"लघुसिद्धान्तकौमुदी/तुदादिप्रकरणम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

तुदादिप्रकरणम्
 
(लघु) लघुसिद्धान्तकौमुदी using AWB
पङ्क्तिः १:
{{लघुसिद्धान्तकौमुदी}}
 
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अथ तुदादयः<BR>
<B>'''तुद</B>''' व्यथने॥ १॥<BR>
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<B>'''तुदादिभ्यः शः॥ लसक_६५४ = पा_३,१.७७॥</B>'''<BR>
शपो ऽपवादः। तुदति, तुदते। तुतोद। तुतोदिथ। तुतुदे। तोत्ता। अतौत्सीत्, अतुत॥ <B>'''णुद </B>'''प्रेरणे॥ २॥ नुदति, नुदते। नुनोद। नोत्ता। <B>'''भ्रस्ज</B>''' पाके॥ ३॥ ग्रहिज्येति सम्प्रसारणम्। सस्य श्चुत्वेन शः। शस्य जश्त्वेन जः। भृज्जति, भृज्जते॥<BR>
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<B>'''भ्रस्जो रोपधयो रमन्यतरस्याम्॥ लसक_६५५ = पा_६,४.४७॥</B>'''<BR>
भ्रस्जो रेफस्योपधायाश्च स्थाने रमागमो वा स्यादार्धधातुके। मित्वादन्त्यादचः परः। स्थानषष्ठीनिर्देशाद्रोपधयोर्निवृत्तिः। बभर्ज। बभर्जतुः। बभर्जिथ, बभर्ष्ठ। बभ्रज्ज। बभ्रज्जतुः। बभ्रज्जिथ। स्कोरिति सलोपः। व्रश्चेति षः। बभ्रष्ठ। बभर्जे, बभ्रज्जे। भर्ष्टा, भ्रष्टा। भर्क्ष्यति, भ्रक्ष्यति। क्ङिति रमागमं बाधित्वा सम्प्रसारणं पूर्वविप्रतिषेधेन। भृज्ज्यात्। भृज्ज्यास्ताम्। भृज्ज्यासुः। भर्क्षीष्ट, भ्रक्षीष्ट। अभार्क्षीत्, अभ्राक्षीत्। अभर्ष्ट, अभ्रष्ट॥ <B>'''कृष</B>''' विलेखने॥ ४॥ कृषति कृषते। चकर्ष, चकृषे॥<BR>
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<B>'''अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्॥ लसक_६५६ = पा_६,१.५९॥</B>'''<BR>
उपदेशे ऽनुदात्तो य ऋदुपधस्तस्याम्वा स्याज्झलादावकिति। क्रष्टा, कर्ष्टा। कृक्षीष्ट। <i>''(स्पृशमृशकृषतृपदृपां च्लेः सिज्वा वक्तव्यः)</i>''। अक्राक्षीत्, अकार्क्षीत्, अकृक्षत्। अकृष्ट। अकृक्षाताम्। अकृक्षत। क्सपक्षे अकृक्षत। अकृक्षाताम्। अकृक्षन्त॥ <B>'''मिल</B>''' संगमे॥ ५॥ मिलति, मिलते, मिमेल। मेलिता। अमेलीत्॥ <B>'''मुचॢ</B>''' मोचने॥ ६॥<BR>
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<B>'''शे मुचादीनाम्॥ लसक_६५७ = पा_७,१.५९॥</B>'''<BR>
मुच् लिप् विद् लुप् सिच् कृत् खिद् पिशां नुम् स्यात् शे परे। मुञ्चति, मुञ्चते। मोक्ता। मुच्यात्। मुक्षीष्ट। अमुचत्, अमुक्त। अमुक्षाताम्। <B>'''लुपॢ</B>''' छेदने॥ ७॥ लुम्पति, लुम्पते। लोप्ता। अलुपत्। अलुप्त।<B>''' विदॢ</B>''' लाभे॥ ८॥ विन्दति, विन्दते। विवेद, विवेदे। व्याघ्रभूतिमते सेट्। वेदिता। भाष्यमते ऽनिट्। परिवेत्ता॥ <B>'''षिच</B>''' क्षरणे॥ ९॥ सिञ्चति, सिञ्चते॥<BR>
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<B>'''लिपिसिचिह्वश्च॥ लसक_६५८ = पा_३,१.५३॥</B>'''<BR>
एभ्यश्च्लेरङ् स्यात्। असिचत्॥<BR>
