"महाभारतम्-01-आदिपर्व-220" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ११:
धृतराष्ट्रदुर्योधनसंवादः।। 1 ।।
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<tr><td><p> <B>`वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-220-1x </p></tr>
 
'''`वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-220-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> दुर्योधनेनैवमुक्तः कर्णेन च विशांपते।<BR>पुत्रं च सूतपुत्रं च धृतराष्ट्रोऽब्रवीदिदम्।। ' <td> 1-220-1a<BR>1-220-1b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>धृतराष्ट्र उवाच।</B> <td> 1-220-2x </p></tr>
दुर्योधनेनैवमुक्तः कर्णेन च विशांपते।<BR>पुत्रं च सूतपुत्रं च धृतराष्ट्रोऽब्रवीदिदम्।। ' <td> 1-220-1a<BR>1-220-1b
 
</tr>
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'''धृतराष्ट्र उवाच।''' <td> 1-220-2x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहमप्येवमेवैतच्चिकीर्षामि यथा युवाम्।<BR>विवेक्तुं नाहमिच्छामि त्वाकारं विदुरं प्रति।। <td> 1-220-2a<BR>1-220-2b </p></tr>
 
अहमप्येवमेवैतच्चिकीर्षामि यथा युवाम्।<BR>विवेक्तुं नाहमिच्छामि त्वाकारं विदुरं प्रति।। <td> 1-220-2a<BR>1-220-2b
 
</tr>
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<tr><td><p> ततस्तेषां गुणानेव कीर्तयामि विशेषतः।<BR>नावबुध्येत विदुरो ममाभिप्रायमिङ्गितैः।। <td> 1-220-3a<BR>1-220-3b </p></tr>
 
ततस्तेषां गुणानेव कीर्तयामि विशेषतः।<BR>नावबुध्येत विदुरो ममाभिप्रायमिङ्गितैः।। <td> 1-220-3a<BR>1-220-3b
 
</tr>
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<tr><td><p> यच्च त्वं मन्यसे प्राप्तं तद्ब्रवीहि सुयोधन।<BR>राधेय मन्यसे यच्च प्राप्तकालं वदाशु मे।। <td> 1-220-4a<BR>1-220-4b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>दुर्योधन उवाच।</B> <td> 1-220-5x </p></tr>
यच्च त्वं मन्यसे प्राप्तं तद्ब्रवीहि सुयोधन।<BR>राधेय मन्यसे यच्च प्राप्तकालं वदाशु मे।। <td> 1-220-4a<BR>1-220-4b
 
</tr>
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'''दुर्योधन उवाच।''' <td> 1-220-5x
 
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<tr><td>
<tr><td><p> अद्य तान्कुशलैर्विप्रैः सुगुप्तैराप्तकारिभिः।<BR>कुन्तीपुत्रान्भेदयामो माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।। <td> 1-220-5a<BR>1-220-5b </p></tr>
 
अद्य तान्कुशलैर्विप्रैः सुगुप्तैराप्तकारिभिः।<BR>कुन्तीपुत्रान्भेदयामो माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।। <td> 1-220-5a<BR>1-220-5b
 
</tr>
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<tr><td><p> अथवा द्रुपदो राजा महद्भिर्वित्तसंचयैः।<BR>पुत्राश्चास्य प्रलोभ्यन्ताममात्याश्चैव सर्वशः।। <td> 1-220-6a<BR>1-220-6b </p></tr>
 
अथवा द्रुपदो राजा महद्भिर्वित्तसंचयैः।<BR>पुत्राश्चास्य प्रलोभ्यन्ताममात्याश्चैव सर्वशः।। <td> 1-220-6a<BR>1-220-6b
 
</tr>
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<tr><td><p> परित्यजेद्यथा राजा कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।<BR>अथ तत्रैव वा तेषां निवासं रोचयन्तु ते।। <td> 1-220-7a<BR>1-220-7b </p></tr>
 
परित्यजेद्यथा राजा कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।<BR>अथ तत्रैव वा तेषां निवासं रोचयन्तु ते।। <td> 1-220-7a<BR>1-220-7b
 
