"पृष्ठम्:काव्यमाला (चतुर्दशो गुच्छकः).pdf/५९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
इन्दुदूतम् । |
<poem>इन्दुदूतम् । |
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किंचिहरे भवति च ततस्तत्र दुर्गोऽचलाख्यो |
किंचिहरे भवति च ततस्तत्र दुर्गोऽचलाख्यो |
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पङ्क्तिः २५: | पङ्क्तिः २५: | ||
सिद्धद्रङ्गे क्षणमथ सरम्बन्युपेते विलम्ब्य |
सिद्धद्रङ्गे क्षणमथ सरम्बन्युपेते विलम्ब्य |
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राजद्र भुवनविदितं याम्यसि व निमेषात |
राजद्र भुवनविदितं याम्यसि व निमेषात |
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