"महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-015" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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महाभारतम्/सौप्तिकपर्व using AWB
पङ्क्तिः १३:
ब्रह्मचर्याभावादस्रप्रतिसंहारासमर्थेन द्रौणिना व्यासकृष्णावनादृस्य पाण्वगर्भेष्वैषीकास्त्रोत्सर्जनम्।। 3 ।।
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<tr><td>
<tr><td><p> <B>वैशम्पायन उवाच।</B> <td> 10-15-1x </p></tr>
 
'''वैशम्पायन उवाच।''' <td> 10-15-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> दृष्टैव मुनिशार्दूलौ तावग्निसमतेजसौ।<BR>`गाण्डीवधन्वा सञ्चिन्त्य प्राप्तकालं महारथः।'<BR>सञ्जहार शरं दिव्यं त्वरमाणो धनञ्जयः।। <td> 10-15-1a<BR>10-15-1b<BR>10-15-1c </p></tr>
 
दृष्टैव मुनिशार्दूलौ तावग्निसमतेजसौ।<BR>`गाण्डीवधन्वा सञ्चिन्त्य प्राप्तकालं महारथः।'<BR>सञ्जहार शरं दिव्यं त्वरमाणो धनञ्जयः।। <td> 10-15-1a<BR>10-15-1b<BR>10-15-1c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उवाच वचनं श्रेष्ठस्तावृषी प्राञ्जलिस्तदा।<BR>प्रमुक्तमस्त्रमस्त्रेण शाम्यतामिति वै मया।। <td> 10-15-2a<BR>10-15-2b </p></tr>
 
उवाच वचनं श्रेष्ठस्तावृषी प्राञ्जलिस्तदा।<BR>प्रमुक्तमस्त्रमस्त्रेण शाम्यतामिति वै मया।। <td> 10-15-2a<BR>10-15-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> संहृते परमास्त्रेऽस्मिन्सर्वानस्मानशेषतः।<BR>पापकर्मा ध्रुवं द्रौणिः प्रधक्ष्यत्यस्त्रतेजसा।। <td> 10-15-3a<BR>10-15-3b </p></tr>
 
संहृते परमास्त्रेऽस्मिन्सर्वानस्मानशेषतः।<BR>पापकर्मा ध्रुवं द्रौणिः प्रधक्ष्यत्यस्त्रतेजसा।। <td> 10-15-3a<BR>10-15-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यदत्र हितमस्माकं लोकानां चैव सर्वथा।<BR>भवन्तौ देवसङ्काशौ तथा सम्मन्तुमर्हतः।। <td> 10-15-4a<BR>10-15-4b </p></tr>
 
यदत्र हितमस्माकं लोकानां चैव सर्वथा।<BR>भवन्तौ देवसङ्काशौ तथा सम्मन्तुमर्हतः।। <td> 10-15-4a<BR>10-15-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इत्युक्त्वा सञ्जहारास्त्रं पुनरेव धनञ्जयः।<BR>संहारो दुष्करस्स्य देवैरपि हि संयुगे।। <td> 10-15-5a<BR>10-15-5b </p></tr>
 
इत्युक्त्वा सञ्जहारास्त्रं पुनरेव धनञ्जयः।<BR>संहारो दुष्करस्स्य देवैरपि हि संयुगे।। <td> 10-15-5a<BR>10-15-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विसृष्टस्य रणे तस्य परमास्त्रस्य सङ्ग्रहे।<BR>अशक्तः पाण्डवादन्यः साक्षादपि शतक्रतुः।। <td> 10-15-6a<BR>10-15-6b </p></tr>
 
विसृष्टस्य रणे तस्य परमास्त्रस्य सङ्ग्रहे।<BR>अशक्तः पाण्डवादन्यः साक्षादपि शतक्रतुः।। <td> 10-15-6a<BR>10-15-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ब्रह्मतेजोद्भवं तद्धि विसृष्टमकृतात्मना।<BR>न शक्यमावर्तयितुं ब्रह्मचर्यव्रतादृते।। <td> 10-15-7a<BR>10-15-7b </p></tr>
 
ब्रह्मतेजोद्भवं तद्धि विसृष्टमकृतात्मना।<BR>न शक्यमावर्तयितुं ब्रह्मचर्यव्रतादृते।। <td> 10-15-7a<BR>10-15-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अचीर्णब्रह्मचर्यो यः सृष्ट्वाऽऽवर्यते पुनः।<BR>तदस्त्रं सानुबन्धस्य मूर्धानं तस्य कृन्तति।। <td> 10-15-8a<BR>10-15-8b </p></tr>
 
