(लघु)
Yann ४, ॥ : replace
(लघु) (ऋग्वेद: सूक्तं 4.56 moved to ऋग्वेद: सूक्तं ४.५६) |
(लघु) (Yann ४, ॥ : replace) |
||
मही दयावाप्र्थिवी इह जयेष्ठे रुचा भवतां शुचयद्भिर अर्कैः |
यत सीं वरिष्ठे बर्हती विमिन्वन रुवद धोक्षा पप्रथानेभिर एवैः
देवी देवेभिर यजते यजत्रैर अमिनती तस्थतुर उक्षमाणे |
रतावरी अद्रुहा देवपुत्रे यज्ञस्य नेत्री शुचयद्भिर अर्कैः
स इत सवपा भुवनेष्व आस य इमे दयावाप्र्थिवी जजान |
उर्वी गभीरे रजसी सुमेके अवंशे धीरः शच्या सम ऐरत
नू रोदसी बर्हद्भिर नो वरूथैः पत्नीवद्भिर इषयन्ती सजोषाः |
उरूची विश्वे यजते नि पातं धिया सयाम रथ्यः सदासाः
पर वाम महि दयवी अभ्य उपस्तुतिम भरामहे | <br>
शुची उप परशस्तये
पुनाने तन्वा मिथः सवेन दक्षेण राजथः | <br>
ऊह्याथे सनाद रतम
मही मित्रस्य साधथस तरन्ती पिप्रती रतम | <br>
परि यज्ञं नि षेदथुः
|