"महाभारतम्-01-आदिपर्व-009" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १०:
{{महाभारतम्}}
देवदूतवचनेन रुरुकृतस्वार्धायुः प्रदानेन प्रमद्वराजीवनं तया सह रुरोर्विवाहश्च।। 1 ।।<table>
<tr><td><p> <B>

'''सौतिरुवाच।</B>''' <td> 1-9-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तेषु तत्रोपविष्टेषु ब्राह्मणेषु महात्मसु।<BR>रुरुश्चुक्रोश गहनं वनं गत्वाऽतिदुःखितः।। <td> 1-9-1a<BR>1-9-1b </p></tr>
 
तेषु तत्रोपविष्टेषु ब्राह्मणेषु महात्मसु।<BR>रुरुश्चुक्रोश गहनं वनं गत्वाऽतिदुःखितः।। <td> 1-9-1a<BR>1-9-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> शोकेनाभिहतः सोऽथ विलपन्करुणं बहु।<BR>अब्रवीद्वचनं शोचन्प्रियां स्मृत्वा प्रमद्वराम्।। <td> 1-9-2a<BR>1-9-2b </p></tr>
 
शोकेनाभिहतः सोऽथ विलपन्करुणं बहु।<BR>अब्रवीद्वचनं शोचन्प्रियां स्मृत्वा प्रमद्वराम्।। <td> 1-9-2a<BR>1-9-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> शेते सा भुवि तन्वङ्गी मम शोकविवर्धिनी।<BR>`प्राणानपहरन्तीव पूर्णचन्द्रनिभानना।। <td> 1-9-3a<BR>1-9-3b </p></tr>
 
शेते सा भुवि तन्वङ्गी मम शोकविवर्धिनी।<BR>`प्राणानपहरन्तीव पूर्णचन्द्रनिभानना।। <td> 1-9-3a<BR>1-9-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यदि पीनायतश्रोणी पद्मपत्रनिभेक्षणा।<BR>मुमूर्षुरपि मे प्राणानादायाशु गमिष्यति।। <td> 1-9-4a<BR>1-9-4b </p></tr>
 
यदि पीनायतश्रोणी पद्मपत्रनिभेक्षणा।<BR>मुमूर्षुरपि मे प्राणानादायाशु गमिष्यति।। <td> 1-9-4a<BR>1-9-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पितृमातृसखीनां च लुप्तपिण्डस्य तस्य मे।'<BR>बान्धवानां च सर्वेषां किं नु दुःखमतःपरम्।। <td> 1-9-5a<BR>1-9-5b </p></tr>
 
पितृमातृसखीनां च लुप्तपिण्डस्य तस्य मे।'<BR>बान्धवानां च सर्वेषां किं नु दुःखमतःपरम्।। <td> 1-9-5a<BR>1-9-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यदि दत्तं तपस्तप्तं गुरवो वा मया यदि।<BR>सम्यगाराधितास्तेन संजीवतु मम प्रिया।। <td> 1-9-6a<BR>1-9-6b </p></tr>
 
यदि दत्तं तपस्तप्तं गुरवो वा मया यदि।<BR>सम्यगाराधितास्तेन संजीवतु मम प्रिया।। <td> 1-9-6a<BR>1-9-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यथा च जन्मप्रभृति यतात्माऽहं धृतव्रतः।<BR>प्रमद्वरा तथाद्यैषा समुत्तिष्ठतु भामिनी।। <td> 1-9-7a<BR>1-9-7b </p></tr>
 
यथा च जन्मप्रभृति यतात्माऽहं धृतव्रतः।<BR>प्रमद्वरा तथाद्यैषा समुत्तिष्ठतु भामिनी।। <td> 1-9-7a<BR>1-9-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> [एवं लालप्यतस्तस्य भार्यार्थे दुःखितस्य च।<BR>देवदूतस्तदाऽभ्येत्य वाक्यमाह रुरुं वने।।] <td> 1-9-8a<BR>1-9-8b </p></tr>
 
