"लघुसिद्धान्तकौमुदी/स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम् |
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पङ्क्तिः १:
{{लघुसिद्धान्तकौमुदी}}
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अथ स्त्रीप्रत्ययाः<BR>
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अधिकारो ऽयम्। समर्थानामिति यावत्॥<BR>
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अजादीनामकारान्तस्य च वाच्यं यत् स्त्रीत्वं तत्र द्योत्ये टाप् स्यात्। अजा। एडका। अश्वा। चटका। मूषिका। बाला। वत्सा। होडा। मन्दा। विलाता। इत्यादि॥ मेधा। गङ्गा। सर्वा॥<BR>
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उगिदन्तात्प्रातिपदिकात्स्त्रियां ङीप्स्यात्। भवती। भवन्ती। पचन्ती। दीव्यन्ती॥<BR>
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अनुपसर्दनं यट्टिदादि तदन्तं यददन्तं प्रातिपदिकं ततः स्त्रियां ङीप्स्यात्। कुरुचरी। नदट् नदी। देवट् देवी। सौपर्णेयी। ऐन्द्री। औत्सी। ऊरुद्वयसी। ऊरुदघ्नी। ऊरुमात्री। पञ्चतयी। आक्षिकी। लावणिकी। यादृशी। इत्वरी। (
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यञन्तात् स्त्रियां ङीप्स्यात्। अकारलोपे कृते - .<BR>
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हलः परस्य तद्धितयकारस्योपधाभूतस्य सोप ईति परे। गार्गी॥<BR>
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यञन्तात् ष्फो वा स्यात्स च तद्धितः॥<BR>
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षिद्भ्यो गौरादिभ्यश्च स्त्रियां ङीष् स्यात्। गार्ग्यायणी। नर्तकी। गौरी। अनुडुही। अनड्वाही। आकृतिगणो ऽयम्॥<BR>
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प्रथमवयोवाचिनो ऽदन्तात् स्त्रियां ङीप्स्यात्। कुमारी॥<BR>
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अदन्ताद् द्विगोर्ङीप्स्यात्। त्रिलोकी। अजादित्वात्त्रिफला। त्र्यनीका सेना॥<BR>
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वर्णवाची यो ऽनुदात्तान्तस्तोपधस्तदन्तादनुपसर्जनात्प्रातिपदिकाद्वा ङीप् तकारस्य नकारादेशश्च। एनी, एता। रोहिणी, रोहिता॥<BR>
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उदन्ताद् गुणवाचिनो वा ङीष् स्यात्। मृद्वी, मृदुः॥<BR>
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एभ्यो वा ङीष् स्यात्। बह्वी, बहुः। (
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या पुमाख्या पुंयोगात् स्त्रियां वर्तते ततो ङीष्। गोपस्य स्त्री गोपी। (
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प्रत्ययस्थात्कात्पूर्वस्याकारस्येकारः स्यादापि स आप्सुपः परो न चेत्। गोपालिका। अश्वपालिका। सर्विका। कारिका। अतः किम् ? नौका। प्रत्ययस्थात्किम् ? शक्नोतीति शका। असुपः किम् ? बहुपरिव्राजका नगरी। (
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एषामानुगागमः स्यात् ङीष् च। इन्द्रस्य स्त्री - इन्द्राणी। वरुणानी। भवानी। शर्वाणी। रुद्राणी। मृडानी। (
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क्रीतान्ताददन्तात् करणादेः स्त्रियां ङीष्स्यात्। वस्त्रक्रीती। क्वचिन्न। धनक्रीता॥<BR>
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असंयोगोपधमुपसर्जनं यत् स्वाङ्गं तदन्ताददन्तान् ङीष्वा स्यात्। केशानतिक्रान्ता - अतिकेशी, अतिकेशा। चन्द्रमुखी चन्द्रमुखा। असंयोगोपधात्किम् ? सुगुल्फा। उपसर्जनात्किम् ? शिखा॥<BR>
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क्रोडादेर्बह्वचश्च स्वाङ्गान्न ङीष्। कल्याणक्रोडा। आकृतिगणो ऽयम्। सुजघना॥<BR>
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न ङीष्॥<BR>
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पूर्वपदस्थान्निमित्तात्परस्य नस्य णः स्यात् संज्ञायां न तु गकारव्यवधाने। शूर्पणखा। गौरमुखा। संज्ञायां किम् ? ताम्रमुखी कन्या॥<BR>
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जातिवाचि यन्न च स्त्रियां नियतमयोपधं ततः स्त्रियां ङीष् स्यात्। तटी। वृषली। कठी। बह्वृची। जातेः किम् ? मुण्डा। अस्त्रीविषयात्किम् ? बलाका। अयोपधात्किम् ? क्षत्रिया। (
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ङीष्। दाक्षी॥<BR>
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उदन्तादयोपधान्मनुष्यजातिवाचिनः स्त्रियामूङ् स्यात्। कुरूः। अयोपधात्किम् ? अध्वर्युर्ब्राह्मणी॥<BR>
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पङ्गूः। (
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उपमानवाची पूर्वपदमूरूत्तरपदं यत्प्रातिपदिकं तस्मादूङ् स्यात्। करभोरूः॥<BR>
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अनौपम्यार्थं सूत्रम्। संहितोरूः। शफोरूः। लक्षणोरूः। वामोरूः॥<BR>
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शार्ङ्गरवादेरञो यो ऽकारस्तदन्ताच्च जातिवाचिनो ङीन् स्यात्/ शार्ङ्गरवी/ बैदी। ब्राह्मणी। (
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युवञ्छब्दात् स्त्रियां तिः प्रत्ययः स्यात्। युवतिः॥<BR>
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[[वर्गः:लघुसिद्धान्तकौमुदी]]
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