"महाभारतम्-01-आदिपर्व-221" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ११:
 
दुर्योधनं प्रति कर्णोनोक्तं श्रुतवतो धृतराष्ट्रस्य भीष्मादिभिः सह मन्त्रणम्।। 1 ।।<table>
<tr><td><p> <B>

'''कर्ण उवाच।</B>''' <td> 1-221-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> दुर्योधन तव प्रज्ञा न सम्यगिति मे मतिः।<BR>न ह्युपायेन ते शक्याः पाण्डवाः कुरुवर्धन।। <td> 1-221-1a<BR>1-221-1b </p></tr>
 
दुर्योधन तव प्रज्ञा न सम्यगिति मे मतिः।<BR>न ह्युपायेन ते शक्याः पाण्डवाः कुरुवर्धन।। <td> 1-221-1a<BR>1-221-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पूर्वमेव हि ते सूक्ष्मैरुपायैर्यतितास्त्वया।<BR>निग्रहीतुं तदा वीर न चैव शकितास्त्वया।। <td> 1-221-2a<BR>1-221-2b </p></tr>
 
पूर्वमेव हि ते सूक्ष्मैरुपायैर्यतितास्त्वया।<BR>निग्रहीतुं तदा वीर न चैव शकितास्त्वया।। <td> 1-221-2a<BR>1-221-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इहैव वर्तमानास्ते समीपे तव पार्थिव।<BR>अजातपक्षाः शिशवः शकिता नैव बाधितुम्।। <td> 1-221-3a<BR>1-221-3b </p></tr>
 
इहैव वर्तमानास्ते समीपे तव पार्थिव।<BR>अजातपक्षाः शिशवः शकिता नैव बाधितुम्।। <td> 1-221-3a<BR>1-221-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जातपक्षा विदेशस्था विवृद्धाः सर्वशोऽद्य ते।<BR>नोपायसाध्याः कौन्तेया ममैषा मतिरच्युता।। <td> 1-221-4a<BR>1-221-4b </p></tr>
 
जातपक्षा विदेशस्था विवृद्धाः सर्वशोऽद्य ते।<BR>नोपायसाध्याः कौन्तेया ममैषा मतिरच्युता।। <td> 1-221-4a<BR>1-221-4b
 
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<tr><td>
<tr><td><p> न च ते व्यसनैर्योक्तुं शक्या दिष्टकृतेन च।<BR>शकिताश्चेप्सवश्चैव पितृपैतामहं पदम्।। <td> 1-221-5a<BR>1-221-5b </p></tr>
 
न च ते व्यसनैर्योक्तुं शक्या दिष्टकृतेन च।<BR>शकिताश्चेप्सवश्चैव पितृपैतामहं पदम्।। <td> 1-221-5a<BR>1-221-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> परस्परेण भेदश्च नाधातुं तेषु शक्यते।<BR>एकस्यां ये रताः पत्न्यां न भिद्यन्ते परस्परम्।। <td> 1-221-6a<BR>1-221-6b </p></tr>
 
परस्परेण भेदश्च नाधातुं तेषु शक्यते।<BR>एकस्यां ये रताः पत्न्यां न भिद्यन्ते परस्परम्।। <td> 1-221-6a<BR>1-221-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न चापि कृष्णा शक्येत तेभ्यो भेदयितुं परैः।<BR>परिद्यूनान्वृतवती किमुताद्य मृजावतः।। <td> 1-221-7a<BR>1-221-7b </p></tr>
 
न चापि कृष्णा शक्येत तेभ्यो भेदयितुं परैः।<BR>परिद्यूनान्वृतवती किमुताद्य मृजावतः।। <td> 1-221-7a<BR>1-221-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ईप्सितश्च गुणः स्त्रीणामेकस्या बहुभर्तृता।<BR>तं च प्राप्तवती कृष्णा न सा भेदयितुं क्षमा।। <td> 1-221-8a<BR>1-221-8b </p></tr>
 
ईप्सितश्च गुणः स्त्रीणामेकस्या बहुभर्तृता।<BR>तं च प्राप्तवती कृष्णा न सा भेदयितुं क्षमा।। <td> 1-221-8a<BR>1-221-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आर्यव्रतश्च पाञ्चाल्यो न स राजा धनप्रियः।<BR>न संत्यक्ष्यति कौन्तेयान्राज्यदानैरपि ध्रुवम्।। <td> 1-221-9a<BR>1-221-9b </p></tr>
 
