"महाभारतम्-01-आदिपर्व-243" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ११:
 
कृष्णरथमास्थाय सुभद्रयासह अर्जुनस्य खाण्डवप्रस्थं गन्तुं यत्नः।। 1 ।।<table>
<tr><td>
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-243-1x </p></tr>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-243-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वृष्म्यन्धकपुरात्तस्मादपयातुं धनञ्जयः।<BR>विनिश्चित्य तया सार्धं सुभद्रामिदमब्रवीत्।। <td> 1-243-1a<BR>1-243-1b </p></tr>
 
वृष्म्यन्धकपुरात्तस्मादपयातुं धनञ्जयः।<BR>विनिश्चित्य तया सार्धं सुभद्रामिदमब्रवीत्।। <td> 1-243-1a<BR>1-243-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> द्विजानां गुणमुख्यानां यथार्हं प्रतिपादय।<BR>भोज्यैर्भक्ष्यैश्च कामैश्च स्वपुरीं प्रतियास्यताम्।। <td> 1-243-2a<BR>1-243-2b </p></tr>
 
द्विजानां गुणमुख्यानां यथार्हं प्रतिपादय।<BR>भोज्यैर्भक्ष्यैश्च कामैश्च स्वपुरीं प्रतियास्यताम्।। <td> 1-243-2a<BR>1-243-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आत्मनश्च समुद्दिश्य महाव्रतसमापनम्।<BR>गच्छ भद्रे स्वयं तूर्णं महाराजनिवेशनम्।। <td> 1-243-3a<BR>1-243-3b </p></tr>
 
आत्मनश्च समुद्दिश्य महाव्रतसमापनम्।<BR>गच्छ भद्रे स्वयं तूर्णं महाराजनिवेशनम्।। <td> 1-243-3a<BR>1-243-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तेजोबलजवोपेतैः शुक्लैर्हयवरोत्तमैः।<BR>वाजिभिः शैव्यसुग्रीवमेघपुष्पबलाहकैः।। <td> 1-243-4a<BR>1-243-4b </p></tr>
 
तेजोबलजवोपेतैः शुक्लैर्हयवरोत्तमैः।<BR>वाजिभिः शैव्यसुग्रीवमेघपुष्पबलाहकैः।। <td> 1-243-4a<BR>1-243-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> युक्तं रथवरं तूर्णमिहानय सुसत्कृतम्।<BR>व्रतार्थमिति भाषित्वा सखीभिः सुभगे सह।। <td> 1-243-5a<BR>1-243-5b </p></tr>
 
युक्तं रथवरं तूर्णमिहानय सुसत्कृतम्।<BR>व्रतार्थमिति भाषित्वा सखीभिः सुभगे सह।। <td> 1-243-5a<BR>1-243-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> क्षिप्रमादाय पर्येहि सह सर्वायुधेन च।<BR>अनुकर्षान्तपताकाश्च तूणीरांश्च धनूंषि च।। <td> 1-243-6a<BR>1-243-6b </p></tr>
 
<tr><td><p> सर्वान्रथवरे स्थाप्य सोत्सेधाश्च महागदाः।। <td> 1-243-7a </p></tr>
क्षिप्रमादाय पर्येहि सह सर्वायुधेन च।<BR>अनुकर्षान्तपताकाश्च तूणीरांश्च धनूंषि च।। <td> 1-243-6a<BR>1-243-6b
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-243-8x </p></tr>
 
</tr>
<tr><td>
 
सर्वान्रथवरे स्थाप्य सोत्सेधाश्च महागदाः।। <td> 1-243-7a
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-243-8x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अर्जुनेनैवमुक्ता सा सुभद्रा भद्रभाषिणी।<BR>जगाम नृपतेर्वेश्म सखीभिः सहिता तदा।। <td> 1-243-8a<BR>1-243-8b </p></tr>
 
अर्जुनेनैवमुक्ता सा सुभद्रा भद्रभाषिणी।<BR>जगाम नृपतेर्वेश्म सखीभिः सहिता तदा।। <td> 1-243-8a<BR>1-243-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> व्रतार्थमिति तत्रस्थान्रक्षिणो वाक्यमब्रवीत्।<BR>रथेनानेन यास्यामि महाव्रतसमापनम्।। <td> 1-243-9a<BR>1-243-9b </p></tr>
 
व्रतार्थमिति तत्रस्थान्रक्षिणो वाक्यमब्रवीत्।<BR>रथेनानेन यास्यामि महाव्रतसमापनम्।। <td> 1-243-9a<BR>1-243-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> शैब्यसुग्रीवयुक्तेन सायुधेनैव शार्ङ्गिणः।<BR>रथेन रमणीयेन प्रयास्यामि व्रतार्थिनी।। <td> 1-243-10a<BR>1-243-10b </p></tr>
 
