"महाभारतम्-01-आदिपर्व-240" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १३:
यतिनिवासविषये यादवै पृष्टे सुभद्रागृहे वसत्विति रामोक्तिः।। 2 ।।
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<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-240-1x </p></tr>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-240-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चैराः संचारिते तस्मिन्ननुज्ञाते युधिष्ठिरे।<BR>वासुदेवाभ्यनुज्ञातः कथयित्वेतिकृत्यताम्।। <td> 1-240-1a<BR>1-240-1b </p></tr>
 
चैराः संचारिते तस्मिन्ननुज्ञाते युधिष्ठिरे।<BR>वासुदेवाभ्यनुज्ञातः कथयित्वेतिकृत्यताम्।। <td> 1-240-1a<BR>1-240-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कृष्णस्य मतमास्थाय प्रययौ भरतर्षभः।<BR>द्वारकाया उपवने तस्थौ वै कार्यसाधनः।। <td> 1-240-2a<BR>1-240-2b </p></tr>
 
कृष्णस्य मतमास्थाय प्रययौ भरतर्षभः।<BR>द्वारकाया उपवने तस्थौ वै कार्यसाधनः।। <td> 1-240-2a<BR>1-240-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निवृत्ते ह्युत्सवे तस्मिन्गिरौ रैवतके तदा। <BR>वृष्णयोऽप्यगमन्सर्वे पुरीं द्वारवतीमनु।। <td> 1-240-3a<BR>1-240-3b </p></tr>
 
निवृत्ते ह्युत्सवे तस्मिन्गिरौ रैवतके तदा। <BR>वृष्णयोऽप्यगमन्सर्वे पुरीं द्वारवतीमनु।। <td> 1-240-3a<BR>1-240-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चिन्तयानस्ततो भद्रामुपविष्टः शिलातले।<BR>रमणीये वनोद्देशे बहुपादपसंवृते।। <td> 1-240-4a<BR>1-240-4b </p></tr>
 
चिन्तयानस्ततो भद्रामुपविष्टः शिलातले।<BR>रमणीये वनोद्देशे बहुपादपसंवृते।। <td> 1-240-4a<BR>1-240-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सालतालाश्वकर्णैश्च बकुलैरर्जुनैस्तथा।<BR>चम्पकाशोकपुन्नागैः केतकैः पाटलैस्तथा।। <td> 1-240-5a<BR>1-240-5b </p></tr>
 
सालतालाश्वकर्णैश्च बकुलैरर्जुनैस्तथा।<BR>चम्पकाशोकपुन्नागैः केतकैः पाटलैस्तथा।। <td> 1-240-5a<BR>1-240-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कर्णिकारैरशोकैश्च अङ्कोलैरतिमुक्तकैः।<BR>एवमादिभिरन्यैश्च संवृते स शिलातले।। <td> 1-240-6a<BR>1-240-6b </p></tr>
 
कर्णिकारैरशोकैश्च अङ्कोलैरतिमुक्तकैः।<BR>एवमादिभिरन्यैश्च संवृते स शिलातले।। <td> 1-240-6a<BR>1-240-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पुनःपुनश्चिन्तयानः सुभद्रां भद्रभाषिणीम्।<BR>यदृच्छया चोपपन्नान्वृष्णिवीरान्ददर्श सः।। <td> 1-240-7a<BR>1-240-7b </p></tr>
 
पुनःपुनश्चिन्तयानः सुभद्रां भद्रभाषिणीम्।<BR>यदृच्छया चोपपन्नान्वृष्णिवीरान्ददर्श सः।। <td> 1-240-7a<BR>1-240-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> बलदेवं च हार्दिक्यं साम्बं सारणमेव च।<BR>प्रद्युम्नं च गदं चैव चारुदेष्णं विदूरथम्।। <td> 1-240-8a<BR>1-240-8b </p></tr>
 