[एवं लालप्यतस्तस्य भार्यार्थे दुःखितस्य च।<BR>देवदूतस्तदाऽभ्येत्य वाक्यमाह रुरुं वने।।] <td> 1-9-8a<BR>1-9-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `कृष्णे विष्णौ हृषीकेशे लोकेशेऽसुरविद्विषि।<BR>यदि मे निश्चला भक्तिर्मम जीवतु सा प्रिया।। <td> 1-9-9a<BR>1-9-9b </p></tr>
 
`कृष्णे विष्णौ हृषीकेशे लोकेशेऽसुरविद्विषि।<BR>यदि मे निश्चला भक्तिर्मम जीवतु सा प्रिया।। <td> 1-9-9a<BR>1-9-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विलप्यमाने तु रुरौ सर्वे देवाः कृपान्विताः।<BR>दूतं प्रस्थापयामासुः संदिश्यास्य हितं वचः।। <td> 1-9-10a<BR>1-9-10b </p></tr>
 
विलप्यमाने तु रुरौ सर्वे देवाः कृपान्विताः।<BR>दूतं प्रस्थापयामासुः संदिश्यास्य हितं वचः।। <td> 1-9-10a<BR>1-9-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स दूतस्त्वरितोऽभ्येत्य देवानां प्रियकृच्छुचिः।<BR>उवाच देववचनं रुरुमाभाष्य दुःखितम्।। <td> 1-9-11a<BR>1-9-11b </p></tr>
 
स दूतस्त्वरितोऽभ्येत्य देवानां प्रियकृच्छुचिः।<BR>उवाच देववचनं रुरुमाभाष्य दुःखितम्।। <td> 1-9-11a<BR>1-9-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> देवैः सर्वैरहं ब्रह्मन्प्रेषितोऽस्मि तवान्तिकम्।<BR>त्वद्धितं त्वद्धितैरुक्तं शृणु वाक्यं द्विजोत्तम।।' <td> 1-9-12a<BR>1-9-12b </p></tr>
 
देवैः सर्वैरहं ब्रह्मन्प्रेषितोऽस्मि तवान्तिकम्।<BR>त्वद्धितं त्वद्धितैरुक्तं शृणु वाक्यं द्विजोत्तम।।' <td> 1-9-12a<BR>1-9-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अभिधत्से ह यद्वाचा रुरो दुःखान्न तन्मृषा।<BR>न तु मर्त्यस्य धर्मात्मन्नायुरस्ति गतायुषः।। <td> 1-9-13a<BR>1-9-13b </p></tr>
 
अभिधत्से ह यद्वाचा रुरो दुःखान्न तन्मृषा।<BR>न तु मर्त्यस्य धर्मात्मन्नायुरस्ति गतायुषः।। <td> 1-9-13a<BR>1-9-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गतायुरेषा कृपणा गन्धर्वाप्सरसोः सुता।<BR>तस्माच्छोके मनस्तात मा कृथास्त्वं कथंचन।। <td> 1-9-14a<BR>1-9-14b </p></tr>
 
