"ऋग्वेदः सूक्तं ४.५२" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
परति षया सूनरी जनी वयुछन्ती परि सवसुः |
दिवो अदर्शि दुहिता ||
अश्वेव चित्रारुषी माता गवाम रतावरी |
सखाभूद अश्विनोर उषाः ||
उत सखास्य अश्विनोर उत माता गवाम असि |
उतोषो वस्व ईशिषे ||
 
यावयद्द्वेषसं तवा चिकित्वित सून्र्तावरि |
परति सतोमैर अभुत्स्महि ||
परति भद्रा अद्र्क्षत गवां सर्गा न रश्मयः |
ओषा अप्रा उरु जरयः ||
आपप्रुषी विभावरि वय आवर जयोतिषा तमः |
उषो अनु सवधाम अव ||
 
आ दयां तनोषि रश्मिभिर आन्तरिक्षम उरु परियम |
उषः शुक्रेण शोचिषा ||
 
*[[ऋग्वेद:]]
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