"ऋग्वेदः सूक्तं ७.७५" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
वयुषा आवो दिविजा रतेनाविष्क्र्ण्वाना महिमानमागात |
अप दरुहस्तम आवरजुष्टमङगिरस्तमा पथ्या अजीगः ||
महे नो अद्य सुविताय बोध्युषो महे सौभगाय पर यन्धि |
चित्रं रयिं यशसं धेह्यस्मे देवि मर्तेषु मानुषि शरवस्युम ||
एते तये भानवो दर्शतायाश्चित्रा उषसो अम्र्तास आगुः |
जनयन्तो दैव्यानि वरतान्याप्र्णन्तो अन्तरिक्षा वयस्थुः ||
एषा सया युजाना पराकात पञ्च कषितीः परि सद्यो जिगाति |
अभिपश्यन्ती वयुना जनानां दिवो दुहिता भुवनस्यपत्नी ||
वाजिनीवती सूर्यस्य योषा चित्रामघा राय ईशे वसूनाम |
रषिष्टुता जरयन्ती मघोन्युषा उछति वह्निभिर्ग्र्णाना ||
परति दयुतानामरुषासो अश्वाश्चित्रा अद्र्श्रन्नुषसं वहन्तः |
याति शुभ्रा विश्वपिशा रथेन दधाति रत्नंविधते जनाय ||
सत्या सत्येभिर्महती महद्भिर्देवी देवेभिर्यजता यजत्रैः |
रुजद दर्ळ्हानि दददुस्रियाणां परति गाव उषसं वावशन्त ||
नू नो गोमद वीरवद धेहि रत्नमुषो अश्वावद पुरुभोजो अस्मे |
मा नो बर्हिः पुरुषता निदे कर्यूयं पात ... ||
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