"ऋग्वेदः सूक्तं १.१३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
सुसमिद्धो न आ वह देवानग्ने हविष्मते | ▼
होतः पावक यक्षि च || ▼
<pre style="background: #ffffff; border: 0px; line-height: 150%; padding-left: 2em; margin: 0em;">
मधुमन्तं तनूनपाद यज्ञं देवेषु नः कवे | ▼
अद्या कर्णुहि वीतये || ▼
नराशंसमिह परियमस्मिन यज्ञ उप हवये | ▼
मधुजिह्वंहविष्क्र्तम || ▼
अग्ने सुखतमे रथे देवानीळित आ वह | ▼
असि होता मनुर्हितः || ▼
सत्र्णीत बर्हिरानुषग घर्तप्र्ष्ठं मनीषिणः | ▼
यत्राम्र्तस्य चक्षणम || ▼
वि शरयन्तां रताव्र्धो दवारो देवीरसश्चतः | ▼
अद्या नूनं च यष्टवे || ▼
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन यज्ञ उप हवये | ▼
इदं नो बर्हिरासदे || ▼
ता सुजिह्वा उप हवये होतारा दैव्या कवी | ▼
यज्ञं नो यक्षतामिमम || ▼
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः | ▼
बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः || ▼
इह तवष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप हवये | ▼
अस्माकमस्तुकेवलः || ▼
अव सर्जा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः | ▼
पर दातुरस्तु चेतनम || ▼
सवाहा यज्ञं कर्णोतनेन्द्राय यज्वनो गर्हे | ▼
तत्र देवानुप हवये ||▼
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*[[ऋग्वेद:]]
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