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<B>'''आत्मनेपदेष्वन्यतरस्याम्॥ लसक_६५९ = पा_३,१.५४॥</B>'''<BR>
लिपिसिचिह्वः परस्य च्लेरङ् वा। असिचत, असिक्त॥ <B>'''लिप</B>''' उपदेहे॥ १०॥ उपदेहो वृद्धिः। लिम्पति, लिम्पते। लेप्ता। अलिपत्, अलिपत, अलिप्त//<BR>
<i>''इत्युभयपदिनः।</i>''<BR>
<B>'''कृती</B>''' छेदने॥ ११॥ कृन्तति। चकर्त। कर्तिता। कर्तिष्यति, कर्त्स्यति। अकर्तीत्॥ <B>'''खिद</B>''' परिघाते॥ १२॥ खिन्दति। चिखेद। खेत्ता॥ <B>'''पिश</B>''' अवयवे॥ १३॥ पिंशति। पेशिता॥ <B>'''ओव्रश्चू</B>''' छेदने॥ १४॥ वृश्चति। वव्रश्च। वव्रश्चिथ, वव्रष्ठ। व्रश्चिता, व्रष्टा। व्रश्चिष्यति, व्रक्ष्यति। वृश्च्यात्। अव्रश्चीत्, अव्राक्षीत्॥ <B>'''व्यच</B>''' व्याजीकरणे॥ १५॥ विचति। विव्याच। विविचतुः। व्यचिता। व्यचिष्यति। विच्यात्। अव्याचीत्, अव्यचीत्। व्यचेः कुटादित्वमनसीति तु नेह प्रवर्तते, अनसीति पर्युदासेन कृन्मात्रविषयत्वात्॥ <B>'''उछि</B>''' उञ्छे॥ १६॥ उञ्छति। &न्ब्स्प्॑ऽुञ्छः कणश आदानं कणिशाद्यर्जनं शिलम्।&८२१७॑ इति यादवः॥ <B>'''ऋच्छ</B>''' गतीन्द्रियप्रलयमूर्तिभावेषु॥ १७॥ ऋच्छति। ऋच्छत्यॄतामिति गुणः। द्विहल् ग्रहणस्य अनेक हलुपसक्षणत्वान्नुट्। आनर्च्छ। आनर्च्छतुः। ऋच्छिता॥ <B>'''उज्झ</B>''' उत्सर्गे॥ १८॥ उज्झति॥ <B>'''लुभ</B>''' विमोहने॥ १९॥ लुभति॥<BR>
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<B>'''तीषसहलुभरुषरिषः॥ लसक_६६० = पा_७,२.४८॥</B>'''<BR>
इच्छत्यादेः परस्य तादेरार्धधातुकस्येड्वा स्यात्। लोभिता, लोब्धा। लोभिष्यति॥ <B>'''तृप तृम्फ</B>''' तृप्तौ॥ २०-२१॥ तृपति। ततर्प। तर्पिता। अतर्पीत्। तृम्फति। (<i>''शे तृम्फादीनां नुम् वाच्यः)</i>''। आदिशब्दः प्रकारे, तेन ये ऽत्र नकारानुषक्तास्ते तृम्फादयः। ततृम्फ। तृफ्यात्॥ <B>'''मृड पृड</B>''' सुखने॥ २२-२३॥ मृडति। पृडति। <B>'''शुन</B>''' गतौ॥ २४॥ शुनति॥ <B>'''इषु</B>''' इच्छायाम्॥ २५॥ इच्छति। एषिता, एष्टा। एषिष्यति। इष्यात्। ऐषीत्॥ <B>'''कुट</B>''' कौटिल्ये॥ २६॥ गाङ्कुटादीति ङित्त्वम्॥ चुकुटिथ। चुकोट, चुकुट। कुटिता॥ <B>'''पुट</B>''' संश्लेषणे॥ २७॥ पुटति। पुटिता। <B>'''स्फुट</B>''' विकसने॥ २८॥ स्पुटति। स्पुटिता॥ <B>'''स्फुर स्फुल</B>''' संचलने॥ २९-३०॥ स्फुरति। स्फुलति॥<BR>
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<B>'''स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः॥ लसक_६६१ = पा_८,३.७६॥</B>'''<BR>
