"महाभारतम्-01-आदिपर्व-165" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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आदिपर्व using AWB
पङ्क्तिः १३:
कुन्त्यादीनां प्रबोधः।। 3 ।।<br>
<table>
<tr><td>
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-1x </p></tr>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तां विदित्वा चिरगतां हिडिम्बो राक्षसेश्वरः।<BR>अवतीर्य द्रुमात्तस्मादाजगामाशु पाण्डवान्।। <td> 1-165-1a<BR>1-165-1b </p></tr>
 
तां विदित्वा चिरगतां हिडिम्बो राक्षसेश्वरः।<BR>अवतीर्य द्रुमात्तस्मादाजगामाशु पाण्डवान्।। <td> 1-165-1a<BR>1-165-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> लोहिताक्षो महाबाहुरूर्ध्वकेशो महाननः।<BR>मेघसङ्घातवर्ष्मा च तीक्ष्णदंष्ट्रो भयानकः।। <td> 1-165-2a<BR>1-165-2b </p></tr>
 
लोहिताक्षो महाबाहुरूर्ध्वकेशो महाननः।<BR>मेघसङ्घातवर्ष्मा च तीक्ष्णदंष्ट्रो भयानकः।। <td> 1-165-2a<BR>1-165-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तलं तलेन संहत्य बाहू विक्षिप्य चासकृत्।<BR>उद्वृत्तनेत्रः संक्रुद्धो दन्तान्दन्तेषु निष्कुषन्।। <td> 1-165-3a<BR>1-165-3b </p></tr>
 
तलं तलेन संहत्य बाहू विक्षिप्य चासकृत्।<BR>उद्वृत्तनेत्रः संक्रुद्धो दन्तान्दन्तेषु निष्कुषन्।। <td> 1-165-3a<BR>1-165-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कोऽद्य मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।<BR>न बिभेति हिडिम्बी च प्रेषिता किमनागता।। <td> 1-165-4a<BR>1-165-4b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-5x </p></tr>
कोऽद्य मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।<BR>न बिभेति हिडिम्बी च प्रेषिता किमनागता।। <td> 1-165-4a<BR>1-165-4b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-5x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तमापतन्तं दृष्ट्वै तथा विकृतदर्शनम्।<BR>हिडिम्बोवाच वित्रस्ता भीमसेनमिदं वचः।। <td> 1-165-5a<BR>1-165-5b </p></tr>
 
तमापतन्तं दृष्ट्वै तथा विकृतदर्शनम्।<BR>हिडिम्बोवाच वित्रस्ता भीमसेनमिदं वचः।। <td> 1-165-5a<BR>1-165-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आपतत्येष दुष्टात्मा संक्रुद्धः पुरुषादकः।<BR>साऽहं त्वां भ्रातृभिः सार्धं यद्ब्रवीमि तथा कुरु।। <td> 1-165-6a<BR>1-165-6b </p></tr>
 
आपतत्येष दुष्टात्मा संक्रुद्धः पुरुषादकः।<BR>साऽहं त्वां भ्रातृभिः सार्धं यद्ब्रवीमि तथा कुरु।। <td> 1-165-6a<BR>1-165-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहं कामगमा वीर रक्षोबलसमन्विता।<BR>आरुहेमां मम श्रोणिं नेष्यामि त्वां विहायसा।। <td> 1-165-7a<BR>1-165-7b </p></tr>
 
अहं कामगमा वीर रक्षोबलसमन्विता।<BR>आरुहेमां मम श्रोणिं नेष्यामि त्वां विहायसा।। <td> 1-165-7a<BR>1-165-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रबोधयैतान्संसुप्तान्मातरं च परन्तप।<BR>सर्वानेव गमिष्याभि गृहीत्वा वो विहायसा।। <td> 1-165-8a<BR>1-165-8b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>भीम उवाच।</B> <td> 1-165-9x </p></tr>
प्रबोधयैतान्संसुप्तान्मातरं च परन्तप।<BR>सर्वानेव गमिष्याभि गृहीत्वा वो विहायसा।। <td> 1-165-8a<BR>1-165-8b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''भीम उवाच।''' <td> 1-165-9x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मा भैस्त्वं पृथुसुश्रोणि नैष कश्चिन्मयि स्थिते।<BR>अहमेनं हनिष्यामि पश्यन्त्यास्ते सुमध्यमे।। <td> 1-165-9a<BR>1-165-9b </p></tr>
 