शैब्यसुग्रीवयुक्तेन सायुधेनैव शार्ङ्गिणः।<BR>रथेन रमणीयेन प्रयास्यामि व्रतार्थिनी।। <td> 1-243-10a<BR>1-243-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सुभध्रयैवमुक्ते तु जनाः प्राञ्जलयोऽभवन्।<BR>योजयित्वा रथवरं कल्याणैरभिभाष्य ताम्।। <td> 1-243-11a<BR>1-243-11b </p></tr>
 
सुभध्रयैवमुक्ते तु जनाः प्राञ्जलयोऽभवन्।<BR>योजयित्वा रथवरं कल्याणैरभिभाष्य ताम्।। <td> 1-243-11a<BR>1-243-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यथोक्तं सर्वमारोप्य आयुधानि च भामिनी।<BR>क्षिप्रमादाय कल्याणी सुभद्राऽर्जुनमब्रवीत्।। <td> 1-243-12a<BR>1-243-12b </p></tr>
 
यथोक्तं सर्वमारोप्य आयुधानि च भामिनी।<BR>क्षिप्रमादाय कल्याणी सुभद्राऽर्जुनमब्रवीत्।। <td> 1-243-12a<BR>1-243-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> रथोऽयं रथिनां श्रेष्ठ आनीतस्तव शासनात्।<BR>स त्वं याहि यथाकामं कुरून्कौरवनन्दन।। <td> 1-243-13a<BR>1-243-13b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-243-14x </p></tr>
रथोऽयं रथिनां श्रेष्ठ आनीतस्तव शासनात्।<BR>स त्वं याहि यथाकामं कुरून्कौरवनन्दन।। <td> 1-243-13a<BR>1-243-13b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-243-14x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निवेद्य तु रथं भर्तुः सुभद्रा भद्रसंमता।<BR>ब्राह्मणानां तदा हृष्टा ददौ सा विविधं वसु।। <td> 1-243-14a<BR>1-243-14b </p></tr>
 
निवेद्य तु रथं भर्तुः सुभद्रा भद्रसंमता।<BR>ब्राह्मणानां तदा हृष्टा ददौ सा विविधं वसु।। <td> 1-243-14a<BR>1-243-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स्नेहवन्ति च भोज्यानि प्रददावीप्सितानि च।<BR>यथाकामं यथाश्रद्धं वस्त्राणि विविधानि च।। <td> 1-243-15a<BR>1-243-15b </p></tr>
 
स्नेहवन्ति च भोज्यानि प्रददावीप्सितानि च।<BR>यथाकामं यथाश्रद्धं वस्त्राणि विविधानि च।। <td> 1-243-15a<BR>1-243-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तर्पिता विविधैर्भोज्यैस्तान्यवाप्य वसूनि च।<BR>ब्राह्मणाः स्वगृहं जग्मुः प्रयुज्य परमाशिषः।। <td> 1-243-16a<BR>1-243-16b </p></tr>
 
तर्पिता विविधैर्भोज्यैस्तान्यवाप्य वसूनि च।<BR>ब्राह्मणाः स्वगृहं जग्मुः प्रयुज्य परमाशिषः।। <td> 1-243-16a<BR>1-243-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सुभद्रया तु विज्ञप्तः पूर्वमेव धनञ्जयः।<BR>अभीशुग्रहणे पार्थ न मेऽस्ति सदृशो भुवि।। <td> 1-243-17a<BR>1-243-17b </p></tr>
 
सुभद्रया तु विज्ञप्तः पूर्वमेव धनञ्जयः।<BR>अभीशुग्रहणे पार्थ न मेऽस्ति सदृशो भुवि।। <td> 1-243-17a<BR>1-243-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तस्मात्सा पूर्वमारुह्य रश्मीञ्जग्राह माधवी।<BR>सोदरा वासुदेवस्य कृतस्वस्त्ययना हयान्।। <td> 1-243-18a<BR>1-243-18b </p></tr>
 
तस्मात्सा पूर्वमारुह्य रश्मीञ्जग्राह माधवी।<BR>सोदरा वासुदेवस्य कृतस्वस्त्ययना हयान्।। <td> 1-243-18a<BR>1-243-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> व्यत्ययित्वा तु तल्लिङ्गं यतिवेषं धनञ्जयः।<BR>आमुच्य कवचं वीरः समुच्छ्रितमहद्धनुः।। <td> 1-243-19a<BR>1-243-19b </p></tr>
 
