जन्मपत्रदीपकः
विन्ध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी
१९४६

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॥ श्रीः । | जन्मपत्रदीपकः । सोदाहरणसटिप्पणहिन्दीटीकापरिकृतः । ॐ [ परिष्कृतं परिवर्छितं द्वितीयं संस्करणम् ] PUBLtSED BY = JAYA KRISHNA DS RARI DB GUPTA D # |he Chopolisaid Sanskrit Stead ofice, B D M A R U 5, 1896 ७s.वि.ses :::: '०+=~~ -------+

वैस्तुरखंवत

सोदहरण-‘सुबोधिनी’ संस्कृत-हिन्दी टीका। स परीक्षोपयोगी विविध परिशिष्ट सहित । आज तक इस प्रन्थ की कोई भी ऐसी सरल टीका नहीं थी जिससे परीक्षार्थी विद्यार्थी सुलभता पूर्वक इस्र प्रन्थ का आशय समझ सकें ? अतः इस अभिनव संस्करण में अवतरण के साथ २ प्रत्येक लोकों की परीक्षाएयो उदाहरण सहित संस्कृत हिन्दी टीका, नाना चक और अन्त में वास्तुपूजाविधि, इप्रवेशविधि, गृहोपरि गृध्रादिपतनशान्तिबिधि आदि अनेक परिशिष्ट दिये गये हैं । १) सशसंहितेत-भृगुसंहितेक- भावफलाध्यायः ‘सुबोधिनी’-‘विमल भाषाटीका सहितः । • वर्तमान युगमें महर्षि लोमश प्रणीत ‘लोमशसंहिता तथा महर्षि भृगु प्रणीत ‘भृगुसंहिताओं का कितना यथार्थ फळ घटता है; यह बात सर्व विदित है । इन्ही उपर्युक दोनों महान् प्रन्थों के पार भूत प्रस्तुत भावफलाध्याय B नामक ग्रन्थ है । आज तक प्रायः इसका विशुद्ध संस्करण अप्राप्य ही था, जन साधारण की सुभीता के लिये महर्षि लोमश प्रणीत ‘भावफलाध्याय तथा महर्षि भृगु प्रणीत भावफलाध्यायः नामक दोनों प्रस्थ एक ही जिद में प्रकाशित कर दिये गये हैं। जातकपारिजातः-(साचित्रः ) ‘सुधाळिन' विमल' संस्कृत-हिन्दी टीकाद्वयोपेतः परीक्षोपयोगी ठरल संस्कृत-हिन्दी टीका, उपपत्ति तथा पदार्थनिर्देशक नाना चित्र-चक्र आदि विविध विषयों से विभूषित सर्वे गुणोपेत यह अभिनय सर्वोत्तम झुइव संस्करण प्रथम बार ही प्रकाशित होकर संस्कृत संसार में उथल पुथल मचा रहा है। कठिन परिस्थिति के कारण इडकी बहुत कम प्रतियों छपी हैं अतः परीक्षार्थी त्रियाथ शीघ्र भंग कर लाभ उठावें । ‘सुबोधिनी’ भाषा टीका सहितम् । यदि आप रमगर्भा भगवती वसुन्धरा के गर्भ से अमूल्य सहरकों का उपलब्ध करने में रुचि रखते हों तो महर्षेि लोमश प्रणत इव ‘‘धराचक्र नामक पन्थ के प्रस्तुत संस्करण को एक बार अवश्य देखिये । तवावृतभाष्योपपत्त-टिप्पणीभिः सहितः । पूर्व प्रकाशित सभी टीकाओं के गुण दोयों की समालोचना करके प्रस्तुत संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है । बड़े बड़े विद्वानोंने उपर्युक तत्वावृतभाष्य को निरीक्षण करके मुळ कण्ठ से इसकी प्रशंसा की है । सूर्यसिद्धान्त का ऐसा श्रीडनीय संस्करण यह प्रथम बार ही प्रकाशित हो रहा है शीघ्र प्राप्त होगा । प्राप्तिस्थानम्--चौखस्य संस्कृत पुस्तकालय, बनारस सिटी। THE KASHI SANSKRIT SERIES NO117. 6® ( Jyautisa , Section No5 ) SRI JANMA PAIR ADIPA KA W¢j} 3000 000 0€N , छ&&E®X$ . D E ON ES BY ॐ gatsheeab°ge P', V[M A YES E WARI PRASADA DI EDI Jyauti'sadhyapaka, Sri Sangveda Vidyalaya, ( Eanumangarhi, Azamgarh ) PUBLISHED BY 4AYA KRISHNA DAS HART DAS GUPTA T%e Choold%c®mbu Saskavi Serves Ofice. Benares City 1946 ॥ श्रीः ॥ काशी-संस्कृत-सीरिज़-प्रन्थमालायाः ११७ अच्छ©D> (ज्यौतिषविभागे () पञ्चमं पुष्पम् ) == = E D -- >

  • श्रीः *

जन्मपत्रनीपकः सोदाहरणसटिप्पणहिन्दीटीकापरिष्कृतः । आजमगढ्मण्डलान्तर्येतत्रयपुराभिजन पं० श्रीधर्मदत्तद्विवेवितनुजनुषा ज्यौतिषाचार्ये श्रीविन्ध्येश्रीप्रसादद्विवेदिना विरचितः । [ सपरिष्कृतं परिवर्धितं द्वितीयं संस्करणम् । जयकृष्णदास-हरिदास गुप्तः चौखम्बा संस्कृत सीरिज़ आफिस, विद्याविलासप्रेस, घनरख सिटी । १६४६ ई० वि० सं० २००३ ॥ मूल्य १) [ अस्य ग्रन्थस्य सर्वेsविकाराः प्रकाशकाधीनाः } -8ः प्राक्कथन •8} ययादकजयुगलस्मरणत्खलु शङ्करः । सकुटुम्बः समर्थोऽभूच्छङ्कतें किल तं नुमः । भारत के कोने २ तक जग्मपत्रनिर्माण का प्रचुरप्रचार होते हुए भी पेस छोटी कोई पुस्तक नही मिली जिससे थोड़े हि में उसके बारे सार ज्ञात हो जाएँ । मानसागरी, होरारत्न, जातकपद्धति प्रभृति पुस्तके जो आज कल वज़ारों में अधिकता से उपलब्ध होती हैं, विस्तृतरूप में और दुरू होने के कारण प्रत्येक पण्डितों का उपकारक नही हैं। अतः मैंने अपने कई छात्रों और वैयाकरण मित्रों के बार २ अनुरोध करने पर आजकल साधारणतः जिन २ विषयों का सनिवेश जग्मपत्रिकाओं में होता है, उन्हीं के बनाने के प्रकारों को यथासाध्य सरलतम पद्यों द्वारा इसमें लिखा है। जिन विषयों में कोई विशेषता नहीं उनको प्रायोनाचा श्र्युक्त पद्यों में हो रख दिया है। प्रत्येक विषयों का झटिति परिज्ञान हो जाने के लिये स्खोदाहरण लरल हिन्दीटीका और जगह २ पर आवश्यक टिपण भ कर दिया है। पुस्तक का आकार बढ़ जाने के भय से फलितमाग का विशेष स- निवेश इस में नहीं किया गया है । यथासम्भव अवकाश मिलने पर दूसरे भाग के रूप में ( यदि प्रथमभाग पण्डितों के हृदय को कुछ भी आकर्षित कर सका तो) उस्के प्रकाशन का प्रयत्न किया जायगा। इसमें लिखित प्रत्येक विषयों के बारे में किसी प्रकार को खेचा- तान नहीं की गई हैं इसको विक्षजन अपनी साराखारपरिशोलिन बुद्धि से पक्षपातविहीन होकर स्वयं विचार करतें। अनेन चेत्सञ्जनमानसेषु इषद्मः स्यान्नवमात्रमेव । तदापमेघोथमपि स्वकीयं परिश्रमं घन्यतमं हि मन्ये । दुरदोषज। यास्फुट्यो ममेह याश्वैव सम्मुद्रणयन्त्रदोषात् । तास्तास्समस्ताः स्वधिया सुधीभिः संशोधनीयाः स्वकृपालवेन ॥ शमिति । शारदासदन विद्यालयः, अह्मपुर २४-१२-१६३५ इ° } सजनों का सेवक विन्ध्येश्वरप्रसादद्विवेदी ग्रन्थ ऍरिचय है. तदग्र उद्देश्य दिवि नर्कराल३३ को सुदूरे चिदुप निवाते । अनडप्रान्तगते सुरम्ने प्रयासे युभे ब्रह्मपुत्रिधा ॥ १ ॥ आशीद्विवेदी (द्वजवर्यंपूज्यः श्रीनङ्ग रद्वाजम् यज्ञाः ग:न्य धभ्यः प्रपितामहो मे भले तिनाम्न जान्न प्रसिद्धः ॥ २ ॥ तस्यऽभवग्वङ्कि सिशस्तमस्तेष्वग्रजो यालरामशन ! तस्यानुज्ञः कुष्ठ इति प्रसिद्ध विद्वद्भवः लट्ठपणाधन(ढयः । ३ । श्रीमान्त शमहित महात्मा पितामहः मे मतिमनुदारः ? विनयेदस्तय स्ववशं स्वजन्मनालै१ी चर ॥ ४ ! पुत्रास्तदीया बहवो विनष्ठ अन्ते बयस्येव ततो बभूव } बीसे खुदारो विदुषां वरिष्ठः श्रधर्मदत जनक्रो मदीयः ५ ६ ॥ विशत्यदत्रयस्य तस्य पुत्रोऽभवं किल । विन्ध्येश्वरीप्रसादेति नाम्ना रोकेति विश्रुतः ॥ ६ ॥ एकाकिनं स जनको मदीयः स चैकवर्षीयमितोऽवयम् । हा मेऽलइयं जननीं तथा च दुःखाम्बुराशौ नितर निमग्नाम् ॥ ७ ॥ कृत्वा च सतत पितरौ स्वीयौ वोरन्धकाऽतितरां त्रिीनौ । चितं स्वकीयं कठिनं विधाय यातो दिवं नितरौ विहाय ॥ ८ ॥ श्रीविश्वनाथकृपया नगरीं तदीयं सम्प्राप्य मातृजनकस्य कृपावलम्बात् । रामाभिलाष इति सुप्रथितस्य नाम्ना ज्ञानं व्याप्य सुळिपेस्तत एव सम्यङ् | ९ । | ततः श्रीप्रभुदत्तास्यसहास्मद्धिमशालिनः १ विद्ययैस्य सविधे यजुर्वेदसपीठम् 4.१० ॥ पूज्यपाइगुडूच्यैरिसालतज्योतिर्विदः सुधिषणाधनिनस्तथा च । लोकोचशेसमगुणैर्गुथितस्य श्रीमपूज्याङ्घ्रिपङ्कयुगलस्य सुधाकरस्य मे ११ ।। सूनोः समस्तगणितऍचपारगश्री पद्मकरस्य शरणागतवत्सलस्य । ज्योतिर्विदः सकलकाव्यकलाप्रवीण श्रीचन्द्रशेखर सुधीप्रवरस्य तद्वत् ॥ १२ ॥ प्राच्यान्तेवासित्वं तेभ्यः स्वस्य बोधकलिकां च । दुधवार्थपरीक्षां ज्योतिःशास्त्रे स्सुली ९: ॥ १३ ॥ लघुजातकस्य सरयं टीकां ओबालबोधिनीनाम्नीम् । संकृतभाषाबदां विधाय पूर्वे ततः पश्चाद् ॥ १४ ॥ जातकालंकृतेः स्पष्ट हिन्दीटीक खभूमिकाम् । रिकाणां मनस्तुष्टयै ( विनोदाय ) बिधय तदनन्तरम् ॥ १५ = अलिकव्यवहृतिसिन्यै ‘फलितनवरत्नसंप्रहं विच्यम् हिन्दीटीकोपेतं सोदाहरणं प्रकाशयित्वा च ॥ १६ ॥ दूरस्थस्वाद्विदित्वा शिथिछितमखिलं स्वीयगेऽप्रबन्धे ऋतद्गत्य काश्याह सुनिवसनविधिं संविधास्यन् स्वगेहे । यज्ञे संवस्त्र भूमिखगखगधरा १९९१ संमिते बैक्रमीठे ग्रन्थं चेमें स्टी डखनुचितचितं पूर्णता प्रापयसि ॥ १० ॥ विषयानुक्रमाणि । दल १८ पृष्ठ संख्या भी वषय श्रेष्ठ लैग्री मङ्गलाचरण १ शुक्रांश पर से लरनरूपष्ट बनाने की । पवङ्ग पर से ग्रह्स्पष्ट करने की रीतेि १ उदाहरण ११ वण्डादि (दि) से बट्यादि इष्टकाल १ भुक्तभोग्यत्व में विशेष २ २ बनाने की रीति ? टिप्पणी में ) १ | २९५°१४अक्षांश देशों में सरणी २ ॥ द्वारा लग्नस्पष्ट करने की रीति २३ हन्ति साधन की सारणी ४ । ६झ ल१ut ३४-२ लrणी द्वारा स्पष्ट झन्ति जानने नलद्र नेख्त की रीति ४ | दशमझ सtधन की रीति ४८ र सरणी ६° अक्षांशसे ३६° अक्षांश सारणी पर से सब देशों के लियेद शमळत लक १-६ ! साधन की रीति सारणीसहित २८-३१ चर सारणी द्वारा काशी से अन्यत्र ! बिन लक्रल के ही इशमसाधन का का तिथ्यादि मन जानने की प्रकार ३२ हीति तथा उदाहरण १ २ भजलधर अन्यदेशीय ग्रह बनने की रीति ८, १२ मावच ३ ३ अज्ञात-भभोगनयन विशेष ३३ चन्द्रमा स्पष्ट करने की रीति १० | माह के भाव (अबस्था विशेष) का चन्द्रमा स्पष्ट करने की दूसरी रीति १४ ३४ पलभा और चरखण्ड का ज्ञान ११ ९ ग्रहों की शयनादि अवस्य का ज्ञान ३४ काशीसे पूर्वी देशों के अक्षांश } अन्य प्रकारकी अक्ष की अवस्थाएँ ३६ देशान्तर १२-१३ । ग्रहों की पध्यक्ष मंत्री ३६ काशी से पश्चिमदेशों के अक्षांश दशवर्गा ३७ दृशान्तर १४-१७ | राशिस्वामी ३७ अक्षांश पर से सारणी द्वारा पलभा होरा-नेक्काण ३ ८ ज्ञान की विधि १८ सहमत ३८ पलभसारणी वस्रमश १८ ३८ बृदय पर से स्वोदय ज्ञान १८ ४ दशमांश -ऋदिशांश ३४ आजमगढ़ का उद्यमान १९ / राशिष्वमी होराद्रेष्काण स्€मांश- अयनौका स्पष्ट करने की रीति १९ } नवमश बोघक चक्र ३ १ अयनांश बनाने की दूसरी रीति २० दशमांश द्वादशांश बोधक 'चक्र ४० न स्पष्ट करने की रीति षोडशांश और षोडशशचन्ना ३० ४ ९ भोग्यांश पर से मनरूपष्ट करने का भी त्रिंशांश और चक्र ४१ उदाहरण २९ अयंश ४१ १ । विषयहुक्रमणिका ६ ७ 5 9 दृष्ट संघ विषय पृष्ठ संख्थः वर्गों की पारावतादि संज्ञा ५२ ; आरोहक्रमते ध्रुवकवला अन्तरादि का ६प्रकारको विशोतरोणदशा ४६३ ; सध महृदृशन्म ४३ ; प्रयतर का ध्रुवक साधन । महदशाबोधक चक्र ४३ - सूक्ष्मदृशां प्राणदश के झुबक सवन महादशभुक्तभोग्यनयन ४४ की अंतर ९१ सुहृदश क्क भोग्यानयन ४४ ते प्रत्यन्तर के ८१ क १२-६ ° शुभोग्यानयन के उदाहरण ४६ ? योगिनीदशानयन महादशा लिखने का क्रमबधक चक्र के ४६ ! ओोगिनीदशाबोधकचरू स्पष्टचन्द्रमाही पर से देशका भुक्तं - योगिन्यन्तरदशज्ञान की रीति ६ १ ४६ - योगिन्यन्तरदशबोधकच> ६ १ स्पष्टचन्द्रमाई पहलो प्रकारान्तर से इरालानयन ६ २ क्रूभोग्यानियल जैमिनीयाद्युदयसाधन ६ ३ अंशदिनक्षत्र शेष पर से दक्षा क ' आयुद्यज्ञन प्रकार ६ ३ भोग्यानयन ४७ । आयुर्षीय बोधक चक्र अन्तरदशसाधन का सुलभ प्रकार ४७ | आयुदय स्पष्ट करने की विधि ६३ अन्तर के ९ चक्र ४८ । सारणी ६ ९ अन्तरादि साधन का दूसरा प्रकार ४९ | कक्ष्याह्रासवृद्धि ६६ अवरोइक्रमते ध्रुवकवश अन्तरादि का अन्यप्रकारचे आयुर्वायविचार ६६ ४९ { पन्थसमाप्ति का समय ६६ वायलयन - , इति । श्रीजानकंज्ञनये मः | जन्मपत्रदीपकः सोदाह-सटिप्पण-हिन्द्रुटीक्या सहितः। मङ्गलाचरण यकृपालेशतः सर्वे केन्द्रंशाद्य दिवौकसः । इष्टं दातुं समर्थाः स्युस्तं रामं शिरसा नुमः ॥ १ ॥ जिसकी कृपा के देश से ब्रह्मा, इन्द्र, मद्देश इत्यादि देबवृन्द अथवा केन्द्रेश इत्यादि (केन्द्र स्थान १४७१० के स्वामी, त्रिकोण स्थान ५/९ के स्चमो इयादि ) ग्रह अपना २ अभीष्ट फल देने में समर्थ होते हैं, इस भगवान् श्रीराम वन्द्वी को में शिरसे प्रणाम करता हूँ। १ ॥ पञ्चाङ्ग पर से प्रह पढकरने की रीति सूर्योदयाद्यातकालं साधनेष्टं प्रकीर्तितम् । पञ्चाङ्गस्थं मिश्रमानं पक्षिसंज्ञे बुधैः स्मृतम् ।। २ ॥ । अनयोरन्तरं कार्यमवशिष्टं दिनादिकम् । पङ्काधिक्ये यातसंज्ञमैष्यमिष्टाधिके भवेत् ॥ ३ ॥ यातैष्यकालेन दिनादिकेन निधनी गतिः खङ्ग६०हूऽऽमभागाः। शोष्याश्च योज्याः स्फुटखेचरे । पाते तथा वक्रखगे प्रतीपस् ॥ ४ ॥ सूर्य के बिम्बाधयकाळ से जन्मसमय तक जितना घटी पल बीता हो उस को सावन इष्टकाळ और तिथिपत्र ( पञ्चाङ्ग ) में लिखे मिश्रमानकाळ को पंक्ति कहते हैं ( प्रहलाघवीयपञ्चाङ्ग में सूर्योदय काल का ही स्पष्टप्रह बना रहता है, अतः उसमें उदयकाळ को ही पंक्ति समझना चाहिये )। इन दोनों ((१)इष्टकाल और पंक्ति ) का अन्तर करने ( जिस में जो घट (१) ६ण्यदि है बट/दि इष्टकाल बनाने की रीति-- सूर्युबिम्बाबूदय से मध्याह्न के भीतर का जन्म को तो जन्मकलीित e« => - * ॥ जन्मषत्रदोषकः जायघटा देने) से जो शेष दिनादिक बचे, वह ‘क्ति अधिक हो ( अर्थात् पंक्ति में इष्ट घट|न से शेष बचा हे ) तो यातविख ( या ऋण चालन ), इष्टकालअधिक हो ( अर्थात् इष्टकाल में पंक्ति घटाने से शेष बचा हो ) तो ऐष्यदिवस ( या धनचालन ) कहलाता है । भात ( ऋण ) अथवा पेष्य ( धन ) दिवखदि से पञ्चाङ्ग में लिखे स्पष्ट प्रह की गति को गोमूत्रिकागणितद्वारा गुण करके ६० का भाग देने से जो लब्ध अंश, कला, विकलादि मिले उस को क्रमसे पञ्चाङ्गस्थितस्पष्टग्रह की रश्यादि में घटने और जोड़ने ( अर्थात् यदि यातदिवसादि ' हो तो लब्ध अंशादि को १ङ्गाङ्गस्थस्पष्टग्रह की राश्यादि में घटाने और ऐष्यद्विखादि हो तो छब्ध अंशादि को पञ्चाङ्गस्थरपटुग्रह के राश्यादि में जोड़ने ) से तात्कालिक स्पष्टग्रह बन जाता है । वक्र प्रह और राहु-केतु में उळटी क्रिया करने से ( अर्थात् ऋए चाठन हो तो वक्री-राहु-केतु में जोड़ने से तथा धन चाञ्ज्ञ हो तो वक्री-राहु–केतु–में घटाने से ) स्पष्ट होता है ।। २-३ ॥ उद्वाह्णः औबिक्रमर्कसंवत् १९९१ श्रीशालिवाहनशकाब्द १८६६ शुद्धवैशाख कृष्ण ! पञ्चमी ४९ । ४४ बुधवार अनुराधानक्षत्र २९ । १४ सिद्धियोग ७ । १८ इसके बाद व्यतिपात योग सामयिक कौलवकरण १८१३ में किसी का जन्म हुआ । उस समय सूर्योदयकाल से गत १३ । ९६६ सFघनेष्टकार, अनुराधनक्षत्र का भयात ४६ । ६६ और भभोग १७१४ है । और उस दिन tदनमान ३०६० राश्रिमान २९१० और उसके समीप गुनुवार को ४६११८ मिश्रमान है । यहाँ वारादि साधनेष्टकाल ४।१३।६६ से वारादि पैकि १४९१८ आगे है। इसलिये बारादि पंक्ति में आपदि साचनेषु काल घटया तो शेष = ( १४९१८ )-(४१३।१९ )= १३२३ वारादि ऋण चालन हुआ । इख अरुण वाहन १।३२३ से 'किस्थ सूर्य की स्पष्टा गति ६९० को शुणन करने चयदयघण्वमिनिट को घटा कर जो शेष बचे उसको ५ से गुणा करके २ का भाग देने से लक्ष घटीपल सावन इष्टकाल होता है । मध्याह्नोत्तर निशीथ ( आधीरात ) के भीतर का जन्म हो तो जन्मकालीनं हौरादि समय को ५ से गुणा करके २ का भाग देने पर जो लब्ध घटीपल आवे उसको दिनची में जोड़ देने से घुटादिक सावनेष्टकाल की जाती है। निशीथ ( आधीरात ) के बाद सुप्रैबिम्बाघदय के भीतर का इष्टष्टयादि आतना हो तो जन्मसमय के वण्यमिनिट का पूर्ववत् पटीपल बनाके उस दिनमान और रात्रिंबल के मोम की ( अथवा दिनाघटी तथा ३० घटी के योग मैं ) जोड़ देने से पूर्वसूर्यबिम्बानदय अग्भसमय से न स्तवन काल शैला है। सोदाहरणसटिप्पणहिन्दी टीका सहितः ।। लिये न्यास- गुणनफल = ( १ । ३ २ ३ ) { ३१ । १ ) = १९ । १९४८ ५ १७७ = ९ २ १ ३° } १७ हुआ । इसमें ६ ७ का भाग दिया तो न्वल्पार्तर से ११ ३० ३१ अंशादि श्रण फल हुआ । इसको पंक्विस्थ सूर्य के श्यादि ११:३२११८३१ में बसाया तो तोस्कालिक स्पष्टrफै-- = ११ । २२° २८’। ३१-१°३०१३१} = ११ । ३०° १८' : ० हुआ । ऐसे ही भौमादि ग्रहों का भी साधन करना चाहिये । १३ प.६गुरौनि.मा.१६४ दि.मा३०६४ जन्मेषु ४१३१६ कालिकस्पष्टग्रहाः सुचेमं.वु-|वू.!छ. श. रा. के. }सु. चं. मं.ङ. ६. ४. श. रा. के . |११| |१११९९१|१० ९ ३ १११११११११०६ ९ - ३ २२ २३३६२७ ९ ७ २५२१ १९१४ १५ १६ १७ ४ २ २९३३ ||९|२३२९३ ९ १०३८३४ १८ १ ६ ८१६३२११, १ ४३४३ |३१ |३ १६ ८ ३१३७९६९६ ०४९ ३१३१ ३८४४४१२२३२ ६ ९ ४९८२८६१७ ६ \ ३ \ ३ ६९८३८४१८२८व१७ ९३३ ० १७३७९ |७ |४३|११|११| |२ |१० |१७३७९ ७ |१३११११ R८ --६३३ जन्मतनम् २२१|४११० १३ खु. सं. " ११छ. १० रा. ८ चे. ८ कन्तिाधनम की चारणो । परमा कम्ति २३°२७ । मेषदि छं राशियों में खायनाकें हो तो उत्तरा क्रान्ति अन्यथा दक्षिणा ऋग्ति होती है। मीण १०| १ | ३ | ४| १७८९ १११११११४१४१९१६११८१९२०२१२ स+३/४२०६२७२८२४३० अंश ०/० | २१ | १ | १ || २३ ३ | ३ | ४ | ४ | ५ | १ | १९ | १ | ६ ७|७७ मेष ० | ९१९१०|१९११|१२| कन्य १ तुळ ६ ||BB३०६३४७३०९१४११४६१०३४४३|६१|१३|४२३२|१४१४४३|६४|१६|४८|३१३२१३ मीन ११ || १ १११११११११११३३१४९४११११६१६|खि ४ १६|१६|१|१७|१५१९९८ !|१४|११११ K११०१८१९१९१९१९ ६ ३८६१४८१०३१११११३१६११०३०४८२६| ३८११|१३|२०४४| ७ |१६३१४६१ |१९२९|४३|१६| ९ विक |३७१७३६ ३ २०३३८२४६५३-१६ २ १११३१२३६३ १३||४०१६६३|३२१११३°४९|४७१४|२३२४ कुंभ १० मिथुम • ||१३००||१२१|१९१|१२१३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३ कर्क ३