अचीर्णब्रह्मचर्यो यः सृष्ट्वाऽऽवर्यते पुनः।<BR>तदस्त्रं सानुबन्धस्य मूर्धानं तस्य कृन्तति।। <td> 10-15-8a<BR>10-15-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ब्रह्मचारी व्रती चापि दुरवापमवाप्य तत्।<BR>परमव्यसनार्तोऽपि नार्जुनोऽस्त्रं व्यमुञ्चत।। <td> 10-15-9a<BR>10-15-9b </p></tr>
 
ब्रह्मचारी व्रती चापि दुरवापमवाप्य तत्।<BR>परमव्यसनार्तोऽपि नार्जुनोऽस्त्रं व्यमुञ्चत।। <td> 10-15-9a<BR>10-15-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सत्यव्रतधरः शूरो ब्रह्मचारी च पाण्‍डवः।<BR>गुरुवर्ती च तेनास्त्रं सञ्जहारार्जुनः पुनः।। <td> 10-15-10a<BR>10-15-10b </p></tr>
 
सत्यव्रतधरः शूरो ब्रह्मचारी च पाण्‍डवः।<BR>गुरुवर्ती च तेनास्त्रं सञ्जहारार्जुनः पुनः।। <td> 10-15-10a<BR>10-15-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> द्रौणिरप्यथ सम्प्रेभ्य सोऽन्तरा तावृषी स्थितौ।<BR>न शशाक पुनर्घोरमस्त्रं संहर्तुमोजसा।। <td> 10-15-11a<BR>10-15-11b </p></tr>
 
द्रौणिरप्यथ सम्प्रेभ्य सोऽन्तरा तावृषी स्थितौ।<BR>न शशाक पुनर्घोरमस्त्रं संहर्तुमोजसा।। <td> 10-15-11a<BR>10-15-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अशक्तः प्रतिसंहारे परमास्त्रस्य संयुगे।<BR>द्रौणिर्दीनमना राजन्द्वैपायनमभाषत।। <td> 10-15-12a<BR>10-15-12b </p></tr>
 
अशक्तः प्रतिसंहारे परमास्त्रस्य संयुगे।<BR>द्रौणिर्दीनमना राजन्द्वैपायनमभाषत।। <td> 10-15-12a<BR>10-15-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> उत्तमव्यसनार्तेन प्राणत्राणमभीप्सुना।<BR>मयैतदस्त्रमुत्सृष्टं भीमसेनभयान्मुने।। <td> 10-15-13a<BR>10-15-13b </p></tr>
 
उत्तमव्यसनार्तेन प्राणत्राणमभीप्सुना।<BR>मयैतदस्त्रमुत्सृष्टं भीमसेनभयान्मुने।। <td> 10-15-13a<BR>10-15-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अधर्मश्च कृतोऽनेन धार्तराष्ट्रं जिघांसता।<BR>मिथ्याचारेण भगवन्भीमसेनेन संयुगे।। <td> 10-15-14a<BR>10-15-14b </p></tr>
 
अधर्मश्च कृतोऽनेन धार्तराष्ट्रं जिघांसता।<BR>मिथ्याचारेण भगवन्भीमसेनेन संयुगे।। <td> 10-15-14a<BR>10-15-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अतः सृष्टमिदं ब्रह्मन्मयाऽस्त्रमकृतात्मना।<BR>तस्य भूयोऽपि संहारं कर्तुं नाहमिहोत्सहे।। <td> 10-15-15a<BR>10-15-15b </p></tr>
 
अतः सृष्टमिदं ब्रह्मन्मयाऽस्त्रमकृतात्मना।<BR>तस्य भूयोऽपि संहारं कर्तुं नाहमिहोत्सहे।। <td> 10-15-15a<BR>10-15-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> निसृष्टं हि मया दिव्यमेतदस्त्रं दुरासदम्।<BR>अपाण्डवायेति मुने वह्नितेजोऽनुमन्त्र्य वै।। <td> 10-15-16a<BR>10-15-16b </p></tr>
 
निसृष्टं हि मया दिव्यमेतदस्त्रं दुरासदम्।<BR>अपाण्डवायेति मुने वह्नितेजोऽनुमन्त्र्य वै।। <td> 10-15-16a<BR>10-15-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तदिदं पाण्डवेयानामन्तायैवाभिसंहितम्।<BR>अद्य पाण्डुसुतान्सर्वाञ्जीविताद्वंशयिष्यति।। <td> 10-15-17a<BR>10-15-17b </p></tr>
 
