"ऋग्वेदः सूक्तं १.२८" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
यत्र गरावा पर्थुबुध्न ऊर्ध्वो भवति सोतवे |
उलूखलसुतानामवेद विन्द्र जल्गुलः ||
यत्र दवाविव जघनाधिषवण्या कर्ता |
उलू... ||
यत्र नार्यपच्यवमुपच्यवं च शिक्षते |
उलू... ||
यत्र मन्थां विबध्नते रश्मीन यमितवा इव |
उलू... ||
यच्चिद धि तवं गर्हेग्र्ह उलूखलक युज्यसे |
इह दयुमत्तमं वद यजतामिव दुन्दुभिः ||
उत सम ते वनस्पते वातो वि वात्यग्रमित |
अथो इन्द्राय पातवे सुनु सोममुलूखल ||
आयजी वाजसातमा ता हयुच्चा विजर्भ्र्तः |
हरी इवान्धांसि बप्सता ||
ता नो अद्य वनस्पती रष्वाव रष्वेभिः सोत्र्भिः |
इन्द्राय मधुमत सुतम ||
उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सर्ज |
नि धेहि गोरधि तवचि ||
*[[ऋग्वेद:]]
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