"महाभारतम्-01-आदिपर्व-122" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ११:
पाण्डोर्माद्र्या विवाहः। दिग्विजयश्च।। 1 ।।<br>
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'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-122-1x
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ततः शान्तनवो भीष्मो राज्ञः पाण्डोर्यशस्विनः।<BR>विवाहस्यापरस्यार्थे चकार मतिमान्मतिम्।। <td> 1-122-1a<BR>1-122-1b
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सोऽमात्यैः स्थविरैः सार्धं ब्राह्मणैश्च महर्षिभिः।<BR>बलेन चतुरङ्गेण ययौ मद्रपतेः पुरम्।। <td> 1-122-2a<BR>1-122-2b
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तमागतमभिश्रुत्य भीष्मं वाहीकपुङ्गवः।<BR>प्रत्युद्गम्यार्चयित्वा च पुरं प्रावेशयन्नृपः।। <td> 1-122-3a<BR>1-122-3b
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दत्त्वा तस्यासनं शुभ्रं पाद्यमर्घ्यं तथैव च।<BR>मधुपर्कं च मद्रेशः पप्रच्छागमनेऽर्थिताम्।। <td> 1-122-4a<BR>1-122-4b
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तं भीष्मः प्रत्युवाचेदं मद्रराजं कुरूद्वहः।<BR>आगतं मां विजानीहि कन्यार्थिनमरिन्दम।। <td> 1-122-5a<BR>1-122-5b
</tr>
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श्रूयते भवतः साध्वी स्वसा माद्री यशस्विनी।<BR>तामहं वरयिष्यामि पाण्डोरर्थे यशस्विनीम्।। <td> 1-122-6a<BR>1-122-6b
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युक्तरूपो हि संबन्धे त्वं नो राजन्वयं तव।<BR>एतत्संचिन्त्य मद्रेश गृहाणास्मान्यथाविधि।। <td> 1-122-7a<BR>1-122-7b
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तमेवंवादिनं भीष्मं प्रत्यभाषत मद्रपः।<BR>न हि मेऽन्यो वरस्त्वत्तः श्रेयानिति मतिर्मम।। <td> 1-122-8a<BR>1-122-8b
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पूर्वैः प्रवर्तितं किंचित्कुलेऽस्मिन्नृपसत्तमैः।<BR>साधु वा यदि वाऽसाधु तन्नातिक्रान्तुमुत्सहे।। <td> 1-122-9a<BR>1-122-9b
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व्यक्तं तद्भवतश्चापि विदितं नात्र संशयः।<BR>न च युक्तं तथा वक्तुं भवान्देहीति सत्तम।। <td> 1-122-10a<BR>1-122-10b
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कुलधर्मः स नो वीर प्रमाणं परमं च तत्।<BR>तेन त्वां न ब्रवीम्येतदसंदिग्धं वचोऽरिहन्।। <td> 1-122-11a<BR>1-122-11b
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तं भीष्मः प्रत्युवाचेदं मद्रराजं जनाधिपः।<BR>धर्म एष परो राजन्स्वयमुक्तः स्वयंभुवा।। <td> 1-122-12a<BR>1-122-12b
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नात्र कश्चन दोषोऽस्ति पूर्वैर्विधिरयं कृतः।<BR>विदितेयं च ते शल्य मर्यादा साधुसंमता।। <td> 1-122-13a<BR>1-122-13b
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इत्युक्त्वा स महातेजाः शातकुम्भं कृताकृतम्।<BR>रत्नानि च विचित्राणि शल्यायादात्सहस्रशः।। <td> 1-122-14a<BR>1-122-14b
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गजानश्वान्रथांश्चैव वासांस्याभरणानि च।<BR>मणिमुक्ताप्रवालं च गाङ्गेयो व्यसृजच्छुभम्।। <td> 1-122-15a<BR>1-122-15b
