== ऋग्वेदभाष्यम्

दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचितम् (डॉ॰ ज्ञानप्रकाशेन सम्पादितम्, डॉ॰ नरेशकुमार धीमान्-द्वारा च यूनिकोडरूपेण परिवर्तितम्) सम्पाद्यताम्

== तत्र प्रथममण्डलम्

भूमिकाभागः सम्पाद्यताम्

॥ओ३म्॥ ऋग्वेदः॥ अथर्ग्वेदभाष्यारम्भः॥ विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव। यद्भ॒द्रं तन्न॒ आ सु॑व॥ ऋ॰ 5.82.5॥ विद्यानन्दं समवति चतुर्वेदसंस्तावनाया, सम्पूर्येशं निगमनिलयं सम्प्रणम्याथ कुर्वे। वेदत्र्यङ्के विधुयुतसरे मार्गशुक्लेऽङ्गभौमे, ऋग्वेदस्याखिलगुणगुणिज्ञानदातुर्हि भाष्यम्॥1॥ आभिः स्तुवन्तीत्युक्तत्वाद्विद्वांस उक्तपूर्वं वेदार्थज्ञानसाहित्यपठनपुरःसरमृग्वेदमधीत्य तत्रस्थैर्मन्त्रैरीश्वरमारभ्य भूमिपर्य्यन्तानां पदार्थानां गुणान् यथावद्विदित्वैते कार्येषूपकृतये मतिं जनयन्ति। ऋचन्ति स्तुवन्ति पदार्थानां गुणकर्मस्वभावाननया सा ऋक्, ऋक् चासौ वेदश्चर्ग्वेदः। एतस्मिन्नग्निमीड इत्यारभ्य यथा वः सुसहासतिपर्य्यन्तेऽष्टावष्टकाः सन्ति। तत्रैकैकस्मिन्नष्टावष्टावध्यायाः सन्ति, तेषामेकैकस्य प्रत्यध्यायं वर्गाः संख्यायन्ते- प्रथमाष्टके द्वितीयाष्टके तृतीयाष्टके चतुर्थाष्टके पञ्चमाष्टके षष्ठाष्टके सप्तमाष्टके अष्टमाष्टके अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ अ॰ व॰ 1 37 1 26 1 34 1 33 1 27 1 40 1 41 1 30 2 38 2 27 2 26 2 28 2 30 2 40 2 33 2 24 3 35 3 26 3 31 3 31 3 30 3 49 3 26 3 28 4 29 4 29 4 25 4 36 4 30 4 54 4 28 4 31 5 31 5 29 5 26 5 30 5 27 5 38 5 33 5 27 6 32 6 32 6 30 6 25 6 25 6 38 6 28 6 27 7 37 7 25 7 27 7 35 7 33 7 39 7 30 7 30 8 26 8 27 8 26 8 32 8 36 8 33 8 29 8 49 इ 265 यं 221 सं 225 ख्या 250 प्रत्य 238 ष्टकं 331 वेदि 248 त 246 सर्वेष्वष्टकेषु सर्वे वर्गाः संयुक्ताः 2024 चतुर्विंशत्यधिके द्वे सहस्रे सन्ति। तथास्मिन्नृग्वेदे दश मण्डलानि सन्ति, तत्र प्रथमे मण्डले चतुर्विंशतिरनुवाकाः, एकनवतिशतं सूक्तानि। तत्रैकैकस्मिन् सूक्ते मन्त्राश्च संख्यायन्ते- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 9 25 21 49 73 10 97 8 121 15 145 5 169 8 2 9 26 10 50 74 9 98 3 122 15 146 5 170 5 3 12 27 13 51 75 5 99 1 123 13 147 5 171 6 4 10 28 9 52 76 5 100 19 124 13 148 5 172 3 5 10 29 7 53 77 5 101 11 125 7 149 5 173 13 6 10 30 22 54 78 5 102 11 126 7 150 3 174 10 7 10 31 18 55 79 12 103 8 127 11 151 9 175 6 8 10 32 15 56 80 16 104 9 128 8 152 7 176 6 9 10 33 15 57 81 9 105 19 129 11 153 4 177 5 10 12 34 12 58 82 6 106 7 130 10 154 6 178 5 11 8 35 11 59 83 6 107 3 131 7 155 6 179 6 12 12 36 20 60 84 20 108 13 132 6 156 5 180 10 13 12 37 15 61 85 12 109 8 133 7 157 6 181 9 14 12 38 15 62 86 10 110 9 134 6 158 6 182 8 15 12 39 10 63 87 6 111 5 135 9 