श्र ८ सार ९ अंश ०२९२८१७३61२५३४३३२३२ २०१९१०११६११४१३१|१११०८७| |,| सारणी द्वारा स्पष्ट क्रान्ति जानने की रोति-- सायन सुर्य के राशि और अंश के सामने वाले कोष्ठ में जो अंशादि क्रान्ति हो उ५को अलग स्थापन करे। फिर सायन । स” के शेष कला विकला गतांश और ऐयला सम्बन्धी क्रान्तियों।के अन्तर से गुणा करके ६० का आग देने जो कलादि पर क्रान्ति आवे उसको अलग स्थापित क्रन्स्यंशा में यथास्थान जोड़ देवे तो सायन धुएँ की स्पष्ट। क्रान्ति होती है । उदाहरण-साथन रवि ०।१३°n२९।२९ है तो ० राशि १२° के सामने की अंशादिशान्ति ४°१४४।४१’ हुई । फिर खयन रवि के का विकला २९।२९४ को १२° और १३° सम्बन्धि क्रान्तियों के अन्तर से गुणकरके ६० का भाग दिया तो _(२९/२९) [ (९°८।१०")-(४°४०'४१")] = (२९९) (०°२३° २१")_११।३९२४६ अब्धि =०१२ (स्वरूपान्तर से) ६ • मिी । इस को १३° के सामने की अंशादि क्रान्ति में जोड़ दिया तो स्पष्ट क्रान्ति=४°।४४।४५"+०१२” a g°।४४।१७५ है । खायनरवि मेष राशि में है अतः यह ४°१४४/५७/ / खतरा क्रान्ति हुई । | । आणि अशा । क्रन्यैश और अक्षांश घर से पलादि वर जानने की खारणं |६||८२||१९९६१२०३३२२२३२ २२२२:०२२३३३३३२६ व•९|१९९१-| १ | १ | १ | १ | १ | १ | ३ | २ | २ | २ | २ | ३ | १ | ३ | ३ | ३ | ४ | ४ ४ ४ । ४ j१ | १ | १६ |९| ६ | ६ | ६ | ६ |७ ३ १|३६|४६|६६| ७ |१८३०|४१|१२ ३ ११२७.८३० २ ११२७४०|७३| ६ १९३३|४६| १ |१६३०|५८|०|१६ ३२| २ | २ | ३ | ३ | ३ | ४| ४ | ५ |९|९| ६ | ६ | ६ | ७ | ८ | % ८ ९ ९ १०|११|११|११|१३|१|१३|१३|१४१४ ६ |३७|४९|१०|३२|१३|६३७|१९३२|४४| ७ |३०|६३|१|४१| १ ३०६४|२०|४१|१२|३८|१ |३३|१३०||३०| १ |३२| ३ ॥ ३ ४ | ४ | १ | ६ | ६ |६ || ८|८|९|९|१०|१०|१११२|१२|१३१४|१४१९१५|१६|१|१८१८१९|०२१२१ ९ |४१|१३|४७|१८|२०|३३|१६२९| ३ |३६|११|४५२०|९६३२| ८ |४१|२२||६|१८|१८|३९२०| ३ |४६|१|४६||४९| ४ ४ | १ | ३ | ७| ७} ८ || १०|११|१२| ३१३|१४१९|१६१७|१७१८|१९२०३१२२२३|२४२५३६२७ ८|| १३५६|३०२१| ५ |४|३१|११|१६|४४|R|६|१|४८|३९२३|११|० |२०|४१|३३|२१|१८१३८|५| ३ | १ २४७ १६ ७| ४| ९ |१५|११|१२|१३|१४१६१६१७|१८|१९|२०२१|१२३२४|२७२६|५७२१०३१३०|३ ३ ३६३६ |१६|९| ३ |५६|४४|१६|३९३३ |२२|१९|१७१६|१५||१६|१७१९२३|२७३३|४-|४८|६७| « २०३४|४९| ७ २६ ६ ७ ८ ९ १०|११|२|१३१०५६|१७१८१९९०|२१|२३२४| ६|२६|१४२९३०३२|३३|३४|३६|३७३९|४०|४२|४३ |२०२४२८३२|३६|२|५८|६४१८ १६|२१|३४|४४१९७|२०३|४९| १ २ ३ १२ २४|४७|१२|१९८|b९|१३|४७. ७ ८ ९|११|१३|१३|१४|१६|१७ ०|२१||३४|२९| २४| ९|३१|३२|३४३९|३५|३९|४०|४२|४४|४६| b G|४९|११ |२४|३८|१३ ८ |२४४०|१७१९|३३|९१|११३१|६२|१४|३ १ |३६|५२|२०|४९|२० |२६| १ |३९१८/० |४२|३७|१९|११ ८ १११२१४| ११७१|३०|+१ | ३ | ४|२६|७|३९३०|३२|३५३ |३७|३६४४|४२|२४६६|४८|१०|६२|५४|९|६८| २८|८३|१|४११३९| ७ |३६| ६ |३१|६ ३८१०४४१९९६१३|१२|६२|३१|१८| ४ |५५|४१|३२| ६२३ |५|२८|६ ९|१११|१४१६|१४|१९|०|२२|२४|२२३७||३१|३३|६४|३ ३८४०|४२|४४|४६|४७|५०|२|१४|१६|१९| ३|६३|६५ ३२|८|४६| ३० |६९||१७३८१९| २ |५१३०१ | ३ |६१|४१|३०||३१ १७|१२| १||२६|४८ २ |१९|४०| १ १०|१२|१४१६|१|G२१२३३३३३३३३३४३६३८|४८|४२|४६|४७|४६|वे१३६६६|६३|६||०|७३ १० ३६|१४१२|||३८|२६२०|१२| - ९|६४|६०|४|४८|४९|२१|६५| ६ ९ २०३३४०| | ६|४०|१५|४६|१८|६१|३६ २४५ | ९ - २ ४|२६|१९|६१|६४६७|६९|Q•|७१|७८| १ ११ |४३|४०३९|ड८३८३९|४१|४३|४७२१|१०४ १३३३|३ |४७३ | |+} ० २ ४|५०|१९२१|२२| ४ |५६३१९ ५ | १ ८ १३ न्यैश और अक्षांश पर से पलादि चर जानने की सारणी ६ ७ ८ ९ १०११|९३|१३|१४१६१६१७१८१९|२०१| २२| २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३ ३ ३ ३४/ ३४/ ३६ |१३/१६ १८|२०|२३|२९३2३०|३३|३१|३७|४०४३|४१|४८|१०| १३/ १३१५/ ११/ ६४/ ६७ ०० | ६ ७ ८२ ४६| ८९/ १३/ ९६ १३ |५४१९'३६|१७२०|४३| ८|३०८२८|२९|१|३६|१|६१|३१|१४ ०४८ है | ३३३१.३ ३६ ४४| १ | ११| १ २ ३४ |१६१० १०/१२२६२३°३३३९३८४०|४३|४६४७६ २९४| १७| ६ ६३/ ६३/ ६/ ७/ ६/ ७/ ८२/ ८९/ ८९/ १३/ ९६१००१०४| १४| १३३ ३३४१२|४७३३e३८|१८|१९|४३२८१३/ ४|११|४२| ४१ / ४४ | ४६| ११ | १०| ११) २६| ४- १०३८ / ११| ४ |३२२३ |१६|१४ २३२४म६१|३२|३° ३८४१|४४४६|४|६२||६९६२६९ ६ ८ ७१ ९ ७८ ८६ ८१ ८८|९२| ९६|१००१०४१०८|११२| १९ ८|६१ ३५१७१२१||२८|१८१०||६९१७१३|६८|२|९१%}३१४७| २८ १४/ २९/ १९३९ ३१२ ८ २१ १७२० ६३|२६२८१३४३७|४०४४|४७|१०३६६१९९६ ३ ६६| ६९ ७३ ६ ८० ८४८७ ९१| ९९ ९९६|१०३|१०|११३|१११|१३० १६९६, ६ ३|६६|३७१|१८१९४| ६||२८३६५४|१४३२९९ | १०२५१|४२| ३| १८१३१३१३३४४|१९ |१४२१|२४|२७|३s३१३|४०|४३४६|९०|६३|४७६०६३|६७| ५० ७४| ७८ ८१/ ८१/ ८९| ९३ ९७१०१|१०१११६११४११९१२३|१२८| १७ |३|३१३८|४६|१४१६|२९|७३|१६|१८१८|२६१४|४२१७|३४|१४| १४४| b७.३३_|४०| ११ |१९१२१०२९३२|३६३९४|४६|४९६३||६०६४६७|७१| ७१ ७९ ८३ ८७| ११| ९९९६१०३|१०८|११२|११७|१२१|१३६१३११३६ १८ ३४६२१ess५०१३३६|१|३८१२| १२६१४६१२८ २६ |१६|११| ९) ११) १८ ९४१ ७ |३१|९ ५९|३३३३३३ हैं, १९ ३५१| २४| ४१ ३ २९ २ ४०२४/ ११/ १३/ १८/ ३१/ १२] |२१|२१ २९३३|३६|१४||४८|५२|१९|६३६७|७६|८० ८४| ८४| ९३ ९७|१०|१०६|११३|११६|१६१|१३६१३१|१३६|१४२|१४|१६३ R० ११३८ १९ ३/४८ ४|२२|१३४१८|६४|१|१९| ८|१९|३४| १२ ११|४२|१६| १२|३१| २ | ११६/ ३८४३ | १७| २el |२३|२५ ३०३४३८४०६६|१४६९६३६७७१|७१|८०|८४| ८९९३९८१०३|१००|११२११७|१२२|१२|१३|१३८१४१६०११|१६१ ७ १ १८११|४९||४८|२१|११| २१ |५७२५|१९|४४| १३४६ २४ ३/ ४७ ४६| ९१ ३ २१_४७ ११ १३६९ ६६ २४१८३३६४०|gy||६३||६|६६|७|७६७९|८४८९| ९३ |१०३१०८११३११८१२४|१२९३४१४२|१४६१९३१६८१६४१७० १०१६ ३३९७१|११३१६३१|४०९३२|१०२६५९३४१३| १०४२| ३४३६|३१४८|३|३६१४| ३० १४३८२०४० |२१|२१३४३८४२|४|१६|१६६०६१६|१४|७|८४८८|९३| १०१०३१०१११४११४१२४१३०१३६१४२१४७११३|१६०|१६६|१७३|१७९ ३४१२१|३३|६६२०|४६१४|४११९१||१६| ३/६२/०६/ ४१ ४४| १७१०९॥ २४ |४९६०.६२/३६| १ ३९१८०|४४३१२११८११११११२४| ३८ १० १०/ ४९| ११ | १६| १ २ १७ १२ ३७ ९ ४६| ३९१४| २६३१ ३१४०||४१४|६|३३६८७३|८३||इव१०३|१०|११४११९१२११३१३६|१४२|१४८|११६१६१|१६८१९१८१|१८८ सोदाहरणसटिप्पणहिन्दी टीक खहितः । यदि काशी से अन्यत्र का तिथि-नकूत्र-योगों का मान, दिनमान इष्ट काल और स्पष्टप्रह जानना हो तो देशान्तरसारणी, क्रान्तिसारणी और चरखारणों की सहायता से चाहे जहाँ का तिथ्यादि का मान निकाळा जा सकता है। यदि कलकत्ते का तिथ्यादिमानानयन जानता है तो देशान्तर सार से कळकर्ते का अक्षांश २२°३६' और काशी से पूर्व पलात्मक ६६० देशान्तर जान कर अरू रख लिया। फिर सायनसूर्ये ०१२°१२९/२९ । पर से क्रान्तिसारणी की सहायदः से स्पष्ट उतरा क्रान्ति का ४°१४५६७ का ज्ञान कर लिया। अब इस उत्तरा क्रांन्ति 8°1४४।१७। और अक्षांश २२°n३६ पर से चरसरणी द्वारा चर का शल करने के लिये पहुठे २२° अक्षांश में ४° क्रांत्यंश का चर = १६११ , ६° फ्रांत्यंश का चर २= १०१५ ६० कला में अन्तर = ५१ ४ इल पर त (स्वल्पान्तर से) ४६कला नन्ति में नैराशक गणित द्वारा अन्तर = ३३ इसको ४° क्रान्ति के चर में जोड़ देने से २२° अक्षांश में ४°४१' क्रान्ति को चर = १९१४ 9 । २३° अक्षांश में ४° क्रांस्यं को घर = १७० १° क्रांत्यंश का चर = १११७ ६० कला में अन्तर = ४१७ इस पर से पूर्ववत् त्रैराशिक द्वारा ४६९ शान्ति में अन्तर= ३।१३ इसको ४° ¥न्ति में जोड़ने से २३° अक्षांश में ४°४५' नान्ति कुछ चर = २०११ उसके बाद् २३° अक्षांश में चर = १ ११४ २३° अक्षांश में चर= २०१७ ६ २ कला में अन्तर = १३ फिर नैशशिक से ३६° अक्षांश में अन्तर = ०/३७ ( स्वरूपान्तर से ) इसका २३° अक्षांश के चर में जोड़ देने से कलकत्ते में उस दिन का स्पष्ट बर ८: eद्५७ • इतरा क्रान्ति है अतः १६ घटी में चर पल ११११ कां जोड़ देने से डमदिन कझकसे का दिनार्ध = १६१९५१ उस दिन पञ्चाङ्ग से काशीका दिनर्ध= १६ २९० दोनों का अन्तर = ०६९ काशी के दिनार्ध से कळकत्ते का दिनहुँ छोटा है इस लिये यह अन्तर कर्ण हुआ । यदि कलत्रों का दिनहुँ बड़ा होता तो यहां अन्तर धन आता और कलकत्ता काश से पूर्व है इसलिये देशान्तर पल ६६० धन हुआ । काशी से पश्चिम देशों का देशान्तर ऋण होता है । अब पञ्चाङ्गस्थ तिथ्याभिमान में संस्कार करने से कलकत्ते का तिथ्यादि न-- पद्माङ्गस्थ तिथि-४६ ।४४।० १ नक्षत्र= २ ५।१४।० | योग= ७।१८१० दिनद्धन्तरः = - ०९।९ १९ ०९९ देशान्तर = + ०।१६१० = + ० ।६१। ९ = + ०९९० कलकत्तेकीतिथि८४६ ३३।६१ = २६।३६१ ८७१६१ यहू ६१ विपक के स्थान में १ पळ मान लिया तो कळकर्ते में पञ्चमी=४६।३४ अनुराधानक्षत्र = २६४ व्यतिपात योग = ८८ हुआ । अन्यदेशीय स्पष्टप्रह बनाने की रीति-- यदि कशी से अन्यत्र का प्रहस्qष्ट बनाना हो तो काशी के घन ऋण वादि चलन में देशान्तर और चरान्त का विपरीत संस्कार करने से तत्तद्देशीय धन ऋण चाछन होता है। उस पर से उपर्युक्त विधि से तत्तद्दे . शय स्पष्ट ग्रह बन जाता है। भयात-भभोगानयन --- गतसँघटिका खाङ्ग६०शुद्धा स्वेष्टघटीयुता । भयातं स्याद्भोगस्तु निजसैंघटिकायुता ॥ ५ ॥ चेद्यातधीषी स्वेष्टात्पूर्वमेव समष्यते । । तदेष्टकालात्सा शोध्याऽवशिष्टं भगतं भवेत् ॥ ६ ॥ गतभी क्षयसं चेत्कार्यंतझघडी तदा । तपूर्व‘घटीयुक्ता शेषं पूर्ववदाचरेत् ॥ एवं भद्धौं भयातदि विज्ञेयं स्वधिया बुधैः ॥ ७॥ यदि गतनक्षत्र का अन्त पूवंति में होता हो तो गतनक्षत्र के मान (घटी-पल ) को ६० घटी में घटा कर जो शेष बचे उसमें इष्टकाल जोड़ देने से भयात होता है। और उसी शेष में वर्तमान नक्षत्र के घटी-पळ को जोड देने से भभोग हो जाता है। लोदाहरणसटिप्पणहिन्दी टोका सहितः । यदि गतन क्षेत्र का अन्त उसीदिन इष्टकाल के पूव होता हो तो गतन क्षत्र के घट पल को ही इष्टकर में घट देने से शेष भान होजाता है । यहाँ भ अभंग बनाने की झियः पूर्ववन ही है । यदि गतनक्षत्र की हानि हुई हो तो क्षयनक्षत्र के पूर्वनक्षत्र और क्षय- नक्षत्र इनदोनों के घटीपळ को जोड़ के जितना घटिकादि हो उसको गती मान मन के उस पर से पूर्वत्रिधिके अनुन भात-भभोरा वनान चाहिये } एवं यदि वर्तमान नक्षत्र की वृद्धि हुई हो और तीसरे दिन नक्षत्रान्त से पूर्वका इष्टकाळ हो तो प्रथमविधि के लुलर भयात-भभोग वना के दोरों में ६० घटी जोड़ देने से वास्तविक भग्रत-भभोग होता है । ५-७ ।। उदाहरण गत नक्षत्र विशाखा के घटी पल २४१० को ६० घटी में बाघ तो ६२०-(३८५०} = ३२१० शेष बट्यादि हुआ । इस ३२० में सावनेष्टकाल १३१६६ को जोड़ दिया तो ३२ । ५ + ( १३ १६ ¢ ) = ४१६६ भयात हुआ । कर उस शेष ३२१२ में अनुध के घटो पल ३ ९/१४ के जोड़ दियः तो । ३२ । ९ + ( २६११४ )= १७ । १४ भभोग हो गया । सं० १९९१ शुद्धवैशाखकृष्ण १० सोमवार श्रवण १४३ को १० १ ४८ इष्ट क पर जन्म है तो यह इष्ट काल से पूर्वी गतनक्षत्र श्रवण की समाप्ति होती है। अतः इष्टकाछ १० । ४८ में श्रवण के घठी पळ १४३ को घटा दिया तो धनिष्ठा का ६६ भयात होगया । और पुर्वविधि से धनिष्ठा का भभोग ६६।२ ४ हुआ । शुद्ध वैशाखबदी १२ बुधवार पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र ६६६३ के दिन सूर्योदय से २३ । ३६ इष्टकाळ पर जन्म है तो यह पूर्वदिन शततारानक्षत्र की होन है । इस लिये उस से पूर्व धनिष्ठा नक्षत्र के मान २/७ को गतन्नक्षत्र शतभिष के मान १६ । ७ में जोड़ कर ६६६७ +(२१०) = ९९४ मत नक्षत्र का मान कल्पना करके पूर्वोदित विधि के अनुसार पूर्वी भाद्रपदा का भयात १४ । ३३ और मभोग ९ ४ । ४९ हुआ । अधिक वैशाख सुदी ४ चतुर्थ भसवार को १९ इष्टकाल पर जन्म है । उस दिन कृत्तिका नक्षत्र का १८३ वटीपल पर अन्त है तो यहाँ नक्षत्र वृद्धि के कारण दूसरे पूर्वदिन ( द्वितीया रविवार ) को रात्रिमें ९८१६ वट्यादि पर भरणी का अन्त है । अतः भरण्यरत ६८१६ को ६०में बटाया ते १४१ शेष हुआ । इसमें इष्टकाल १६ और ६० जोड़ दिया तो कृत्तिका का भयात ११४५+ ६०+१६ = ६२५० हुआ। उसी शेष १४५ में कृत्तिकान्त १४२ घटीपल और ६० को जोड़ दिया तो १४६ +३०+१४२ =६ १।२७ भभोग हुआ । एवं सर्वत्र पूर्वापर वूिन के जन्मपत्रदीपक चन्द्रमा केपटुकरने की रीति भयातं भभोगणैतं तद्तलैर्युतं खाडिध४०निनं विभक्तं क्रमेण २ । फलं भगपूर्वः शशी तद्वतिः खघ्रखrजैभनगाश्विनो भागभता॥८॥ घलसक भयत में पळसक भभोग का आग देने पर जो लठ्धि आवे श्लको सनक्षत्र की संख्य में जोड़ देना । फिर योग फळ को ४० से गुण करके ३ से भाग देने पर लब्धि अंशादि स्पष्ट चन्द्रमा हता है। यहाँ अंश संख्यामें ३१ का भाग देकर लब्धि राशि और शेष अंश बना लेने पर राश्यदि अन्द्रमा स्पष्ट हो जाता है। और २८८०:०० में परमक भभोग का भाग देने से ठञ्चिध चन्द्रमा की स्पष्टा गति होती है । ८ । उदाहरण २७१६ अडुराधा नक्षत्रके भयावह ४६९६ और अभोगह ६७१४को ६०से गुणकर दिया तो पळभरमक सात २ ७६६ ऑौर ३४३४ भभोग हुआ । इस पलामक भऑठ ३७६६ में पर्यटभक ३४३४ भभोग का भाग दिया तो रुधि = ०४८८|११ ३४३४ आई । इसमें गतनक्षत्र विशा की संख्या १६को जोड़ दिया तो योग१६४८।८।११ हुआ । इसको ४० से गुणा करके ३ से भाग दिया तो ( १६४८।८।११ )४९ _६७२१९२७1३७ =२२४ ४° । १। ४९किञ्च अंशादि