तदिदं पाण्डवेयानामन्तायैवाभिसंहितम्।<BR>अद्य पाण्डुसुतान्सर्वाञ्जीविताद्वंशयिष्यति।। <td> 10-15-17a<BR>10-15-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कृतं पापमिदं ब्रह्मन्रोषाविष्टेन चेतसा।<BR>वधमाशास्य पार्थानां मयास्त्रं सृजता रणे।। <td> 10-15-18a<BR>10-15-18b </p></tr>
 
<tr><td><p> व्यास उवाच। <td> 10-15-19a </p></tr>
कृतं पापमिदं ब्रह्मन्रोषाविष्टेन चेतसा।<BR>वधमाशास्य पार्थानां मयास्त्रं सृजता रणे।। <td> 10-15-18a<BR>10-15-18b
 
</tr>
<tr><td>
 
व्यास उवाच। <td> 10-15-19a
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अस्त्रं ब्रह्मशिरस्तात विद्वान्पार्थो धनञ्जयः।<BR>उत्सृष्टवानहिंसार्थं न रोषेण तवाहवे।। <td> 10-15-19a<BR>10-15-19b </p></tr>
 
अस्त्रं ब्रह्मशिरस्तात विद्वान्पार्थो धनञ्जयः।<BR>उत्सृष्टवानहिंसार्थं न रोषेण तवाहवे।। <td> 10-15-19a<BR>10-15-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अस्त्रमस्त्रेण तु रमे तव संशमयिष्यता।<BR>विसृष्टमर्जुनेनेदं पुनश्च प्रतिसंहृतम्।। <td> 10-15-20a<BR>10-15-20b </p></tr>
 
अस्त्रमस्त्रेण तु रमे तव संशमयिष्यता।<BR>विसृष्टमर्जुनेनेदं पुनश्च प्रतिसंहृतम्।। <td> 10-15-20a<BR>10-15-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ब्रह्मास्त्रमप्यवाप्यैतदुपदेशात्पितुस्तव।<BR>क्षत्रधर्मान्महाबाहुर्नाकम्पत धनञ्जयः।। <td> 10-15-21a<BR>10-15-21b </p></tr>
 
ब्रह्मास्त्रमप्यवाप्यैतदुपदेशात्पितुस्तव।<BR>क्षत्रधर्मान्महाबाहुर्नाकम्पत धनञ्जयः।। <td> 10-15-21a<BR>10-15-21b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं धृतिमतः साधोः सर्वास्त्रविदुषः सतः।<BR>सभ्रातृबन्धोः कस्मात्त्वं वधमस्य चिकीर्षसि।। <td> 10-15-22a<BR>10-15-22b </p></tr>
 
एवं धृतिमतः साधोः सर्वास्त्रविदुषः सतः।<BR>सभ्रातृबन्धोः कस्मात्त्वं वधमस्य चिकीर्षसि।। <td> 10-15-22a<BR>10-15-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अस्त्रं ब्रह्मशिरो यत्र परमास्त्रेण वध्यते।<BR>समा द्वादश पर्जन्यस्तद्राष्ट्रं नाभिवर्षति।। <td> 10-15-23a<BR>10-15-23b </p></tr>
 
अस्त्रं ब्रह्मशिरो यत्र परमास्त्रेण वध्यते।<BR>समा द्वादश पर्जन्यस्तद्राष्ट्रं नाभिवर्षति।। <td> 10-15-23a<BR>10-15-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एतदर्थं महाबाहुः शक्तिमानपि पाण्डवः।<BR>न विहन्यात्तदस्त्रं तु प्रजाहितचिकीर्षया।। <td> 10-15-24a<BR>10-15-24b </p></tr>
 
एतदर्थं महाबाहुः शक्तिमानपि पाण्डवः।<BR>न विहन्यात्तदस्त्रं तु प्रजाहितचिकीर्षया।। <td> 10-15-24a<BR>10-15-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पाण्डवास्त्वं च राष्ट्रं च सदा संरक्ष्यमेव नः।<BR>तस्मात्संहर दिव्यं त्वमस्त्रमेन्महाभुज।। <td> 10-15-25a<BR>10-15-25b </p></tr>
 
पाण्डवास्त्वं च राष्ट्रं च सदा संरक्ष्यमेव नः।<BR>तस्मात्संहर दिव्यं त्वमस्त्रमेन्महाभुज।। <td> 10-15-25a<BR>10-15-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अरोषस्तव चैवास्तु पार्थाः सन्तु निरामयाः।<BR>न ह्यधर्मेण राजर्षिः पाण्डवो जेतुमिच्छति। <td> 10-15-26a<BR>10-15-26b </p></tr>
 
