"महाभारतम्-01-आदिपर्व-209" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १४:
भोजनानन्तरं पाण्डवानां साङ्ग्रामिकवस्तुपूर्णप्रदेशे प्रवेशः।। 4 ।।
<table>
<tr><td><p> <B>

'''दूत उवाच।</B>''' <td> 1-209-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जन्यार्थमन्नं द्रुपदेन राज्ञा<BR>विवाहहेतोरुपसंस्कृतं च।<BR>तदाप्नुवध्वं कृतसर्वकार्याः<BR>कृष्णा च तत्रैतु चिरं न कार्यम्।। <td> 1-209-1a<BR>1-209-1b<BR>1-209-1c<BR>1-209-1d </p></tr>
 
जन्यार्थमन्नं द्रुपदेन राज्ञा<BR>विवाहहेतोरुपसंस्कृतं च।<BR>तदाप्नुवध्वं कृतसर्वकार्याः<BR>कृष्णा च तत्रैतु चिरं न कार्यम्।। <td> 1-209-1a<BR>1-209-1b<BR>1-209-1c<BR>1-209-1d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इमे रथाः काञ्चनपद्मचित्राः<BR>सदश्वयुक्ता वसुधाधिपार्हाः।<BR>एतान्समारुह्य परैत सर्वे<BR>पाञ्चालराजस्य निवेशनं तत्।। <td> 1-209-2a<BR>1-209-2b<BR>1-209-2c<BR>1-209-2d </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-209-3x </p></tr>
इमे रथाः काञ्चनपद्मचित्राः<BR>सदश्वयुक्ता वसुधाधिपार्हाः।<BR>एतान्समारुह्य परैत सर्वे<BR>पाञ्चालराजस्य निवेशनं तत्।। <td> 1-209-2a<BR>1-209-2b<BR>1-209-2c<BR>1-209-2d
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-209-3x
 
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<tr><td>
<tr><td><p> ततः प्रयाताः कुरुपुंगवास्ते<BR>पुरोहितं तं परियाप्य सर्वे।<BR>आस्थाय यानानि महान्ति तानि<BR>कुन्ती च कृष्णा च सहैकयाने।। <td> 1-209-3a<BR>1-209-3b<BR>1-209-3c<BR>1-209-3d </p></tr>
 
ततः प्रयाताः कुरुपुंगवास्ते<BR>पुरोहितं तं परियाप्य सर्वे।<BR>आस्थाय यानानि महान्ति तानि<BR>कुन्ती च कृष्णा च सहैकयाने।। <td> 1-209-3a<BR>1-209-3b<BR>1-209-3c<BR>1-209-3d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `स्त्रीभिः सुगन्धाम्बरमाल्यदानै-<BR>र्विभूषिता आभरणैर्विचित्रैः।<BR>माङ्गल्यगीतध्वनिवाद्यघोषै-<BR>र्मनोहरैः पुण्यकृतां वरिष्ठैः।। <td> 1-209-4a<BR>1-209-4b<BR>1-209-4c<BR>1-209-4d </p></tr>
 
`स्त्रीभिः सुगन्धाम्बरमाल्यदानै-<BR>र्विभूषिता आभरणैर्विचित्रैः।<BR>माङ्गल्यगीतध्वनिवाद्यघोषै-<BR>र्मनोहरैः पुण्यकृतां वरिष्ठैः।। <td> 1-209-4a<BR>1-209-4b<BR>1-209-4c<BR>1-209-4d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> संगीयमानाः प्रययुः प्रहृष्टा<BR>दीपैर्ज्वलद्भिः सहिताश्च विप्रैः।। <td> 1-209-5a<BR>1-209-5b </p></tr>
 
संगीयमानाः प्रययुः प्रहृष्टा<BR>दीपैर्ज्वलद्भिः सहिताश्च विप्रैः।। <td> 1-209-5a<BR>1-209-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स वै तथोक्तस्तु युधिष्ठिरेण<BR>पाञ्चालराजस्य पुरोहितोऽग्र्यः।<BR>सर्वं यथोक्तं कुरुनन्दनेन<BR>निवेदयामास नृपाय गत्वा।।' <td> 1-209-6a<BR>1-209-6b<BR>1-209-6c<BR>1-209-6d </p></tr>
 
स वै तथोक्तस्तु युधिष्ठिरेण<BR>पाञ्चालराजस्य पुरोहितोऽग्र्यः।<BR>सर्वं यथोक्तं कुरुनन्दनेन<BR>निवेदयामास नृपाय गत्वा।।' <td> 1-209-6a<BR>1-209-6b<BR>1-209-6c<BR>1-209-6d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वा तु वाक्यानि पुरोहितस्य<BR>यान्युक्तवान्भारत धर्मराजः।<BR>जिज्ञासयैवाथ कुरूत्तमानां<BR>द्रव्याण्यनेकान्युपसंजहार।। <td> 1-209-7a<BR>1-209-7b<BR>1-209-7c<BR>1-209-7d </p></tr>
 