बलदेवं च हार्दिक्यं साम्बं सारणमेव च।<BR>प्रद्युम्नं च गदं चैव चारुदेष्णं विदूरथम्।। <td> 1-240-8a<BR>1-240-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भानुं च हरितं चैव विपृथुं पृथुमेव च।<BR>तथान्यांश्च बहून्पश्यन्हृदि शोकमधारयत्।। <td> 1-240-9a<BR>1-240-9b </p></tr>
 
भानुं च हरितं चैव विपृथुं पृथुमेव च।<BR>तथान्यांश्च बहून्पश्यन्हृदि शोकमधारयत्।। <td> 1-240-9a<BR>1-240-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्ते सहिताः सर्वे यतिं दृष्ट्वा समुत्सुकाः।<BR>वृष्णयो विनयोपेताः परिवार्योपतस्थिरे।। <td> 1-240-10a<BR>1-240-10b </p></tr>
 
ततस्ते सहिताः सर्वे यतिं दृष्ट्वा समुत्सुकाः।<BR>वृष्णयो विनयोपेताः परिवार्योपतस्थिरे।। <td> 1-240-10a<BR>1-240-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततोऽर्जुनः प्रीतमनाः स्वागतं व्याजहार सः।<BR>आस्यतामास्यतां सर्वै रमणीये शिलातले।। <td> 1-240-11a<BR>1-240-11b </p></tr>
 
ततोऽर्जुनः प्रीतमनाः स्वागतं व्याजहार सः।<BR>आस्यतामास्यतां सर्वै रमणीये शिलातले।। <td> 1-240-11a<BR>1-240-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इत्येवमुक्ता यतिना प्रीतास्ते यादवर्षभाः।<BR>उपोपविविशुः सर्वे ते स्वागतमिति ब्रुवन्।। <td> 1-240-12a<BR>1-240-12b </p></tr>
 
इत्येवमुक्ता यतिना प्रीतास्ते यादवर्षभाः।<BR>उपोपविविशुः सर्वे ते स्वागतमिति ब्रुवन्।। <td> 1-240-12a<BR>1-240-12b
 
</tr>
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<tr><td><p> परितः सन्निविष्टेषु वृष्णिवीरेषु पाण्डवः।<BR>आकारं गूहमानस्तु कुशलप्रश्नमब्रवीत्।। <td> 1-240-13a<BR>1-240-13b </p></tr>
 
परितः सन्निविष्टेषु वृष्णिवीरेषु पाण्डवः।<BR>आकारं गूहमानस्तु कुशलप्रश्नमब्रवीत्।। <td> 1-240-13a<BR>1-240-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सर्वत्र कुशलं चोक्त्वा बलदेवोऽब्रवीदिदम्।<BR>प्रसादं कुरु मे विप्र कुतस्त्वं चागतो ह्यसि।। <td> 1-240-14a<BR>1-240-14b </p></tr>
 
सर्वत्र कुशलं चोक्त्वा बलदेवोऽब्रवीदिदम्।<BR>प्रसादं कुरु मे विप्र कुतस्त्वं चागतो ह्यसि।। <td> 1-240-14a<BR>1-240-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> त्वया दृष्टानि पुण्यानि वद त्वं वदतांवर।<BR>पर्वतांश्चैव तीर्थानि वनान्यायतनानि च।। <td> 1-240-15a<BR>1-240-15b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-240-16x </p></tr>
त्वया दृष्टानि पुण्यानि वद त्वं वदतांवर।<BR>पर्वतांश्चैव तीर्थानि वनान्यायतनानि च।। <td> 1-240-15a<BR>1-240-15b
 
</tr>
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'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-240-16x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तीर्थानां दर्शनं चैव पर्वतानां च भारत।<BR>आपगानां वनानां च कथयामास ताः कथाः।। <td> 1-240-16a<BR>1-240-16b </p></tr>
 
तीर्थानां दर्शनं चैव पर्वतानां च भारत।<BR>आपगानां वनानां च कथयामास ताः कथाः।। <td> 1-240-16a<BR>1-240-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वा धर्मकथाः पुण्या वृष्णिवीरा मुदान्विताः।<BR>अपूजयंस्तदा भिक्षुं कथान्ते जनमेजय।। <td> 1-240-17a<BR>1-240-17b </p></tr>
 