= = = = स्पष्ट चन्द्रमा हुआ । यहाँ प्रथम स्थान २२४ में ३२ का भाग देने ले लब्धि ७ राशि और शेष १४ अंश हुए। अत पुव ७१४° । १ । ४९ ” राश्यादि स्पष्ट चत्रमय हुआ । अझ्झलाख अस्सी हजार २८८०००० में पलामक भभोग ३४३४ से भाग दिया तो लछिध = ३८८००००=८३८/ ४० / चन्द्रमा की स्पष्ट गति हुई । ३४३४ चन्द्रमा स्पष्ट करनेकी दूसरी रीति भास्रिभुक्तघटी खघ्राश्विनी भान्निघटीहुना । छत्रं कलावं चन्द्रस्य गतराश्यादिना युतम् ॥ फुटः स चन्द्रो विज्ञेयो गतिः पूर्वोदिता मता ॥ ९ ॥ नक्षत्रचरणभुक्तघटी को २००से गुणा करके चरणभोगघटी चे भाग देने पर जो छब्धि कळादि प्राप्त हो उस को चन्द्रमा की गतराशिसंख्या और वर्जेसन चर राशि के गतनवांशशादि के योग में जोड़ देने से स्पष्ट राश्यादि चन्द्रमा हो है । ९ । लोहरणलटेपणहिन्दी टीका सहितः । १ उदाहरण- भयात में ४ का भाग दिया तो वरुणभोग = १७१४ १५१८।३ हुआ त्रिगुणितचरजभोग को भयातघर्व में घटाया तो नक्षत्र घरणका भुक्तं वक्ष्यादि =४१। १९-३ (१४।१८१३०)= २५९।३० हुआ । चरणभुकवी को २०० से गुण के चरणघटी से भाग दिया तो लब्धि कलादि = (२।११३७) २००९ १४१८।३० १० ७७० x २०० ११११० =२११४०० = ४१९१४९" आई । ११९१ और १४१ शेष हुँघा इख को त्याग दिया । लब्ध कळादि को चन्द्रमा की गत राशि संख्या ७ और वर्तमान चन्द्रराशि वृद्धिक के गतन कॅशसंख्या ४ के अंशावि १३° ।२० ! के योग = ७१३°१२ ' में जोड़ दिया तो राधयदि स्पष्टचन्द्रम =७१३° २०' + ४१४ = ७१४°११४९/ हो गया । // पलभ-चरखण्डशन-- दिनार्धकळेऽजनुखास्थिते या भा सायनाकें पकभा भवेत्स्रा । दिग्भिर्गजैर्दिग्गुणितैर्गुणं गैस्त्रिष्ठ इताः स्युश्चरखण्डकानेि ॥ १० ॥ जब सध्याह्नकाछ में सायन यूएँ मेषादि में हो उस दिन मध्याह्न कालमें १२ अंगुल शंकु की राय को पलभा। कहते है। पलभा को ३ स्थानं मैं रक्षा के क्रमसे १०, ८, १९ से गुण कर देने पर मेषादि राशियों के ३ चरखण्ड होते हैं ॥ । १० ।। आजमगढ़ की पळभा १।६१ को ३ स्थानों में ९११, १९१६ ९९१ रख ६८{ ३० के क्रमसे १०, ८,१°से गुणा कर दिया तो गुणन फळ १८३०, ४६।४८, हुए । सर्वत्र ‘अर्धाधिके रूपं ग्राह्यामधलपे त्याज्यम्’ इस नियम के अनुसार दूसरे अंको को त्याग दिया तो क्रमसे ६८४६।१९ मेषादि के चरखण्ड हो गये । यहाँ जो पळभाज्ञान प्रकार दिया है उस से सर्वत्र की पळभा का ज्ञान हो जाना सुलभ नहीं है । इख कठिनाई को दूर करने के अभिप्राय से कतिपय देशों अब के अक्षांश और उस पर से पलभाज्ञान की सारणी नीचे दी जाती है-३२ जनमपश्रीपकः काशी से पूर्व देशों के अक्षांशादि देशनाम अक्षांश देशान्तरघ७ । शगम अझ देशान्तरघ७ अफयव (बर्मा) २९१० ११४०le | गुरखा (नेपाल३७११ ०।११० अगरतला (बंगाल) २३५१० १३३९० । गोपालपुर (अज़ख१९१६ ११९३० अंगलसैट (बिहूt) २०४८ ०|२०१० { गोरखपुर (यू०पी) २६४ ०१३ ३२० अमरपुर (बर्मा) २१६५ २११११० गोलघाट (आसाम२६३० ११४९le नद राज्य २६९ ७२८५२० महाटी (आसाम) २६११ ११२७e अलन (बर्मा) ३२११ २ १३० चन्दपुर (ल) २३॥१३ १।१६४० अलीगंज इथुन ३६६९ ०/१४१० चन्दर नगर (बंब ()३२॥६२ ०६४।१० अलीपुर (बंगाल२२३२ १६४० । चेरापुंजी (असम) २६१७ १२७९० आजमगढ़ (यू०पी०) ३६० ० २३° | ) २२३३ ११८० चैवास (बिहार आरा ( बिहार ) २१३४ १७१० | छतरपुर (मद्रास) १९२१ ०१ २११० छपर ३१४७ अराकन (चम) २०१० ३४४४० ॥ (बिहार) ०१७e आचE { इN ) २२० २१३०।१० 1 छयशव (आसाम) २६॥ १२३० छोटानागपुर (बिहार२३० ०१३०० आसनस्लोल (बंगळ२३४३ e४०।१० जगन्नाथगंज (बंगल२४I३९ १ ८२० आसम २६२ १४०१० जगन्नाथपुरी बिहार) १९४६ ०३ee इंग्लिशबजारबंगाल३२० •}९११९२ जनकर छगड़े ३३४३ ०१३१० २३९ डीसा जमापुर बिहार२६१९ ११०० ३१२१ s३४० ऐजल्ला (आसाम) ३३४४ १४१० ॥ जयपुर (बिहार२०११ ०३३।६० कछार (बिहार४६४ ॥ जलपाईगुरी (२६३२ ०१७ ) ३१३० ०॥ बंगाल) कटक (बिहार) २०२८ ०३et० टनगर (पिहर२३१९ ३ ३१४ टेकरी क्षक २३ ३१ ०१६१० ३४४८ ०१६३० कलिङ्गपट्टम् (मद्रास) १८२० s११४१ ह्लष्टनगंज (बिहार२४२ &। १e काठ्मण्डू (नेपr८) ३७४२ ०२२॥e | डिवरू(आसाम) २७२९ १६१० कृष्णगडू (बंगाल३३।२४ ११३० | डांसपुर (आसाम२९९१ १४८० कुद २९६ ०६१ डुमरांव २१३२ ०१/० कुमल्ला (बंगाल) ॥ २३२६ १२३।२० । डुमरिया इस्टेट ३२९ १६६ कूचबिहार (बंगा) १६३० १ ४६० | ढाका (बंगाल) २३४३ ११८ कोचीन (बर्मा) १६१० २६० दमदम (बंगाल) २ २३८ १४४० खण्डधारा (बिहार) २०१६ ०२२।० | दरभङ्गा (बिहार२१० १३०० खझरस्टेट (बिहार३१३७ ०२:३० | दार्जिलिङ (बंगाल) २५३ ०॥१२४० खुरदा (बिहार) २०११ ०३६४० | दिनाजपुर ६९७ ०१९३० गजास (मद्रास) ११३२ ०२१० | दुमका (बिहार) २४३० ०४३४० २४४९ e}३ee देवगढ़ (बिहार२१३२ १५४९ मरवा (बिहार) २४१० | देवगढ़ (बिहार) २४३० २३७३० s} ८४० गजीपुर (यू०पी.) १६३४ ० ४० | धवलागिरि (नेपाल) ३९११ el२०१० चन्दी (बंगाल) ३३।६० १ ७४० | घनफुट (नप) ३६.६६ ०४३।२३९ वर्पाद्य (असम३६११ ११६१० | धुबरी (आखम) २६२ ११०० नदिया (बंशल२३ २४ २११२० २8}६१ १३३९ लोदाहरणटिप्पणहि टीका सहितः । १३ देशगम अझ शत्रवः देशनास अक्षांश = भक्तयः नरायमगंज (बंबईच्} २३1३७ १११११० मोकाम २६६४ २९१२ नीलगिरिराज्यबिहार)२१२७ e३७६३ द ऑलमन ? वसt । १६३९ २२६le नेवपुर नेपाल) २०४६ २१२२ जून १ वर्मा ६४५ २ १४० नेपालराज्यहिमालय१५६९ ० ' ११ ४० रङ्गपुर (बङ्गाल) २६४९ १ २ ३ पटल (उड़ीसा) १०५२ ०१११११० रोची (बिहार) २३।२३ ०१२ २३ १४९ पक्षक: {इल) २४४१ २३ १e राजमहल ३२।२ ४८३७ पद्धस्फ ३३३ है' ५९४२ रमयुर (बह?र. २१६ २ १३ १४५ २३।९३ ११३॥e शीमंज (बङ्गल) है ३१३१ १४११० पुर्निय (बिहार) ३५४९ ०४६:e लखंड्य २ २११ = ९ १ ३ १३२० पे (बर्मा) १५ १६ ११९२ लखीमपुर (असम) ३७५१४ १।६१३१ प्रोस (बर्मा) १८४७ २: २६३२ ल! ’वम्) २२१६८ १९ १४ः फरीदपुर (बङ्गाल) २३।३६ १ ७४e लोहरदग्ग(बिद्} ३३१२६ e !४३ ३* इकसर (बिटुर) ३०.३४ ०१०१० ओक (शयन) १ ४२२ १६ घरसन (बङ्गळे३३१६ ०४८२ वरः (सःसमस) २६३ ११२०३३७ बरहमपुर (नद्र€ १९१४ ०१८३ व?एकपुर (बङ्गळ२३५३ ०१६४२ शलिय? { यू९ = २४३ -१३० वराहमि १३१० ०१६५१ श्रदडर (बहुल२४६ ०६१।० द!छुद्ध (बङ्गाल) . ३३१४ २१४१३१० वीपद (बिहूवर २१।६६ २३७४७ बीरगंज () २११२९ ११३१ बिहार २९११ १२१e बालासोर (बिहार) २११३ २३ ३ बेतिय (बिहर) २३३४८ ci१३१९ वकीपुर (बिहार. ३६४० २३२१० बेलथ धाम ०३१२ वसी (बिहार३४४२ ०५३९४e कियाढ ३ २१ यैस्लािळ (ब झल २३॥g३ ११४० । शान्तिपुर (बङ्गाळ) २३१७ ०१४॥३० बगर (बहुत) ३४११ १ ४२० याम १४१० २१०१० भटगौन (नेपाल२७४५ ०२३४० ? विवसमर (आसाम)२६८९ १६६० भ¥ ३२१ ०॥ ६६५ सविया (आसाम) २७६० २५ ७te भागलपुर (बिहार) २११९ ०४० १० भe (खैर्मा) सम्बलपुर (बिहार२१२८ ०। ९० २४१६ २ १३e!० सरगुज २३ ।१ २६०० भूटान (हिमालय) २७३२ १३०० समस्तीपुर २१३६ st१२० भैरवबाजार (बर्कल) ३४२ ११९६० ससरा (बिहार) २४६७ ०|१६१० सदाब २६११ ०१९३० सिल्ट (आसाम) २४६३ ११३९१० महाराष्ट्र (बङ्गाळ) ३३१४ ११२।३० { मधुवनी (बिहार) ! (असम) २४१० सिलहट (आसाम) २६३२ १४०० २६६१ ०३१.१० सिलचर १get०७ मनीपुरराज्य(आसाम२४r४४ १४९४० माडखे (बर्मा) ३० २११०] २२११ ०३३ सिंगापुर मानेचक २१२ ३३२ २६७ ०७१३० सीतामढी माध्व्ह (बाल) ३६२ ०६१Re २६।३° ०॥३४० मुर्शिदाबाद २ ४११ ०१६३।१० सुदरगढ़ (बिहार) २२६ ०}F=} मुंगेर (बिहार) २५॥२३ १३६० } २२ २८ °A१०३० भुजपुर(बिहार३६॥ ०६४४ सोनपुर २१९ ११७१० मेमिनीपुर २३ २४ २ इज़रीब(बिहार)२३।६९ ०३gle मैमनसिंह (बळ ११४l० } हवीगंज (आसाम) ३४२४ १२६० २४|४६ २६४ ०१६४० ॐ वर्मा) ३० १४६।१० २ ज० ई० १४ जम्मपत्रदीपकः कशी से पश्चिम देशों के अक्षांश्च दैशान्तर देशनाम अक्षाश ३ द्वारव• देवनाम अक्षांश देशान्तरबe अकालकोट ( बंबई ) १७३१ १ ३० | इलोरा (हैदराबाद)२०१२ ३।१७३० अकोल ( बवर ) २०४२ २१२९|१० उज्जैन (ग्वालियर) २३९ १। ९५३ ) उन्नाव (यू० पी० १ २६।२० ०१७१० उटमण्ड(सद्य) ११२४ १ ३१२० अजमेर (राजपुतान) २६२७ १२३० उदयपुर (राजपुतान) १४३९ २ १३३९ अजयगढ़(सी०आई) ३g६३ २७१० ! उमरकोट ( बम्बई) २१२२ ३११३१२ अ २३४ २१ ७२० अटक ( पक्षब ) ३३।१३ १४७१ ? उसका ( यू० पी० ) २७१४ ० ३११० अनन्तपुर ( मैसूर ) १४१२ ११७१० ? पूछा ( यू० पी० ) १७३६ e४२६२७ अनुपुर (लक) ८३३ १२६१९ \ औरंगाबाद १९९३ ११७६० अन्नूशहर ३४२१ ०४६४० कच्छ ( स्टेट) ३३५३२ २।२८० अमरावती (बरर ) २०६६ ०|१३१० कटनी ( सी० पी०) २३४७ १२११३० अमरेली ( बड़ोदा ) २१३६ ११७३९ ! कपूरथलो () ३१२३ ११६० अमरोह (यू०पी०) २८७४ ॥४४॥१० १ करौली (राजपुताना) २६॥३० ०१९२० अमृतसर (अब ३१।३७ १२ २१० का ची ( बम्बई ) २४११ २।३८४० २६७ ०।१२।० ॥ करीमनगtहैदराबाद१८।२८ ०३९e अम्बर (राजपुताना)२६।१९ १ १० कन्नौज (यू० पी०३७३ et३०३० अम्ब (हैदराबाद ) १८७४ १ ६१० कर्नाटक १३।२ ०३ ४०} अम्लपर्य)३०२१ | ) ३४३ १ १ १२० कर्नेल ( पञ्जाब । २१४० योध्या ३६४८ ०l ७३० ॐफर ( सी० पी० ) २०१६ ११४४० अरन्तजी (सर्वोख ) १०११ ०३९४० की ( अब ) ३०६३ १६९० अरवी (सीe पी०) २०९९ ०४७३० काकरौली २१e १३) अलमड£ १९३७ ३३१० । कीवरम्( सनल ) १२६० ०३२१३१ इदंबर ३७३४ १ ३।२० अर्पी ( दुवैकोर ) ९३० १ ६१० | कठिगोदामयू०पी०) २९१६ ०३६० अळीगडू ) ९le (यू०पी० २०६४ १४९॥ काठियावाड़(बूम्बई) २२० २ ०५० कानपुर (यू०पी०) २४२८ }२७३० अलीबाग ( बम्बई ) १८५३९ १४°I९० | कळवा(च) ३२४८ १९४० अळीराजपुर २२११ १२६° } कालीकटः(दुख) १११९ १११९० अस्ट ( काश्मीर ) ३६२७ १९२१४० ॥ कालपी २६८ ०३२० अहमदनगर (बम्बई) २२।३८ १४०० किशनगढराजपुताना) २६३४ १८० कुण्डाएर (मल्स ) २३॥३४ १।२२।४० अहमदनगर (बम्बई) १९६ १२०२० कुर ( अहमद्पुर पंजाब) २६६ १९७३० (| मदास ) ११२० १ १४० अहमदाबाद (बम्बई) २३२ - १४३३० ॥ कुमाऊँ (यू० पी०) २९३९ ०३५२ अगर ( यू० पी० ) २०१० ०४३१ कुम्भकोणम् १९८ ०३० आखू (राजपूताचा } २४३६ १४:३० ३e १। २२ आरकट (स) १२९९ ०३६१० में कोकनद ( मद्रास ) १६९० ० ७३० आरनी ( मङ्गल } १३४० ०३६६२ कोचीनराज्य(मद्रास) ०६८ १ ८१० आखकोल (काश्मीर) ३९ १० १११३० | कोटशष्य(राजपुताना) ३९१० १११६० । याकोब (मद्रास) १३६ १३२६० | कोळंब ( लड ) ३९६ ०३°३६ इटावा ( यू० पी० ) २६४७ ०४०३० कळाथ ट्वंको) ८१७ ०६८७ २६६४ ११०० } कोल्हापुरशक्यबम्बई१६५२ १२८e इम्फाक (सीपुर) ३४le४ १४९२० खीरी ( यू पी ) २०५४ २१० सदहरूसटिष्यएहिन्दी टीका सहितः ६६ २११ दद अक्षर देशान्तरध२ अश हुए (यूe e १८१६ १२१५४e जोधपुज्यरपुः२६' १४ ३९.३ः देश र्भ = २०४६ १२२': हुए यू सी० ३२:६ ७ ३ ए३६ ल०प०२१२६ e, ; ६६ १९३२२ ३३३ यू०पी० ) ३२१११ झालूरपटन'(यु: २४३२ १) ८1a दियाद् झांस्ली यू० पीe २२२७ ०१४५१२९० सुनहन(२६२टुतद२८९ १११६।२ मु8थ ( पGE } ३ ८३१ ०१६९२२ २ गुरदासपुर ( पञ्जद )३३३ १११३० डक्र गुजरबला ५अद, ३२१e ११३७४० राजपुतान३३१२ १३१३ १३: : गुजरात ङिe.बम्ब३) २३le १४१० टुकुर(मद१स्) !! जरात { झाव } ३३३३६ १२९१ : ढेरYइस्राइलख़ाँ गोलकुण्डा हैदराबाद्१७२३ १ ११२० ३१६१ ३ १६३९ गलगोंडर () मद्रास१७७१ e: ४१६० हूँगरपुरस्टेटरपुर१३१४४० ) २३२५ ड" ( यू०पी } २४३८ e|१८}e क डिडवन (राजपुताना) २८१७ १२५११e संवलियर हूगरमखु (सी० पीe) २११२ e!३८/३० २६ १४ ४६।२० चतुरपुर ( सद7 } १९२१ ०३४३२ तन्नोर (मद्रास ) १८४४ ०l३१० २८२८ ०४३le तारागढ़ ( अजमेर ) २६० १२६.