"रामायणम्/बालकाण्डम्/सर्गः ७४" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १३:
'''श्रीमद्वाल्मीकियरामायणे बालकाण्डे चतुःसप्ततितमः सर्गः ॥१-७४॥'''<BR><BR>
 
अथ रात्र्याम् व्यतीतायाम् विश्वामित्रो महामुनिः ।<BR><BR>
आपृष्ट्वा तौ च राजानौ जगाम उत्तर पर्वतम् ॥१-७४-१॥<BR><BR>
 
विश्वामित्रो गते राजा वैदेहम् मिथिला अधिपम् ।<BR><BR>
आपृष्ट्व इव जगाम आशु राजा दशरथः पुरीम् ॥१-७४-२॥<BR><BR>
 
अथ राजा विदेहानाम् ददौ कन्या धनम् बहु ।<BR><BR>
पङ्क्तिः ६१:
तस्मिन् तमसि घोरे तु भस्म छन्न इव सा चमूः ॥१-७४-१६॥<BR>
 
ददर्श भीम संकाशम् जटा मण्डल धारिणम् ।<BR><BR>
भार्गवम् जमदग्ने अयम् राजा राज विमर्दनम् ॥१-७४-१७॥<BR>
 
कैलासम् इव दुर्धर्षम् काल अग्निम् इव दुःसहम् ।<BR><BR>
ज्वलंतम् इव तेजोभिः दुर् निरीक्ष्यम् पृथक् जनैः ॥१-७४-१८॥<BR>
 
स्कन्धे च आसज्य परशुम् धनुः विद्युत् गण उपमम् ।<BR><BR>
प्रगृह्य शरम् उग्रम् च त्रि पुर घ्नम् यथा शिवम् ॥१-७४-१९॥<BR><BR>
 
तम् दृष्ट्वा भीम संकाशम् ज्वलंतम् इव पावकम् ।<BR><BR>
वसिष्ठ प्रमुखा विप्रा जप होम परायणाः ॥१-७४-२०॥<BR>
 
पङ्क्तिः ७६:
कच्चित् पितृ वध अमर्षी क्षत्रम् न उत्सादयिष्यति ॥१-७४-२१॥<BR>
 
पूर्वम् क्षत्र वधम् कृत्वा गत मन्युः गत ज्वरः ।<BR><BR>
क्षत्रस्य उत्सादनम् भूयो न खलु अस्य चिकीर्षितम् ॥१-७४-२२॥<BR><BR>
 
एवम् उक्त्वा अर्घ्यम् आदाय भार्गवम् भीम दर्शनम् ।<BR><BR>
ऋषयो राम राम इति मधुरम् वाक्यम् अब्रुवन् ॥१-७४-२३॥<BR><BR>
 
प्रतिगृह्य तु ताम् पूजाम् ऋषि दत्ताम् प्रतापवान् ।<BR><BR>
रामम् दाशरथिम् रामो जामदग्न्यो अभ्यभाषत ॥१-७४-२४॥<BR><BR>
 
 
"https://sa.wikisource.org/wiki/रामायणम्/बालकाण्डम्/सर्गः_७४" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्