श्रुत्वा तु वाक्यानि पुरोहितस्य<BR>यान्युक्तवान्भारत धर्मराजः।<BR>जिज्ञासयैवाथ कुरूत्तमानां<BR>द्रव्याण्यनेकान्युपसंजहार।। <td> 1-209-7a<BR>1-209-7b<BR>1-209-7c<BR>1-209-7d
 
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<tr><td><p> फलानि माल्यानि च संस्कृतानि<BR>वर्माणि चर्माणि तथाऽऽसनानि।<BR>गाश्चैव राजन्नथ चैव रज्जू-<BR>र्बीजानि चान्यानि कृषीनिमित्तम्।। <td> 1-209-8a<BR>1-209-8b<BR>1-209-8c<BR>1-209-8d </p></tr>
 
फलानि माल्यानि च संस्कृतानि<BR>वर्माणि चर्माणि तथाऽऽसनानि।<BR>गाश्चैव राजन्नथ चैव रज्जू-<BR>र्बीजानि चान्यानि कृषीनिमित्तम्।। <td> 1-209-8a<BR>1-209-8b<BR>1-209-8c<BR>1-209-8d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> अन्येषु शिल्पेषु च यान्यपि स्युः<BR>सर्वाणि कृत्यान्यखिलेन तत्र।<BR>क्रीडानिमित्तान्यपि यानि तत्र<BR>सर्वाणि तत्रोपजहार राजा।। <td> 1-209-9a<BR>1-209-9b<BR>1-209-9c<BR>1-209-9d </p></tr>
 
अन्येषु शिल्पेषु च यान्यपि स्युः<BR>सर्वाणि कृत्यान्यखिलेन तत्र।<BR>क्रीडानिमित्तान्यपि यानि तत्र<BR>सर्वाणि तत्रोपजहार राजा।। <td> 1-209-9a<BR>1-209-9b<BR>1-209-9c<BR>1-209-9d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> वर्माणि चर्माणि च भानुमन्ति<BR>खड्गा महान्तोऽश्वरथाश्च चित्राः।<BR>धनूंषि चाग्र्याणि शराश्च चित्राः<BR>शक्त्यृष्टयः काञ्चनभूषणाश्च।। <td> 1-209-10a<BR>1-209-10b<BR>1-209-10c<BR>1-209-10d </p></tr>
 
वर्माणि चर्माणि च भानुमन्ति<BR>खड्गा महान्तोऽश्वरथाश्च चित्राः।<BR>धनूंषि चाग्र्याणि शराश्च चित्राः<BR>शक्त्यृष्टयः काञ्चनभूषणाश्च।। <td> 1-209-10a<BR>1-209-10b<BR>1-209-10c<BR>1-209-10d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> प्रासा भुशुण्ड्यश्च परश्वधाश्च<BR>सांग्रामिकं चैव तथैव सर्वम्।<BR>शय्यासनान्युत्तमवस्तुवन्ति<BR>तथैव वासो विविधं च तत्र।। <td> 1-209-11a<BR>1-209-11b<BR>1-209-11c<BR>1-209-11d </p></tr>
 
प्रासा भुशुण्ड्यश्च परश्वधाश्च<BR>सांग्रामिकं चैव तथैव सर्वम्।<BR>शय्यासनान्युत्तमवस्तुवन्ति<BR>तथैव वासो विविधं च तत्र।। <td> 1-209-11a<BR>1-209-11b<BR>1-209-11c<BR>1-209-11d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> कुन्ती तु कृष्णां परिगृह्य साध्वी-<BR>मन्तःपुरं द्रुपदस्याविवेश।<BR>स्त्रियश्च तां कौरवराजपत्नीं<BR>प्रत्यर्चयामासुरदीनसत्वाः।। <td> 1-209-12a<BR>1-209-12b<BR>1-209-12c<BR>1-209-12d </p></tr>
 
कुन्ती तु कृष्णां परिगृह्य साध्वी-<BR>मन्तःपुरं द्रुपदस्याविवेश।<BR>स्त्रियश्च तां कौरवराजपत्नीं<BR>प्रत्यर्चयामासुरदीनसत्वाः।। <td> 1-209-12a<BR>1-209-12b<BR>1-209-12c<BR>1-209-12d
 
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<tr><td><p> तान्सिंहविक्रान्तगतीन्निरीक्ष्य<BR>महर्षभाक्षानजिनोत्तरीयान्।<BR>गूढोत्तरांसान्भुजगेन्द्रभोग-<BR>प्रलम्बबाहून्पुरुषप्रवीरान्।। <td> 1-209-13a<BR>1-209-13b<BR>1-209-13c<BR>1-209-13d </p></tr>
 
