"रामायणम्/अयोध्याकाण्डम्/सर्गः ९७" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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{{रामायणम्/अयोध्याकाण्डम्}}
<poem>
<div class="verse">
<pre>
सुसंरब्धं तु सौमित्रिं लक्ष्मणं क्रोधमूर्च्छितम्।
रामस्तु परिसान्त्व्याथ वचनं चेदमब्रवीत् ।। २.९७.१ ।।