मा भैस्त्वं पृथुसुश्रोणि नैष कश्चिन्मयि स्थिते।<BR>अहमेनं हनिष्यामि पश्यन्त्यास्ते सुमध्यमे।। <td> 1-165-9a<BR>1-165-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नायं प्रतिबलो भीरु राक्षसापसदो मम।<BR>सोढुं युधि परिस्पन्दमथवा सर्वराक्षसाः।। <td> 1-165-10a<BR>1-165-10b </p></tr>
 
नायं प्रतिबलो भीरु राक्षसापसदो मम।<BR>सोढुं युधि परिस्पन्दमथवा सर्वराक्षसाः।। <td> 1-165-10a<BR>1-165-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पश्य बाहू सुवृत्तौ मे हस्तिहस्तनिभाविमौ।<BR>ऊरू परिघसङ्काशौ संहतं चाप्युरो महत्।। <td> 1-165-11a<BR>1-165-11b </p></tr>
 
पश्य बाहू सुवृत्तौ मे हस्तिहस्तनिभाविमौ।<BR>ऊरू परिघसङ्काशौ संहतं चाप्युरो महत्।। <td> 1-165-11a<BR>1-165-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विक्रमं मे यथेन्द्रस्य साऽद्य द्रक्ष्यसि शोभने।<BR>माऽवमंस्थाः पृथुश्रोणि मत्वा मामिह मानुषम्।। <td> 1-165-12a<BR>1-165-12b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>हिडिम्बोवाच।</B> <td> 1-165-13x </p></tr>
विक्रमं मे यथेन्द्रस्य साऽद्य द्रक्ष्यसि शोभने।<BR>माऽवमंस्थाः पृथुश्रोणि मत्वा मामिह मानुषम्।। <td> 1-165-12a<BR>1-165-12b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''हिडिम्बोवाच।''' <td> 1-165-13x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नावमन्ये नरव्याघ्र त्वामहं देवरूपिणम्।<BR>दृष्टप्रभावस्तु मया मानुषेष्वेव राक्षसः।। <td> 1-165-13a<BR>1-165-13b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-14x </p></tr>
नावमन्ये नरव्याघ्र त्वामहं देवरूपिणम्।<BR>दृष्टप्रभावस्तु मया मानुषेष्वेव राक्षसः।। <td> 1-165-13a<BR>1-165-13b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-14x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तथा संजल्पतस्तस्य भीमसेनस्य भारत।<BR>वाचः शुश्राव ताः क्रुद्धो राक्षसः पुरुषादकः।। <td> 1-165-14a<BR>1-165-14b </p></tr>
 
तथा संजल्पतस्तस्य भीमसेनस्य भारत।<BR>वाचः शुश्राव ताः क्रुद्धो राक्षसः पुरुषादकः।। <td> 1-165-14a<BR>1-165-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अवेक्षमाणस्तस्याश्च हिडिम्बो मानुषं वपुः।<BR>स्रग्दामपूरितशिखां समग्रेन्दुनिभाननाम्।। <td> 1-165-15a<BR>1-165-15b </p></tr>
 
अवेक्षमाणस्तस्याश्च हिडिम्बो मानुषं वपुः।<BR>स्रग्दामपूरितशिखां समग्रेन्दुनिभाननाम्।। <td> 1-165-15a<BR>1-165-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सुभ्रूनासाक्षिकेशान्तां सुकुमारनखत्वचम्।<BR>सर्वाभरणसंयुक्तां सुसूक्ष्माम्बरधारिणीम्।। <td> 1-165-16a<BR>1-165-16b </p></tr>
 