तान्सिंहविक्रान्तगतीन्निरीक्ष्य<BR>महर्षभाक्षानजिनोत्तरीयान्।<BR>गूढोत्तरांसान्भुजगेन्द्रभोग-<BR>प्रलम्बबाहून्पुरुषप्रवीरान्।। <td> 1-209-13a<BR>1-209-13b<BR>1-209-13c<BR>1-209-13d
 
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<tr><td><p> राजा च राज्ञः सचिवाश्च सर्वे<BR>पुत्राश्च राज्ञः सुहृदस्तथैव।<BR>प्रेष्याश्च सर्वे निखिलेन राज-<BR>न्हर्षं समापेतुरतीव तत्र।। <td> 1-209-14a<BR>1-209-14b<BR>1-209-14c<BR>1-209-14d </p></tr>
 
राजा च राज्ञः सचिवाश्च सर्वे<BR>पुत्राश्च राज्ञः सुहृदस्तथैव।<BR>प्रेष्याश्च सर्वे निखिलेन राज-<BR>न्हर्षं समापेतुरतीव तत्र।। <td> 1-209-14a<BR>1-209-14b<BR>1-209-14c<BR>1-209-14d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> ते तत्र वीराः परमासनेषु<BR>सपादपीठेष्वविशङ्कमानाः।<BR>यथानुपूर्व्याद्विविशुर्नराग्र्या-<BR>स्तथा महार्हेषु न विस्मयन्तः।। <td> 1-209-15a<BR>1-209-15b<BR>1-209-15c<BR>1-209-15d </p></tr>
 
ते तत्र वीराः परमासनेषु<BR>सपादपीठेष्वविशङ्कमानाः।<BR>यथानुपूर्व्याद्विविशुर्नराग्र्या-<BR>स्तथा महार्हेषु न विस्मयन्तः।। <td> 1-209-15a<BR>1-209-15b<BR>1-209-15c<BR>1-209-15d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उच्चावचं पार्थिवभोजनीयं<BR>पात्रीषु जाम्बूनदराजतीषु।<BR>दासाश्च दास्यश्च सुमृष्टवेषाः<BR>संभोजकाश्चाप्युपजह्रुरन्नम्।। <td> 1-209-16a<BR>1-209-16b<BR>1-209-16c<BR>1-209-16d </p></tr>
 
उच्चावचं पार्थिवभोजनीयं<BR>पात्रीषु जाम्बूनदराजतीषु।<BR>दासाश्च दास्यश्च सुमृष्टवेषाः<BR>संभोजकाश्चाप्युपजह्रुरन्नम्।। <td> 1-209-16a<BR>1-209-16b<BR>1-209-16c<BR>1-209-16d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ते तत्र भुक्त्वा पुरुषप्रवीरा<BR>यथात्मकामं सुभृशं प्रतीताः।<BR>उत्क्रम्य सर्वाणि वसूनि राज-<BR>न्सांग्रामिकं ते विविशुर्नृवीराः।। <td> 1-209-17a<BR>1-209-17b<BR>1-209-17c<BR>1-209-17d </p></tr>
 
ते तत्र भुक्त्वा पुरुषप्रवीरा<BR>यथात्मकामं सुभृशं प्रतीताः।<BR>उत्क्रम्य सर्वाणि वसूनि राज-<BR>न्सांग्रामिकं ते विविशुर्नृवीराः।। <td> 1-209-17a<BR>1-209-17b<BR>1-209-17c<BR>1-209-17d
 
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<tr><td>
<tr><td><p> तल्लक्षयित्वा द्रुपदस्य पुत्रा<BR>राजा च सर्वैः सह मन्त्रिमुख्यैः।<BR>समर्थयामासुरुपेत्य हृष्टाः<BR>कुन्तीसुतान्पार्थिवराजपुत्रान्।। <td> 1-209-18a<BR>1-209-18b<BR>1-209-18c<BR>1-209-18d </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि<br> वैवाहिकपर्वणि <br>नवाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 209 ।। <td> </p></tr></table>
तल्लक्षयित्वा द्रुपदस्य पुत्रा<BR>राजा च सर्वैः सह मन्त्रिमुख्यैः।<BR>समर्थयामासुरुपेत्य हृष्टाः<BR>कुन्तीसुतान्पार्थिवराजपुत्रान्।। <td> 1-209-18a<BR>1-209-18b<BR>1-209-18c<BR>1-209-18d
 
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<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि<br> वैवाहिकपर्वणि <br>नवाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 209 ।। <td>
 
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1-209-1 जन्यार्थं वरपक्षीयजतार्थं।।
1-209-3 परियाप्य प्रस्थाप्य।।
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}}
 
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