५२ चन्द ( सी०पी० ) १६९ ०३६३० त्रिचनापल(सह) १०९e ८४३१९ चम्बरज्य( पॉब) ३२२९ १ ६३७ त्रिवेन्द्रम (वर८२६ ११ ११०८ चिट राजपुताना) २५६४ १२३1e ; द्वारका { १ बदन } ३ ३१४ ३२७ चित्तौड मद्रास ) ( १३i१३ १९२० दिलावर ३४९६ १।५४।२२ चित्रकूट २९१३ २१० ।। देवलस्टेट(सी.आईe)२२६८ १ ९l० चिनाव ३१० २। १० देबली ( अजमेर ) ३१४६ १११९० खानपुर ३७८ देहरादून (यू०पी) ३०११९ <g९१e छचीसगढ़ख्देष्ट (सी.पी.)२१३० ०|१०० देहली २८३८ *९१३९ छतरपुरस्टेटसी०आई२४९८ दौलताबाद (हैदरा०) १९९७ ११३७ (el३३४० ॥ छिन्दवर(सी०पी०) २२३ e४०॥१e / धारनपुटेष्ट बम्बई) ३०३२ १३७४६२ जगदलपुरसी०पी०१९९० ९१६ धरमशाळा (पक्षब) ३२/१e १। ६११ जनकपुर (सी०पी०) २३४३ १२le } ववच्युस्टेट (राजपुर)३६४२ ०५१३९ जफर बाद ( बम्बई ) २०६१ १ ८४e { नरसिनगडू राज्य ३३।४४ en१८४० जघरा (सी० आई ) २३३६ १२८३० ॥ नशसिंहg(सी०पी०)२२६७ ०३७३० जबलपुर (सी० पी०) २३१e ०३el२८ } नवानगर राज्य(बम्बई)२२१२७ २१ ४४१९ जम्बूराज्यकश्मीर) ३२/४४ १२१ नागपुर (सी०पी०२१९ ०३१९ जयपुर ( झाडी) १८६७ १३ १४२ २०१० जयपुरराज्य नागौर २७१ ६ १३३४० ( २अमुना )१६६६ ११३।४० | यद्वर २४६ २ १३१२ जलट्पुरः ३२४० १३७९२ जळघर ( पक्षब ) ३११९ १२०le ) नाभराज्य पब३१२६ १ ८१० जहाजपुरशेयुar३१३८ ११६९० | नारनौल (पटियाट)१८१२ १। ८४० १२२७ २१०० नसिक ( बम्बई ) २२ १३२० जालौन ( यू० पीe ) २६८ ०४१e निजामाबाद(हैदरा) १४० ०१४८० दिराज्य (पक्षाघ). २९१९ १ ६० नीमच ३४२७ १३१२९ जूनागडुराज्य(म्य)२१३१ ३ । ४le } जैसलमेर राज्य नैठळ (यूटी पीe) २२३ ०३१।e ( राजपुतला ) २६६६ ११९० । नैपालगंज (यू०पी०) २५९९ e३ge ३६ जन्मथशदीपकः झश द्शलख९ अक्षांश वेन्तरवs याटियाला राज्यपाब ३३० । ३० बस्तर ( मी० पी० ) १४I३० २। १०० पण्ढरपुर ( वरुबई ) १४१ १११६१९ | बस्ती ( यू पी: ) २६४८ ०१ ३ ॥ प्रतापगडू राज्य बहराइच (यूपी २ ३७३४ ०१६१० ( पुतला ) २gi२ { २२० बहावलपुर वर्ध२११२४ ११५२२ प्रापगढ़ जिe बदलूर (सी०पी०) २६१४ ११३० (यू० पी० २ ३२७ १३२ बादु ( लक्कु ) ६१६९ २१९१२ प्रयाग (यू०पी०) ३५१२८ १११२० बदः ( यू० पी० ) ३६२८ ७ १२६० पाठनकोट ( पक्षब ) ३८१८ ११ २१० बरबंकी (यू०पी०) २६.९६ ७ १८१२ डीचेरी ( मङ्गल ) ११६३ el३२१० . बरोद्भव (पञ्जाब)३०३२ १४०५० पन्नास्टेट(सी०आ) २४१३ ३ १४२ बर् ( तन) २६६ ११ ४ ३० प्रदीप्त पुरुब ) २/२३ १\१९३९ बळावट (सी० सी) ३ ११६६ १२७३७ चलतपुर २४१२ १४२३६९ ऋचिस्तान २८४ २{e}s पीलीभीत (यू०पी० ) ३८४० ०३२१० बिजनौर ३ ९४० +१४३३२ पूना ( घम्बई ). १९१० १२३०.२० पोरबन्दर ( बस्बई ) ३१३७ २१३३० बीसपुरराजपुतान२४९ ११४८२२ पेश्वर ३४९२ ११९९० बकानेर (राजपुस (न) २८१ १३६० २६२८ २११२ बीपुर (वम्बूई) १९६२ ११३२० फतेगढ़ ( यू० वी } २७३३ et ३३/२१० ४rg (स्पी०) ३११७ ०५७७ बुलन्दशहूर २८|२४ १९११ फतेपुर ( यू० पीe ) ३११६१ ei२२३९८ | बून्दी (जपुतान) २९२७ १३१० फतेपुर सिी २६ ०६३० बेलरी ( मद्रास ) १६९ ०२११० फतेपुर ( राजपुतान) २८e ११९० वेळा ! यू०पी० ) ३६९६ ९ ९४० रइकोट ( पञ्जाबू ) ३०ge १२२३० फरुखाबाद ( ३७१३६ । ७२९ ब्यावर अजमेर) ३६६ १२€I३९ यू०पी०) ३ ! ( बन्सवर फिरोजपुर (पंजाब) २४७ ०१३०१० } ( रजपुतान ) २३।३० १२६१० फिरोजपुर ( पंजाब ) ३०९९ १३४e } भटिन्द ( पब ) ३०t११ १२०ie फिरोजाबाद १७१६ १७ १२० भण्डार (सी०पी० ३१ s३३० बझe (बम्बई) १७६७ १३९१० भदौरा स्टेट्(सी.आई)२४ire८ (१३।४० बघेछखण्ब (सी०आई) २४१० ११७ ॥ भरतपुर(राजपुतन) ३७१६ म६६e वझलोर ( मैसूर ) १२१८ el8३० । भावनगर ( बम्बई) २१॥४६ १४८is घण्टबल ( मEरस ) १२९३ ११९० } भिलसा (रचलियर) २३२३२ २१९११ बदार्थों ३८१० a ge १० लिपनी { क्षय } २८४६ १। ६२२ बम्बई १८६१ १४१० भीर ( हैदराबाद) १९he १११४२ बश्वान( सी०आई० ) ३२३ १२०३ १ ।२२५१९ बरसी ( बस्बई ) १८१३ ११२४० ॥ पाळ ३३१६ अरार (सीeषीe) २१le १ ०० भेरा ( पॉब ) ३ २२९ १४०३० बरडी ( ०आई० ) २४३० १ | १४० । भस्टेट ( बम्बई ) १८५९ १५१ अशेच ( बम् ) २१४६ १४०१० मङ्गळोर ( मद्रास) १२।६२ ४५०e वरौदा ( बम्बई ) २२७ १३१० | मण्डीराज्य (क्षrष) ३१४३ e६९० बरेट्री (यू०पी०) २८५२२ ०३९० १७३३ २९०e बतिस्ता (काश्मीर)३१३० ११०० सद्वंश { मद्रव ) ६९८ अहमपुर ३ ०। ८० १४ २८: बलेसर(राजपुतण) २१I४९ १४६३० मलकार (बर) २०५३ १ ७५१० बसाइर ( अब ) ३१३४ ०४६० महवg (मद) १३३७ s!२ २३० बम ( बवर) १८२० { महेबा ( यू०पी० ) २०१८ ०३९१० २९ १९३२ १४४० मानिकझर (यू०पी०१४४ ११९० सदाहरणस्खटिएहिन्दी टीका लहतः १७ ३४५६७ ६ ३ २४ ८११ - ८] अक्षांश जन्तवः वेशनम् १ अभूत् । मालवा (सीe& } २३ge e९६२० बाहजहांपुर(यू०पीe}२०१४ ३=}} मढा ( सी० ४ ) १२७३ s!९e शाङबादयूपीe) १७३० ८६२/१० मिर्जापुर { यू०पी० ३ २१४ ५: ४११: शिकरपुर सुजफगढ़ (पंजाब). ३२६ १३७२२ किमळा स्वपङ{qझा)३ १३६ जफरनगर (यूet)३१२८ ४१२७७ : श्रीनगर (८प) ३-१९ e४३ १० दरभद्र यूजेपी०२ १e e४१ { श्रीनगर (कश्मीर) ३८१६ १६३४० सुलतान (} ३२१३ १११२ । श्रीरङ्गम् ( मद्र€ } १०३६३ ०४४e २१e ०१९३१२ श्रीरूपष्टम(मैसूर) १३१२६ ६। ३० मैनपुरी (यू०पी०. ३७१३ ०३ !० सरदारहर(बीजेनर)३४}२७ १३२/२ मोरवीराज्य (बम्बई) ३२४९ २०११ बईtधg(*g}२१॥१८ १९ २० सनॐ बीकानेर२८१६ १२३।३e , सहारनपुर (पू : ) ११८ १९७ue रतलामराज्य (०.i३३३१ १३१२ सागर (ऐ २३३ १० ११ १: रत्नागिरि (बम्बई) १७८ १३८२ सारलोहे (सी०पी० २०३६ ७ ३ १३१ : २३जकोट () २२११८ ३१२३० स€gge ११३२ १३° ३: रमनगर 'मैलीलाळ) ३ २४ २३८२e सिकन्दराबाद रानीखेत. २९१४७ ०३४३२ (हैदराबाद ) १९३७ e8 #१३e अगढ़स्टेट ( c, i. ) २४३० ११२ लियाळक() ३१३१ १४८ रामकोळ (सीeपी०) २३१४० ११३२ रामपुर (यू०पी०) २८४८ ०५४१३ सिरोंजराजपुतान) २५६ : झिल्झेद. el२०१२ अमेश्वर १४८ e{३७३ सिरोहीराज्य रथगढ़ (“) ३१७४ <!४३ • यपुरस्सीe५१० ) २११६ ०१३१० जपुतान) २६६३ ११४१ सिहोरे २ ३॥३३ १। ०२ रायबरेली (यू०पी०) २६१४ ०१९|२° ! सीतापुर (यू०पी० २०३२ c|३४१६ वयपिण्डी (पञ्जाबे) ३३३ १४ei२ : सुश्तीपुर ऍथीe) २६१६ १७० रीव २ज्य ( ०. i ) १४३१ ०१३ सूरतगढ (बीकानेर) २९१९ १ ३३६ रुरकी (यू०पी०) २९१६२ ९१२ ब्रूरत ( बम्बई ) २११३ १३१० हेलखण्g (यू०पी०) २८15३२ el४ele सैलाना &c.i. ) २३३१ १२es सेहतक (हब" २८९४ ११२० खोलपुर ( बम्बई) १७४० १११० लखनऊ (यू०प०) २६९६ •}२०१२ सोइगापुर(सी०पीई)३२18A ०४१ ललितपुर (यू०पी०१४२२ ०४६६० हमीरपुर (यूपी) ३९।२८ २२८I० लवकर (बळियर) २६u१२ e४८२० { (सी०पी०२२ ३१ हरवी ) el१८० हाहौर (छ). ३१३७ १३६० हरदोई (यू०पीe) ३७३३ ॥२८२ लुधियाने (पी)३०११ ३९३° हरिहर (मेवुए) १६३६ ११११२e बखसर (जर्चा)३४४३ ११८३२ ४८१० हरद्वार (यूपीe) २९९८ वझन थाली (मद्रास) ११६ १४१० इlट (बम्बई) २१४९ २१2c वीरबाद (अब३२५ १३८३ ९ बद्रीनाथ (यू०पीe ३२४४ } हावर (यू०पी०) ३७३६ १४८० यदत्र (ीश) ६५२ ०१२०२० : हिन्दूपुर (वह) १३।४९ ६३४४ हिंगोली) ०१९८१० वर्धा (सी० पी०२०ug५ .(दराबाद१९४३ ) १६३३९ विजयनगर(मद्रास) ११२० ११ १० सर (पंजाब) २९H१० ११३ २२ बिजियानगर ०५३७ ( महान ) १८ e} ४५३२ इदशबाट दक्षिण १७२० विमलीपट्टम्(मद्रास) १७६३ & १० \ हैदराबाद सिन्ध २०२६ २/१२/३२ विदखपुर(सीपी०) ३२९ e॥ ८० } होशंगाबाद (सी.पी.)२२८६ eas विळखपुर(शिमला) १३२० \ ११e३० ३११० । होसियारपुर(पंजाब) ३१३२ र अस्मथश्च६षक अक्षांशपर से स्त्री द्वारा पलभज्ञान की विधि पञ्शतश्चेदधिकं कळघं व्यतीतभोग्याक्षश्रमान्तरमस् । षष्टश्च हृतं तस्फच्युत यऽक्षो भवेदसऽभिमता सुट्टीए ११२ रात अंश और ऐण्य अंश सम्बन्धि पलभाओं के अन्तर को शेष कला से गुण कर के ६० का भागदेने पर जो लब्धि आत्रे उस्रको गत अक्षांश सम्बन्धी पळभा में यथास्थान जोड़ देने से अभीष्ट पळभा हो जाती है ..११।। उदाहरण अयोध्या के अक्षांश २६°४८ पर से पलभाज्ञान करना है तो आगे दी हुई पलमा सारिणी में २६ अक्षांश का फल १६१७ एंव २७ अक्षांश सम्बन्धी फल ६६ १० इन दोनों फलों के अन्तर ( ६६।९० )-(५५१७ = ०१६४३ को ४८९ से गुणा करके गुणनफळ =४८ ( २।१९।४३ ) = ७९४।२४ में ६° का भाग उषि= ईश्वर =१२।२४=आई । इसको गतांश सम्बन्धी पलभा १९१७ में जोड़ दिय तो स्वल्पान्तर से (६ ॥३७१ =६।४ अयोध्या की अक्षु कामिका पल्लभा हुई। इसी को अक्षभा या विषुवती भी कहते हैं। दिया तो = न पलभसारेण |अंश } पलभा अंश | पलभा । अंश { पलभा / अंश | पलभा। १ | १२३४ ॥ १५ १ ३।१२५४ | २९ । ६।३९। ४ } ४३ | १११११। २४ २ \ ०'२५ ९ १६ \ ३।२६२४ | ३० | ६|५५।४१ ॥ ४४ | ११।३५२१ ३ \ ३७४४ \ १७ १ ३।४० ! ५ ३ १ } ७।१२। ३६ ॥ ४५ ॥ १२ ०॥ ४ ॥ ।५०}२१ ॥ १८ ॥ ३५३ । ६ \ ३२ | २९५३ { ४६ ।१२।२५।३७ ५ । १ ३ ९ | १९ १ ४। ७५५ ३३ | ४७३१ { ४७ | १२५२ । ४ ६ | १ । १५। १४ ॥ २० ! ४२१ १ | ३४ | ८। ५३८ | ४८ | १३।१९।३४ ७ } १२८।२ ३ | २१ ४३६ । २२| ३५ | ८।२४। ७ | ४९ | १३।४८१८ ८ | १।४१। १० | २२ | ४|५°५३ | ३६ | ८I४ ४३ ५ | ५९ | १४।१८। ३ ९ | १। ५४।० २३ ३ ४ ५१३८ ॥ ३७ ॥ ९। २।२५ } ५१ ॥ १४४९। ८ १० २ ६५४ | २४ | ५।२०।३१ ३ ३८ ॥ १।२२।३० ॥ ५२ ॥ १५२१।३२ ११ १ २ १९५५ | २५ | ५ .३ २४२ ॥ ३९ । ९४३। १ | ५३ ॥ १५५५३० १२ | २।३३ । ० | २६ | ५।५१। ७ ४ ० | १०३३६ ॥ ५४ ॥ १६ ।३१। १ १३ ॥ २।४६।४१ | २७ ॥ ६। ६५° } ४१ | १०|२८४८ | ५५ | १७| ८१३४ १४ ॥ २५९।२८ ॥ २८ ६ ६। २२४८ ॥ ४२ । १०४८१८ लङ्कोदय पर से स्वोद्यज्ञान ( करणकुतूहळे ) लीदया नगतुरङ्गदस्रा गोळश्विनो रापरदा विनायः क्रमोक्रमस्थाश्चरखण्डकैः स्वैः क्रमोक्रमस्यैश्च विहीनयुक्तः । मेधादिषण्णामुद्याः स्वदेशे तुलादितोऽभी च षडुत्क्रप्रस्थाः ॥१२॥ २७८ पळ मेघ का, २९९ पळ वृष का, ३२३ पछ मिथुन का क्रमसे स्लट्झर्झटिप्पणीहन्दी टोकाट लहितः । && टोद्यमःन होता हैं : एवं उस्क्रस से ३२: पळ ऊर्फ द, २९ ३छ स्वकु, २४८ पल कन्या का लकंप्य न होत है । यी क्रम से दुट्टि ६ इंटका मान भी होता है ! इन मेषादि के लंकीय मानों को क्रनतथ{ उनकल स्से बे रखके उनके दलने मेषादि के रखण्डों को इडी रीति { त्रु तथा उस्क्रम ) से रक्षा के पहले : स्थानों में घटा देने से फिर ३ स्थानों में जोड़ देने से मेषादि ६ राशियों का स्वोदय न हो जादा है। इन्हीं को उलटे तुळादि ६ राशियों का स्थान समझने चाहिये आजमगढं को उद्यमन लङ्कांद्य चर २७. •t»५८ -२२० मेप, मीन २९९-४७ = २५२ वृष, कुंभ ३२३-१९ मिथुन, मकर ३२३ + १९८३४२ क; धन २९९ +४७ = ३ • ६ सिह, वृश्चिक २७८+५ = ३३६ कन्या, तुळ अत एव मदीयं पद्यम् शून्याश्चित्रा यमवरुणस्य वेदाञ्जरासा यमवेशमाः । तक़ब्धिराम रसराम्ररमा नेयावितस्तौळित क्रमात्युः १२ अयनांश बनने की रोति नेत्रवेदो ४२१ नशकः स्वदक्षांशविीनितः । षट्था भक्कोऽयनांशाः स्युर्वर्षारम्भे स्फुटः खखें ॥१३॥ त्रिनाऊँराशिना स्वाधंयुक्तेन विकलादिना । युक्तस्तास्कालिकास्ते स्युः स्पष्ट गणितविद्वर ॥ १४ ॥ व मान शकाब्द में ४२१ बट के जो शेष बचे उस ( शेष ) का श्वां भाग उसी में बटा कर ६० का भाग देने से लब्धि वर्षारम्भकालीन ( मेष संक्रान्ति के दिन का ) स्पष्ट अयनांश होता है । यदि सूर्यों की राशियां भी बीत गयी हों तो राशि संख्या को ३ से गुण करके उसमें उसी का आधा जोड़ने से जो बिकला हो उसको वयरः काळीनु स्पष्टायनांश की विकडा में जोड़ लेने से तास्वद्धिक स्पष्टायनांश हो। जाता है ।। १३-१४ ।। उद्धरण वर्तमान शकाब्द १८६९ में ४११ घटाया तो १४३४ शेष बचा। इस १४३४ में इसी १४३४ का दशमांशः = =१४३।२३४ वटा के ६० का भाग दिया खो १४३४