सुभ्रूनासाक्षिकेशान्तां सुकुमारनखत्वचम्।<BR>सर्वाभरणसंयुक्तां सुसूक्ष्माम्बरधारिणीम्।। <td> 1-165-16a<BR>1-165-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तां तथा मानुषं रूपं बिभ्रतीं सुमनोहरम्।<BR>पुंस्कामां शङ्कमानश्च चुक्रोध पुरुषादकः।। <td> 1-165-17a<BR>1-165-17b </p></tr>
 
तां तथा मानुषं रूपं बिभ्रतीं सुमनोहरम्।<BR>पुंस्कामां शङ्कमानश्च चुक्रोध पुरुषादकः।। <td> 1-165-17a<BR>1-165-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> संक्रुद्धो राक्षसस्तस्या भगिन्याः कुरुसत्तम।<BR>उत्फाल्य विपुले नेत्रे ततस्तामिदमब्रवीत्।। <td> 1-165-18a<BR>1-165-18b </p></tr>
 
संक्रुद्धो राक्षसस्तस्या भगिन्याः कुरुसत्तम।<BR>उत्फाल्य विपुले नेत्रे ततस्तामिदमब्रवीत्।। <td> 1-165-18a<BR>1-165-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> को हि मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।<BR>न बिभेषि हिडिम्बे किं मत्कोपाद्विप्रमोहिता।। <td> 1-165-19a<BR>1-165-19b </p></tr>
 
को हि मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।<BR>न बिभेषि हिडिम्बे किं मत्कोपाद्विप्रमोहिता।। <td> 1-165-19a<BR>1-165-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> धिक्त्वामसति पुंस्कामे मम विप्रियकारिणि।<BR>पूर्वेषां राक्षसेन्द्राणां सर्वेषामयशस्करि।। <td> 1-165-20a<BR>1-165-20b </p></tr>
 
धिक्त्वामसति पुंस्कामे मम विप्रियकारिणि।<BR>पूर्वेषां राक्षसेन्द्राणां सर्वेषामयशस्करि।। <td> 1-165-20a<BR>1-165-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यानिमानाश्रिताऽकार्षीर्विप्रियं समुहन्मम।<BR>एष तानद्य वै सर्वान्हनिष्यामि त्वया सह।। <td> 1-165-21a<BR>1-165-21b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-22x </p></tr>
यानिमानाश्रिताऽकार्षीर्विप्रियं समुहन्मम।<BR>एष तानद्य वै सर्वान्हनिष्यामि त्वया सह।। <td> 1-165-21a<BR>1-165-21b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-22x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवमुक्त्वा हिडिम्बां स हिडिम्बो लोहितेक्षणः।<BR>वधायाभिपपातैनान्दन्तैर्दन्तानुपस्पृशन्।। <td> 1-165-22a<BR>1-165-22b </p></tr>
 
एवमुक्त्वा हिडिम्बां स हिडिम्बो लोहितेक्षणः।<BR>वधायाभिपपातैनान्दन्तैर्दन्तानुपस्पृशन्।। <td> 1-165-22a<BR>1-165-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गर्जन्तमेवं विजने भीमसेनोऽभिवीक्ष्य तम्।<BR>रक्षन्प्रबोधं भ्रातॄणां मातुश्च परवीरहा।। <td> 1-165-23a<BR>1-165-23b </p></tr>
 
गर्जन्तमेवं विजने भीमसेनोऽभिवीक्ष्य तम्।<BR>रक्षन्प्रबोधं भ्रातॄणां मातुश्च परवीरहा।। <td> 1-165-23a<BR>1-165-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तमापतान्तं संप्रेक्ष्य भीमः प्रहरतां वरः।<BR>भर्त्सयामास तेजस्वी तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। <td> 1-165-24a<BR>1-165-24b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-25x </p></tr>
तमापतान्तं संप्रेक्ष्य भीमः प्रहरतां वरः।<BR>भर्त्सयामास तेजस्वी तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। <td> 1-165-24a<BR>1-165-24b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-25x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भीमसेनस्तु तं दृष्ट्वा राक्षसं प्रहसन्निव।<BR>भगिनीं प्रति सङ्क्रुद्धमिदं वचनमब्रवीत्।। <td> 1-165-25a<BR>1-165-25b </p></tr>
 
