"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१२३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १७३:
[https://sa.wikisource.org/s/2a06 यामम्] (आरण्यकम्)
ज्योतिष्टोमे प्रवर्ग्यप्रकरणम् -- प्रैतु ब्रह्मणस्पतिरिति प्रव्रजत्सु। नाके सुपर्णमित्यनुसंयन्। - शांश्रौसू. [https://sa.wikisource.org/s/148y ५.१०.१५]
(यागार्थं अध्वर्य्वादय आहवनीयं व्रजन्ति। तेषु प्रवृत्तव्रजनेषु प्रैतु इति)
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