  1. सौरास्मक शकाब्द मेषसंक्रान्ति से प्रारम्भ होगा । अतःगत शकण्द से दो अयनांश का

उदाहरण दिया गया है । इसी भाँति सर्वत्र चन्द्रत्रस्सरारम्भ हो जाने पर सौरवरसरारम्भ से पूर्व का इष्टकाल झे ते करना चाहिये। २.५ जलवत्रीषड्-- १४३५–(१९३२ १३ १३९०६३६ लज़ेद == - = २ १३८९,३६// शारम्भ्रफल = € ¢ २०० ४ ० ० स्पष्ट अन्न हुन अत्र स्पष्ट झ्र्च १९११९९११९१२ n को राशि संख्या - ३ ४ । ३ ३ भ्रूण करें ईद ३ ३४ १ १= ३३ हु क" ’ इव ३३ मैं इसी अध ३ ३ १s जोड़ दिया सं ९० बिकल " हुई। इस १९ विकल को वर्षारम्भका?ीनरूपष्टयनश२ ३°३ १३६ मैं यथ स्थान जोड़ दिया तो नस्तलिक़स्पष्टायनश २ १°३१ १२६* हुआ । अयनांश बनाने की दूसरी रीति-- भूने वेदोनशकस्मिन्नः खघ्राश्विभिहृतः । बबरम्भेऽयनांशः स्युः फुटा गणित कोविदः । भागीकृतो भो भक्तः खभ्रवेदैः फलं भवेत् । कळाड़ी तेन संयुक्ताः स्फुटस्तात्कालिकाः स्मृताः ।। दूस्सरः सेनि के अनुसार बदण- इक में एश १८६१ में ३२१ घeत्रः ते १४३४ शेष हुआ ! । इस १४३ ४ को ३ से गुणा करके २०० से भाग देया तो लब्धि८१५३६*३= २१३०१३६ कारभकाल का स्पष्टयनांश हुआ । अब स्पष्ट सूयं ११।२०।१२ का अंश ३६ १ ३६१ बमाके ४७० का भक्षण दे दिया तो कघि== ०६३ कळदि हुई । इस • १६३९ को वर्षारम्भकान्त्रिकल्पययन नै यथा स्थाओं जोड़ दिय७ ते २१°३०1३६४ + ०*१ ६ ३=१ ११३१।२९/ वस्फालिकपटयश हुआ? ? लग्न स्पष्ट करने की रीति तात्कालिक सायनभागसूर्यः कथंस्तथा तद्तभोग्यभोगाः । स्त्रीयोदयना विहृताः खरामैर्छब्धं विशोध्यं घटिकापलेभ्यः॥१५॥ यातैष्यकान् राश्युदयान् ततश्च शेषं वियद्राम३०गुणं विभक्तम् । अशुद्धराशेरुदयेन, लब्धमशुद्धशुद्धऽजपुखेषु भेषु । हीनं युतं तद्धि भवेद्विलग्नं स्पष्टं स्वदेशेऽयनागहीनम् ॥ १६ ॥ जिघ्र स्खमय लग स्पष्ट करना हो उस समय के स्पष्ट सूर्यो में वाल्कालिक स्पष्टायनांश जोड़ डैने से तात्कालिक सायनार्क होता है। उस ताकालिक स्वायनार्क के भुल या भोग्य अंशादि को स्वदेशीय उद्यमान से गुणा करके ३० से भाग देने पर छब्ध पछादि मुक्त या भोग्य काल होता है। ( अर्थात् भुल को स्वोद्यमान से गुणा करके ३० से भाग देने पर भूतकाल और भोग्यांश को स्वोदय से गुणा करके ३० से भाग देने पर भोग्यकाल व है) । इ४ शुक्ल या भोग्य काळ को इष्ट घटो पल में घट के जो शेष बचे उसमें भुछ या भोग्य राशियों के उद्यमानों को ( जहाँ तक घट सके)

  • पहले अयनांश से यह मिस्रइसलिये हैं कि इसमें अंश सम्बन्धी फल भी ले लिया गया है। सोऽहरणसटिप्पणहिन्दी टीका सहितः ।

२ि१ घटाना ( अर्थात् यदि भुक्तांश पर से ढन स्पष्ट करना हो तो सावनेष्ट छ का ६० में घटा के जो शेष घटो पछ हो उसमें भुक काल घट के शेष में गत राश्युदय मनों का घटना । यदि भोग्यांश पर से न साधन करन। हो तो लवनेष्ट घी पल में हा ग्यकाळ घटा के शेष में ऐष्य त्रय्य न्यहनों को घटान ) चाहिये । अव शेष को ३० से गुणा कर के अशुद्धमान ले भाग देने पर ते लब्धि अंशाकि अवे फ़को ने इसे अशुद्धराशि में घटाने और शुद्ध राशि में जोड़ने ले ( अर्थान मुक्त क्रिय हैं दश वृक्षश्-ि संख्या में घटाने और भोग्य क्रिया में छुट्टराईश्चलंख्या में जोड़ने से ) यन स्पष्ट लुप्त होता है। इसमें अयनांश बeर देने से अपने २ देश ह स्पष्ट लग्न हो जाता है जो १५-१३ ।। ङह-- व त्कालिक दृष्टसूर्ये = १११२०°५८'१०" ,, अयनांश = २,१°३१'१२१ " ,, स्ट्रयनार्दू =२१२°n२६ २:" भग्यशः = १७।३०३१ इस कां मेष के २२e उद्यान में गुणा करके ३० का भाग देने पर ( १७१३e { ३१ } २२० लक्रिय ३ ७ ४०६६ ० ० १६८२e ३८११ ११ ३४७ =१२४३३।४७,२७ इस विध ३° को इष्ट वटी पळ (१३१६६० = ८३६ में घटाने ले शेष = ८३६-( १२८१२३।१७५२० ) =१६ २।३६। १२४० इस में खूप के र शैल = । मन ( ३६६ से ३९४ = १६६ } Eने टर् 'ए = ७ $ ६ ३ ६ ११ २ १४ २-९६६ १९ el३६ ।१२।४० इसको ३० ले सुशा करके अजुह्वदयम्म ३४३ से भाग देने पर ब्धि – १९९१३६।१२i४९ ३० ३४२ ४६१ ८ ६२० - १३°१२’१३९// हुई ! झे ४' इसको शुद्धराशिसंख्या ३ में जोड़ दिया तो सयन पष्ट झ = ३।१३१२३१ हुझ । अश्रद्दांश घटाया तो स्पष्ट लग्न = ३१३°१२३ .२१°३१२९ " = ५ २६°४१ ४११० ' / वे शया। शुक्रांश पर से स्पष्टझ बनाने का उदाहरण - सायनाॐ = ०/१२१२९२९५ भृश x स्वोदय_( १२° २ ९९।२९" ) २२० ३ ९ जलदध्ॐशुक्र: २३ २६ ४ ९ १६३८२१६ ३ ८२ - ३° ३७४४ = == ९१।३६i१२४० इg न पल ६०. { १३१६६ }=४६,६८२ २३ ६ पल में घटने से शेप=२ २६१-{ ११३६३१२।४१ ) = ३ ६७३२३।४७।२२ इसमें उलटे र्सन र लेकर चिंह तक का? म?ष २ ४१२ घटने पर शेप=२६७ ३२ ३ ।४७२-२४८२ =१९११२ ३ ४७१ २ ९ इस शेष को ३० से गुण करके अशुद्धोदयमान ३४२ से भाग देने पद लब्धि = ( १९१२ ३।४७२७ ) ३० ३४ है। १७४१ ६ ३।४० १६|४७|२१// इस्रको ३५३ अद्धराशिसंख्या 8 में घटा देने पर शेष सयनलन = ४- १६°।४७.२१' ) = ३।१३°१२३९ /। स्पष्टलग्न = सयनळन-अयनांश = ३१३°१३३९ // -२१°३१ २९ = २२१°४१'१०" हुआ । भुक्त भोग्याल्पत्व में विशेष भुक्तं भोग्यं स्वेष्टकालान विशुध्येद्यदा तदा । स्वेष्टं त्रिंशद्गुणं स्वीयोदयाप्तं यल्लवादिकम् । हीनं युक्तं रवौ कार्यं लग्नं तारकालिकं भवेद् ॥११७ ॥ यदि भुक्त या भोग्य पलादि इष्ट घटी पल में न घटे तो इष्ट पलादि को ३० से गुणा करके स्वेदय मान से भाग देने से जो लब्धि अंशादि आवे उसको ( भुक्झांश पर से लम् साधन किया जात7 हो तो ) स्पष्ट सूर्य में घटा देने से यदि भोग्यांशपर से लग्न स्पष्ट किया जाता हो तो ) स्पष्ट सूय में जोड़ देने से तास्कालिक स्पष्ट छन्न हो जाता है ।। १७ ॥ उदाहरण कल्पित सानय सूर्य = १२°१।३६ M/ भोग्याँश = १७° ४२'५३ १५ भोग्यकाळ = (१७° ४२/२५ २२० ३९ ३८९५३ ११४० १२९।११।३।२० ३९ यह पळादि भोग्यकाल कविपत इष्ट घटी पळ १४६ (= १०६ पल) में नहीं वटत = स्लोदाहरणस्वटिष्णद्दिी टीका सहितः ।। ३३ लढंध = ""C = २ ३ है । इस लिये इष्ट घटीपल = १०५ को ३० से गुणा करके स्वोदयमान=२२० से लाभ हुनेर • २९ ४ ३० १ २१ ४ ३ १९ १४°१९'५* २ ३० दुइ। इस अंशदिको स्पष्ट दायें=११ २ ०४ ६ नं 'डू द्वािर तो राधया स्पष्ट करत. . १११२ °१४६*३६-१४°३१'१ ९ क प्रकार के उदाहरण द छिये २० वें श्लोक के दस सदन का उदाहरण देखिये काशी में तथा २५°१४’ अक्षांशदेशों में केवल सर ही घर से पृज्य पद परमगुरुवर्य मठम०पं० श्रीसुधाकरद्विवेदाश्चत स्पष्ट वक़ याधनकी रीति दृश्यदर्ययशतो घटपूतं यत्तदीष्टपहितं तदुद्भवम् भादिकं त्वयनभागीनितं चन्द्रचूडनगरे भवेत्तनुः ।१८। लयनार्क के राशि-अंश के सामने के कोठे में जा बीपल हो एवं कला विकला सारणी में जो पछवि हो उनको यथास्थान ( एक एक स्थल हटाए कर ) जोड़ देने से जो वटो पळ विपळदि हो उसमें इष्टकाछ के बcपळा द को जोड़ देने से जितना घटपयादि हो उतने घट्यादि में अंश सारणी में जिस राशि अंश के सामने का घट्यदि घट जाजय डतने अंश ज्ञान के बीते हुए होते हैं । पुनः बढ़ने पर जो पळादि शेष बचे उनमें कला खारणीमें लिख राशिकछ के लासने क पळदि चढ जाय उतदा कछा उद्द को बनी हुई होती हैं । एवं विकला का ज्ञान भी करके स्ववों ( अश्; कट, चिक्लओ )को अपने २ स्थान में रखके जोड़ देने से राश्यादि सायनस्फुट लुप्त होता हैं : इसमें अयनांश बट। देने से स्पष्ट लग्न काशी में जाता है ।। १८ ।। उदाहरण - स्पष्ट सूर्य ११।२०°1६ ८/१२ " और स्पष्ट अयनांश २१°३१'०२९ दोनों को यथा स्थान जोड़ दिया तो सायन मूर्छ होगया ०।१२°१९'२९/ ? *प्रज्ञ सायन सूर्य के सामने का राशिवंश का बव्यद= ११ २ २१२ संशकला का पलाद = ३ ३१ १३४ राशिविकला क चिपळदि = ३ ३६३४ य = १ । ३ २ ६१ १/३४ इसमें इछ ठी १ ३:१६ जोड़ दिया तो धोग = १६ । २५१११।९३ ४ हुआ । अब इस में कई के १३° के सामने का घडो पळ (११।१८१९)बट या दो श्रेष्ठ प्रद्रि ९५६११७३४ बछ। फिर इस पळदि में शशिकळमरिमें १ ३ कला सम्बन्धी एलादि १४९।२० बटया तो शेष विपलबि ४२४ व च । फिर इली र सिवियला स्सरी में ९ विकछा के सामने का विपढ्द १४३० वट गया तो शेष भ३४ प्रतिविपल बचा । इस को बलपान्तर से छोड़ दिया। अब सारणो में १२°१२ ५२९ के सामने के फक बट गये हैं इस ख्येि सायनशन ३।१२°.६२°९' हुआ । इसमें अयनांश बठा दिया तो काशी का स्पष्टल्स ३ १३° ६२९. -(२१°३१'१९"}=२२१°२०'४०"होगया। - * स्वल्पान्तर से यही काशी का स्पष्ट सुर्य मान लिया गया है। काशमें ( अर्थात् २१११८’ अक्षांशपर ) राश्यंशफल-- राशि || १ | १ | ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ |१०|११|१२१३११७१६६|१४|१९|१०२१/१२/२३२४|१५२|२|३४|२९ |