अरोषस्तव चैवास्तु पार्थाः सन्तु निरामयाः।<BR>न ह्यधर्मेण राजर्षिः पाण्डवो जेतुमिच्छति। <td> 10-15-26a<BR>10-15-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मणिं चैव प्रयच्छाद्य यस्ते शिरसि तिष्ठति।<BR>एतदादाय ते प्रामान्प्रतिदास्यन्ति पाण्डवाः।। <td> 10-15-27a<BR>10-15-27b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>द्रौणिरुवाच।</B> <td> 10-15-28x </p></tr>
मणिं चैव प्रयच्छाद्य यस्ते शिरसि तिष्ठति।<BR>एतदादाय ते प्रामान्प्रतिदास्यन्ति पाण्डवाः।। <td> 10-15-27a<BR>10-15-27b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''द्रौणिरुवाच।''' <td> 10-15-28x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पाण्डवैर्यानि रत्नानि यच्चान्यत्कौरवैर्धनम्।<BR>अवाप्तमिह तेभ्योऽयं मणिर्मम विशिष्यते।। <td> 10-15-28a<BR>10-15-28b </p></tr>
 
पाण्डवैर्यानि रत्नानि यच्चान्यत्कौरवैर्धनम्।<BR>अवाप्तमिह तेभ्योऽयं मणिर्मम विशिष्यते।। <td> 10-15-28a<BR>10-15-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यमाबध्य भयं नास्ति शस्त्रव्याधिक्षुधाश्रयम्।<BR>देवेभ्यो दानवेभ्यो वा नागेभ्यो वा कथञ्चन।। <td> 10-15-29a<BR>10-15-29b </p></tr>
 
यमाबध्य भयं नास्ति शस्त्रव्याधिक्षुधाश्रयम्।<BR>देवेभ्यो दानवेभ्यो वा नागेभ्यो वा कथञ्चन।। <td> 10-15-29a<BR>10-15-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न च रक्षोगणभयं न तस्करभयं तथा।<BR>एवंवीर्यो मणिरयं न मे त्याज्यः कथञ्चन।। <td> 10-15-30a<BR>10-15-30b </p></tr>
 
न च रक्षोगणभयं न तस्करभयं तथा।<BR>एवंवीर्यो मणिरयं न मे त्याज्यः कथञ्चन।। <td> 10-15-30a<BR>10-15-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यत्तु मे भगवानाह तन्मे कार्यमनन्तरम्।<BR>अयं मणिरयं चाहमिषीका तु पतिष्यति।<BR>गर्भेषु पाण्डुपुत्राणामुत्रायास्तथोदरे।। <td> 10-15-31a<BR>10-15-31b<BR>10-15-31c </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशम्पायन उवाच।</B> <td> 10-15-32x </p></tr>
यत्तु मे भगवानाह तन्मे कार्यमनन्तरम्।<BR>अयं मणिरयं चाहमिषीका तु पतिष्यति।<BR>गर्भेषु पाण्डुपुत्राणामुत्रायास्तथोदरे।। <td> 10-15-31a<BR>10-15-31b<BR>10-15-31c
<tr><td><p> प्राह द्रोणसुतं तत्र व्यासः परमदुर्मनाः।। <td> 10-15-32a </p></tr>
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशम्पायन उवाच।''' <td> 10-15-32x
 
</tr>
<tr><td>
 
प्राह द्रोणसुतं तत्र व्यासः परमदुर्मनाः।। <td> 10-15-32a
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं कुरु न चान्यत्र बुद्धिः कार्या कथञ्चन।<BR>गर्भेषु पाण्डवेयानां विसृज्यैतदुपारम।। <td> 10-15-33a<BR>10-15-33b </p></tr>
 
एवं कुरु न चान्यत्र बुद्धिः कार्या कथञ्चन।<BR>गर्भेषु पाण्डवेयानां विसृज्यैतदुपारम।। <td> 10-15-33a<BR>10-15-33b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `तमुवाच हृषीकेशः पाण्डवानां हिते मतः।<BR>भविष्यमेकमुत्सृज्य गर्भेष्वस्त्रं निपात्यताम्।। <td> 10-15-34a<BR>10-15-34b </p></tr>
 
`तमुवाच हृषीकेशः पाण्डवानां हिते मतः।<BR>भविष्यमेकमुत्सृज्य गर्भेष्वस्त्रं निपात्यताम्।। <td> 10-15-34a<BR>10-15-34b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहमेनं ददाम्येषां पिण्डदं कीर्तिवर्धनम्।<BR>राजर्षिं पुण्यकर्माणमनेकक्रतुयाजिनम्।। <td> 10-15-35a<BR>10-15-35b </p></tr>
 