159 5 183 6 16 9 40 8 64 88 6 112 25 136 7 160 5 184 6 17 9 41 9 65 89 10 113 20 137 3 161 14 185 11 18 9 42 10 66 90 9 114 11 138 4 162 22 186 11 19 9 43 9 67 91 23 115 6 139 11 163 13 187 11 20 8 44 14 68 92 18 116 25 140 13 164 52 188 11 21 6 45 10 69 93 12 117 25 141 13 165 15 189 8 22 21 46 15 70 94 16 118 11 142 13 166 15 190 8 23 24 47 10 71 95 11 119 10 143 8 167 11 191 16 24 15 48 16 72 96 9 120 12 144 7 168 10 - - अस्मिन्मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 1976 षट्सप्तत्यधिकान्येकोनविंशतिः शतानि सन्तीति वेद्यम्। अथ द्वितीयमण्डले चत्वारोऽनुवाकाः, त्रयश्चत्वारिंशत् सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या ज्ञातव्या- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 16 7 6 13 13 19 9 25 5 31 7 37 6 43 3 2 13 8 6 14 12 20 9 26 4 32 8 38 11 - - 3 11 9 6 15 10 21 6 27 17 33 15 39 8 4 9 10 6 16 9 22 4 28 11 34 15 40 6 5 8 11 21 17 9 23 19 29 7 35 15 41 21 6 8 12 15 18 9 24 16 30 11 36 6 42 3

अस्मिन्मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 429 एकोनत्रिंशदधिकानि चत्वारि शतानि सन्ति। अथ तृतीयमण्डले पञ्चानुवाका, द्विषष्टिश्च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या वेद्या- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 23 9 9 17 5 25 5 33 13 41 9 49 5 57 6 2 15 10 9 18 5 26 9 34 11 42 9 50 5 58 9 3 11 11 9 19 5 27 15 35 11 43 8 51 12 59 9 4 11 12 9 20 5 28 6 36 11 44 5 52 8 60 7 5 11 13 7 21 5 29 16 37 11 45 5 53 24 61 7 6 11 14 7 22 5 30 22 38 10 46 5 54 22 62 18 7 11 15 7 23 5 31 22 39 9 47 5 55 22 - - 8 11 16 6 24 5 32 17 40 9 48 5 56 8 अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 617 सप्तदशोत्तरष्टशतानि सन्ति।


अथ चतुर्थे मण्डले पञ्चानुवाकाः, अष्टपञ्चाशच्च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या वेद्या- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 20 9 8 17 21 25 8 33 11 41 11 49 6 57 8 2 20 10 8 18 13 26 7 34 11 42 10 50 11 58 11 3 16 11 6 19 11 27 5 35 9 43 7 51 11 - - 4 15 12 6 20 11 28 5 36 9 44 7 52 7 5 15 13 5 21 11 29 5 37 8 45 7 53 7 6 11 14 5 22 11 30 24 38 10 46 7 54 6 7 11 15 10 23 11 31 15 39 6 47 4 55 10 8 8 16 21 24 11 32 24 40 5 48 5 56 7 अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 589 एकोननवतिः पञ्चशतानि सन्ति। अथ पञ्चममण्डले षडनुवाकाः, सप्ताशीतिः सूक्तानि च सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्यास्तीति वेद्यम्- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 12 12 6 23 4 34 9 45 11 56 9 67 5 78 9 2 12 13 6 24 4 35 8 46 8 57 8 68 5 79 10 3 