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७ ७ ९ © ] = { ७ ४ ७ २ ० ० द जल्पश्रद्धयकः नतोन्नतज्ञान-- तदुन्नते यदल्पं स्याद्द्युनिशगतशेषयोः । तेनोनितं दिननिशोरद्वै तत्रतसंज्ञकम् ॥ १९ ॥ दिन रात्रि दोनों की गतघटी और शेषघट इन दोनों में जो अल्प ( कम ) है उसको उन्नतकlछ कहते हैं । उस उन्नतकाल को दिनदळ या त्रिदल में घटा देने से शेष नप्तकाल होता है ।। १९ ।। उदाहरण सावन इष्टकाल १३६६ और दिनमान ३०६० है । यह दिनशेष १६९९ ले सिँचाइ १३.५६ कम है । इसलिये द्विनगत ही उन्नतकाल हुआ । इसको दिनदल १९३१ में घटा दिया वो शेष १९३६-( १३९९ ) = १।३० दिन का बव्यादि पूर्वंनत काल हुआ । दशमसाधन की रीति पञ्चकृतारपूर्वेषश्चन्तालङ्कवेदयैश्च यत् । शुक्तयोग्य प्रकारेण लयं तद्दशमाभिधम् ॥ ततश्चतुर्थे विज्ञेयं मध्ये षड्भाधिके कुते ॥ २० ॥ पूर्वे नत हो तो छछूदय पर से मुक्त प्रकार द्वारा तथा परनत हो तो लकृदय पर से भोग्य प्रकार द्वारा पूर्ववत् लग्न साधन करना, तो वही शमलन होगा । ठEमें ६ राशि जोड़ देने से चतुर्थ भाव हो जाता है। ( यदि रात्रि का नत काल हो तो सूर्यो में ६ राशि जोड़ के शेष क्रिया पूर्ववत् करनी चाहिये ) ( २० ।। उदाहरण आयनखुर्च = ०१२°१९३९ शुक= १३°१९९२९ भुकश x लङ्कोदय_(१२।२९२९ ) २७८ // ३० २७८ ३४७२।३६।२२ = = १११।४१।१२.४४ यह पलादि भुक्तंकाळ पूर्वंनतपत ९० में नहीं घटत इस लिये १७ वें श्लोक के अनुसार नंतपल ९० को ३० से गुणा करके मेष के लझेद्यमान २७८ से भाग ३० ४ ३ ° देने पर लब्धि = '= ९।४२।४४। अंशादि । हुई । इसको स्पष्ट सूर्य में चखांया तो दुशम मन रूपष्ट = ११।२०°५८१० }. -९°।४१/।४g =१११११°१९ १९११६” हुआ । सब देशों के लिये केवल सारणी पर से दशमलन सधन की रीति दृश्याकडठिकाधं यत्पूर्वापरनतोनयुक् । तज्जं भाषं चलांशोन खर्भ सार्वत्रिकं भवेत् ॥ २१ ।। लोदाहरणरुटिपहिश्दी टीका सहितः । २३९

दृश्य सूर्यं ? सायन सूर्य ) के रात्रि-अंश के खEने के कोठे में जितना घवी पर ही उस को एक स्थान में रखते, जैशिद्ध गणित द्वारा कल बिकल सम्बन्धः पल का आनयत के पूर्व केथडि बढ एल में स्था स्थान रख कर जोड़ दैवे। उसमें यदि पूर्वनन इ = नतकाळ को घटके परनत हो। ते कंट्र के जो कट्यहि प्रश्न है उसमें वायरी में मिले ईजल राशि-अंश के सामने का यही पल घट जाय उतने रसशि अंश दश दद्धन कं स ह ते हैं। फिर बढ़ने पर जो शेष बचे उस पर ले गैर शिक गईएम दूर कळ विकल क ? आनयद करके यथ{ स्थान यू ग्रहास राशि। अंश मैं जोड़ देने से सायन दशम लग्न होता है। उहमें अयनश्च घट देने पर स्व देश के के लिये दशम लग्न श्पष्ट हो जाता है । २१ / उदाह-- लायन स्सूर्व ०१२° २९°३१” के राशि और अंश के सामने के बव्यादिफळ ११११११२ में त्रैराशिकगणितद्वारा 'आनीत कळाविकतासम्बन्धी पलादि फल ( पटादि = १११६ ) ( २ ९९.१६५ ) ( ९.१६ ) १७६९ // AN ६०२ १६ ३ ९ २४४ === ४।३३।१२१४४ को यथा स्थान रख कर जोड़ ड़िया ३६०° ११ १।१२ ४ ३ ३ ११ २ ४४ तो सायन सूर्य के राश्यादि सम्बन्धी बयादि फळ=१।६२४६१२१४ - हु । इख में बय्यादि पूर्ववत को घाय तो शेष = (१६५१४९।१२।४४)-(११३ २} = •}२१ ।४९।१२४ ४ बच । इस में ९ राशि २ अंश के सामने का घब्यादि = ०१८१३३ बढत है। अत: ० राशि २ अंश सायन दशम हुआ । और घटाने पर- १२९४११२६४ ७ |१८३२ ७१३।१२१४४ पलादि शेष बैच । फिर इसपर से त्रैराशिक गणित द्वारा जो कलादि ६०'(७।१३। १२४४) फल = ४१६ २५ ९९२४४


४६४१

१९६ -" आया उख को राषयादि सायन दशम के आगे यथा स्थान रख के अयनश घटा दिया तो राधयदि स्पष्ट दशम कम = ०३°४६'४६"--(२१/।३१।२e") = ११११११६/१६ हो गया। सायनार्कवश से दशम सारणी राशि |० | १ | २ | ३ | ४ | ५ ६ ७ | ८ | ९ |१०|१११२|१३१४१५१६|१७१९४|१९|२०|२१२२२३२४९५२६ २७२८२९



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= = = == == = || सायनार्कवश से दशमसारणं-- राशि | } १ | २ | ३ | ४ |५| ६ |७| ४ | S|१०|११|१२|१३|१४|१५१६१७१८|१९|२०|२१|२२|२३२४२५|२६|२७२८|२५ t २०|२०|३०३०|३०३०३०||३ |३१३१३१|३१|३२|३२३२३२|३२|३१|३२|३३|ः ३३३३३३३३३३ |३४|३२३ तु ०| ९ |१८|२७३७४६|५५| ४ |१४|२३|३२|४१|५१ |०| ९ |१९|२८|३७|४६|५६| ६ |१४२३३३| +२|५१| ७ |१०|१९|२८ १६ ० |१६|३२|४४| ४ |२०|३६|५ ९ ८ २ १४०|५६|१३ १८|४४| ७ |१६३२|४८|४ ३६|५२| ८ |२४|४०|५६१२|२८|४४ वृश्चिक |३४|३४|३४|३५३५३५३५ |३५|३५|३६|३६३६३६ |३६|३६|३७३७३७३३७३७३०|३८|३८|३८|३८|३४|३४३५३ ३८|४७५७७ |१७२|३७|\*|५७७ |१७२७३७४७५| ७ |१७२५३७४७५७७ |१७२७३५|४७५७७ |१७ ५८ ० |५८|५६|५४|५२|५०|४८|५६|४४|४२|४०|३८|३६|३४३२३०२८|२६|१४२२|९०|१८|१६|१|१२|१०| ८ | १ | ४ | १ ३९३ ९३९४०|४०|४०|४०४ ०६|४१|४ |४१|४१|४१|४१|६ २|४२२४१|४३|४३|४३|४३|४३|४४|४४|४४|४४|४४| ५अ धनु ३७४७५४| ९ |२०३०|४१|५३| ३ |१३|१४३|४६१५६| ७ |१०|२९|४०|५०| १ |१२|२३|३३||५५| ६ |१६२७३८|४९ ४६ • |५६३२|१४| ४ |५०३ ६२| ८ |५४|४०२६१२|५४|४४|३० ६| २ |४८|३४|२०| १ |५२|३८२४१०|५६|४२२८१४ ४५४५/४५४५/ ४५/४५४ ६४ ६|४५|४६|४६४ ६||४७४७४७४७४८|४८|४८|४८|४८८|४९|९|४९|४४|४९|५०|५५ अकुर ०||२१|३२|४३५३| ४ |१५२६३६|४७५४९ |१९|३०|४१|५२| ३ |१३२४३५५५६ | ७ |१८|२९|३९|५०१ ११ ४३ ०|४६|३२१८| ४ |५०|३|६२| ८ |५४४९' ३ ६|१२|५८|४४|३०|६| २ |४८३२० ६ |५२|३०|२४|१०|५६|४१|२८|१४ ५५५५५५५१५१|५१५१५१|५|५१५५२५२ |५२|५२५३५३|५३५३५३५३५५५५५५५५५५५५५५ } कुरु |२३|३२|२|५२| २१ २२ २३ २४२|५२| २ १९१२|३२|४२|५२ २ |१२२२|३२|४२|५२| २ |१२२२३३|४२|५२ २ | १२ ५८ ० |५८५६५४५२|५०|४८|८६|४४|४ २४० ३८|३६|३४|३२|१०२८२१|२२|२२|२०|१८४|१६१४१२|१९४ | ३ | ४ | २ मी |५५५५५५५५१५५४|५६५६५६|५६५६ ५५७५५|५|५७५७५९|५०|१८|५८५८५९|५९५५९|५९५९५ ] २२३|३१|४०|४९|५९| ८ १७j१६३६|४५|'३ १३२२|३१|४१५०|५९| ८|१८|२७३६|४५|५४४ |१३२२३२|४१५ १ १६ |१६|३२|४४| ४|२०|३६.५२ ८ |२४४० ५६१२२८|४४० |१६|३२|४८||२०३६५ २ ८ २४|४०|५६१२|२८|४४| ० ||१० २ स अत अवतार का अध्याय छन्। ३२ जन्भयत्रQषक "= बिना नलकालके ही दशमदग्नस्तव मा प्रका? मेषादियुद्धोदययुक्शेषाच्छोध्या स्थूणादिः लकलेदयास्दनः शेषं वियत्र मेंश्च सङy = ; २२ ।। अशुद्धलङ्कोदयकैर्युतं लब्धं कादिकम् । मेषादियुद्भैर्युक्तं बली शोनं भं भवेत् ।। २३ शेज पळादि में श्रेय दे लेकर शुद्ध राशितक के स्वोद्यमानों को जोड़के जितना पछादि हो अक्षरों मकरादि ले लझदय लाने को जहाँ तक घट जाया घटा दैवे जो शेष बचे उसके ३० चे गुण करके अशुद्ध लङ्कोदय मान से भग दैने पर जो अंशादि लुब्ध हो उसमें मेषादि शुद्ध छक्केघ्य रश्रि संख्या को जोड़ के अयनांश घer ने से स्पष्ट दशमलन हो जाता है |२२-२३। । उदाहरण १५-१६ वें श्लोक के अनुरूए जो य प्रकार से ध्यानीत अशुद्ध राशि १ कर्क है कथं शेष = १९° ३६।१२। ४० मेष, वृष और मिथुन के स्वोदय पलः = २२०+ २१२ + ३०१ = ७७६

शेष पादि + मैय+ दृष+मिथुन =( १६०३६।१३३० + ७७६

= ९ २६ ।३६।१२४० इस में मकर, कुम्भ और सीनके लदमन (३१ ३ + २११ + २५८ = ९००} को घटाने पर शेष=( ९२६।३६॥१३४० )- ९०० = २६।३६।१२।४० शेष « ३० _( २६।३६। १२४० ) ३२ अङ्खलकेदयमान = = - - - - - २ ७८ ७९८ । ६ । २P २४८ = ३° । १३ । १६ फिर शुद्धराशिसंख्य + लब्धाशदि = ०२°१६३११६ N/ अयनांश= २१°३१'१९" वयया खो स्पष्टशम =१११११।२०६हुआ । १२ भाव साधन अथ लमोनर्”स्य षष्ठांशेन युतं तनुः । सन्धिः स्यादेवमग्रेऽपि षष्ठांशस्यैव योजना ! २४ ॥ त्रयः ससन्धयो भावाः षष्ठांशोनैकयुक्मुखात् । अग्रे अयः षडेवं ते भार्धयुक्तः परेऽपि षट् ॥ २५ ॥ चतुर्थ भाव में लग्न को घटाने पर जो शेष बचे उसमें ६ का भाग मैना स्लोइरएटिपएहदो टीका सहितः । लद जो अंश िवे उसको छन में शेड़ हेने से छल की अनिष्ट होती है ; इदं चट्टां को तनुसन्धि में जोड़ देने में द्वितीयभावः द्वितीयशत्र में उसी पट्टैश् ी जोड़ने से द्वितीयभ:ब को सन्धि होती हैं । एवं आगे भी इस क्रम से उसी षष्ठांश को जोड़ देने से सन्धि समेत ३ भाव हो जाते हैं इसी पष्ठांश को ढक राशि में बढा कर जो शेष बचे उसको चतुर्थ भाव से आगे क्रमसे जोड़ने से आगे के भी सन्धिसहित ३ भाव बन जरते हैं । एवं इदं ६ भrत्रों में ६, ३ राशिः जोड़ देने के शेष भी ( सप्तम भाव से लेकर हृदभाव पर्यन्त ) ६ आद इन जाते हैं। २५-२५ ।। १ उदाहरण चतुर्थं भव ९ १ ११ * ! १६' ५ १६ ॐ र २ ४ १ १० को ज्य के शेष में ६ क भाग देने से ( ३. १११ // १६/ } -(२६२७°४१'०१e} लछ३ अंद = १ है : =१३°१६ १९४१ " यीश हुआ। इस पद्यांश को उपर्युक्त नियम से जोड़ दिया तो १२ भाव होगये । | प्रयन सं• द्वितीय सं० तृतीय सं० | चतुर्थे सँ e | पञ्चम सं० १ षष्ठ सै० == =

= == = =

२ १ १४ ४१ ५६ १२ १० ५१

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१ ४ २७ ११ २७ १ ४ १८ ४३ २८ १२ ५ १६ c = २ ३ "-- " - 1 = = = उप्तम सं० अष्टम सं० नवम ! • दशम | सं० एकाद. सं० द्वादश सं० ५ १ १ १ २१ १८ १४ २७ १ १ २७ १४ १८ ४१ | १६ | १२ | २८ | ४३ | ५९ | १५ ५९ } ४३ २८ { १२ ५३ १० | ५१ / ३ २ } १३ | ५४ | ३५ | १३ ६ ३५ ५४ | ११ ३२ ५१} विशेष ( श्रीपतिपद्धति से ) वदन्ति भावैक्यदले हि सन्धिस्तत्र स्थितः स्यादफलो ग्रहेन्द्रः । अनस्तु सन्वेगेतभानजात नागाभिजं चाभ्यधिकः करोति ॥२६ भावांशतुल्यः खलु वर्तमानो भावोद्भवं पूर्णफलं विधत्ते । भावोनके वाभ्यधिके च खेटे त्रैराशिकेनाऽत्र फलं प्रकल्प्यम् ॥२७॥ ३४ जमथअॅई एक भावप्रवृत्तौ हि फळप्रवृत्तिः पूर्णे फलं ससंशकेषु । ह्रसक्रमाङ्गात्रत्रिरासले फलस्य नाश्शे अदिलो मुनीन्द्रेः ॥२८ जन्मप्रयाणव्रतबन्धचौलनुषाभिषेकादिकरश्लेष्ठ एवं हि भावाः पतिीयस्वैरेव योगोत्थफलं प्रक्षश्च ६९१ दे भावों के योग के आने को सन्धि कहते हैं । सन्धि में हेि श्चत ग्रह फलझन में समर्थ नहीं होता । सन्धि से कम प्रह पूर्वभव का और सन्धि से अधिक ग्रह अत्रिसभाव का फल देता है। नात्र के अंश तुल्य ग्रह होतो भाव सम्बन्धी पूर्णफळ देत7 है। भय से कम या अधिक ग्रह होतो त्रैराशिक गति द्वारा फल की कल्पना करें । भाव प्रवृत्ति में फलकी प्रवृत्ति और भावी पूर्णता में फल का पूर्णत्व होता है । एवं ह्रास क्रम से भाव के विराम में फल का अन्त होता है ऐख मुनियों ने कहा है। जन्म, यात्रा, यज्ञोपवीत, मुण्डन, राज्याभिषेक, बिबाह इत्यादि कार्यों में इसीप |कार भव साधन करनः चाहिये थे और इन्हीं भावों पर से योगोस्थफलों का आवेश करना चइये ।। २६-२९॥ आज कला के क्षुछ पण्डितों ने श्रीपतिपद्धति जातकपद्धति ( केशवो ) इत्यादि बड़े २ प्रामाणिक प्रयों को यवनमतानुवादित ग्रन्थ बतलाते हुए इस भावानयन विधि को अशुद्ध कहना और श्रीपतिभट्ट केशवदैवज्ञ, ज्ञानराजवैवज्ञ प्रश्वत प्रकाण्ड विद्वानों को ग्रन्थानधिकारो सिद्ध कहते हुए- ‘दरनमारभ्य सर्घम्न शशिधृष्या यथाक्रमम् । भावाः सर्वेऽवगन्तव्यः सन्धी राश्यधंयोजनात् ॥ इस स्थूळ भावानयन को हो शुद्ध भावनयन बताना आरम्भ कर दिया है । किन्तु ऐसा कहना उन्हीं लोगों को शोभता है। क्योंकि इस स्थूळ भावानयन को लिखते हुए शूरमहाठ श्रीशिवराजदैवज्ञ ने अपने ज्योतिर्निबन्ध नामक पुस्तक में स्वयं सुच्पष्ट लिख दिया है एतत्स्थूढं भावानयनं सूक्ष्मं तु जातकपद्धतेरवगन्तव्यम् ॥ इति । कमलाकर भट्ट ने भी अपनी सिद्धान्ततस्वविवेक नाम को पोथी में इस पर विचार किया है । किन्छु डद्यान्तर स्फुटभोग्यखण्ड इत्यादि की भाँति इसका विचार भी इन्मत्तप्रलापत्र हो गया है । इति दिक् । अह की शयनाद्यवस्था खेष्ठसख्या खेटी खेडशगुणिता पुनः । जन्मक्षद्वेष्टयुक्ताऽर्कतgघस्था क्रमाद्भवे ।। ३० ॥ शयनं चोपबेशं च नेत्रपाणिः प्रकाशनम् । गमनागमने चैव सभावसतिरागमः ॥ ३१ ॥ ३५ खोदहएखटिप्पणहिन्दी टोका सहितः । से भोजनं नृत्यलिप्सा च कौतुकं निद्रितेति च । पवर्ग स्वराङ्काख्यं भज्ञान शेषितं ततः ॥ ३२ ॥ आन्वदिषु क्रमात्पञ्चयुग्मनेत्राग्निसायकः । रामरमाब्धिभेदाश्च क्षेप्यास्तष्ठस्त्रिभिस्ततः ।। ३३ ॥ एकादिशेथे खेटानामवस्था त्रिविधा भवेत् । दृष्टिचेष्टा विचेष्टा च कथिता पूर्वपाण्डितैः ।। ३४ ४ बृह ब्रह. जिस नक्षत्र पर जो ग्रह स्थित हो उस नन्न की संख्या व ६ अंश की संख्या को गुणा करके राशि के जितने अंश पर प्रह बैठ हो त्र की को संख्या से भी उख गुणनफल को गुणा करे । फिर जन्म ७ सन् नों संख्या, इष्ट काल के गत घटो की संख्या और जन्मलन की संख्या इन दे के योग को उख गुणनफल में जोड़ के १२ ज भा देने पर ५गमन शेष बचे तो क्रमसे १ शयन्न, २ उपवेशन, ३ नेत्रपाणि, ४ प्रकाशन हcat, ६ आगमन, ७ सभाबसते, ८ आगम, १ भोजन, १९ ११ कौतुक और १२ नद्र ये बारह प्रहों की अवस्थायें होतीं हैं न के फिर शेष का वर्ग करके ( शेष को शेष से गुण के ) प्रसर्च ६,