गतायुरेषा कृपणा गन्धर्वाप्सरसोः सुता।<BR>तस्माच्छोके मनस्तात मा कृथास्त्वं कथंचन।। <td> 1-9-14a<BR>1-9-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उपायश्चात्र विहितः पूर्वं देवैर्महात्मभिः।<BR>तं यदीच्छसि कर्तुं त्वं प्राप्स्यसीह प्रमद्वराम्।। <td> 1-9-15a<BR>1-9-15b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>रुरुरुवाच।</B> <td> 1-9-16x </p></tr>
उपायश्चात्र विहितः पूर्वं देवैर्महात्मभिः।<BR>तं यदीच्छसि कर्तुं त्वं प्राप्स्यसीह प्रमद्वराम्।। <td> 1-9-15a<BR>1-9-15b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''रुरुरुवाच।''' <td> 1-9-16x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> क उपायः कृतो देवैर्बूहि तत्त्वेन खेचर।<BR>करिष्येऽहं तथा श्रुत्वा त्रातुमर्हति मां भवान्।। <td> 1-9-16a<BR>1-9-16b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>देवेदूत उवाच।</B> <td> 1-9-17x </p></tr>
क उपायः कृतो देवैर्बूहि तत्त्वेन खेचर।<BR>करिष्येऽहं तथा श्रुत्वा त्रातुमर्हति मां भवान्।। <td> 1-9-16a<BR>1-9-16b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''देवेदूत उवाच।''' <td> 1-9-17x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आयुषोऽर्धं प्रयच्छ त्वं कन्यायै भृगुनन्दन।<BR>एवमुत्थास्यति रुरो तव भार्या प्रयद्वरा।। <td> 1-9-17a<BR>1-9-17b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>रुरुरुवाच।</B> <td> 1-9-18x </p></tr>
आयुषोऽर्धं प्रयच्छ त्वं कन्यायै भृगुनन्दन।<BR>एवमुत्थास्यति रुरो तव भार्या प्रयद्वरा।। <td> 1-9-17a<BR>1-9-17b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''रुरुरुवाच।''' <td> 1-9-18x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आयुषोऽर्धं प्रयच्छामि कन्यायै खेचरोत्तम।<BR>शृङ्गाररूपाभरणा समुत्तिष्ठतु मे प्रिया।। <td> 1-9-18a<BR>1-9-18b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>सौतिरुवाच।</B> <td> 1-9-19x </p></tr>
आयुषोऽर्धं प्रयच्छामि कन्यायै खेचरोत्तम।<BR>शृङ्गाररूपाभरणा समुत्तिष्ठतु मे प्रिया।। <td> 1-9-18a<BR>1-9-18b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''सौतिरुवाच।''' <td> 1-9-19x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततो गन्धर्वराजश्च देवदूतश्च सत्तमौ।<BR>धर्मराजमुपेत्येदं वचनं प्रत्यभाषताम्।। <td> 1-9-19a<BR>1-9-19b </p></tr>
 
ततो गन्धर्वराजश्च देवदूतश्च सत्तमौ।<BR>धर्मराजमुपेत्येदं वचनं प्रत्यभाषताम्।। <td> 1-9-19a<BR>1-9-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> धर्मराजायुषोऽर्धेन रुरोर्भार्या प्रमद्वरा।<BR>समुत्तिष्ठतु कल्याणी मृतैवं यदि मन्यसे।। <td> 1-9-20a<BR>1-9-20b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>धर्मराज उवाच।</B> <td> 1-9-21x </p></tr>
धर्मराजायुषोऽर्धेन रुरोर्भार्या प्रमद्वरा।<BR>समुत्तिष्ठतु कल्याणी मृतैवं यदि मन्यसे।। <td> 1-9-20a<BR>1-9-20b
 
</tr>
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'''धर्मराज उवाच।''' <td> 1-9-21x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रमद्वरा रुरोर्भार्या देवदूत यदीच्छसि।<BR>उत्तिष्ठत्वायुषोऽर्धेन रुरोरेव समन्विता।। <td> 1-9-21a<BR>1-9-21b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>सौतिरुवाच।</B> <td> 1-9-22x </p></tr>
प्रमद्वरा रुरोर्भार्या देवदूत यदीच्छसि।<BR>उत्तिष्ठत्वायुषोऽर्धेन रुरोरेव समन्विता।। <td> 1-9-21a<BR>1-9-21b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''सौतिरुवाच।''' <td> 1-9-22x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवमुक्ते ततः कन्या सोदतिष्ठत्प्रमद्वरा।<BR>रुरोस्तस्यायुषोऽर्धेन सुप्तेव वरवर्णिनी।। <td> 1-9-22a<BR>1-9-22b </p></tr>
 
