"महाभारतम्-01-आदिपर्व-008" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १३:
प्रमद्वरायाः सर्पदंशेन रुरोर्दुःखम्।। 3 ।।
<table>
<tr><td><p> <B>

'''सौतिरुवाच।</B>''' <td> 1-8-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स चापि च्यवनो ब्रह्मन्भार्गवोऽजनयत्सुतम्।<BR>सुकन्यायां महात्मानं प्रमतिं दीप्ततेजसम्।। <td> 1-8-1a<BR>1-8-1b </p></tr>
 
स चापि च्यवनो ब्रह्मन्भार्गवोऽजनयत्सुतम्।<BR>सुकन्यायां महात्मानं प्रमतिं दीप्ततेजसम्।। <td> 1-8-1a<BR>1-8-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रमतिस्तु रुरुं नाम घृताच्यां समजीजनत्।<BR>रुरुः प्रमद्वरायां तु शुनकं समजीजनम्।। <td> 1-8-2a<BR>1-8-2b </p></tr>
 
प्रमतिस्तु रुरुं नाम घृताच्यां समजीजनत्।<BR>रुरुः प्रमद्वरायां तु शुनकं समजीजनम्।। <td> 1-8-2a<BR>1-8-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> शुनकस्तु महासत्वः सर्वभार्गवनन्दनः।<BR>जातस्तपसि तीव्रे च स्थितः स्थिरयशास्ततः।। <td> 1-8-3a<BR>1-8-3b </p></tr>
 
शुनकस्तु महासत्वः सर्वभार्गवनन्दनः।<BR>जातस्तपसि तीव्रे च स्थितः स्थिरयशास्ततः।। <td> 1-8-3a<BR>1-8-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तस्य ब्रह्मन्रुरोः सर्वं चरितं भूरितेजसः।<BR>विस्तरेण प्रवक्ष्यामि तच्छृणु त्वमशेषतः।। <td> 1-8-4a<BR>1-8-4b </p></tr>
 
तस्य ब्रह्मन्रुरोः सर्वं चरितं भूरितेजसः।<BR>विस्तरेण प्रवक्ष्यामि तच्छृणु त्वमशेषतः।। <td> 1-8-4a<BR>1-8-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ऋषिरासीन्महान्पूर्वं तपोविद्यासमन्वितः।<BR>स्थूलकेश इति ख्यातः सर्वभूतहिते रतः।। <td> 1-8-5a<BR>1-8-5b </p></tr>
 
ऋषिरासीन्महान्पूर्वं तपोविद्यासमन्वितः।<BR>स्थूलकेश इति ख्यातः सर्वभूतहिते रतः।। <td> 1-8-5a<BR>1-8-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एतस्मिन्नेव काले तु मेनकायां प्रजज्ञिवान्।<BR>गन्धर्वराजो विप्रर्षे विश्वावसुरिति स्मृतः।। <td> 1-8-6a<BR>1-8-6b </p></tr>
 
एतस्मिन्नेव काले तु मेनकायां प्रजज्ञिवान्।<BR>गन्धर्वराजो विप्रर्षे विश्वावसुरिति स्मृतः।। <td> 1-8-6a<BR>1-8-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अप्सरा मेनका तस्य तं गर्भं भृगुनन्दन।<BR>उत्ससर्ज यथाकालं स्थूलकेशाश्रमं प्रति।। <td> 1-8-7a<BR>1-8-7b </p></tr>
 
अप्सरा मेनका तस्य तं गर्भं भृगुनन्दन।<BR>उत्ससर्ज यथाकालं स्थूलकेशाश्रमं प्रति।। <td> 1-8-7a<BR>1-8-7b
 
</tr>
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<tr><td><p> उत्सृज्य चैव तं गर्भं नद्यास्तीरे जगाम सा।<BR>अप्सरा मेनका ब्रह्मन्निर्दया निरपत्रपा।। <td> 1-8-8a<BR>1-8-8b </p></tr>
 
उत्सृज्य चैव तं गर्भं नद्यास्तीरे जगाम सा।<BR>अप्सरा मेनका ब्रह्मन्निर्दया निरपत्रपा।। <td> 1-8-8a<BR>1-8-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कन्याममरगर्भाभां ज्वलन्तीमिव च श्रिया।<BR>तां ददर्श समुत्सृष्टां नदीतीरे महानृषिः।। <td> 1-8-9a<BR>1-8-9b </p></tr>
 
