"लघुसिद्धान्तकौमुदी/विसर्गसन्धिप्रकरणम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

विसर्गसन्धिप्रकरणम्
 
(लघु) लघुसिद्धान्तकौमुदी using AWB
पङ्क्तिः १:
{{लघुसिद्धान्तकौमुदी}}
 
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अथ विसर्गसन्धिः<BR>
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<B>'''विसर्जनीयस्य सः॥ लसक_१०३ = पा_८,३.३४॥</B>'''<BR>
खरि। विष्णुस्त्राता॥<BR>
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<B>'''वा शरि॥ लसक_१०४ = पा_८,३.३६॥</B>'''<BR>
शरि विसर्गस्य विसर्गो वा। हरिः शेते, हरिश्शेते॥<BR>
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<B>'''समजुषो रुः॥ लसक_१०५ = पा_८,२.६६॥</B>'''<BR>
पदान्तस्य सस्य सजुषश्च रुः स्यात्॥<BR>
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<B>'''अतो रोरप्लुतादप्लुतादप्लुते॥ लसक_१०६ = पा_६,१.११३॥</B>'''<BR>
अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुते ऽति। शिवोर्ऽच्यः॥<BR>
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<B>'''हशि च॥ लसक_१०७ = पा_६,१.११४॥</B>'''<BR>
तथा। शिवो वन्द्यः॥<BR>
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<B>'''भो भगो अघो अपूर्वस्य यो ऽशि॥ लसक_१०८ = पा_८,३.१७॥</B>'''<BR>
एतत्पूर्वस्य रोर्यादेशो ऽशि। देवा इह, देवायिह। भोस् भगोस् अघोस् इति सान्ता निपाताः। तेषां रोर्यत्वे कृते॥<BR>
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<B>'''हलि सर्वेषाम्॥ लसक_१०९ = पा_८,३.२२॥</B>'''<BR>
भोभगोअघोअपूर्वस्य यस्य लोपः स्याद्धलि। भो देवाः। भगो नमस्ते। अघो याहि॥<BR>
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<B>'''रो ऽसुपि॥ लसक_११० = पा_८,२.६९॥</B>'''<BR>
अह्नो रेफादेशो न तु सुपि। अहरहः। अहर्गणः॥<BR>
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<B>'''रो रि॥ लसक_१११ = पा_८,३.१४॥</B>'''<BR>
रेफस्य रेफे परे लोपः॥<BR>
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<B>'''ढ्रलोपे पूर्वस्य दीर्घो ऽणः॥ लसक_११२ = पा_६,३.१११॥</B>'''<BR>
ढरेफयोर्लोपनिमित्तयोः पूर्वस्याणो दीर्घः। पुना रमते। हरी रम्यः। शम्भू राजते। अणः किम् ? तृढः। वृढः। मनस् रथ इत्यत्र रुत्वे कृते हशि चेत्युत्वे रोरीति लोपे च प्राप्ते॥<BR>
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<B>'''विप्रतिषेधे परं कार्यम्॥ लसक_११३ = पा_१,४.२॥</B>'''<BR>
तुल्यबलविरोधे परं कार्यं स्यात्। इति लोपे प्राप्ते। पूर्वत्रासिद्धमिति रोरीत्यस्यासिद्धत्वादुत्वमेव। मनोरथः॥<BR>
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<B>'''एतत्तदोः सुलोपो ऽकोरनञ्समासे हलि॥ लसक_११४ = पा_६,१.१३२॥</B>'''<BR>
अककारयोरेतत्तदोर्यः सुस्तस्य लोपो हलि न तु नञ्समासे। एष विष्णुः। स शम्भुः। अकोः किम् ? एषको रुद्रः। अनञ्समासे किम् ? असः शिवः। हलि किम् ? एषो ऽत्र॥<BR>
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<B>'''सो ऽचि लोपे चेत्पादपूरणम्॥ लसक_११५ = पा_६,१.१३४॥</B>'''<BR>
स इत्यस्य सोर्लोपः स्यादचि पादश्चेल्लोपे सत्येव पूर्य्येत। सेमामविड्ढि प्रभृतिम्। सैष दाशरथी रामः॥<BR>
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इति विसर्गसन्धिः॥<BR>
 
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