आर्यव्रतश्च पाञ्चाल्यो न स राजा धनप्रियः।<BR>न संत्यक्ष्यति कौन्तेयान्राज्यदानैरपि ध्रुवम्।। <td> 1-221-9a<BR>1-221-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तथाऽस्म पुत्रो गुणवाननुरक्तश्च पाण्डवान्।<BR>तस्मान्नोपायसाध्यांस्तानहं मन्ये कथंचन।। <td> 1-221-10a<BR>1-221-10b </p></tr>
 
तथाऽस्म पुत्रो गुणवाननुरक्तश्च पाण्डवान्।<BR>तस्मान्नोपायसाध्यांस्तानहं मन्ये कथंचन।। <td> 1-221-10a<BR>1-221-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इदं त्वद्य क्षमं कर्तुमस्माकं पुरुषर्षभ।<BR>यावन्न कृतमूलास्ते पाण्डवेया विशांपते।। <td> 1-221-11a<BR>1-221-11b </p></tr>
 
इदं त्वद्य क्षमं कर्तुमस्माकं पुरुषर्षभ।<BR>यावन्न कृतमूलास्ते पाण्डवेया विशांपते।। <td> 1-221-11a<BR>1-221-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तावत्प्रहरणीयास्ते तत्तुभ्यं तात रोचताम्।<BR>अस्मत्पक्षो महान्यावद्यावत्पाञ्चालको लघुः।<BR>तावत्प्रहरणं तेषां क्रियतां मा विचारय।। <td> 1-221-12a<BR>1-221-12b<BR>1-221-12c </p></tr>
 
तावत्प्रहरणीयास्ते तत्तुभ्यं तात रोचताम्।<BR>अस्मत्पक्षो महान्यावद्यावत्पाञ्चालको लघुः।<BR>तावत्प्रहरणं तेषां क्रियतां मा विचारय।। <td> 1-221-12a<BR>1-221-12b<BR>1-221-12c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वाहनानि प्रभूतानि मित्राणि च कुलानि च।<BR>यावन्न तेषां गान्धारे तावद्विक्रम पार्थिव।। <td> 1-221-13a<BR>1-221-13b </p></tr>
 
वाहनानि प्रभूतानि मित्राणि च कुलानि च।<BR>यावन्न तेषां गान्धारे तावद्विक्रम पार्थिव।। <td> 1-221-13a<BR>1-221-13b
 
</tr>
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<tr><td><p> यावच्च राजा पाञ्चाल्यो नोद्यमे कुरुते मनः।<BR>सह पुत्रैर्महावीर्यैस्तावद्विक्रम पार्थिव।। <td> 1-221-14a<BR>1-221-14b </p></tr>
 
यावच्च राजा पाञ्चाल्यो नोद्यमे कुरुते मनः।<BR>सह पुत्रैर्महावीर्यैस्तावद्विक्रम पार्थिव।। <td> 1-221-14a<BR>1-221-14b
 
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<tr><td><p> यावन्नायाति वार्ष्णेयः कर्षन्यादववाहिनीम्।<BR>राज्यार्थे पाण्डवेयानां पाञ्चाल्यसदनं प्रति।। <td> 1-221-15a<BR>1-221-15b </p></tr>
 
यावन्नायाति वार्ष्णेयः कर्षन्यादववाहिनीम्।<BR>राज्यार्थे पाण्डवेयानां पाञ्चाल्यसदनं प्रति।। <td> 1-221-15a<BR>1-221-15b
 
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<tr><td>
<tr><td><p> वसूनि विविधान्भोगान्राज्यमेव च केवलम्।<BR>नात्याज्यमस्ति कृष्णस्य पाण्डवार्थे कथंचन।। <td> 1-221-16a<BR>1-221-16b </p></tr>
 
वसूनि विविधान्भोगान्राज्यमेव च केवलम्।<BR>नात्याज्यमस्ति कृष्णस्य पाण्डवार्थे कथंचन।। <td> 1-221-16a<BR>1-221-16b
 
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<tr><td>
<tr><td><p> विक्रमेण मही प्राप्ता भरतेन महात्मना।<BR>विक्रमेण च लोकांस्त्रीञ्जितवान्पाकशासनः।। <td> 1-221-17a<BR>1-221-17b </p></tr>
 