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तत्प्रगृह्य धनं सर्वं शल्यः संप्रतीमानसः।<BR>ददौ तां समलङ्कृत्य स्वसारं कौरवर्षभे।। <td> 1-122-16a<BR>1-122-16b
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स तां माद्रीमुपादाय भीष्मः सागरगासुतः।<BR>आजगाम पुरीं धीमान्प्रविष्टो गजसाह्वयम्।। <td> 1-122-17a<BR>1-122-17b
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तत इष्टेऽहनि प्राप्ते मुहूर्ते साधुसंमते।<BR>`विवाहं कारायामास भीष्मः पाण्डोर्महात्मनः।'<BR>जग्राह विधिवत्पाणिं माद्र्याः पाण्डुर्नराधिपः।। <td> 1-122-18a<BR>1-122-18b<BR>1-122-18c
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ततो विवाहे निर्वृत्ते स राजा कुरुनन्दनः।<BR>स्थापयामास तां भार्यां शुभे वेश्मनि भामिनीं।। <td> 1-122-19a<BR>1-122-19b
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स ताभ्यां व्यचरत्सार्धं भार्याभ्यां राजसत्तमः।<BR>कुन्त्या माद्र्या च राजेन्द्रो यथाकामं यथासुखम्।। <td> 1-122-20a<BR>1-122-20b
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ततः स कौरवो राजा विहृत्य त्रिदशा निशाः।<BR>जिगीषया महीं पाण्डुर्निरक्रामत्पुरात्प्रभो।। <td> 1-122-21a<BR>1-122-21b
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स भीष्मप्रमुखान्वृद्धानभिवाद्य प्रणम्य च।<BR>धृतराष्ट्रं च कौरव्यं तथान्यान्कुरुसत्तमान्।<BR>आमन्त्र्य प्रययौ राजा तैश्चैवाप्यनुमोजितः।। <td> 1-122-22a<BR>1-122-22b<BR>1-122-22c
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मङ्गलाचारयुक्ताभिराशीर्भिरभिनन्दितः।<BR>गजवाजिरथौघेन बलेन महताऽगमत्।। <td> 1-122-23a<BR>1-122-23b
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स राजा देवगर्भाभो विजिगीषुर्वसुन्धराम्।<BR>हृष्टपुष्टबलैः प्रायात्पाण्डुः शत्रूननेकशः।। <td> 1-122-24a<BR>1-122-24b
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पूर्वमागस्कृतो गत्वा दशार्णाः समरे जिताः।<BR>पाण्डुना नरसिंहेन कौरवाणां यशोभृता।। <td> 1-122-25a<BR>1-122-25b
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ततः सेनामुपादाय पाण्डुर्नानाविधध्वजाम्।<BR>प्रभूतहस्त्यश्वयुतां पदातिरथसंकुलाम्।। <td> 1-122-26a<BR>1-122-26b
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आगस्कारी महीपानां बहूनां बलदर्पितः।<BR>गोप्ता मगधराष्ट्रस्य दीर्घो राजगृहे हतः।। <td> 1-122-27a<BR>1-122-27b
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ततः कोशं समादाय वाहनानि च भूरिशः।<BR>पाण्डुना मिथिलां गत्वा विदेहाः समरे जिताः।। <td> 1-122-28a<BR>1-122-28b
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तथा काशिषु सुह्मेषु पुण्ड्रेषु च नरर्षभ।<BR>स्वबाहुबलवीर्येण कुरूणामकरोद्यशः।। <td> 1-122-29a<BR>1-122-29b
</tr>
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तं शरौघमहाज्वालं शस्त्रार्चिषमरिन्दमम्।<BR>पाण्डुपावकमासाद्य व्यवह्यन्त नराधिपाः।। <td> 1-122-30a<BR>1-122-30b