षत्वं वा स्यात्। निःष्फुरति, निःस्फुरति। <B>'''णू </B>'''स्तवने॥ ३१॥ परिणूतगुणोदयः। नुवति। नुनाव। नुविता॥ <B>'''टुमस्जो</B>''' शुद्धौ॥ ३२॥ मज्जति। ममज्ज। ममज्जिथ। मस्जिनशोरिति नुम्। (<i>''मस्जेरन्त्यात्पूर्वो नुम्वाच्यः)</i>''। संयेगादिलोपः। ममङ्क्थ। मङ्क्ता। मङ्क्ष्यति। अमाङ्क्षीत्। अमाङ्क्ताम्। अमाङ्क्षुः॥ <B>'''रुजो</B>''' भङ्गे॥ ३३॥ रुजति। रोक्ता। रोक्ष्यति। अरौक्षीत्॥<B>''' भुजो</B>''' कौटिल्ये॥ ३४॥ रुजिवत्॥ <B>'''विश</B>''' प्रवेशने॥ ३५॥ विशति॥<B>''' मृश</B>''' आमर्शने॥ ३६॥ आमर्शनं स्पर्शः॥ अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्॥ अम्राक्षीत्, अमार्क्षीत्, अमृक्षत्॥<B>''' षदॢ </B>'''विशरणगत्यवसादनेषु॥ ३७॥ सीदतीत्यादि॥ <B>'''शदॢ</B>''' शातने॥ ३८॥<BR>
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<B>'''शदेः शितः॥ लसक_६६२ = पा_१,३.६०॥</B>'''<BR>
शिद्भाविनो ऽस्मात्तङानौ स्तः। शीयते। शीयताम्। अशीयत। शीयेत। शशाद। शत्ता। शत्स्यति। अशदत्। अशत्स्यत्॥ <B>'''कॄ</B>''' विक्षेपे॥ ३९॥<BR>
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<B>'''ॠत इद्धातोः॥ लसक_६६३ = पा_७,१.१००॥</B>'''<BR>
ॠदन्तस्य धातोरङ्गस्य इत्स्यात्। किरति। चकार। चकरतुः। चकरुः। करीता, करिता। कीर्यात्॥<BR>
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<B>'''किरतौ लवने॥ लसक_६६४ = पा_६,१.१४०॥</B>'''<BR>
उपात्किरतेः सुट् छेदने/ उपस्किरति। (<i>''अडभ्यासव्यवाये ऽपि सुट्कात् पूर्व इति वक्तव्यम्</i>'')। उपास्किरत्। उपचस्कार॥<BR>
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<B>'''हिंसायां प्रतेश्च॥ लसक_६६५ = पा_६,१.१४१॥</B>'''<BR>
उपात्प्रतेश्च किरतेः सुट् स्यात् हिंसायाम्। उपस्किरति। प्रतिस्किरति॥ <B>'''गॄ</B>''' निगरणे॥ ४०॥<BR>
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<B>'''अचि विभाषा॥ लसक_६६६ = पा_८,२.२१॥</B>'''<BR>
गिरते रेफस्य लो वाजादौ प्रत्यये। गिरति, गिलति। जगार, जगाल। जगरिथ, जगलिथ। गरीता, गरिता, गलीता, गलिता॥ <B>'''प्रच्छ</B>''' ज्ञीप्सायाम्॥ ४२॥ ग्रहिज्येति सम्प्रसारणम्। पृच्छति। पप्रच्छ। पप्रच्छतुः। प्रष्टा। प्रक्ष्यति। अप्राक्षीत्॥ <B>'''मृङ्</B>''' प्राणत्यागे॥ ४२॥<BR>
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<B>'''म्रियतेर्लुङ्लिङोश्च॥ लसक_६६७ = पा_१,३.६१॥</B>'''<BR>
लुङ्लिङोः शितश्च प्रकृतिभूतान्मृङस्तङ् नान्यत्र। रिङ्। इयङ्। म्रियते। ममार। मर्ता। मरिष्यति। मृषीष्ट। अमृत॥ <B>'''पृङ्</B>''' व्यायामे॥ ४३॥ प्रायेणायं व्याङ्पूर्वः। व्याप्रियते। व्यापप्रे। व्यापप्राते। व्यापरिष्यते। व्यापृत। व्यापृषाताम्॥ <B>'''जुषी</B>''' प्रीतिसेवनयोः॥ ४४॥ जुषते। जुजुषे॥ <B>'''ओविजी</B>''' भयचलनयोः॥ ४५॥ प्रायेणायमुत्पूर्वः। उद्विजते॥<BR>
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<B>'''विज इट्॥ लसक_६६८ = पा_१,२.२॥</B>'''<BR>
विजेः पर इडादिप्रत्ययो ङिद्वत्। उद्विजिता॥<BR>
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इति तुदादयः॥ ६॥<BR>
 
[[वर्गः:लघुसिद्धान्तकौमुदी]]