  • स्वराङ्क को जोड़ के १२ का भाग हैं जो शेष बचे ३८में यू',

मल के ळिये २, बुध के लिये है, बृहस्पति छ; से भाग चन्द्स आर डैने पर १ शेष बचे तो दृष्टि, २ शेष बचे तो चेष्टा और ३ तो विजेष्ट नामको विशेष अवस्था भी होती है । लेख पूवांच कहा है ।। ३०-३४ ।। से और रेवती नक्षत्र पर सूर्य है तो नक्षत्रसंड्या २७ को अह की संख्या १ सूर्याधिष्ठित अंशकी संख्या २१से गुणा कर दिया तो ६६७ हुआ इसमें जन्मनक्षत्र अनुराध की संख्या १७इटुकल के संख्या १३ और जमर्रन की संख्या ३ के योग ( १७ + १३ + ३ = देव बचे जड़ के योगफळ = १६०+ ३३ = ६०० में १३ से भाग दिया तो १२ ३=१४४ इसलिये सूर्य की निद्वा अवस्था हुई । फिर शेष १२ का वर्णं १२*६को बना के इखमें प्रसिद्धनाक गोविन्दप्रसाद के आयक्षर स्वर १ ओ ) के अ* स शेप जोड़ के १४४ + ९ = १४९ बद का भाग दिया तो ६ शेष हुए । दिया तो (६) में सूर्य के क्षेपक १ को जोड़ के (१+३=१९ ) तीन का भा शेष बध इसलिये सूर्य की निद्वा अवस्था के अन्तर्गात डटि नाम कों ने हुई । इसी प्रकार चन्द्रमा इत्यादि की भ अवस्था बनानी चादिवे ।

  1. , इ, उ, ए, ओ इन पाचों स्वरों के क्रमसे १, २, ३, ४, ५ स्वराह देते हैं ।

र्वाचार्यों ने उदाहरण २७ ४ १४ २१ • गत बटी की ज्गन ईश्वकः-- अयन र 75 की ३८५४६ - ब्रू-- दीश’ स्वस्थः अङ्गदतः शन्ख दें.ऽरिषुःखितः । विळखे खल' शायर था खञ्च ’ भत्र’ । ३५ ।। उझ१ बेच दीप्तः स्त्रस्थः स्वझेऽधिमित्रभे । प्रदिवः मित्रभे शान्तः समरे दीन उच्यते ॥ ३६ • शत्रुभे दुःखितोऽतीव विकलः पापसंयुवः । खलः खलग्रहे श्रेयः कोपी स्यादर्कसंयुतः ॥ ३७ ॥ दीप्त, मथ, प्रमुदित, शन्तु, दीन, अतिदुखित, विकळ, खट, और ६ कोपी ये नव प्रकार के प्रह होते हैं। अपने उच्च में स्थित ग्रह दीप्त, अपन राशि में स्वस्थ, अधिमित्र की शशि में दिठ, मित्र की राशि में शान्त, वल की राशि में दीन, शत्रु के राशि में अति दुःखित, पापग्रह-से युत रहने पर बिक, पप ग्रह की राशि में रहने पर लख, और सूर्य के साथ रहने से कोपी ग्रह होता है । ३६-३७ ! पत्रधा मैत्री ( सारावली से ) व्ययाम्बुघनखा येषु तृतीये सुहृदः स्थिताः । तत्कालरिपवः षष्ठसप्तथैकत्रिकोटगाः ॥ ३८ ॥ । हितसमरिपुसंज्ञा ये निरुणनिरुक्ता हिततमहितमध्यास्तेपि तत्कालखेटैः। रिपुसमसुहृदाख्याः तिकाले ग्रहेन्द्रा अधिरिपुरिपुमच्याः शत्रुतश्चिन्तनीयः ॥ ३ ॥ तत्काल में १२।४।२१०११३ इन स्थानों में २हने वाले प्रह आपस में सित्र होते है। और ३M७८१९५ इन स्थानों में बैठा हुआ प्रइ शत्रु होता है। जो ग्रह स्वभाव से सित्र, स्म अथवा शत्रु हैं वेही यदि तस्काळ् में मित्र हों तो क्रम से तत्काछ में अधिमित्र, मित्र और सम होते हैं । अर्थात् स्वाभाविक मित्र प्रह तकाछ में भी मित्र हो तो तत्काछ में आधि मित्रस्वाभाविक सम प्रह यदि तत्काळ में मित्र होतो मित्र एवं स्वाभाविक शत्र, प्रह. यदि तस्काछ में मित्र हो तो ताकाठिंक सम कहा जाता है एवं जो प्रह. स्वभाव से शत्र सम या मित्र हैं वे ही यदि तत्काळ में शत्रु होजाएँ तो क्रम से उन्हें अधिशत्रुशत्र औरं खम नमझनत , चाहिये ।। ३८-३९ ।। सोदाहरणसटिप्पणहिटी टीका सहितः ! ३६ नैकमैत्री- चं, मं त्रि सू. . टु• ङ. " -- "- - "-- -- - --- " " नं. ठू . खन 5. ४. श्,


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शy g ४. श. • - चं ३ पृष्ठ पर लक्षित जम्मङ इल के अधर पर तात्कालिक श्रमं वक्र प्रह ' मु. नं. 1 = तRSालिक ङ. ६. वृ. ङ. सू. घं. निम्न शुक्र.श. शु. .शु. श . मं. तारकालिक चं.वृ.स. च. चू . वृ. सु. म. ङ वु. वृ. ङ. वृ. में सू. . श. ङ. श. श. ६ यु.

== = == == == = = == = == = पञ्चघ ग्रहमैत्रीचक्र अधिमिश्र मि यू, . • शान मं. च. हैं. | मम .. . . इ. च. ङ. चू• सू. च. सू.च.मं. सू. मं खु• रा. डु, झ. शत्र यू. श. अचिराद् ! • ङ. यु. द्वग --- लग्नं राइकसप्ताङ्ककाष्टाभास्वन्भूषत्रिंशदभ्राङ्गभागाः । दिग्वर्गारूयाः प्रोक्तरीत्या प्रसाध्या होराविलैः प्रस्फुटं सत्फलार्थ४० छन, होर, ट्रैष्ण, सप्तमांश, नवमांश, दशमांश, द्वादृशांश, षोड शांश, निशांश और षडयंश ये शबर्ग कहे जाते हैं । इनको आगे लिखी रीति से स्पष्ट करना चाहिये ॥ ४० ॥ राशिस्वामी कुजारनभिष्झेन्दुर्यज्ञशुक्ररेयसौरिणः। शनीयौ क्रमयोंशानां मेषादीनां च स्वामिनः ॥ ४१ ॥ ४ अ० दी ० अवशुद्धदृषदकः मङ्गळ, शुक्र, बुध, चन्द्रमा, जूर्य, बुध, शुक्र, मङ्गळ, गुरु, शनि, शनि और गुरु थे ग्रह क्रम स्खे मेषादि १२ राशियों के स्वामो हते हैं । अर मेषदि राशियों के अंशों के भी स्वामी होते हैं ।। ४१ ।। हरे रवीन्द्वोरसमे समे स्तः शशिसूर्ययोः। द्रेष्काणेशः स्वपश्वङ्कभेशः स्युः क्रमशः स्फुटः ३ ४२ ॥ विषम राशियों ( १३५७१९११ ) में पहले १५ अंश तक सूर्येकी फिर १५ अंश चन्द्रमा की एवं सम ( २४६।८।१०१२ ) राशियों में पहले १५ अंश तक चन्द्रमा की फिर १५ अंश सूर्य की होरा होती है । किसी भी राशि में पहले ऐनकाण ( १० अंश तक ) का स्वामी उसी का नामी दूसरे द्रेष्काण्ण ( ११ अंश से २० अंश तक ) का स्वामी उससे पञ्चमेश और तीसरे द्रेष्कण ( २१ अंश से ३० अंश तक ) का स्वामी उसखे नवमेश होता है । ४२ ।। समश -- लग्नादिसप्तमांशेशास्त्वोजे राशौ यथाक्रमम् । युग्मे लग्ने स्वरांशनामधिपाः सप्तमादयः ॥ ४३ ॥ विषम संख्यांक ( १।३५७९११ ) राशियों में उसी राशि से, खम संख्यक (२१६८१०/१२ ) राशियों में उस सप्तम राशि से खप्तमांश की गणना होती है । ४३ ।। नवमांश -- मेषादिषु क्रमान्मेषनक्रतौलिकुलीरतः। नवमांशा बुधैर्जेया होराशास्त्रविशारदैः ॥ ४४ ॥ मेषादि राशियों में क्रमसे मेष, मकर, तुला और कर्क इन राशियों से ( ३ अंश २० कला का ) एक एक नवमांश होता है ऐसा होशशास्त्र के जान कारों ने कहा है। मेरा दूसरा पद्य चरे स्वस्मात्स्थिरेवाङ्काद् द्वन्द्वे तपश्चमादितः । नवमांशाधिपतयो ज्ञेया जातकविद्वरैः ।। इति ।। ४४ ।। दुशमांश-द्वादशांश- ग्नादिदशमांशेशास्त्वोजे युग्मे शुभादिकः । द्वादशांशाधिपतयस्तचद्राक्षिवशानुगाः ॥ ४५ ॥ विषमराशियों में उसी शशि चे और समराशियों में उस्रके नवमराशि सहरएसटिप्पणहिन्दी टीका सहितः ! है से दशमांश की एना होती है। प्रत्येक राशि में इसी राशि हे दृशां की गणना होती है ! ४५ } राशिस्वामी-होरा-द्रकाणसप्तमांस-नवमांश वेधक चक्र मे. वृ.नि. क. तु. ६.. १. ब. – र्म राशि स्वामी ’ङ. ङ. च. सू, बु..शु में. ड. श. श. वृ रशियन सू.चं . सू.चं. सू., चं. सू.चं. मु. च । सु. चं. १५ अंशश - - - - - - चं. सू. चं. सू. चं , न्यू, सू: चं. स् चं. मु १५ अंश

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= मे. वृ. मि. क.चिं. क. तु, ड. ध. क.मी १० अंश्च २२ अंड लि. ' क .ट. वृ. घ. म. कं .मी . ने . वृ. से के व. म. सै.मी. मे. वृ.मि? कसिंक द्व! ३० अ श मे. वृ.सि. स. सिं. मी. तु. वृ. ध. क ऊं: क. ४१७८ वृ.' य म मिं.न.' नु. ९३४ १७ | = /४२५१ ० ० ० ६|४० म म ,सेिं .मी.) तु वृ. ध. क. ङ. क.मे . वृ . १२५१२५ कङ. क . .| मे. वृ.मि. मसेिंमी. तु. वृ. घ. १७८३४ मी . तु. वृ. ध. क. कैं. क.मे | वृमि. म. २१२५/४२ | क. मे वृमि. .सि.मी. तु.) वृ ध. क. ङ. १५:ः । ह.घ्. ध. क.ङ. क. ने. वृमि, म.सि.मी. मे म तु क. मे, न तु क. ) मे म तु. क. ३२० बृ.कु . वृ.इ. वृ.सिं.वृ.कैं. वृसिं. सि.मी. धकमि.मी. ध. क मि.मी. धक क मे म तु.क. मे. म | तु क. मे से. तु. १३२० ॐ ठं. ड.छे. वृ.सि. . इ. ऋ.सि. कृ. कुं ः १६४० कमि.मी. ध. क. मि.मी. ध.क. मि.मी. घ. तु. क. मे म. तु.क. ने. म. तु . क. मे म. २३।२० .सि. वृ.ङ. वृ.सिं. वृ.छं. इ.सिं चू. कुं २६४० | च कमि.मी. घ/ के. मि.मी. घ क.मि.मी १०३० -


३०० ३०• ४० जन्मषत्रद्दधकः दशमांश-द्वादशश चन• राशि १. वृ. मि.के. सिंकतु. ड. ध. म. सै.मी. अंश } कल से म मि मी सि |.तृ. तु• क. ध. . चुं. वृ. वृ. छं. क. मे. कः सि ङ. सिमतु. मी ध. मि.मी.सि. वृ. . क. ध. क. ङ वू. मे म. क. भ. क. मि.वृ.सिं.म. B. मी.घ. वृ. १२॥ छिं.वृ. प्र. क. ध. क. ङ.वृ. मे. मि.मी. १५० १८० क. मि. वृ. छिं.म. तु. मी.ध. वृ. छं. क. मे. तु.क. ध. क. ङ. चू. मे. म. मि.मी.सिं.वृ. २१ वृ. सिं म. पु.मी.घ. वृ. छं.क- मे क. मि. २४० २७१० ३० ० इ. मि.क. सिंकठ. डु ध म छै. मो. २३० वृ.मि.क. सिंकतु. वृ. घ. म. सै.मी.दे. |मि क. सें. क. तु. वृ. ध. म. कुं. मी.मे. वृ. ७|३० १०१० क. डि. तु. लु, ध, म. सै.मी. वृ. मि. सिं.क. त. वृ. ध. म. सै.मी.दे. . मि.क, १२३ तु. कृ. घ.म. ी. . वृ• !मि.क. सिं. १५/० तु• थु. घ. म. ी. मे. वृ. मि.कः सि.क. १७३० वृ•घ. म, कुं. मी. मिकसिं.क. तु e २२।३० |घ म. सें. मी. मे. वृ. मि.क. सिंकतु. वृ. म. सै.मी.मे.वृ. मि.के. सिं.क. तु. वृ. घ. मे.वृ.मि.क. सि. क. तु- ढं. ध. म. २५१ २७३० वृ. मि क. सं.क. तु. '. घ. स. 'कुं. ३०० स्रोदाहरणटिक्षणहिन्दी टक सहितः । ४१ घोडशांश मेषादिषु मेषासिंहृचाभ्यो अग्रणयेद्बुधः। स्बेशाकोः तृषांशेश्मः ओजे युग्मे क्रमोत्क्रमात् ॥ ४६ ॥ नेपादि राश् ियों में मेषसे आरम्भ करके नवमांश क्री नई ( अर्थात् मेष में मेष ले, यूप में सिह से, मिथुन में धनु से फिर कर्क में मेषसे, सिंह में सिंह, कन्या में धनु से एवं आगे भी ) षोडशांश की गणना होती है । ( और विषमसंख्यक राशियों में क्रम से ब्रह्म, गौरी, महादेव और सूर्य तथा सम राशियों में उक्रन से उक्त देवता षोडशांश के स्वामी होते हैं)। । समरांश ने. चू. मि.क. सिंकतु. वृ. घ. म. क. मी. अंश शाबीिशः वीशः भी ब्रह्म मे. सिं.ध. मे. सिंधसे. सि.घ. मे. सि.वि. १२३० ९ सूर्य | गौरी दृ. क.म. चू. क. म. ४. क.म. ङ. क.स. ३१४५० महादेव महदेव मितकुं- सि. कॅमि तु. छंसितुछं. ५|३७३ सूर्य मी.क. ऋ. मी.क. वृ. मी.क. चूं. मी. ७/३०० ब्रह्म सिंकमे. सिंघ. मे . सिंघमें. सि. ध. ने. &i२२/३० सूर्य गौरी कमवृ- झ. म.वृ.क. [म. वृ. . म. वृ. १११५० महादेव महादेव तु कू.मि. कुं. मि.तृ. — 'मि तु. कु. 'मि. १ ३७३ गौरी सूर्य वु. म.क. वृ. मो.क.वृ.मी. कं. वृ. मी.क. १५०१० ब्रह्म ध. मे. ध. मे सिवने. सं.ध. मे. सि. १६५२ गौरी म. वृ• क. म. चू. क-म. वृ. क. स. वृ. क. १e\४५० ; महादेव | महादेव ड. .मितु. .तु२०३७३० गौरी । कुं-सं.छं. मि.- ॐ .कृमि. ब्रह्म मे. घ में. सिं.घ. मे सिंघमे.सिं.घ.२४२२।३० सूर्य | गौरी . क. म. छै. कम- चू. कमवृ- क.म. २६१५ महादेव गौरी | सूर्य क. - मी.क. .मी.क. टू मी.क. यु. म. ३००० । ब्रह्म | ४९ जन्मएकीयपक्षः त्रिंशांश कुजयमजीवझलिताः पञ्चेन्द्रियसुखनिद्रथशन ! विषमेषु ससँ पूरक्रमेण त्रिंशांशयः कश्यपः ।। ४ ।। विषस राशियों (१५७६९/११ ) में इससे ५८७४५ अंशो के भौम, शनि, बृहस्पति, बुध और शुक्र ये च ग्रह बसी होते हैं । यवं मम राशियों ( २।४।६।८।१०१२ ) के विपरीत अर्थात् ५/७/११५ अंशो के शुन, बुध, बृहस्पति, शनैश्चर आर मङ्गळ ये त्रिशांश ईवाम होते हैं ।। ४७ ।। ईत्रशांशबोधकश्चक्र मे० मि० सिं० तु० ध० ॐ० धृष० कर्क० कन्या० वृ० मक० मी० थे मङ्गल ५' शुक्र = = = = =