</tr>
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<tr><td><p> इहैषां दोषवद्वासं वर्णयन्तु पृथक्पृथक्।<BR>ते भिद्यमानास्तत्रैव मनः कुर्वन्तु पाण्डवाः।। <td> 1-220-8a<BR>1-220-8b </p></tr>
 
इहैषां दोषवद्वासं वर्णयन्तु पृथक्पृथक्।<BR>ते भिद्यमानास्तत्रैव मनः कुर्वन्तु पाण्डवाः।। <td> 1-220-8a<BR>1-220-8b
 
</tr>
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<tr><td><p> अथवा कुशळाः केचिदुपायनिपुणा नराः।<BR>इतरेतरतः पार्थान्भेदयन्त्वनुरागतः।। <td> 1-220-9a<BR>1-220-9b </p></tr>
 
अथवा कुशळाः केचिदुपायनिपुणा नराः।<BR>इतरेतरतः पार्थान्भेदयन्त्वनुरागतः।। <td> 1-220-9a<BR>1-220-9b
 
</tr>
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<tr><td><p> व्युत्थापयन्तु वा कृष्णां बहुत्वात्सुकरं हि तत्।<BR>अथवा पाण्डवांस्तस्यां भेदयन्तु ततश्च ताम्।। <td> 1-220-10a<BR>1-220-10b </p></tr>
 
व्युत्थापयन्तु वा कृष्णां बहुत्वात्सुकरं हि तत्।<BR>अथवा पाण्डवांस्तस्यां भेदयन्तु ततश्च ताम्।। <td> 1-220-10a<BR>1-220-10b
 
</tr>
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<tr><td><p> भीमसेनस्य वा राजन्नुपायकुशलैर्नरैः।<BR>मृत्युर्विधीयतां छन्नैः स हि तेषां बलाधिकः।। <td> 1-220-11a<BR>1-220-11b </p></tr>
 
भीमसेनस्य वा राजन्नुपायकुशलैर्नरैः।<BR>मृत्युर्विधीयतां छन्नैः स हि तेषां बलाधिकः।। <td> 1-220-11a<BR>1-220-11b
 
</tr>
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<tr><td><p> तमाश्रित्य हि कौन्तेयः पुरा चास्मान्न मन्यते।<BR>सहि तीक्ष्णश्च शूरश्च तेषां चैव परायणम्।। <td> 1-220-12a<BR>1-220-12b </p></tr>
 
तमाश्रित्य हि कौन्तेयः पुरा चास्मान्न मन्यते।<BR>सहि तीक्ष्णश्च शूरश्च तेषां चैव परायणम्।। <td> 1-220-12a<BR>1-220-12b
 
</tr>
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<tr><td><p> तस्मिंस्त्वभिहते राजन्हतोत्साहा हतौजसः।<BR>यतिष्यन्ते न राज्याय स हि तेषां व्यपाश्रयः।। <td> 1-220-13a<BR>1-220-13b </p></tr>
 
तस्मिंस्त्वभिहते राजन्हतोत्साहा हतौजसः।<BR>यतिष्यन्ते न राज्याय स हि तेषां व्यपाश्रयः।। <td> 1-220-13a<BR>1-220-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अजेयो ह्यर्जुनः सङ्ख्ये पृष्ठगोपे वृकोदरे।<BR>तमृते फाल्गुनो युद्धे राधेयस्य न पादभाक्।। <td> 1-220-14a<BR>1-220-14b </p></tr>
 
अजेयो ह्यर्जुनः सङ्ख्ये पृष्ठगोपे वृकोदरे।<BR>तमृते फाल्गुनो युद्धे राधेयस्य न पादभाक्।। <td> 1-220-14a<BR>1-220-14b
 
</tr>
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<tr><td><p> ते जानानास्तु दौर्बल्यं भीमसेनमृते महत्।<BR>अस्मान्बलवतो ज्ञात्वा न यतिष्यन्ति दुर्बलाः।। <td> 1-220-15a<BR>1-220-15b </p></tr>
 