12 14 6 25 9 36 6 47 7 58 8 69 4 80 6 4 11 15 5 26 9 37 5 48 5 59 8 70 4 81 5 5 11 16 5 27 6 38 5 49 5 60 8 71 3 82 9 6 10 17 5 28 6 39 5 50 5 61 19 72 3 83 10 7 10 18 5 29 15 40 9 51 15 62 9 73 10 84 3 8 7 19 5 30 15 41 20 52 17 63 7 74 10 85 8 9 7 20 4 31 13 42 18 53 16 64 7 75 9 86 6 10 7 21 4 32 12 43 17 54 15 65 6 76 5 87 9 11 6 22 4 33 10 44 15 55 10 66 6 77 5 - - अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 727 सप्तविंशतिः सप्तशतानि सन्ति। अथ षष्ठे मण्डले षडनुवाकाः, पञ्चसप्ततिश्च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या बोध्या- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 13 11 6 21 12 31 5 41 5 51 16 61 14 71 6 2 11 12 6 22 11 32 5 42 4 52 17 62 11 72 5 3 8 13 6 23 10 33 5 43 4 53 10 63 11 73 3 4 8 14 6 24 10 34 5 44 24 54 10 64 6 74 4 5 7 15 19 25 9 35 5 45 33 55 6 65 6 75 19 6 7 16 48 26 8 36 5 46 14 56 6 66 11 - - 7 7 17 15 27 8 37 5 47 31 57 6 67 11 8 7 18 15 28 8 38 5 48 22 58 4 68 11 9 7 19 13 29 6 39 5 49 15 59 10 69 8 10 7 20 13 30 5 40 5 50 15 60 15 70 6 अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 765 पञ्चषष्टिः सप्तशतानि सन्ति। अथ सप्तमे मण्डले षडनुवाकाः, चतुःशतं च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्यास्तीति वेदितव्यम्- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 25 14 3 27 5 40 7 53 3 66 19 79 5 92 5 2 11 15 15 28 5 41 7 54 3 67 10 80 3 93 8 3 10 16 12 29 5 42 6 55 8 68 9 81 6 94 12 4 10 17 7 30 5 43 5 56 25 69 8 82 10 95 6 5 9 18 25 31 12 44 5 57 7 70 7 83 10 96 6 6 7 19 11 32 27 45 4 58 6 71 6 84 5 97 10 7 7 20 10 33 14 46 4 59 12 72 5 85 5 98 7 8 7 21 10 34 25 47 4 60 12 73 5 86 8 99 7 9 6 22 9 35 15 48 4 61 7 74 6 87 7 100 7 10 5 23 6 36 9 49 4 62 6 75 8 88 7 101 6 11 5 24 6 37 8 50 4 63 6 76 7 89 5 102 3 12 3 25 6 38 8 51 3 64 5 77 6 90 7 103 10 13 3 26 5 39 7 52 3 65 5 78 5 91 7 104 25 अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 841 एकचत्वारिंशदष्टौ शतानि सन्ति। अथाष्टमे मण्डले दशानुवाकाः, त्रिशतं च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या ज्ञेया- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 34 14 15 27 22 40 12 53 8 66 15 79 9 92 33 2 42 15 13 28 5 41 10 54 8 67 21 80 10 93 34 3 24 16 12 29 10 42 6 55 5 68 19 81 9 94 12 4 21 17 15 30 4 43 33 56 5 69 18 82 9 95 9 5 39 18 22 31 18 44 30 57 4 70 15 83 9 96 21 6 48 19 37 32 30 45 42 58 3 71 15 84 9 97 15 7 36 20 36 33 19 46 33 59 7 72 18 85 9 98 12 8 23 21 18 34 18 47 18 60 20 73 18 86 5 99 8 9 21 22 18 35 24 48 15 61 18 