श्रुत्वा धर्मकथाः पुण्या वृष्णिवीरा मुदान्विताः।<BR>अपूजयंस्तदा भिक्षुं कथान्ते जनमेजय।। <td> 1-240-17a<BR>1-240-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्तु यादवाः सर्वे मन्त्रयन्ति स्म भारत।<BR>अयं देशातिथिः श्रीमान्यतिलिङ्गधरो द्विजः।। <td> 1-240-18a<BR>1-240-18b </p></tr>
 
ततस्तु यादवाः सर्वे मन्त्रयन्ति स्म भारत।<BR>अयं देशातिथिः श्रीमान्यतिलिङ्गधरो द्विजः।। <td> 1-240-18a<BR>1-240-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आवासं कमुपाश्रित्य वसेत निरुपद्रवः।<BR>इत्येवं प्रब्रुवन्तस्तु रौहिणेयं च यादवाः।। <td> 1-240-19a<BR>1-240-19b </p></tr>
 
आवासं कमुपाश्रित्य वसेत निरुपद्रवः।<BR>इत्येवं प्रब्रुवन्तस्तु रौहिणेयं च यादवाः।। <td> 1-240-19a<BR>1-240-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ददृशुः कृष्णमायान्तं सर्वे यादवनन्दनम्।<BR>एहि केशव तातेति रौहिणेयो वचोऽब्रवीत्।। <td> 1-240-20a<BR>1-240-20b </p></tr>
 
ददृशुः कृष्णमायान्तं सर्वे यादवनन्दनम्।<BR>एहि केशव तातेति रौहिणेयो वचोऽब्रवीत्।। <td> 1-240-20a<BR>1-240-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यतिलिङ्गधरो विद्वान्देशातिथिरयं द्विजः।<BR>वर्षमासनिवासार्थमागतो नः पुरं प्रति।<BR>स्थाने यस्मिन्निवसतु तन्मे ब्रूहि जनार्दन।। <td> 1-240-21a<BR>1-240-21b<BR>1-240-21c </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>श्रीकृष्ण उवाच।</B> <td> 1-240-22x </p></tr>
यतिलिङ्गधरो विद्वान्देशातिथिरयं द्विजः।<BR>वर्षमासनिवासार्थमागतो नः पुरं प्रति।<BR>स्थाने यस्मिन्निवसतु तन्मे ब्रूहि जनार्दन।। <td> 1-240-21a<BR>1-240-21b<BR>1-240-21c
 
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'''श्रीकृष्ण उवाच।''' <td> 1-240-22x
 
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<tr><td>
<tr><td><p> त्वयि स्थिते महाभाग परवानस्मि धर्मतः।<BR>स्वयं तु रुचिरे स्थाने वासयेर्यदुनन्दन।। <td> 1-240-22a<BR>1-240-22b </p></tr>
 
त्वयि स्थिते महाभाग परवानस्मि धर्मतः।<BR>स्वयं तु रुचिरे स्थाने वासयेर्यदुनन्दन।। <td> 1-240-22a<BR>1-240-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रीतः स तेन वाक्येन परिष्वज्य जनार्दनम्।<BR>बलदेवोऽब्रवीद्वाक्यं चिन्तयित्वा महाबलः।। <td> 1-240-23a<BR>1-240-23b </p></tr>
 
प्रीतः स तेन वाक्येन परिष्वज्य जनार्दनम्।<BR>बलदेवोऽब्रवीद्वाक्यं चिन्तयित्वा महाबलः।। <td> 1-240-23a<BR>1-240-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आरामे तु वसेद्धीमांश्चतुरो वर्षमासकान्।<BR>कन्यागृहे सुभद्राया भुक्त्वा भोजनमिच्छया।। <td> 1-240-24a<BR>1-240-24b </p></tr>
 
