"पृष्ठम्:रामायणमञ्जरी.pdf/१२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
{{center|रामायणमारी।}} |
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
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रामायणमारी। |
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अहो सारस्वतः कोऽपि तरुणः करुणावतः । |
अहो सारस्वतः कोऽपि तरुणः करुणावतः । |
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अवतीर्य तव मुने प्रसरः सरसः स्वयम् ॥ २३ ॥ |
अवतीर्य तव मुने प्रसरः सरसः स्वयम् ॥ २३ ॥ |
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पङ्क्तिः २३: | पङ्क्तिः २३: | ||
मनुना मनुजेन्द्रेण मूर्ती कीर्तिरिवात्मनः ।। ३३ ।। |
मनुना मनुजेन्द्रेण मूर्ती कीर्तिरिवात्मनः ।। ३३ ।। |
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मणिमन्दिरसंभारप्रभावलयमालिता। |
मणिमन्दिरसंभारप्रभावलयमालिता। |
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कीर्तिकल्लोलिनी कूले बिम्बितेवामरावती ॥ ३४ ॥ |
कीर्तिकल्लोलिनी कूले बिम्बितेवामरावती ॥ ३४ ॥</poem> |
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१. गीतस्वराविष्टपरौ' ग. २. 'रामस्याग्रेऽपि' ग; परंतु अटो लडि दुर्वारत्वेन 's |
१. गीतस्वराविष्टपरौ' ग. २. 'रामस्याग्रेऽपि' ग; परंतु अटो लडि दुर्वारत्वेन 's |
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यताम्' इति स्यात्. ३. 'रसा' क. ४. 'कर्म्या' ग. |
यताम्' इति स्यात्. ३. 'रसा' क. ४. 'कर्म्या' ग. |