व्यत्ययित्वा तु तल्लिङ्गं यतिवेषं धनञ्जयः।<BR>आमुच्य कवचं वीरः समुच्छ्रितमहद्धनुः।। <td> 1-243-19a<BR>1-243-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> आरुरोह रथश्रेष्ठं शुक्लवासा धनञ्जयः।<BR>महेन्द्रदत्तं मुकुटं तथैवाभरणानि च।। <td> 1-243-20a<BR>1-243-20b </p></tr>
 
आरुरोह रथश्रेष्ठं शुक्लवासा धनञ्जयः।<BR>महेन्द्रदत्तं मुकुटं तथैवाभरणानि च।। <td> 1-243-20a<BR>1-243-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अलङ्कृत्य तु कौन्तेयः प्रयातुमुपचक्रमे।<BR>ततः कन्यापुरे घोषस्तुमुलः समपद्यत।। <td> 1-243-21a<BR>1-243-21b </p></tr>
 
अलङ्कृत्य तु कौन्तेयः प्रयातुमुपचक्रमे।<BR>ततः कन्यापुरे घोषस्तुमुलः समपद्यत।। <td> 1-243-21a<BR>1-243-21b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> दृष्ट्वा नववरं पार्थं बाणखड्गधनुर्धरम्।<BR>अभीशुहस्तां सुश्रोणीमर्जुनेन रथे स्थिताम्।। <td> 1-243-22a<BR>1-243-22b </p></tr>
 
दृष्ट्वा नववरं पार्थं बाणखड्गधनुर्धरम्।<BR>अभीशुहस्तां सुश्रोणीमर्जुनेन रथे स्थिताम्।। <td> 1-243-22a<BR>1-243-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ऊचुः कन्यास्तदा यान्तीं वासुदेवसहोदराम्।<BR>सर्वकामसमृद्धा त्वं सुभद्रे भद्रभाषिणि।। <td> 1-243-23a<BR>1-243-23b </p></tr>
 
ऊचुः कन्यास्तदा यान्तीं वासुदेवसहोदराम्।<BR>सर्वकामसमृद्धा त्वं सुभद्रे भद्रभाषिणि।। <td> 1-243-23a<BR>1-243-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वासुदेवप्रियं लब्ध्वा भर्तारं वीरमर्जुनम्।<BR>सर्वसीमन्तिनीनां त्वां श्रेष्ठां कृष्णसहोदरीम्।। <td> 1-243-24a<BR>1-243-24b </p></tr>
 
वासुदेवप्रियं लब्ध्वा भर्तारं वीरमर्जुनम्।<BR>सर्वसीमन्तिनीनां त्वां श्रेष्ठां कृष्णसहोदरीम्।। <td> 1-243-24a<BR>1-243-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मन्यामहे महाभागे सुभद्रे भद्रभाषिणि।<BR>यस्मात्सर्वमनुष्याणां श्रेष्ठो भर्ता तवार्जुनः।। <td> 1-243-25a<BR>1-243-25b </p></tr>
 
मन्यामहे महाभागे सुभद्रे भद्रभाषिणि।<BR>यस्मात्सर्वमनुष्याणां श्रेष्ठो भर्ता तवार्जुनः।। <td> 1-243-25a<BR>1-243-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उपपन्नस्त्वया वीरः सर्वलोकमहारथः।<BR>हे प्रयाहि गृहान्भद्रे सुहृद्भिः संगमोऽस्तु ते।। <td> 1-243-26a<BR>1-243-26b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-243-27x </p></tr>
उपपन्नस्त्वया वीरः सर्वलोकमहारथः।<BR>हे प्रयाहि गृहान्भद्रे सुहृद्भिः संगमोऽस्तु ते।। <td> 1-243-26a<BR>1-243-26b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-243-27x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवमुक्ता प्रहृष्टाभिः सखीभिः प्रतिनन्दिता।<BR>भद्रा भद्रजवोपेतानश्वान्पुनरचोदयत्।। <td> 1-243-27a<BR>1-243-27b </p></tr>
 
एवमुक्ता प्रहृष्टाभिः सखीभिः प्रतिनन्दिता।<BR>भद्रा भद्रजवोपेतानश्वान्पुनरचोदयत्।। <td> 1-243-27a<BR>1-243-27b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पार्श्वे चामरहस्ता सा सखी तस्याङ्गनाऽभवत्।<BR>ततः कन्यापुरद्वारात्सघोषादभिनिःसृतम्।। <td> 1-243-28a<BR>1-243-28b </p></tr>
 
पार्श्वे चामरहस्ता सा सखी तस्याङ्गनाऽभवत्।<BR>ततः कन्यापुरद्वारात्सघोषादभिनिःसृतम्।। <td> 1-243-28a<BR>1-243-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ददृशुस्तं रथश्रेष्ठं जना जीमूतनिस्वनम्।<BR>सुभद्रासङ्गृहीतस्य रथस्य महतः स्वनम्।। <td> 1-243-29a<BR>1-243-29b </p></tr>
 
