"ऋग्वेदः सूक्तं १.६" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
युञ्जन्ति बरध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुषः |
रोचन्तेरोचना दिवि ||
 
<pre style="background: #ffffff; border: 0px; line-height: 150%; padding-left: 2em; margin: 0em;">
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे |
शोणा धर्ष्णू नर्वाहसा ||
 
युञ्जन्ति बरध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुषः |
केतुं कर्ण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे |
रोचन्तेरोचना दिवि ||
समुषद्भिरजायथाः ||
 
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे |
आदह सवधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे |
शोणा धर्ष्णू नर्वाहसा ||
दधाना नामयज्ञियम ||
 
केतुं कर्ण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे |
वीळु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्निभिः |
समुषद्भिरजायथाः ||
अविन्द उस्रिया अनु ||
 
आदह सवधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे |
देवयन्तो यथा मतिमछा विदद्वसुं गिरः |
दधाना नामयज्ञियम ||
महामनूषत शरुतम ||
 
वीळु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्निभिः |
इन्द्रेण सं हि दर्क्षसे संजग्मानो अबिभ्युषा |
अविन्द उस्रिया अनु ||
मन्दू समानवर्चसा ||
 
देवयन्तो यथा मतिमछा विदद्वसुं गिरः |
अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति |
महामनूषत शरुतम ||
गणैरिन्द्रस्य काम्यैः ||
 
इन्द्रेण सं हि दर्क्षसे संजग्मानो अबिभ्युषा |
अतः परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि |
मन्दू समानवर्चसा ||
समस्मिन्न्र्ञ्जते गिरः ||
 
अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति |
इतो वा सातिमीमहे दिवो वा पार्थिवादधि |
गणैरिन्द्रस्य काम्यैः ||
इन्द्रं महोवा रजसः ||
 
अतः परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि |
समस्मिन्न्र्ञ्जते गिरः ||
 
इतो वा सातिमीमहे दिवो वा पार्थिवादधि |
इन्द्रं महोवा रजसः ||
</pre>
 
* [[ऋग्वेद:]]
"https://sa.wikisource.org/wiki/ऋग्वेदः_सूक्तं_१.६" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्