विक्रमेण मही प्राप्ता भरतेन महात्मना।<BR>विक्रमेण च लोकांस्त्रीञ्जितवान्पाकशासनः।। <td> 1-221-17a<BR>1-221-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विक्रमं च प्रशंसन्ति क्षत्रियस्य विशांपते।<BR>स्वको हि धर्मः शूराणां विक्रमः पार्थिवर्षभ।। <td> 1-221-18a<BR>1-221-18b </p></tr>
 
विक्रमं च प्रशंसन्ति क्षत्रियस्य विशांपते।<BR>स्वको हि धर्मः शूराणां विक्रमः पार्थिवर्षभ।। <td> 1-221-18a<BR>1-221-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ते बलेन वयं राजन्महता चतुरङ्गिणा।<BR>प्रमथ्य द्रुपदं शीघ्रमानयामेह पाण्डवान्।। <td> 1-221-19a<BR>1-221-19b </p></tr>
 
ते बलेन वयं राजन्महता चतुरङ्गिणा।<BR>प्रमथ्य द्रुपदं शीघ्रमानयामेह पाण्डवान्।। <td> 1-221-19a<BR>1-221-19b
 
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<tr><td><p> न हि साम्ना न दानेन न भदेन च पाण्डवाः।<BR>शक्याः साधयितुं तस्माद्विक्रमेणैव ताञ्जहि।। <td> 1-221-20a<BR>1-221-20b </p></tr>
 
न हि साम्ना न दानेन न भदेन च पाण्डवाः।<BR>शक्याः साधयितुं तस्माद्विक्रमेणैव ताञ्जहि।। <td> 1-221-20a<BR>1-221-20b
 
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<tr><td><p> तान्विक्रमेण जित्वेमामखिलां भुङ्क्ष्व मेदिनीम्।<BR>अतो नान्यं प्रपश्यामि कार्योपायं जनाधिप।। <td> 1-221-21a<BR>1-221-21b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-221-22x </p></tr>
तान्विक्रमेण जित्वेमामखिलां भुङ्क्ष्व मेदिनीम्।<BR>अतो नान्यं प्रपश्यामि कार्योपायं जनाधिप।। <td> 1-221-21a<BR>1-221-21b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-221-22x
 
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<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वा तु राधेयवचो धृतराष्ट्रः प्रतापवान्।<BR>अभिपूज्य ततः पश्चादिदं वचनमब्रवीत्।। <td> 1-221-22a<BR>1-221-22b </p></tr>
 
श्रुत्वा तु राधेयवचो धृतराष्ट्रः प्रतापवान्।<BR>अभिपूज्य ततः पश्चादिदं वचनमब्रवीत्।। <td> 1-221-22a<BR>1-221-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उपपन्नं महाप्राज्ञे कृतास्त्रे सूतनन्दने।<BR>त्वयि विक्रमसंपन्नमिदं वचनमीदृशम्।। <td> 1-221-23a<BR>1-221-23b </p></tr>
 
उपपन्नं महाप्राज्ञे कृतास्त्रे सूतनन्दने।<BR>त्वयि विक्रमसंपन्नमिदं वचनमीदृशम्।। <td> 1-221-23a<BR>1-221-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भूय एव तु भीष्मश्च द्रोणो विदुर एव च।<BR>युवां च कुरुतं बुद्धिं भवेद्या नः सुखोदया।। <td> 1-221-24a<BR>1-221-24b </p></tr>
 
भूय एव तु भीष्मश्च द्रोणो विदुर एव च।<BR>युवां च कुरुतं बुद्धिं भवेद्या नः सुखोदया।। <td> 1-221-24a<BR>1-221-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत आनाय्य तान्सर्वान्मन्त्रिणः सुमहायशाः।<BR>धृतराष्ट्रो महाराज मन्त्रयामास वै तदा।। <td> 1-221-25a<BR>1-221-25b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 221 ।। <td> </p></tr></table>
तत आनाय्य तान्सर्वान्मन्त्रिणः सुमहायशाः।<BR>धृतराष्ट्रो महाराज मन्त्रयामास वै तदा।। <td> 1-221-25a<BR>1-221-25b
 
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।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 221 ।। <td>
 
</tr></table>
1-221-7 परिद्यूनान् शोच्यान्। मृजावतः सुवेषान्।।
एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 221 ।।
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