भीमसेनस्तु तं दृष्ट्वा राक्षसं प्रहसन्निव।<BR>भगिनीं प्रति सङ्क्रुद्धमिदं वचनमब्रवीत्।। <td> 1-165-25a<BR>1-165-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> किं ते हिडिम्ब एतैर्वा सुखसुप्तैः प्रबोधितैः।<BR>मामासादय दुर्बुद्धे तरसा त्वं नराशन।। <td> 1-165-26a<BR>1-165-26b </p></tr>
 
किं ते हिडिम्ब एतैर्वा सुखसुप्तैः प्रबोधितैः।<BR>मामासादय दुर्बुद्धे तरसा त्वं नराशन।। <td> 1-165-26a<BR>1-165-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मय्येव प्रहरैहि त्वं न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।<BR>विशेषतोऽनपकृते परेणापकृते सति।। <td> 1-165-27a<BR>1-165-27b </p></tr>
 
मय्येव प्रहरैहि त्वं न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।<BR>विशेषतोऽनपकृते परेणापकृते सति।। <td> 1-165-27a<BR>1-165-27b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न हीयं स्ववशा बाला कामयत्यद्य मामिह।<BR>चोदितैषा ह्यनङ्गेन शरीरान्तरचारिणा।। <td> 1-165-28a<BR>1-165-28b </p></tr>
 
न हीयं स्ववशा बाला कामयत्यद्य मामिह।<BR>चोदितैषा ह्यनङ्गेन शरीरान्तरचारिणा।। <td> 1-165-28a<BR>1-165-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भगिनी तव दुर्वृत्त रक्षसां वै यशोहर।<BR>त्वन्नियोगेन चैवेयं रूपं मम समीक्ष्य च।। <td> 1-165-29a<BR>1-165-29b </p></tr>
 
भगिनी तव दुर्वृत्त रक्षसां वै यशोहर।<BR>त्वन्नियोगेन चैवेयं रूपं मम समीक्ष्य च।। <td> 1-165-29a<BR>1-165-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कामयत्यद्य मां भीरुस्तव नैषापराध्यति।<BR>अनङ्गेन कृते दोषे नेमां गर्हितुमर्हसि।। <td> 1-165-30a<BR>1-165-30b </p></tr>
 
कामयत्यद्य मां भीरुस्तव नैषापराध्यति।<BR>अनङ्गेन कृते दोषे नेमां गर्हितुमर्हसि।। <td> 1-165-30a<BR>1-165-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मयि तिष्ठति दुष्टात्मन्न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।<BR>संगच्छस्व मया सार्धमेकेनैको नराशन।। <td> 1-165-31a<BR>1-165-31b </p></tr>
 
मयि तिष्ठति दुष्टात्मन्न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।<BR>संगच्छस्व मया सार्धमेकेनैको नराशन।। <td> 1-165-31a<BR>1-165-31b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहमेको गमिष्यामि त्वामद्य यमसादनम्।<BR>अद्य मद्बलनिष्पिष्टं शिरो राक्षस दीर्यताम्।<BR>कुञ्जरस्येव पादेन विनिष्पिष्टं बलीयसाः।। <td> 1-165-32a<BR>1-165-32b<BR>1-165-32c </p></tr>
 