कन्याममरगर्भाभां ज्वलन्तीमिव च श्रिया।<BR>तां ददर्श समुत्सृष्टां नदीतीरे महानृषिः।। <td> 1-8-9a<BR>1-8-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स्थूलकेशः स तेजस्वी विजने बन्धुवर्जिताम्।<BR>स तां दृष्ट्वा तदा कन्यां स्थूलकेशो महाद्विजः।। <td> 1-8-10a<BR>1-8-10b </p></tr>
 
स्थूलकेशः स तेजस्वी विजने बन्धुवर्जिताम्।<BR>स तां दृष्ट्वा तदा कन्यां स्थूलकेशो महाद्विजः।। <td> 1-8-10a<BR>1-8-10b
 
</tr>
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<tr><td><p> जग्राह च मुनिश्रेष्ठः कृपाविष्टः पुपोष च।<BR>ववृधे सा वरारोहा तस्याश्रमपदे शुभे।। <td> 1-8-11a<BR>1-8-11b </p></tr>
 
जग्राह च मुनिश्रेष्ठः कृपाविष्टः पुपोष च।<BR>ववृधे सा वरारोहा तस्याश्रमपदे शुभे।। <td> 1-8-11a<BR>1-8-11b
 
</tr>
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<tr><td><p> जातकाद्याः क्रियाश्चास्या विधिपूर्वं यथाक्रमम्।<BR>स्थूलकेशो महाभागश्चकार सुमहानृषिः।। <td> 1-8-12a<BR>1-8-12b </p></tr>
 
जातकाद्याः क्रियाश्चास्या विधिपूर्वं यथाक्रमम्।<BR>स्थूलकेशो महाभागश्चकार सुमहानृषिः।। <td> 1-8-12a<BR>1-8-12b
 
</tr>
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<tr><td><p> प्रमदाभ्यो वरा सा तु सत्त्वरूपगुणान्विता।<BR>ततः प्रमद्वरेत्यस्या नाम चक्रे महानृषिः।। <td> 1-8-13a<BR>1-8-13b </p></tr>
 
प्रमदाभ्यो वरा सा तु सत्त्वरूपगुणान्विता।<BR>ततः प्रमद्वरेत्यस्या नाम चक्रे महानृषिः।। <td> 1-8-13a<BR>1-8-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तामाश्रमपदे तस्य रुरुर्दृष्ट्वा प्रमद्वराम्।<BR>बभूव किल धर्मात्मा मदनोपहतस्तदा।। <td> 1-8-14a<BR>1-8-14b </p></tr>
 
तामाश्रमपदे तस्य रुरुर्दृष्ट्वा प्रमद्वराम्।<BR>बभूव किल धर्मात्मा मदनोपहतस्तदा।। <td> 1-8-14a<BR>1-8-14b
 
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<tr><td><p> पितरं सखिभिः सोऽथ श्रावयामास भार्गवम्।<BR>प्रमतिश्चाभ्ययाचत्तां स्थूलकेशं यशस्विनम्।। <td> 1-8-15a<BR>1-8-15b </p></tr>
 
पितरं सखिभिः सोऽथ श्रावयामास भार्गवम्।<BR>प्रमतिश्चाभ्ययाचत्तां स्थूलकेशं यशस्विनम्।। <td> 1-8-15a<BR>1-8-15b
 
</tr>
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<tr><td><p> ततः प्रादात्पिता कन्यां रुरवे तां प्रमद्वराम्।<BR>विवाहं स्थापयित्वाग्रे नक्षत्रे भगदैवते।। <td> 1-8-16a<BR>1-8-16b </p></tr>
 
ततः प्रादात्पिता कन्यां रुरवे तां प्रमद्वराम्।<BR>विवाहं स्थापयित्वाग्रे नक्षत्रे भगदैवते।। <td> 1-8-16a<BR>1-8-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः कतिपयाहस्य विवाहे समुपस्थिते।<BR>सखीभिः क्रीडती सार्धं सा कन्यावरवर्णिनी।। <td> 1-8-17a<BR>1-8-17b </p></tr>
 
ततः कतिपयाहस्य विवाहे समुपस्थिते।<BR>सखीभिः क्रीडती सार्धं सा कन्यावरवर्णिनी।। <td> 1-8-17a<BR>1-8-17b
 
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<tr><td><p> नापश्यत्संप्रसुप्तं वै भुजंगं तिर्यगायतम्।<BR>पदा चैनं समाक्रामन्मुमूर्षुः कालचोदिता।। <td> 1-8-18a<BR>1-8-18b </p></tr>
 
नापश्यत्संप्रसुप्तं वै भुजंगं तिर्यगायतम्।<BR>पदा चैनं समाक्रामन्मुमूर्षुः कालचोदिता।। <td> 1-8-18a<BR>1-8-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स तस्याः संप्रमत्तायाश्चोदितः कालधर्मणा।<BR>विषोपलिप्तान्दशनान्भृशमङ्गे न्यपातयत्।। <td> 1-8-19a<BR>1-8-19b </p></tr>
 