ददृशुस्तं रथश्रेष्ठं जना जीमूतनिस्वनम्।<BR>सुभद्रासङ्गृहीतस्य रथस्य महतः स्वनम्।। <td> 1-243-29a<BR>1-243-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मेघस्वनमिवाकाशे शुश्रुवुः पुरवासिनः।<BR>सुभद्रया तु संपन्ने तिष्ठन्रथवरेऽर्जुनः।। <td> 1-243-30a<BR>1-243-30b </p></tr>
 
मेघस्वनमिवाकाशे शुश्रुवुः पुरवासिनः।<BR>सुभद्रया तु संपन्ने तिष्ठन्रथवरेऽर्जुनः।। <td> 1-243-30a<BR>1-243-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रबभौ च तयोपेतः कैलास इव गङ्गया।<BR>पार्थः सुभद्रासहितो विरराज महारथः।। <td> 1-243-31a<BR>1-243-31b </p></tr>
 
प्रबभौ च तयोपेतः कैलास इव गङ्गया।<BR>पार्थः सुभद्रासहितो विरराज महारथः।। <td> 1-243-31a<BR>1-243-31b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विराजते यथा शक्रो राजञ्शच्या समन्वितः।<BR>सुभद्रां प्रेक्ष्य पार्थेन ह्रियमाणां यशस्विनीम्।। <td> 1-243-32a<BR>1-243-32b </p></tr>
 
विराजते यथा शक्रो राजञ्शच्या समन्वितः।<BR>सुभद्रां प्रेक्ष्य पार्थेन ह्रियमाणां यशस्विनीम्।। <td> 1-243-32a<BR>1-243-32b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चक्रुः किलकिलाशब्दानासाद्य बहवो जनाः।<BR>दाशार्हाणां कुलस्य श्रीः सुभद्रा मद्रभाषिणी।। <td> 1-243-33a<BR>1-243-33b </p></tr>
 
चक्रुः किलकिलाशब्दानासाद्य बहवो जनाः।<BR>दाशार्हाणां कुलस्य श्रीः सुभद्रा मद्रभाषिणी।। <td> 1-243-33a<BR>1-243-33b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अभिकामा सकामेन पार्थेन सह गच्छति।<BR>अथापरे तु संक्रुद्धा गृह्णीत घ्नत माचिरम्।। <td> 1-243-34a<BR>1-243-34b </p></tr>
 
अभिकामा सकामेन पार्थेन सह गच्छति।<BR>अथापरे तु संक्रुद्धा गृह्णीत घ्नत माचिरम्।। <td> 1-243-34a<BR>1-243-34b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इति संवार्य शस्त्राणि ववर्षुरभितो दिशम्।<BR>इति संभाषमाणानां स नादः सुमहानभूत्।। <td> 1-243-35a<BR>1-243-35b </p></tr>
 
इति संवार्य शस्त्राणि ववर्षुरभितो दिशम्।<BR>इति संभाषमाणानां स नादः सुमहानभूत्।। <td> 1-243-35a<BR>1-243-35b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स तेन जनघोषेण वीरो गज इवार्दितः।<BR>ववर्ष शरवर्षाणि न तु कंचन रोषयत्।। <td> 1-243-36a<BR>1-243-36b </p></tr>
 
स तेन जनघोषेण वीरो गज इवार्दितः।<BR>ववर्ष शरवर्षाणि न तु कंचन रोषयत्।। <td> 1-243-36a<BR>1-243-36b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मुमोच निशितान्बाणान्दीप्यमानान्स्वतेजसा।<BR>प्रासादवरसङ्घेषु हर्म्येषु भवनेषु च।। <td> 1-243-37a<BR>1-243-37b </p></tr>
 
मुमोच निशितान्बाणान्दीप्यमानान्स्वतेजसा।<BR>प्रासादवरसङ्घेषु हर्म्येषु भवनेषु च।। <td> 1-243-37a<BR>1-243-37b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> क्षोभयित्वा पुरश्रेष्ठं गरुत्मानिव सागरम्।<BR>प्रेक्षन्रैवकतद्वारं निर्ययौ भरतर्षभः।। <td> 1-243-38a<BR>1-243-38b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>सुभद्राहरणपर्वणि<br> त्रिचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 243 ।। <td> </p></tr></table>
क्षोभयित्वा पुरश्रेष्ठं गरुत्मानिव सागरम्।<BR>प्रेक्षन्रैवकतद्वारं निर्ययौ भरतर्षभः।। <td> 1-243-38a<BR>1-243-38b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>सुभद्राहरणपर्वणि<br> त्रिचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 243 ।। <td>
 
</tr></table>
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