अहमेको गमिष्यामि त्वामद्य यमसादनम्।<BR>अद्य मद्बलनिष्पिष्टं शिरो राक्षस दीर्यताम्।<BR>कुञ्जरस्येव पादेन विनिष्पिष्टं बलीयसाः।। <td> 1-165-32a<BR>1-165-32b<BR>1-165-32c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अद्य गात्राणि ते कङ्काः श्येना गोमायवस्तथा।<BR>कर्षन्तु भुवि संहृष्टा निहतस्य मया मृधे।। <td> 1-165-33a<BR>1-165-33b </p></tr>
 
अद्य गात्राणि ते कङ्काः श्येना गोमायवस्तथा।<BR>कर्षन्तु भुवि संहृष्टा निहतस्य मया मृधे।। <td> 1-165-33a<BR>1-165-33b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> क्षणेनाद्य करिष्येऽहमिदं वनमराक्षसम्।<BR>पुरा यद्दूषितं नित्यं त्वया भक्षयता नरान्।। <td> 1-165-34a<BR>1-165-34b </p></tr>
 
क्षणेनाद्य करिष्येऽहमिदं वनमराक्षसम्।<BR>पुरा यद्दूषितं नित्यं त्वया भक्षयता नरान्।। <td> 1-165-34a<BR>1-165-34b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अद्य त्वां भगिनी रक्षः कृष्यमाणं मयाऽसकृत्।<BR>द्रक्ष्यत्यद्रिप्रतीकाशं सिंहेनेव महाद्विपम्।। <td> 1-165-35a<BR>1-165-35b </p></tr>
 
अद्य त्वां भगिनी रक्षः कृष्यमाणं मयाऽसकृत्।<BR>द्रक्ष्यत्यद्रिप्रतीकाशं सिंहेनेव महाद्विपम्।। <td> 1-165-35a<BR>1-165-35b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निराबाधास्त्वयि हते मया राक्षसपांसन।<BR>वनमेतच्चरिष्यन्ति पुरुषा वनचारिणः।। <td> 1-165-36a<BR>1-165-36b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>हिडिम्ब उवाच।</B> <td> 1-165-37x </p></tr>
निराबाधास्त्वयि हते मया राक्षसपांसन।<BR>वनमेतच्चरिष्यन्ति पुरुषा वनचारिणः।। <td> 1-165-36a<BR>1-165-36b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''हिडिम्ब उवाच।''' <td> 1-165-37x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गर्जितेन वृथा किं ते कत्थितेन च मानुष।<BR>कृत्वैतत्कर्मणा सर्वं कत्थेया मा चिरं कृथाः।। <td> 1-165-37a<BR>1-165-37b </p></tr>
 
गर्जितेन वृथा किं ते कत्थितेन च मानुष।<BR>कृत्वैतत्कर्मणा सर्वं कत्थेया मा चिरं कृथाः।। <td> 1-165-37a<BR>1-165-37b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> बलिनं मन्यसे यच्चाप्यात्मानं सपराक्रमम्।<BR>ज्ञास्यस्यद्य समागम्य मयात्मानं बलाधिकम्।। <td> 1-165-38a<BR>1-165-38b </p></tr>
 
बलिनं मन्यसे यच्चाप्यात्मानं सपराक्रमम्।<BR>ज्ञास्यस्यद्य समागम्य मयात्मानं बलाधिकम्।। <td> 1-165-38a<BR>1-165-38b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न तावदेतान्हिंसिष्ये स्वपन्त्वेते यथासुखम्।<BR>एष त्वामेव दुर्बुद्धे निहन्म्यद्याप्रियंवदम्।। <td> 1-165-39a<BR>1-165-39b </p></tr>
 
न तावदेतान्हिंसिष्ये स्वपन्त्वेते यथासुखम्।<BR>एष त्वामेव दुर्बुद्धे निहन्म्यद्याप्रियंवदम्।। <td> 1-165-39a<BR>1-165-39b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पीत्वा तवासृग्गात्रेभ्यस्ततः पश्चादिमानपि।<BR>हनिष्यामि ततः पश्चादिमां विप्रियकारिणीम्।। <td> 1-165-40a<BR>1-165-40b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-165-41x </p></tr>
पीत्वा तवासृग्गात्रेभ्यस्ततः पश्चादिमानपि।<BR>हनिष्यामि ततः पश्चादिमां विप्रियकारिणीम्।। <td> 1-165-40a<BR>1-165-40b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-165-41x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवमुक्त्वा ततो बाहुं प्रगृह्य पुरुषादकः।<BR>अभ्यद्रवत संक्रुद्धो भीमसेनमरिन्दमम्।। <td> 1-165-41a<BR>1-165-41b </p></tr>
 
