"पृष्ठम्:शिवगीता.djvu/29" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १०: | पङ्क्तिः १०: | ||
आकाङ्क्षते करे धर्तुं बालश्चन्द्रमसं यथा ॥ ८ ॥ |
आकाङ्क्षते करे धर्तुं बालश्चन्द्रमसं यथा ॥ ८ ॥ |
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तथा त्वं काममोहेन जयं तस्याभिवाञ्छसि ॥ ९ ॥ |
तथा त्वं काममोहेन जयं तस्याभिवाञ्छसि ॥ ९ ॥ |
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{{gap}}{{gap}}श्रीराम उवाच । |
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क्षत्रियोऽहं मुनिश्रेष्ठ भार्या मे रक्षसा हृता । |
क्षत्रियोऽहं मुनिश्रेष्ठ भार्या मे रक्षसा हृता । |
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यदि तं न निहन्म्याशु जीवने मेऽस्ति किं फलम् ॥१०॥ }} |
यदि तं न निहन्म्याशु जीवने मेऽस्ति किं फलम् ॥१०॥ }} |