"रामायणम्/अयोध्याकाण्डम्/सर्गः १००" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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{{रामायणम्/अयोध्याकाण्डम्}}
<poem>
<div class="verse">
<pre>
जटिलं चीरवसनं प्राञ्जलिं पतितं भुवि ।
ददर्श रामो दुर्दर्शं युगान्ते भास्करं यथा ।। २.१००.१ ।।