एवमुक्त्वा ततो बाहुं प्रगृह्य पुरुषादकः।<BR>अभ्यद्रवत संक्रुद्धो भीमसेनमरिन्दमम्।। <td> 1-165-41a<BR>1-165-41b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तस्याभिद्रवतस्तूर्णं भीमो भीमपराक्रमः।<BR>वेगेन प्रहितं बाहुं निजग्राह हसन्निव।। <td> 1-165-42a<BR>1-165-42b </p></tr>
 
तस्याभिद्रवतस्तूर्णं भीमो भीमपराक्रमः।<BR>वेगेन प्रहितं बाहुं निजग्राह हसन्निव।। <td> 1-165-42a<BR>1-165-42b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निगृह्य तं बलाद्भीमो विस्फुरन्तं चकर्ष ह।<BR>तस्माद्देशाद्धनूंष्यष्टौ सिंहः क्षुद्रमृगं यथा।। <td> 1-165-43a<BR>1-165-43b </p></tr>
 
निगृह्य तं बलाद्भीमो विस्फुरन्तं चकर्ष ह।<BR>तस्माद्देशाद्धनूंष्यष्टौ सिंहः क्षुद्रमृगं यथा।। <td> 1-165-43a<BR>1-165-43b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः स राक्षसः क्रुद्धः पाण्डवेन बलार्दितः।<BR>भीमसेनं समालिङ्ग्य व्यनदद्भैरवं रवम्।। <td> 1-165-44a<BR>1-165-44b </p></tr>
 
ततः स राक्षसः क्रुद्धः पाण्डवेन बलार्दितः।<BR>भीमसेनं समालिङ्ग्य व्यनदद्भैरवं रवम्।। <td> 1-165-44a<BR>1-165-44b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पुनर्भीमो बलादेनं विचकर्ष महाबलः।<BR>मा शब्दः सुखसुप्तानां भ्रातॄणां मे भवेदिति।। <td> 1-165-45a<BR>1-165-45b </p></tr>
 
पुनर्भीमो बलादेनं विचकर्ष महाबलः।<BR>मा शब्दः सुखसुप्तानां भ्रातॄणां मे भवेदिति।। <td> 1-165-45a<BR>1-165-45b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `हस्ते गृहीत्वा तद्रक्षो दूरमन्यत्र नीतवान्।<BR>पृच्छे गृहीत्वा तुण्डेन गरुडः पन्नगं यथा।।' <td> 1-165-46a<BR>1-165-46b </p></tr>
 
`हस्ते गृहीत्वा तद्रक्षो दूरमन्यत्र नीतवान्।<BR>पृच्छे गृहीत्वा तुण्डेन गरुडः पन्नगं यथा।।' <td> 1-165-46a<BR>1-165-46b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अन्योन्यं तौ समासाद्य विचकर्षतुरोजसा।<BR>हिडिम्बो भीमसेनश्च विक्रमं चक्रतुः परम्।। <td> 1-165-47a<BR>1-165-47b </p></tr>
 
अन्योन्यं तौ समासाद्य विचकर्षतुरोजसा।<BR>हिडिम्बो भीमसेनश्च विक्रमं चक्रतुः परम्।। <td> 1-165-47a<BR>1-165-47b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> बभञ्जतुस्तदा वृक्षाँल्लताश्चाकर्षतुस्तदा।<BR>मत्ताविव चं संरब्धौ वारणौ षष्टिहायनौ।। <td> 1-165-48a<BR>1-165-48b </p></tr>
 