अहमेनं ददाम्येषां पिण्डदं कीर्तिवर्धनम्।<BR>राजर्षिं पुण्यकर्माणमनेकक्रतुयाजिनम्।। <td> 10-15-35a<BR>10-15-35b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं कुरु न चान्या ते बुद्धिः कार्या कथञ्चन।<BR>आगर्भात्पाण्डवेयानां कृत्वा पातं विनङ्क्ष्यति'।। <td> 10-15-36a<BR>10-15-36b </p></tr>
 
एवं कुरु न चान्या ते बुद्धिः कार्या कथञ्चन।<BR>आगर्भात्पाण्डवेयानां कृत्वा पातं विनङ्क्ष्यति'।। <td> 10-15-36a<BR>10-15-36b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं ब्रुवाणं गोविन्दं वृषभं सर्वसात्वताम्।<BR>द्रौणिः परमसङ्क्रुद्धः प्रत्युवाचेदमुत्तरम्।। <td> 10-15-37a<BR>10-15-37b </p></tr>
 
एवं ब्रुवाणं गोविन्दं वृषभं सर्वसात्वताम्।<BR>द्रौणिः परमसङ्क्रुद्धः प्रत्युवाचेदमुत्तरम्।। <td> 10-15-37a<BR>10-15-37b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नैतदेवं यदात्थ त्वं पक्षपातेन केशव।<BR>वचनात्पुण्डरीकाक्ष तव मद्वाक्यमन्यथा।। <td> 10-15-38a<BR>10-15-38b </p></tr>
 
नैतदेवं यदात्थ त्वं पक्षपातेन केशव।<BR>वचनात्पुण्डरीकाक्ष तव मद्वाक्यमन्यथा।। <td> 10-15-38a<BR>10-15-38b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पतिष्यत्येतदस्त्रं वै गर्भे तस्या मयोद्यतम्।<BR>विराटदुहितुः कृष्ण यं त्वं रक्षितुमर्हसि।। <td> 10-15-39a<BR>10-15-39b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वासुदेव उवाच।</B> <td> 10-15-40x </p></tr>
पतिष्यत्येतदस्त्रं वै गर्भे तस्या मयोद्यतम्।<BR>विराटदुहितुः कृष्ण यं त्वं रक्षितुमर्हसि।। <td> 10-15-39a<BR>10-15-39b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वासुदेव उवाच।''' <td> 10-15-40x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अमोघः परमास्त्रस्य पातस्त्वद्य भविष्यति।<BR>`अभिमन्योः सृजैषीकां गर्भस्थः शाम्यतां शिशुः।। <td> 10-15-40a<BR>10-15-40b </p></tr>
 
अमोघः परमास्त्रस्य पातस्त्वद्य भविष्यति।<BR>`अभिमन्योः सृजैषीकां गर्भस्थः शाम्यतां शिशुः।। <td> 10-15-40a<BR>10-15-40b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहमेनं मृतं जातं जीवयिष्यामि बालकम्'।<BR>स तु गर्भो मृतो जातो दीर्घमायुरवाप्स्यति।। <td> 10-15-41a<BR>10-15-41b </p></tr>
 
अहमेनं मृतं जातं जीवयिष्यामि बालकम्'।<BR>स तु गर्भो मृतो जातो दीर्घमायुरवाप्स्यति।। <td> 10-15-41a<BR>10-15-41b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `इत्युक्तः प्रत्युवाचैनं द्रोणपुत्रः स्मयन्निव।<BR>यद्यस्त्रदग्धं गोविन्द जीवयस्येवमस्त्विति'।। <td> 10-15-42a<BR>10-15-42b </p></tr>
 
`इत्युक्तः प्रत्युवाचैनं द्रोणपुत्रः स्मयन्निव।<BR>यद्यस्त्रदग्धं गोविन्द जीवयस्येवमस्त्विति'।। <td> 10-15-42a<BR>10-15-42b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः परममस्त्रं तु द्रौणिरुद्यतमाहवे।<BR>द्वैपायनमनादृत्य गर्भेषु प्रमुमोच ह।। <td> 10-15-43a<BR>10-15-43b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि <br>ऐषीकपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। <td> </p></tr>
ततः परममस्त्रं तु द्रौणिरुद्यतमाहवे।<BR>द्वैपायनमनादृत्य गर्भेषु प्रमुमोच ह।। <td> 10-15-43a<BR>10-15-43b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि <br>ऐषीकपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। <td>
 
</tr>
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