"महाभारतम्-01-आदिपर्व-175" इत्यस्य संस्करणे भेदः

(लघु) Bot: adding required templates
आदिपर्व using AWB
पङ्क्तिः १२:
कुन्त्या बकं प्रति स्वपुत्रप्रेषणवचनम्।। 1 ।।<br>
<table>
<tr><td>
<tr><td><p> <B>कुन्त्युवाच।</B> <td> 1-175-1x </p></tr>
 
'''कुन्त्युवाच।''' <td> 1-175-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न विषादस्त्वया कार्यो भयादस्मात्कथंचन।<BR>उपायः परिदृष्टोऽत्र तस्मान्मोक्षाय रक्षसः।। <td> 1-175-1a<BR>1-175-1b </p></tr>
 
न विषादस्त्वया कार्यो भयादस्मात्कथंचन।<BR>उपायः परिदृष्टोऽत्र तस्मान्मोक्षाय रक्षसः।। <td> 1-175-1a<BR>1-175-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `नैव स्वयं सपुत्रस्य गमनं तत्र रोचये।'<BR>एकस्तव सुतो बालः कन्या चैका तपस्विनी।<BR>न चैतयोस्तथा पत्न्या गमनं तव रोचये।। <td> 1-175-2a<BR>1-175-2b<BR>1-175-2c </p></tr>
 
`नैव स्वयं सपुत्रस्य गमनं तत्र रोचये।'<BR>एकस्तव सुतो बालः कन्या चैका तपस्विनी।<BR>न चैतयोस्तथा पत्न्या गमनं तव रोचये।। <td> 1-175-2a<BR>1-175-2b<BR>1-175-2c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मम पञ्च सुता ब्रह्मंस्तेषामेको गमिष्यति।<BR>त्वदर्थं बलिमादाय तस्य पापस्य रक्षसः।। <td> 1-175-3a<BR>1-175-3b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>ब्राह्मण उवाच।</B> <td> 1-175-4x </p></tr>
मम पञ्च सुता ब्रह्मंस्तेषामेको गमिष्यति।<BR>त्वदर्थं बलिमादाय तस्य पापस्य रक्षसः।। <td> 1-175-3a<BR>1-175-3b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''ब्राह्मण उवाच।''' <td> 1-175-4x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नाहमेतत्करिष्यामि जीवितार्थी कथंचन।<BR>ब्राह्मणस्यातिथेश्चैव स्वार्थे प्राणान्वियोजयन्।। <td> 1-175-4a<BR>1-175-4b </p></tr>
 
नाहमेतत्करिष्यामि जीवितार्थी कथंचन।<BR>ब्राह्मणस्यातिथेश्चैव स्वार्थे प्राणान्वियोजयन्।। <td> 1-175-4a<BR>1-175-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न त्वेतदकुलीनासु नाधर्मिष्ठासु विद्यते।<BR>यद्ब्राह्ममार्थं विसृजेदात्मानमपि चात्मजम्।। <td> 1-175-5a<BR>1-175-5b </p></tr>
 
न त्वेतदकुलीनासु नाधर्मिष्ठासु विद्यते।<BR>यद्ब्राह्ममार्थं विसृजेदात्मानमपि चात्मजम्।। <td> 1-175-5a<BR>1-175-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आत्मनस्तु वधः श्रेयो बोद्धव्यमिति रोचते।<BR>ब्रहम्वध्याऽऽत्मवध्या वा श्रेयानात्मवधो मम।। <td> 1-175-6a<BR>1-175-6b </p></tr>
 
आत्मनस्तु वधः श्रेयो बोद्धव्यमिति रोचते।<BR>ब्रहम्वध्याऽऽत्मवध्या वा श्रेयानात्मवधो मम।। <td> 1-175-6a<BR>1-175-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ब्रह्मवध्या परं पापं निष्कृतिर्नात्र विद्यते।<BR>अबुद्धिपूर्वं कृत्वापि प्रत्यवायो हि विद्यते।। <td> 1-175-7a<BR>1-175-7b </p></tr>
 
ब्रह्मवध्या परं पापं निष्कृतिर्नात्र विद्यते।<BR>अबुद्धिपूर्वं कृत्वापि प्रत्यवायो हि विद्यते।। <td> 1-175-7a<BR>1-175-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न त्वहं वधमाकाङ्क्षे स्वयमेवात्मनः शुभे।<BR>परैः कृते वधे पापं न किंचिन्मयि विद्यते।। <td> 1-175-8a<BR>1-175-8b </p></tr>
 
न त्वहं वधमाकाङ्क्षे स्वयमेवात्मनः शुभे।<BR>परैः कृते वधे पापं न किंचिन्मयि विद्यते।। <td> 1-175-8a<BR>1-175-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अभिसंधौ कृते तस्मिन्ब्राह्मणस्य वधे मया।<BR>निष्कृतिं न प्रपश्यामि नृशंसं क्षुद्रमेव च।। <td> 1-175-9a<BR>1-175-9b </p></tr>
 
अभिसंधौ कृते तस्मिन्ब्राह्मणस्य वधे मया।<BR>निष्कृतिं न प्रपश्यामि नृशंसं क्षुद्रमेव च।। <td> 1-175-9a<BR>1-175-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आगतस्य गृहं त्यागस्तथैव शरणार्थिनः।<BR>याचमानस्य च वधो नृशंसो गर्हितो बुधैः।। <td> 1-175-10a<BR>1-175-10b </p></tr>
 