बभञ्जतुस्तदा वृक्षाँल्लताश्चाकर्षतुस्तदा।<BR>मत्ताविव चं संरब्धौ वारणौ षष्टिहायनौ।। <td> 1-165-48a<BR>1-165-48b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `पादपानुद्धरन्तौ तावूरुवेगेन वेगितौ।<BR>स्फोटयन्तौ लताजालान्यूरुभ्यां गृह्य सर्वशः।। <td> 1-165-49a<BR>1-165-49b </p></tr>
 
`पादपानुद्धरन्तौ तावूरुवेगेन वेगितौ।<BR>स्फोटयन्तौ लताजालान्यूरुभ्यां गृह्य सर्वशः।। <td> 1-165-49a<BR>1-165-49b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वित्रासयन्तौ तौ शब्दैः सर्वतो मृगपक्षिणः।<BR>बलेन बलिनौ मत्तावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ।। <td> 1-165-50a<BR>1-165-50b </p></tr>
 
वित्रासयन्तौ तौ शब्दैः सर्वतो मृगपक्षिणः।<BR>बलेन बलिनौ मत्तावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ।। <td> 1-165-50a<BR>1-165-50b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भीमराक्षसयोर्युद्धं तदाऽवर्तत दारुणम्।<BR>पुरा देवासुरे युद्धे वृत्रवासवयोरिव।। <td> 1-165-51a<BR>1-165-51b </p></tr>
 
भीमराक्षसयोर्युद्धं तदाऽवर्तत दारुणम्।<BR>पुरा देवासुरे युद्धे वृत्रवासवयोरिव।। <td> 1-165-51a<BR>1-165-51b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भङूक्त्वा वृक्षान्महाशाखांस्ताडयामासतुः क्रुधा।<BR>सालतालतमालाम्रवटार्जुनविभीतकान्।। <td> 1-165-52a<BR>1-165-52b </p></tr>
 
भङूक्त्वा वृक्षान्महाशाखांस्ताडयामासतुः क्रुधा।<BR>सालतालतमालाम्रवटार्जुनविभीतकान्।। <td> 1-165-52a<BR>1-165-52b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न्यग्रोधप्लक्षखर्जूरपनसानश्मकण्टकान्।<BR>एतानन्यान्महावृक्षानुत्खाय तरसाऽखिलान्।। <td> 1-165-53a<BR>1-165-53b </p></tr>
 
न्यग्रोधप्लक्षखर्जूरपनसानश्मकण्टकान्।<BR>एतानन्यान्महावृक्षानुत्खाय तरसाऽखिलान्।। <td> 1-165-53a<BR>1-165-53b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उत्क्षिप्यान्योन्यरोषेण ताडयामासतू रणे।<BR>यदाऽभवद्वनं सर्वं निर्वृक्षं वृक्षसङ्कुलम्।। <td> 1-165-54a<BR>1-165-54b </p></tr>
 
उत्क्षिप्यान्योन्यरोषेण ताडयामासतू रणे।<BR>यदाऽभवद्वनं सर्वं निर्वृक्षं वृक्षसङ्कुलम्।। <td> 1-165-54a<BR>1-165-54b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तदा शिलाश्च कुञ्जांश्च वृक्षान्कण्टकिनस्तथा।<BR>ततस्तौ गिरिशृङ्गाणि पर्वतांश्चाभ्रलेलिहान्।। <td> 1-165-55a<BR>1-165-55b </p></tr>
 
तदा शिलाश्च कुञ्जांश्च वृक्षान्कण्टकिनस्तथा।<BR>ततस्तौ गिरिशृङ्गाणि पर्वतांश्चाभ्रलेलिहान्।। <td> 1-165-55a<BR>1-165-55b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> शैलांश्च गण्डपाषाणानुत्खायादाय वैरिणौ।<BR>चिक्षेपतुरुपर्याजावन्योन्यं विजयेषिणौ।। <td> 1-165-56a<BR>1-165-56b </p></tr>
 