एवमुक्ते ततः कन्या सोदतिष्ठत्प्रमद्वरा।<BR>रुरोस्तस्यायुषोऽर्धेन सुप्तेव वरवर्णिनी।। <td> 1-9-22a<BR>1-9-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एतद्दृष्टं भविष्ये हि रुरोरुत्तमतेजसः।<BR>आयुषोऽतिप्रवृद्धस्य भार्यार्थेऽर्धमलुप्यत।। <td> 1-9-23a<BR>1-9-23b </p></tr>
 
एतद्दृष्टं भविष्ये हि रुरोरुत्तमतेजसः।<BR>आयुषोऽतिप्रवृद्धस्य भार्यार्थेऽर्धमलुप्यत।। <td> 1-9-23a<BR>1-9-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत इष्टेऽहनि तयोः पितरौ चक्रतुर्मुदा।<BR>विवाहं तौ च रेमाते परस्परहितैषिणौ।। <td> 1-9-24a<BR>1-9-24b </p></tr>
 
तत इष्टेऽहनि तयोः पितरौ चक्रतुर्मुदा।<BR>विवाहं तौ च रेमाते परस्परहितैषिणौ।। <td> 1-9-24a<BR>1-9-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स लब्ध्वा दुर्लभां भार्यां पद्मकिञ्जल्कसुप्रभाम्।<BR>व्रतं चक्रे विनाशाय जिह्मगानां धृतव्रतः।। <td> 1-9-25a<BR>1-9-25b </p></tr>
 
स लब्ध्वा दुर्लभां भार्यां पद्मकिञ्जल्कसुप्रभाम्।<BR>व्रतं चक्रे विनाशाय जिह्मगानां धृतव्रतः।। <td> 1-9-25a<BR>1-9-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स दृष्ट्वा जिह्मगान्सर्वांस्तीव्रकोपसमन्वितः।<BR>अभिहन्ति यथासत्त्वं गृह्य प्रहरणं सदा।। <td> 1-9-26a<BR>1-9-26b </p></tr>
 
स दृष्ट्वा जिह्मगान्सर्वांस्तीव्रकोपसमन्वितः।<BR>अभिहन्ति यथासत्त्वं गृह्य प्रहरणं सदा।। <td> 1-9-26a<BR>1-9-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स कदाचिद्वनं विप्रो रुरुरभ्यागमन्महत्।<BR>शयानं तत्र चापश्यड्डुण्डुभं वयसान्वितम्।। <td> 1-9-27a<BR>1-9-27b </p></tr>
 
स कदाचिद्वनं विप्रो रुरुरभ्यागमन्महत्।<BR>शयानं तत्र चापश्यड्डुण्डुभं वयसान्वितम्।। <td> 1-9-27a<BR>1-9-27b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत उद्यम्य दम्डं स कालदण्डोपमं तदा।<BR>जिघांसुः कुपितो विप्रस्तमुवाचाथ डुण्डुभः।। <td> 1-9-28a<BR>1-9-28b </p></tr>
 
तत उद्यम्य दम्डं स कालदण्डोपमं तदा।<BR>जिघांसुः कुपितो विप्रस्तमुवाचाथ डुण्डुभः।। <td> 1-9-28a<BR>1-9-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नापराध्यामि ते किंचिदहमद्य तपोधन।<BR>संरम्भाच्च किमर्थं मामभिहंसि रुषान्वितः।। <td> 1-9-29a<BR>1-9-29b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वाणि<BR> पौलोमपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9 ।। <td> </p></tr></table>
नापराध्यामि ते किंचिदहमद्य तपोधन।<BR>संरम्भाच्च किमर्थं मामभिहंसि रुषान्वितः।। <td> 1-9-29a<BR>1-9-29b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वाणि<BR> पौलोमपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9 ।। <td>
 
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1-9-13 गतायुषः आयुर्नास्ति पुनर्न भवतीत्यर्थः।।
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