आरामे तु वसेद्धीमांश्चतुरो वर्षमासकान्।<BR>कन्यागृहे सुभद्राया भुक्त्वा भोजनमिच्छया।। <td> 1-240-24a<BR>1-240-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> लतागृहेषु वसतामिति मे धीयते मतिः।<BR>लब्धानुज्ञास्त्वया तात मन्यन्ते सर्वयादवाः।। <td> 1-240-25a<BR>1-240-25b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>श्रीकृष्ण उवाच।</B> <td> 1-240-26x </p></tr>
लतागृहेषु वसतामिति मे धीयते मतिः।<BR>लब्धानुज्ञास्त्वया तात मन्यन्ते सर्वयादवाः।। <td> 1-240-25a<BR>1-240-25b
 
</tr>
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'''श्रीकृष्ण उवाच।''' <td> 1-240-26x
 
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<tr><td><p> बलवान्दर्शनीयश्च वाग्मी श्रीमान्बहुश्रुतः।<BR>कन्यापुरसमीपे तु न युक्तमिति मे मतिः।। <td> 1-240-26a<BR>1-240-26b </p></tr>
 
बलवान्दर्शनीयश्च वाग्मी श्रीमान्बहुश्रुतः।<BR>कन्यापुरसमीपे तु न युक्तमिति मे मतिः।। <td> 1-240-26a<BR>1-240-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गुरुः शास्ता च नेता च शास्त्रज्ञो धर्मवित्तमः।<BR>त्वयोक्तं न विरुध्येहं करिष्यामि वचस्तव।। <td> 1-240-27a<BR>1-240-27b </p></tr>
 
<tr><td><p> शुभाशुभस्य विज्ञाता नान्योऽस्मि भुवि कश्चन।। <td> 1-240-28a </p></tr>
गुरुः शास्ता च नेता च शास्त्रज्ञो धर्मवित्तमः।<BR>त्वयोक्तं न विरुध्येहं करिष्यामि वचस्तव।। <td> 1-240-27a<BR>1-240-27b
<tr><td><p> <B>बलदेव उवाच।</B> <td> 1-240-29x </p></tr>
 
</tr>
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शुभाशुभस्य विज्ञाता नान्योऽस्मि भुवि कश्चन।। <td> 1-240-28a
 
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'''बलदेव उवाच।''' <td> 1-240-29x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अयं देशातिथिः श्रीमान्सर्वधर्मभृतां वरः।<BR>धृतिमान्विनयोपेतः सत्यबादी जितेन्द्रियः।। <td> 1-240-29a<BR>1-240-29b </p></tr>
 
अयं देशातिथिः श्रीमान्सर्वधर्मभृतां वरः।<BR>धृतिमान्विनयोपेतः सत्यबादी जितेन्द्रियः।। <td> 1-240-29a<BR>1-240-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यतिलिङ्गधरो ह्येष को विजानाति मानसम्।<BR>त्वमिमं पुण्डरीकाक्ष नीत्वा कन्यापुरं शुभम्।। <td> 1-240-30a<BR>1-240-30b </p></tr>
 
यतिलिङ्गधरो ह्येष को विजानाति मानसम्।<BR>त्वमिमं पुण्डरीकाक्ष नीत्वा कन्यापुरं शुभम्।। <td> 1-240-30a<BR>1-240-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निवेदय सुभद्रायै मद्वाक्यपरिचोदितः।<BR>भक्ष्यैर्भोज्यैश्च पानैश्च अन्नैरिष्टैश्च पूजय।। <td> 1-240-31a<BR>1-240-31b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>सुभद्राहरणपर्वणि <br>चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 240 ।। <td> </p></tr></table>
निवेदय सुभद्रायै मद्वाक्यपरिचोदितः।<BR>भक्ष्यैर्भोज्यैश्च पानैश्च अन्नैरिष्टैश्च पूजय।। <td> 1-240-31a<BR>1-240-31b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>सुभद्राहरणपर्वणि <br>चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 240 ।। <td>
 
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