स तस्याः संप्रमत्तायाश्चोदितः कालधर्मणा।<BR>विषोपलिप्तान्दशनान्भृशमङ्गे न्यपातयत्।। <td> 1-8-19a<BR>1-8-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सा दष्टा तेन सर्पेण पपात सहसा भुवि।<BR>विवर्णा विगतश्रीका भ्रष्टाभरणचेतना।। <td> 1-8-20a<BR>1-8-20b </p></tr>
 
सा दष्टा तेन सर्पेण पपात सहसा भुवि।<BR>विवर्णा विगतश्रीका भ्रष्टाभरणचेतना।। <td> 1-8-20a<BR>1-8-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निरानन्दकरी तेषां बन्धूनां मुक्तमूर्धजा।<BR>व्यसुरप्रेक्षणीया सा प्रेक्षणीयतमाऽभवत्।। <td> 1-8-21a<BR>1-8-21b </p></tr>
 
निरानन्दकरी तेषां बन्धूनां मुक्तमूर्धजा।<BR>व्यसुरप्रेक्षणीया सा प्रेक्षणीयतमाऽभवत्।। <td> 1-8-21a<BR>1-8-21b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रसुप्तेवाभवच्चापि भुवि सर्पविषार्दिता।<BR>भूयो मनोहरतरा बभूव तनुमध्यमा।। <td> 1-8-22a<BR>1-8-22b </p></tr>
 
प्रसुप्तेवाभवच्चापि भुवि सर्पविषार्दिता।<BR>भूयो मनोहरतरा बभूव तनुमध्यमा।। <td> 1-8-22a<BR>1-8-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ददर्श तां पिता चैव ये चैवान्ये तपस्विनः।<BR>विचेष्टमानां पतितां भूतले पद्मवर्चसम्।। <td> 1-8-23a<BR>1-8-23b </p></tr>
 
ददर्श तां पिता चैव ये चैवान्ये तपस्विनः।<BR>विचेष्टमानां पतितां भूतले पद्मवर्चसम्।। <td> 1-8-23a<BR>1-8-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः सर्वे द्विजतराः समाजग्मुः कृपान्विताः।<BR>स्वस्त्यात्रेयो महाजानुः कुशिकः शङ्खमेखलः।। <td> 1-8-24a<BR>1-8-24b </p></tr>
 
ततः सर्वे द्विजतराः समाजग्मुः कृपान्विताः।<BR>स्वस्त्यात्रेयो महाजानुः कुशिकः शङ्खमेखलः।। <td> 1-8-24a<BR>1-8-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उद्दालकः कठश्चैव श्वेतश्चैव महायशाः।<BR>भरद्वाजः कौणकृत्स्य आर्ष्टिषेणोऽथ गौतमः।। <td> 1-8-25a<BR>1-8-25b </p></tr>
 
उद्दालकः कठश्चैव श्वेतश्चैव महायशाः।<BR>भरद्वाजः कौणकृत्स्य आर्ष्टिषेणोऽथ गौतमः।। <td> 1-8-25a<BR>1-8-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रमतिः सह पुत्रेण तथान्ये वनवासिनः।<BR>तां ते कन्यां व्यसुं दृष्ट्वा भुजंगस्य विषार्दिताम्।। <td> 1-8-26a<BR>1-8-26b </p></tr>
 
प्रमतिः सह पुत्रेण तथान्ये वनवासिनः।<BR>तां ते कन्यां व्यसुं दृष्ट्वा भुजंगस्य विषार्दिताम्।। <td> 1-8-26a<BR>1-8-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> रुरुदुः कृपयाऽविष्टा रुरुस्त्वार्तो बहिर्ययौ।<BR>ते च सर्वे द्विजश्रेष्ठास्तत्रैवोपाविशंस्तदा।। <td> 1-8-27a<BR>1-8-27b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि<BR> पौलोमपर्वणि अष्टमोऽध्यायः।। 8 ।। <td> </p></tr></table>
रुरुदुः कृपयाऽविष्टा रुरुस्त्वार्तो बहिर्ययौ।<BR>ते च सर्वे द्विजश्रेष्ठास्तत्रैवोपाविशंस्तदा।। <td> 1-8-27a<BR>1-8-27b
 
</tr>
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।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि<BR> पौलोमपर्वणि अष्टमोऽध्यायः।। 8 ।। <td>
 
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1-8-3 शुनकस्तु शौनकस्त्वमिति पाठान्तरम्।।
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