शैलांश्च गण्डपाषाणानुत्खायादाय वैरिणौ।<BR>चिक्षेपतुरुपर्याजावन्योन्यं विजयेषिणौ।। <td> 1-165-56a<BR>1-165-56b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तद्वनं परितः पञ्चयोजनं निर्महीरुहम्।<BR>निर्लतागुल्मपाषाणं निर्मृगं चक्रतुर्भृशम्।। <td> 1-165-57a<BR>1-165-57b </p></tr>
 
तद्वनं परितः पञ्चयोजनं निर्महीरुहम्।<BR>निर्लतागुल्मपाषाणं निर्मृगं चक्रतुर्भृशम्।। <td> 1-165-57a<BR>1-165-57b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तयोर्युद्धेन राजेन्द्र तद्वनं भीमरक्षसोः।<BR>मुहूर्तेनाभवत्कूमर्पृष्ठवच्छ्लक्ष्णमव्ययम्।। <td> 1-165-58a<BR>1-165-58b </p></tr>
 
तयोर्युद्धेन राजेन्द्र तद्वनं भीमरक्षसोः।<BR>मुहूर्तेनाभवत्कूमर्पृष्ठवच्छ्लक्ष्णमव्ययम्।। <td> 1-165-58a<BR>1-165-58b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ऊरुबाहुपरिक्लेशात्कर्षन्तावितरेतरम्।<BR>उत्कर्षन्तौ विकर्षन्तौ प्रकर्षन्तौ परस्परम्।। <td> 1-165-59a<BR>1-165-59b </p></tr>
 
ऊरुबाहुपरिक्लेशात्कर्षन्तावितरेतरम्।<BR>उत्कर्षन्तौ विकर्षन्तौ प्रकर्षन्तौ परस्परम्।। <td> 1-165-59a<BR>1-165-59b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तौ स्वनेन विना राजन्गर्जन्तौ च परस्परम्।<BR>पाषाणसंघट्टनिभैः प्रहारैरभिजघ्नतुः।। <td> 1-165-60a<BR>1-165-60b </p></tr>
 
तौ स्वनेन विना राजन्गर्जन्तौ च परस्परम्।<BR>पाषाणसंघट्टनिभैः प्रहारैरभिजघ्नतुः।। <td> 1-165-60a<BR>1-165-60b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अन्योन्यं च समालिङ्ग्य विकर्षन्तौ परस्परम्।<BR>बाहुयुद्धमभूद्धोरं बलिवासवयोरिव।<BR>युद्धसंरम्भनिर्गच्छत्फूत्काररवनिस्वनम्।।' <td> 1-165-61a<BR>1-165-61b<BR>1-165-61c </p></tr>
 
अन्योन्यं च समालिङ्ग्य विकर्षन्तौ परस्परम्।<BR>बाहुयुद्धमभूद्धोरं बलिवासवयोरिव।<BR>युद्धसंरम्भनिर्गच्छत्फूत्काररवनिस्वनम्।।' <td> 1-165-61a<BR>1-165-61b<BR>1-165-61c
 
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<tr><td>
<tr><td><p> तयोः शब्देन महता विबुद्धास्ते नरर्षभाः।<BR>सह मात्रा च ददृशुर्हिडिम्बामग्रतःस्थिताम्।। <td> 1-165-62a<BR>1-165-62b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>हिडिम्बवधपर्वणि पञ्चषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 165 ।। <td> </p></tr></table>
तयोः शब्देन महता विबुद्धास्ते नरर्षभाः।<BR>सह मात्रा च ददृशुर्हिडिम्बामग्रतःस्थिताम्।। <td> 1-165-62a<BR>1-165-62b
 
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।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>हिडिम्बवधपर्वणि पञ्चषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 165 ।। <td>
 
</tr></table>
1-165-2 मेघसंघातवर्ष्मा अतिकृष्णशरीरः।।
1-165-32 गमिष्यामि गमयिष्यामि।।
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