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ते ससेनाः ससेनेन विध्वंसितबला नृपाः।<BR>पाण्डुना वशगाः कृत्वा कुरुकर्मसु योजिताः।। <td> 1-122-31a<BR>1-122-31b
</tr>
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तेन ते निर्जिताः सर्वे पृथिव्यां सर्वपार्थिवाः।<BR>तमेकं मेनिरे शूरं देवेष्विव पुरन्दरम्।। <td> 1-122-32a<BR>1-122-32b
</tr>
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तं कृताञ्जलयः सर्वे प्रणता वसुधाधिपाः।<BR>उपाजग्मुर्धनं गृह्य रत्नानि विविधानि च।। <td> 1-122-33a<BR>1-122-33b
</tr>
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मणिमुक्ताप्रवालं च सुवर्णं रजतं बहु।<BR>गोरत्नान्यश्वरत्नानि रथरत्नानि कुञ्जरान्।। <td> 1-122-34a<BR>1-122-34b
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खरोष्ट्रमहिषांश्चैव यच्च किंचिदजाविकम्।<BR>कम्लाजिनरत्नानि राङ्कवास्तरणानि च।<BR>तत्सर्वं प्रतिजग्राह राजा नागपुराधिपः।। <td> 1-122-35a<BR>1-122-35b<BR>1-122-35c
</tr>
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तदादाय ययौ पाण्डुः पुनर्मदितवाहनः।<BR>हर्षयिष्यन्स्वराष्ट्राणि पुरं च गजसाह्वयम्।। <td> 1-122-36a<BR>1-122-36b
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शान्तनो राजसिंहस्य भरतस्य च धीमतः।<BR>प्रनष्टः कीर्तिजः शब्दः पाण्डुना पुनराहृतः।। <td> 1-122-37a<BR>1-122-37b
</tr>
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ये पुरा कुरुराष्ट्राणि जह्रुः कुरुधनानि च।<BR>ते नागपुरसिंहेन पाण्डुना करदीकृताः।। <td> 1-122-38a<BR>1-122-38b
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इत्यभाषन्त राजानो राजामात्याश्च सङ्गताः।<BR>प्रतीतमनसो हृष्टाः पौरजानपदैः सह।। <td> 1-122-39a<BR>1-122-39b
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प्रत्युद्ययुश्च तं प्राप्तं सर्वे भीष्मपुरोगमाः।<BR>ते नदूरमिवाध्वानं गत्वा नागपुरालयाः।। <td> 1-122-40a<BR>1-122-40b
</tr>
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आवृतं ददृशुर्हृष्टा लोकं बहुविधैर्धनैः।<BR>नानायानसमानीतै रत्नैरुच्चावचैस्तदा।। <td> 1-122-41a<BR>1-122-41b
</tr>
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हस्त्यश्वरथरत्नैश्च गोभिरुष्ट्रैस्तथाऽऽविभिः।<BR>नान्तं ददृशुरासाद्य भीष्मेण सह कौरवाः।। <td> 1-122-42a<BR>1-122-42b
</tr>
<tr><td>
सोऽभिवाद्य पितुः पादौ कौसल्यानन्दवर्धनः।<BR>यथाऽर्हं मानयामास पौरजानपदानपि।। <td> 1-122-43a<BR>1-122-43b
</tr>
<tr><td>
प्रमृद्य परराष्ट्राणि कृतार्थं पुनरागतम्।<BR>पुत्रमाश्लिष्य भीष्मस्तु हर्षादश्रूण्यवर्तयत्।। <td> 1-122-44a<BR>1-122-44b
</tr>
<tr><td>
स तूर्यशतशङ्खानां भेरीणां च महास्वनैः।<BR>हर्षयन्सर्वशः पौरान्विवेश गजसाह्वयम्।। <td> 1-122-45a<BR>1-122-45b
</tr>
<tr><td>
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि द्वाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 122 ।। <td>
</tr></table>
1-122-8 मे वरः मम जामाता।।
1-122-14 शातकुम्भं काञ्चनम्। कृताकृतं घटितमघटितं च।।
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