"ऋग्वेदः सूक्तं ५.७९" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती |
यथा चिन नो अबोधयः सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसून्र्ते ||
या सुनीथे शौचद्रथे वय औछो दुहितर दिवः |
सा वय उछ सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसून्र्ते ||
सा नो अद्याभरद्वसुर वय उछा दुहितर दिवः |
यो वय औछः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसून्र्ते ||
 
अभि ये तवा विभावरि सतोमैर गर्णन्ति वह्नयः |
मघैर मघोनि सुश्रियो दामन्वन्तः सुरातयः सुजाते अश्वसून्र्ते ||
यच चिद धि ते गणा इमे छदयन्ति मघत्तये |
परि चिद वष्टयो दधुर ददतो राधो अह्रयं सुजाते अश्वसून्र्ते ||
ऐषु धा वीरवद यश उषो मघोनि सूरिषु |
ये नो राधांस्य अह्रया मघवानो अरासत सुजाते अश्वसून्र्ते ||
 
तेभ्यो दयुम्नम बर्हद यश उषो मघोन्य आ वह |
ये नो राधांस्य अश्व्या गव्या भजन्त सूरयः सुजाते अश्वसून्र्ते ||
उत नो गोमतीर इष आ वहा दुहितर दिवः |
साकं सूर्यस्य रश्मिभिः शुक्रैः शोचद्भिर अर्चिभिः सुजाते अश्वसून्र्ते ||
वय उछा दुहितर दिवो मा चिरं तनुथा अपः |
नेत तवा सतेनं यथा रिपुं तपाति सूरो अर्चिषा सुजाते अश्वसून्र्ते ||
 
एतावद वेद उषस तवम भूयो वा दातुम अर्हसि |
या सतोत्र्भ्यो विभावर्य उछन्ती न परमीयसे सुजाते अश्वसून्र्ते ||
"https://sa.wikisource.org/wiki/ऋग्वेदः_सूक्तं_५.७९" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्