ते जानानास्तु दौर्बल्यं भीमसेनमृते महत्।<BR>अस्मान्बलवतो ज्ञात्वा न यतिष्यन्ति दुर्बलाः।। <td> 1-220-15a<BR>1-220-15b
 
</tr>
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<tr><td><p> इहागतेषु वा तेषु निदेशवशवर्तिषु।<BR>प्रवर्तिष्यामहे राजन्यथाशास्त्रं निबर्हणम्।। <td> 1-220-16a<BR>1-220-16b </p></tr>
 
इहागतेषु वा तेषु निदेशवशवर्तिषु।<BR>प्रवर्तिष्यामहे राजन्यथाशास्त्रं निबर्हणम्।। <td> 1-220-16a<BR>1-220-16b
 
</tr>
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<tr><td><p> `दर्पं वा वदतां तेषां केचिदत्र मनस्विनः।<BR>द्रुपदस्यात्मजा राजन्प्रभिद्यन्ते ततः परैः।।' <td> 1-220-17a<BR>1-220-17b </p></tr>
 
`दर्पं वा वदतां तेषां केचिदत्र मनस्विनः।<BR>द्रुपदस्यात्मजा राजन्प्रभिद्यन्ते ततः परैः।।' <td> 1-220-17a<BR>1-220-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अथवा दर्शनीयाभिः प्रमदाभिर्विलोभ्यताम्।<BR>एकैकस्तत्र कौन्तेयस्ततः कृष्णा विरज्यताम्।। <td> 1-220-18a<BR>1-220-18b </p></tr>
 
अथवा दर्शनीयाभिः प्रमदाभिर्विलोभ्यताम्।<BR>एकैकस्तत्र कौन्तेयस्ततः कृष्णा विरज्यताम्।। <td> 1-220-18a<BR>1-220-18b
 
</tr>
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<tr><td><p> प्रेष्यतां चैव राधेयस्तेषामागमनाय वै।<BR>तैस्तैः प्रकारैः सन्नीय पात्यन्तामाप्तकारिभिः।। <td> 1-220-19a<BR>1-220-19b </p></tr>
 
प्रेष्यतां चैव राधेयस्तेषामागमनाय वै।<BR>तैस्तैः प्रकारैः सन्नीय पात्यन्तामाप्तकारिभिः।। <td> 1-220-19a<BR>1-220-19b
 
</tr>
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<tr><td><p> एतेषामप्युपायानां यस्ते निर्दोषवान्मतः।<BR>तस्य यप्रोगमातिष्ठ पुरा कालोऽतिवर्तते।। <td> 1-220-20a<BR>1-220-20b </p></tr>
 
एतेषामप्युपायानां यस्ते निर्दोषवान्मतः।<BR>तस्य यप्रोगमातिष्ठ पुरा कालोऽतिवर्तते।। <td> 1-220-20a<BR>1-220-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यावद्ध्यकृतविश्वासा द्रुपदे पार्थिवर्षभे।<BR>तावदेव हि ते शक्या न शक्यास्तु ततः परम्।। <td> 1-220-21a<BR>1-220-21b </p></tr>
 
यावद्ध्यकृतविश्वासा द्रुपदे पार्थिवर्षभे।<BR>तावदेव हि ते शक्या न शक्यास्तु ततः परम्।। <td> 1-220-21a<BR>1-220-21b
 
</tr>
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<tr><td><p> एषा मम मतिस्तात निग्रहाय प्रवर्तते।<BR>साध्वी वा यदि वाऽसाध्वी किं वा राधेय मन्यसे।। <td> 1-220-22a<BR>1-220-22b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 220 ।। <td> </p></tr></table>
एषा मम मतिस्तात निग्रहाय प्रवर्तते।<BR>साध्वी वा यदि वाऽसाध्वी किं वा राधेय मन्यसे।। <td> 1-220-22a<BR>1-220-22b
 
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।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 220 ।। <td>
 
</tr></table>
1-220-3 इङ्गितैश्चेष्टितैः।।
विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 220 ।।
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