आगतस्य गृहं त्यागस्तथैव शरणार्थिनः।<BR>याचमानस्य च वधो नृशंसो गर्हितो बुधैः।। <td> 1-175-10a<BR>1-175-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कुर्यान्न निन्दितं कर्म न नृशंसं कथंचन।<BR>इति पूर्वे महात्मान आपद्धर्मविदो विदुः।। <td> 1-175-11a<BR>1-175-11b </p></tr>
 
कुर्यान्न निन्दितं कर्म न नृशंसं कथंचन।<BR>इति पूर्वे महात्मान आपद्धर्मविदो विदुः।। <td> 1-175-11a<BR>1-175-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्रेयांस्तु सहदारस्य विनाशोऽद्य मम स्वयम्।<BR>ब्राह्मणस्य वधं नाहमनुमंस्ये कदाचन।। <td> 1-175-12a<BR>1-175-12b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>कुन्त्युवाच।</B> <td> 1-175-13x </p></tr>
श्रेयांस्तु सहदारस्य विनाशोऽद्य मम स्वयम्।<BR>ब्राह्मणस्य वधं नाहमनुमंस्ये कदाचन।। <td> 1-175-12a<BR>1-175-12b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''कुन्त्युवाच।''' <td> 1-175-13x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ममाप्येषा मतिर्ब्रह्मन्विप्रा रक्ष्या इति स्थिरा।<BR>न चाप्यनिष्टः पुत्रो मे यदि पुत्रशतं भवेत्।। <td> 1-175-13a<BR>1-175-13b </p></tr>
 
ममाप्येषा मतिर्ब्रह्मन्विप्रा रक्ष्या इति स्थिरा।<BR>न चाप्यनिष्टः पुत्रो मे यदि पुत्रशतं भवेत्।। <td> 1-175-13a<BR>1-175-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न चासौ राक्षसः शक्तो मम पुत्रविनाशने।<BR>वीर्यमन्मन्त्रसिद्धश्च तेजस्वी च सुतो मम।। <td> 1-175-14a<BR>1-175-14b </p></tr>
 
न चासौ राक्षसः शक्तो मम पुत्रविनाशने।<BR>वीर्यमन्मन्त्रसिद्धश्च तेजस्वी च सुतो मम।। <td> 1-175-14a<BR>1-175-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> राक्षसाय च तत्सर्वं प्रापयिष्यति भोजनम्।<BR>मोक्षयिष्यति चात्मानमिति मे निश्चिता मतिः।। <td> 1-175-15a<BR>1-175-15b </p></tr>
 
राक्षसाय च तत्सर्वं प्रापयिष्यति भोजनम्।<BR>मोक्षयिष्यति चात्मानमिति मे निश्चिता मतिः।। <td> 1-175-15a<BR>1-175-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> समागताश्च वीरेण दृष्टपूर्वाश्च राक्षसाः।<BR>बलवन्तो महाकाया निहताश्चाप्यनेकशः।। <td> 1-175-16a<BR>1-175-16b </p></tr>
 
समागताश्च वीरेण दृष्टपूर्वाश्च राक्षसाः।<BR>बलवन्तो महाकाया निहताश्चाप्यनेकशः।। <td> 1-175-16a<BR>1-175-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न त्विदं केषुचिद्ब्रह्मान्व्याहर्तव्यं कथंचन।<BR>विद्यार्थिनो हि मे पुत्रान्विप्रकुर्युः कुतूहलात्।। <td> 1-175-17a<BR>1-175-17b </p></tr>
 
न त्विदं केषुचिद्ब्रह्मान्व्याहर्तव्यं कथंचन।<BR>विद्यार्थिनो हि मे पुत्रान्विप्रकुर्युः कुतूहलात्।। <td> 1-175-17a<BR>1-175-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गुरुणा चाननुज्ञातो ग्राहयेद्यः सुतो मम।<BR>न स कुर्यात्तथा कार्यं विद्ययेति सतां मतम्।। <td> 1-175-18a<BR>1-175-18b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-175-19x </p></tr>
गुरुणा चाननुज्ञातो ग्राहयेद्यः सुतो मम।<BR>न स कुर्यात्तथा कार्यं विद्ययेति सतां मतम्।। <td> 1-175-18a<BR>1-175-18b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-175-19x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवमुक्तस्तु पृथया स विप्रो भार्यया सह।<BR>हृष्टः संपूजयामास तद्वाक्यममृतोपमम्।। <td> 1-175-19a<BR>1-175-19b </p></tr>
 
एवमुक्तस्तु पृथया स विप्रो भार्यया सह।<BR>हृष्टः संपूजयामास तद्वाक्यममृतोपमम्।। <td> 1-175-19a<BR>1-175-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः कुन्ती च विप्रश्च सहितावनिलात्मजम्।<BR>तमब्रूतां कुरुष्वेति स तथेत्यब्रवीच्च तौ।। <td> 1-175-20a<BR>1-175-20b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>पञ्चसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 175 ।। <td> </p></tr></table>
ततः कुन्ती च विप्रश्च सहितावनिलात्मजम्।<BR>तमब्रूतां कुरुष्वेति स तथेत्यब्रवीच्च तौ।। <td> 1-175-20a<BR>1-175-20b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>पञ्चसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 175 ।। <td>
 
</tr></table>
1-175-9 अभिसन्धौ अभिप्राये।।
1-175-17 विप्रकुर्युर्वाधेरन्।।
Line ६५ ⟶ १६५:
| next = [[महाभारतम्-01-आदिपर्व-176|आदिपर्व-176]]
}}
 
[[वर्गः:आदिपर्व]]
"https://sa.wikisource.org/wiki/महाभारतम्-01-आदिपर्व-175" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्