितः" ख । एतत्कोष्ठान्तर्गतपाठः ख्-पुस्तके त्रुटितः ॥ |
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