74 15 87 6 100 12 10 6 23 30 36 7 49 10 62 12 75 16 88 6 101 16 11 10 24 30 37 7 50 10 63 12 76 12 89 7 102 22 12 33 25 24 38 10 51 10 64 12 77 11 90 6 103 14 13 33 26 25 39 10 52 10 65 12 78 10 91 7 - - अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 1726 षड्विंशति सप्तदशशतानि सन्ति। अथ नवमे मण्डले सप्तानुवाकाः, चतुर्दशोत्तरं शतं च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रति सूक्तमियं मन्त्रसंख्या वेद्या- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 10 15 8 29 6 43 6 57 4 71 9 85 12 99 8 2 10 16 8 30 6 44 6 58 4 72 9 86 48 100 9 3 10 17 8 31 6 45 6 59 4 73 9 87 9 101 16 4 10 18 7 32 6 46 6 60 4 74 9 88 8 102 8 5 11 19 7 33 6 47 5 61 30 75 5 89 7 103 6 6 9 20 7 34 6 48 5 62 30 76 5 90 6 104 6 7 9 21 7 35 6 49 5 63 30 77 5 91 6 105 6 8 9 22 7 36 6 50 5 64 30 78 5 92 6 106 14 9 9 23 7 37 6 51 5 65 30 79 5 93 5 107 26 10 9 24 7 38 6 52 5 66 30 80 5 94 5 108 16 11 9 25 6 39 6 53 4 67 32 81 5 95 5 109 22 12 9 26 6 40 6 54 4 68 10 82 5 96 24 110 12 13 9 27 6 41 6 55 4 69 10 83 5 97 58 111 3 14 8 28 6 42 6 56 4 70 10 84 5 98 12 112 4

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अस्मिन् मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 1097 सप्तनवत्येकसहस्रं सन्ति। अथ दशमे मण्डले द्वादशानुवाकाः, एकनवतिशतं च सूक्तानि सन्ति। तत्र प्रतिसूक्तमियं मन्त्रसंख्या ज्ञेया- सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ सू॰ मं॰ 1 7 25 11 49 11 73 11 97 23 121 10 145 6 169 4 2 7 26 9 50 7 74 6 98 12 122 8 146 6 170 4 3 7 27 24 51 9 75 9 99 12 123 8 147 5 171 4 4 7 28 12 52 6 76 8 100 12 124 9 148 5 172 4 5 7 29 8 53 11 77 8 101 12 125 8 149 5 173 6 6 7 30 15 54 6 78 8 102 12 126 8 150 5 174 5 7 7 31 11 55 8 79 7 103 13 127 8 151 5 175 4 8 9 32 9 56 7 80 7 104 11 128 9 152 5 176 4 9 9 33 9 57 6 81 7 105 11 129 7 153 5 177 3 10 14 34 14 58 12 82 7 106 11 130 7 154 5 178 3 11 9 35 14 59 10 83 7 107 11 131 7 155 5 179 3 12 9 36 14 60 12 84 7 108 11 132 7 156 5 180 3 13 5 37 12 61 27 85 47 109 7 133 7 157 5 181 3 14 16 38 5 62 11 86 23 110 11 134 7 158 5 182 3 15 14 39 14 63 17 87 25 111 10 135 7 159 6 183 3 16 14 40 14 64 17 88 19 112 10 136 7 160 5 184 3 17 14 41 3 65 15 89 18 113 10 137 7 161 5 185 3 18 14 42 11 66 15 90 16 114 10 138 6 162 6 186 3 19 8 43 11 67 12 91 15 115 9 139 6 163 6 187 5 20 10 44 11 68 12 92 15 116 9 140 6 164 5 188 3 21 8 45 12 69 12 93 15 117 9 141 6 165 5 189 3 22 15 46 10 70 11 94 14 118 9 142 8 166 5 190 3 23 7 47 8 71 11 95 18 119 13 143 6 167 4 191 4 24 6 48 11 72 9 96 13 120 9 144 6 168 4 - अस्मिन्मण्डले सर्वे मन्त्रा मिलित्वा 1754 चतुःपञ्चाशत् सप्तदशशतानि सन्ति। अस्य ऋग्वेदस्य दशसु मण्डलेषु 85 पञ्चाशीतिरनुवाकाः, 1028 अष्टादशसहस्रं सूक्तानि, 10589 दशसहस्राणि पञ्चशतानि एकोननवतिश्च मन्त्राः सन्तीति वेद्यम्। स एतैः पूर्वोक्ताष्टाकाध्यायवर्गमण्डलानुवाकसूक्तमन्त्रैर्भूषितोऽयमृग्वेदोऽस्तीति वेदितव्यम्॥ भाषार्थः—आगे मैं सब प्रकार से विद्या के आनन्द को देने वाली चारों वेद की भूमिका को समाप्त और जगदीश्वर को अच्छी प्रकार प्रणाम करके सम्वत् 1934 मार्ग शुक्ल भौमवार के दिन सम्पूर्ण ज्ञान के देने वाले ऋग्वेद के भाष्य का आरम्भ करता हूं॥1॥ (ऋग्भिः॰) इस ऋग्वेद से सब पदार्थों की स्तुति होती है अर्थात् ईश्वर ने जिसमें सब पदार्थों के गुणों का प्रकाश किया है, इसलिये विद्वान् लोगों को चाहिये कि ऋग्वेद को प्रथम पढ़के उन मन्त्रों से ईश्वर से लेके पृथिवी-पर्य्यन्त सब पदार्थों को यथावत् जानके संसार में उपकार के लिये प्रयत्न करें। ऋग्वेद शब्द का अर्थ यह है कि जिससे सब पदार्थों के गुणों और स्वभाव का वर्णन किया जाय वह ‘ऋक्’ वेद अर्थात् जो यह सत्य सत्य ज्ञान का हेतु है, इन दो शब्दों से ‘ऋग्वेद’ शब्द बनता है। ‘अग्निमीळे’ यहां से लेके ‘यथा वः सुसहासति’ इस अन्त के मन्त्र-पर्यन्त ऋग्वेद में आठ अष्टक और एक एक अष्टक में आठ आठ अध्याय हैं। सब अध्याय मिलके चौसठ होते हैं। एक एक अध्याय की वर्गसंख्या कोष्ठों में पूर्व लिख दी है। और आठों अष्टक के सब वर्ग 2024 दो हजार चौबीस होते हैं। तथा इस में दश मण्डल हैं। एक एक मण्डल में जितने जितने सूक्त और मन्त्र है सो ऊपर कोष्ठों में लिख दिये हैं। प्रथम मण्डल में 24 चौबीस अनुवाक, और एकसौ इक्कानवे सूक्त, तथा 1976 एक हजार नौ सौ छहत्तर मन्त्र। दूसरे में 4 चार अनुवाक, 43 तितालीस सूक्त, और 429 चार सौ उन्तीस मन्त्र। तीसरे में 5 पांच अनुवाक, 62 बासठ सूक्त, और 617 छः सौ सत्रह मन्त्र। चौथे में 5 पांच अनुवाक 58 अठ्ठावन सूक्त, 589 पांच सौ नवासी मन्त्र। पांचमें 6 छः अनुवाक 87 सतासी सूक्त, 727 सात सौ सत्ताईस पैंसठ मन्त्र। 6 छठे में छः अनुवाक, 75 पचहत्तर सूक्त, 765 सात सौ पैंसठ मन्त्र। सातमे में 6 छः अनुवाक, 104 एकसौ चार सूक्त, 841 आठ सौ इकतालीस मन्त्र। आठमे में 10 दश अनुवाक, 103 एकसौ तीन सूक्त, और 1726 एक हजार सातसौ छब्बीस मन्त्र। नवमे में 7 सात अनुवाक 114 एकसौ चौदह सूक्त, 1097 और एक हजार सत्तानवे मन्त्र। और दशम मण्डल में 12 बारह अनुवाक, 191 एकसौ इक्कानवे सूक्त, और 1754 एक हजार सातसौ चौअन मन्त्र हैं। तथा दशों मण्डलों में 85 पचासी अनुवाक, 1028 एक हजार अठ्ठाईस सूक्त, और 10589 दश हजार पांचसौ नवासी मन्त्र हैं। सब सज्जनों को उचित है कि इस बात को ध्यान में करलें कि जिससे किसी प्रकार का गड़बड़ न हो॥

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