५ शनैश्वर ७ बुध


- ८ बृहस्पति ८ बृहस्पति ७ बुध ५ शनैश्चर --- --


-


५ शुक्र यू मङ्गल षष्टयंश षष्ठयंशकानामधिपास्त्वयुग्मे घोरांशकाद्याः सुरदेवभागः । यदीन्दुरेखादिशुभाशुभांशक्रमेण युग्मे तु यथा विलोमात् ॥४८॥ ३०/३० कलाका एक एक षष्ट्यंश होता है। प्रत्येक राशि में उसी राशि से प्रारम्भ होता है। और उनके घोरांशक इस्यादि क्रमसे विषम राशियों तथा इन्दु रेखादि क्रम से सम राशियों में स्वामी होते हैं। जो चक्र से स्पष्ट है । ४८ ।। पारिजातादिसंश ऐक्यं द्वित्रयादिवर्गाणां क्रमाज्ज्ञेयं विचक्षणैः । पारिजातनुत्तमं गोपुरं सिंहासनं तथा ॥ ४९ ॥ पारावतांशकं देवलोकं च ब्रह्मलोकफम् । ऐरावतं तु नवकं वैशेषिकमतः परम् ॥ ६० ॥ सदइएलटिप हिन्दी टीका सहितः | जे अह ने ईं ’ वरौमें स्थित होते परिजहरुथ, ३ वर्गों में वे ते उरः , अ: च में है’ तो धुर ध, सच आमत्री में होते ते द्विासनश्च, छ वर्ग लें हो पर छलांशश्चन में ह ते । वैश्लोकध, iठ अनं में इं; ब्रह्मलोकस्थ, १ क्षेत्र में उठ हो !&तश९५ दश्र! देश भर में ३४थत होतं बैं; . थ कह 37 है । ५९-५० {{ दिइ१तरी अंद११ इञ्च-- दश चान्तदंशः दैत्र त्रिदशपदा तथा । श्र!णाख्या च फलं तातं वदेच्छत्रानुसार B ५१ । १ महदश, २ अन्तर दश, ३ विदश ( प्रत्यन्तर दशा ), ४ उपदेश, ( सूक्ष्मदृशा ) और ५ श्रादशा ये ५ प्रकार की दशायें होती हैं । इनके फल का शान के अनुसार आदेश करे ! '५१ ।। म्हदृशान - स्युः कृत्तिकादिनवकञ्जिकभे रवीन्दु भौमाऽणुजीवशनिविच्छिखिभार्रवाणाम् । षदिनगेभबिघु-भूष-न चेन्दु शेल भू-धरा नन्नपितयः क्रमतो दशब्दः || ५२ ॥ । कृत्तिका नक्षत्र से आरम्भ करके स्त्र नत्र नक्षत्र की आवृत्ति में . गिनने पर क्रमसे सूर्य, चन्द्रमा, सङ्ग छ, हु, बृहस्पति, शनि, बुध, केतु और शुक्र इन की दशा के ६१०७१८१६i१९१७,७२० वर्षे होते हैं । ५२ ॥ विशोत्तरीया दशा इति० रोहि• सुग० आर्मी • पुन० | पुष्य आलेसधा | पू.क नक्षत्र |उ.फ हस्त चित्र ” स्वाती विशा. अनु० ज्येष्ठा ! मूल | पूषा उ.मी अवण धनिष्ठा शत० पूभा°उ.मा रेवती अश्वि भरणी दशेश | सूर्य चन्द्र भौम गहुँ गुरु | शनि. बुध केतु शुक्र | न ६ ३ १० ३ ७ | १८ | १६ | १६ | १७ | ७ | २० ४४ जनष्षष्ठं अर्कैः- (क) दशाभुक्तभोग्यायल ~~ भयावमानेन हता दशाब्दा भभोगमानेन हृताः फलं स्यात् : समादिके भुक्तमनेन हीना दशामितिर्भाग्यमितिः स्फुटा स्यात् । ततः प्रभृत्येव दशाफलानि प्रकर्षनीयानि बुधैर्जुहाणाम् ॥ ५३ ॥ दश वर्षे को पलात्मक भयत से गुणा करके पछामकभभोग से भाग देने पर लब्धि वर्ष होता है। फिर वर्ष शेष को १२ से गुणा करके उसी भभोग से भाग देने पर लब्धि मास आता है । पुनः सास शेष को ३० से गुण के उखी हर से भाग देने पर भाग फल गतदिन आता है । एवं दिन शेष को ६० से गुणा करके उसी भाजक से भजन करने पर छ€िध गतघटी होती है और घटी शेष के ६० से गुण के उसी भाजक से भाग देने पर लब्धि पळा होती है । एवं ५ स्थानों तक लब्धि लेकर आगे प्रयो जाभाव से शेष को परित्याग कर देना चाहिये ! अत एव किसी ने लिखा भी है शेषाद्कंगुणा मासः शेषास्त्रिशद्गुणा दिवा । शेषास्षष्टिगुणा नाडयः शेषात्षष्टिगुणः पलाः ।। इति । इस भांति जन्मकालीन द्शा का चौरात्मक भुत बर्ष, मास, दिन, घटी, पल होता हैं। इस को दशा। वर्ष में घटा देने से शेष दशा का भोग्य वर्षादि हो जाता है। यहीं से दशा की प्रवृत्ति होती है ।। ५३ ।। ( ख ).दशा का भोग्यानयन भयातघटयूनभभोगमानं स्वैः स्वैर्दशब्दैर्गुणितं विभक्तम् । भभोगमानेन फलं भवेद्य तदेव चोग्याः शरदो दशायाः ॥ ५४ ॥ भयात को भभोग में घटा कर' जो शेष बचे उसको पलामक बना के दंशा वर्ष से गुण करने पलरमक भभोग से भाग देने पर लघि देश का भोग्य वर्षोंकि हो जाता है । ५४ ।। सोदाहरणसटिप्पणहिन्दी टीका सहितः । ४५ दश का भुक्तवनयन १ दश का भोग्यवर्णनयन- चलात्मकं सय २७९६ ! पळामक भभोग ६७१ शनिदशवर्षी = १९ शनिदशावर्षी = १९ ६ ३ ११ २७६९ ६ ७ ९ ३४३४)१२३४५(१९२५२ २७२११ . ३४३४)१२९०१३।९।२। ७४१ ३४३४ वर्षादि दश शुरू हुआ १० ३०२ वर्षादि दशाभोग्य २ । ६९९ ल हो गया ३४७९६ १८e e९ १७१७० ६ ३४३४) ३११८८ ३ २ २२६ ८३६ १२ ३४३४)१००२० ६८६८ ३८३ ३१९२ ३० ३९ { ३४३४) ४४६५ ६ ८६८ ११९२ ६ २ } ३४३४९६६२ = ६८६८ ३४ ३ ४)९४१६० ६ ८६८ ३ १८८० २५ ९३८ १८४२ २६८४ ० २ ४ ० ३८ ६० ३४३४)११०६२० ३८०२ ६० १०३० २ ३४३४)१६८१२३० १३७३६ ७६०० ६ ८६८ ३० ७६२ ३ ७४२ ६ ३ २ ३२८४ = शेच ३ ४३४)३७१२ अर्धाचिक होने के कारण ८ की ३४३४ जगइ दोष ९ कल्पना कर लिया तो ३१८० ३४३ वर्षोंकि दशा का ३।९।१२७४९ १४६ = शेष भग्य काळ्हुआ । ‘अधमं त्याजः इस नियम के अनुसार शेष १४६ को छोड़ दिया तो हडिंब १६ ।२दशा का २३२११ सुवषद्वि हुआ । इस प्रकार दशके झुक और भोग्य दोनों का साथ खथ गणित करने से कभी अष्टद्धि नहीं हो सकती । ४एँ काल्नधकः महादेश लिखने का क्रम - | । श० { चु• के० शु° सू० चन्द्र दशेश } १७ १० दोष भास दिन २७ ४९ १६६०१६e४२०११२०१८२०३८२०४४ संवत् ५ के ११ राशि ३० | १३ | २३ | २३ ३ २ ३ | २३ | अंश ५८ | २५ | २५ | २ | २५ | २५ कला • ॥ ४६ ४६ ४६ ॥ विकल | ४३ | | ye | । (ग) स्पष्टचन्द्रम ही पर से दशाझ भुक्त भोग्यानयन- स्फुढेन्दोः कलायं विभक्तं खड्गैः ८०० फलं भानि दास्स्रादिकानि स्युरेवम् । दशाब्दैर्हतं शेषकं खञ्जनागै ८०० हृतं स्यात्समाधं दशभुक्तमनम् ॥ ५५ ॥ ततस्तद्विशोध्यं दशद्वर्षमध्ये वशिष्टं भवेद्रोग्यमानं दशाय।? । फलं पूर्ववत्तस्य कस्यं सुसद्भि र्महद्भिस्तथा काशिकायां वसद्धिः ॥ ६६ ॥ रश्यादि स्पष्ट चन्द्रमा की कला बना के ८०० का भाग देने पर डब्धि गत नक्षत्रकी संख्या होता है । अब वर्तमान नक्षत्रके अनुसार जो दशवर्ष आवे उखसे शेष कला को गुणा करके ८०० का भाग देने पर टध वर्षादि दशा का भुक्तमान होता है। उसको दशा वर्षे में घटा देने से शेष दशका भोग्यवर्षादि होता है । ५५-५६ ।। (घ) प्रकारान्तर से भागपूर्वः शशी याहृतः खाब्यि ४०हृत्चत्फलं यातनक्षत्रसंख्या भवेत्। शेषकं स्वैर्दशावैर्गुणं ’भाजितं शून्यवेदै४०र्दशभुक्तमानं भवेत् ॥ तत्परं पूर्ववद्रोग्धमानं तथा कल्पनीयं फलं जातकलैः सदा ॥१७ ४४ स्वदाहरणखटिप्पएहिन्दो टीका सहितः । अंशादिक स्पष्ट चन्द्रमा को ३ से गुणा करके ४० क भाग्न देने पर डब्धि इत्र की संख्या हैं' ती है शेर झंझादि के श्य र से शु छ र करने ' का भाग देनेसे लब्धि दुS ' भुक्तवर्यदि द् िन है ; उसके बाद ४ के मृत्रिवध से भोग्य को क क्रे , ५८१ (=) अंदादि नक्षत्र शेप पर से देश का भोग्यान्यन भागादिकं श्राः किल यद्भशर्षे चैिन्नैर्दशाब्दैगुणितं विभक्तम् । शून्याब्धि४०भिस्तन्खलु भोग्यमानं विनः अयालेन भवेद्दशायः ।। ४८५ अंशादि नक्षत्र शेष(१) ( भोग्य ) को त्रिगुणित से मुड देश न करके ४० के भाग डैने से डेटिंध दुश का भोग्यवर्षादि होता है ।। ५८ । ।। (२) अन्तरदशसा घन कः सुलभप्रकार दश(दशघलभवस्य योङ्क अयः स् धीरैस्त्रिगुणो चित्रयः । तावन्मिताः स्युर्दिवसश्च मासः शेषाङ्कतुल्याः सुधियाऽवगम्याः ॥ ५९ ॥ जिस ग्रह की महादशा में अन्तर दशा निकालनी हो उन दोनों ग्रहों के महादश का परस्पर गुt करने जो अङ्क ( संख्य। ) हो उसके वध से आद्यङ्क को से गुणा करडैने पर दिन हो जाता है। और शेषज्ञ के समान बना लेना चाहिये ) ।। ५१ ।। उदहरण बुध की महादशा में शनि का अन्तर बना है तो बुधके दशवर्ष १७ से शनि के दशवर्ष १९ को गुण किया तो १७ x १९ = ३२३ हुए इन में आथक्क ३ को ३ से गुण। क्रिया को ९ दिन हुए थे और शेष ३३ मास बचे । अर्थात् बुध की महा . दशा में शनि का अन्तर २ वर्षे ८ मास ९ दिन का हुआ । एवं सर्वत्र अन्तरदशा का साधन बी सुगमता से हो जाता है । =

' = = १स्पष्ट चन्द्रकला . में ८०० से भाग देने पर जो लब्धि आवे वह रात नक्षत्र की संख्या शेती है और वर्तमान नक्षत्र की मुक्त कला होती है। भुककला को ८७० में पद्य के ६० का मार्ग शेष देने से नक्षत्र का भोग्यांश ( अंश छेष ) होता है। ४८ सूर्य की महादशा में अन्तर्दश । चन्द्रमा की महादशा में अन्तर्देशt । । स् च, न, रा. वृ. श. ड.के.घं.चं म. ए.के. श. ङ. के.. पृ. ङ. | दशे : ०| १ | ० ० १ १ ११ } ° \ १ \ २ \ ७ वर्षे ३ ६ ९ ४ १० ९ १११९ ४ ९ ० १०१६ ४ | ७ | १ | ७ | ४ | ६ | १ साल १८ ) ० १ ६ २०१८१२ ६ | ६ | ७ |१८} ° } ° { ० ° \ ° \ ° ! ° % ° \ २ \ दल मङ्गल की महदश में अन्तर्देश ] राहु की महादशा में अन्तर्देशः । म. ए.ङ. च. झ. के. शु.स्. चं.भु. २.टी. श.|खु, के... चं, म. ४. | दलैश्च a | १ ०| १ २ } ° } १० \ ° • }२ २ २ ! २ | १ | ३ | १ | १ | ° } चप ४ | ० ११ १ १ १ ४ २ ४ | ७ • ८ ४ ११६ ६ | ० \ ० }१० | ६ | ° | १} मात्र १७१४ ६ ९ २७२ ० १ ६ १० २१ १२ २ ४ ६ १८१८ ७ २ ४ २ ११४२४ दिन यूहस्पतिको महाशामें अन्तर्देश। शनि की महाद्श में अन्तर्देशा ।

==

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= == च. झ. ड. के.सु.सु. चं.से. र. धु. द. ड. के. शु.स्. चं. मं. रा. चू. भु. | दोश २ २ | २ | ०१. ० १०२३ २ | १३० | १ | १२३२० वर्षे १६ ३ ११ ८ ९ ४ ११ ४ १० ८ १ ! २ १ ७ | १ |१९| ६ | १ | स १८१२ ६ \ ६ \ ० १४ ० |६ २४: } ३ ९९० १ २ ० | ९ | ६ १२ २७ दिन बुध को महादशा में अन्तर्देशा । केतु की महादशा में अन्तर्देशा । ङ.के.इ.स्. चं.सं.रा.वृ.श. यु. के. . . चं. सं. २.तृ. झ.घ.ङ. दशेश | मालक = १ | 2 वर्षे ० १ १ ४ १११|११६ | ३ | ४ | १ | ४ | ३ | ४ | ७ | ४ | ० ११ १ ११ ७ शाख २७ ३७) २ } kala१३७१८ | ६ ९ २१२७ ७ ६ | ० २७१८ } ६ |९ २७२१ दिन शुक्र की महादशा में अन्तर्देश। |-|-|--------


|

+| - | . |. |चं.म, रा. . |श. ङ.के. क्षु. बुशेश ३ | १ | ११ | ३ | २ | ३ | २ | १ } & . वर्ष ४ | ° } ८ } २ } २ } ८ | २ |१९| २ | २ | मास ० ,० ० \ १ \ २ \ २ { ० \ ० \ ० ० लहरणस्टप्पएहिन्दी टीका सहितः । ३३ जुश्र की महादशा में दब की अन्तर्दशा में . इ • • --- - -- -


- - - - -- " = == -- == == = == == = =

== वयं १ १ है । = ७ १८ १९९४ १९७.१९९ ४ २ p = ४ • >a e४२ २ ० ०९ ७ १ १


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== == == = ==

== = २ ३ १७ a e १४ a : अन्तरसाधन को दुइ प्रकार स्वैः स्वैर्दशब्दैर्गुणितं दशादिचर्वादिकं विंशतियुक्श तेन १२० ॥ ॐ जेच लब्धं हि निजान्तरान्तर्दश्नादिमानं कथितं मुनीन्द्रेः ३ । ६० ! । जिस ग्रह की दशः श्रन्तरःशा, प्रयम्मरदशा अद् िमें अन्तरदश। त्रयन्तरदृश; सूअशा आदि का साधन करद हो, उस ग्रह के शाखाएँ से अन्य प्रह क दशवर्षे, अन्तरदशा मा, प्रत्यन्तरदशा दिन इत्यादि को गुणा करके १२० का भाग देने से अन्तरदशा, प्रत्यन्तरदशा, इस्यादि का वर्ष सासदिनादिक होता है । ६० ।। अवरोहक्रम से ध्वकवश अन्तरादि का साधन ( प्रन्थान्तर से ) रामैर्हताश्चार्कसुखग्रहाणां दशाब्दकास्ते दिवसा भवन्ति । दशासमनां खलु षष्ठभागः शुक्रस्य भुक्तिः सकलग्रहेषु ॥६१॥ दशेश्वरदिनैर्हना शुक्रथुक्तिर्भवेच्छनैः । सैव हीना दशानाथदिनैश्चगोः स्मृता हि सा ॥ ६२ ॥ रहिता चैत्र सा ज्ञेया चन्द्रजस्य तु तैर्दिनैः । एवं हीना च सा ज्ञेया दशानाथदिनैर्गुरोः ॥ । ६३ ॥ अगोत्रिभागं रविभुक्तिमाहुः शुक्रस्य चार्षे हिमगोर्भवेत्सा । युता दशानाथदिनैः रवेस्तु भुक्तिर्भवेच्चैव कुजस्य केतोः । एवं समस्तग्रहश्चक्तयस्तु काय दिनेशादिखगेश्वराणाम् ॥ ६४ ॥ सूर्याद्विक प्रहों के शावधे को से गुणाकर देने से ध्रुवक हो जाता है। प्रत्येक प्रह के दशवर्ष के छठे भाग के बराबर शुक की अन्तरदशा होती है। चूक की अन्तरदशामें ध्रुवक घटाने से शनि का अन्तर, शनि के अन्तर ५ ज० दी ५७ जमपश्रद्यक में ध्रुवक घटाने से राहुक अन्तर, राहु के अन्त में ध्रुवक घटाने से बुझ का अँन्दर, बुध के अन्तर में डुबक घटने से बृहस्पति को अन्तर होता है । राहु की अन्तरदश की तिहाई के तुल्य सूर्यका अन्तर, झुठन्तर के आधे के बराबर चन्द्रमा का अन्तर और सूर्य के अन्तर में ध्रुवक जोड़ देने से मङ्गळ और केतु का अन्तर होता है l६१-६४।। आरोहक्रमसे अन्तरादिका साधन निम्नं त्रिभिः खलु खगस्य दशश्रिमयं स्पष्टं भवेद्ध्रुवकसंज्ञकमन्त्रार्थम् ! दिग्भी सैश्च गुणिले क्रमशो भवेत स्पष्टंऽतरे हिमरुचो दिवसेश्वरस्य६५ द्वयोर्युताविन्द्रगुरोः प्रमाणं ततो भवेयुर्जुवकस्य योगात् । सुधाऽगुसौर्याऽऽस्फुजितां क्रमेणान्तराब्दमानानि परिस्फुटानि ॥६६॥ यन्तरे तद्धुत्रकस्य योगाद्भौमस्य केतोश्च परिस्फुटत्वम् । ज्ञेयं बुधैः सद्धिषणाधनाढ्यैः सज्यौतिषाकोडनसुप्रवीणैः ॥ । ६७ ।। जिसकी महादशा में प्रहका अन्तर साबन करना हो उठ के दशावर्ष को ३ से गुण करनेसे उसका ध्रुवक हो जाता है। उन ध्रुवक को क्रमसे १० और ६ से गुएन करने से चन्द्रमा और सूर्यका अन्तर होता है । इन दोनों (सूर्य और चन्द्रमा) के अन्तरदशाओंके योगके बग बर बृहस्पति का अन्तर होता है । बृहस्पति के अन्तर में बार२ ध्रुवक जोड़ने से क्रमसे बुध, राहु शनि और शुक्र का अन्तर हा जाता है सूर्य के अन्तर में डुबक जोड़ देने से सङ्गळ और केतु का अन्तर होता है । ६५-६७ ।। उहरण - बुध की मददशा में ९ ग्रहों का अन्तर छाना है जो बुध के दशवर्ष को ३ से गुण कर दिया तो १७४३ = ६१ दिन अर्थात् १ महीना २१ दिन बुधक ध्रुवक हुआ। इल ( १२१ ) को अक्रमसे १० और ६ वे गुण दिया जाय तो १७ महिना ( १वर्षे ६ मास ) चन्द्रमाका और १० महीना ६ दिन सूर्यका अन्तर हुआ । दोनों को जोड़ दिय तो २ वर्षे ३ मीना ६ दिन बृहस्पति का अन्तर हुआ । इसमें गूचक १॥२१ जोड़ दिया तो २ वर्ष ४ महीना २७ दिन बुधका अन्तर हुआ । इसमें ध्रुवक १॥२१ जोड़ ड़िया तो २ वर्छ ६ महीना १८ दिन राहुका अन्तर हुआ । फिर इसमें ध्रुवक १।२१ बोड़ दिया तो २ वर्षा ८ मास ९ दिन शनिका अन्तर हुआ । फिर इसमें १२१ ध्रुवक जोड़ दिया तो २ बर्षा १० महीना शुक्र का अन्तर हुआ । पुनः सूर्य के अनन्तर (१० स० ६ दि०) में धूवक १११ जोड़ दिया तो ११ महीना २७ दिन केतु और मंगल का अन्तर हुआ । इन अन्तरों को यथास्थान रख दिया तो पूर्व लिखे चक्र के तुल्य बुधमें ९ प्रहों के अन्तर हो गये ।( ४९ घुछ देखिये ) प्रत्यक्ष का भ्रवक्शन-- महादशाधीश्वरवर्षघातश्खवेद’’भुक्तो दिवसादिकः स्यात् । सोदाहुएस०५हिन्दी टीका सइिक्षर है। श्रुत्रोनु प्रत्यन्नरके प्रसध्यं पूर्वप्रकारेण दश प्रमाणम् । ६८ ।। दोनों प्रहों के महादशा वर्षों को आपस में जुएन कसे ४० क. आ दैनेसे छबिंध दिनादि प्रलन्तर साधन करने के लिये चुंबक होना है ? इस ध्रुवक परसे पूर्व विधिके अनुसार त्रयम्मरदशा का साधन करना चहिये ।।६८।। उदाहरण बुध की महादशा में शनि की अन्तर दशा में सय ग्रहों का प्रत्यमर लधन करना है तो दुध और शनि के शवय का शुश करकं ४० का भाग दिया है १७ ४ ९ ९ = ८देन ४ ६ ३३ पर ध्रुवक हूँ आ ३ इ२ १२ से १६वद् प्रयन्तर देश ४ • छल जाय । - सुक्ष्मादि का भुवनयन-- महादशादेर्नाथानां दशब्दा गुणिता मिथः । खनागैः खनृपैर्भका सूक्ष्मे प्राणे परिस्फुटौ ॥ ६९ ॥ ध्रुवौ भवेतां बटयादि-पल!य सुधिया ततः । प्रसज्यं पूर्ववत्सर्वं प्रत्यन्तरदशादिकम् ॥ ॥ ७० ॥ द, अन्तरश, प्रत्यन्तरदशाके स्वामियों के महाशवर्षों का आपस में गुण करके ८० का भाग देने से उपशा ( सुक्ष्मदशा ) आनयन के लिये घट्यादिक ध्रुवक होता है । और दशा, अन्तरदशा, श्रयन्तरदशा और सूक्ष्मदशा के स्वामियों के दृशावर्षों का परस्पर गुण करके १६० का भाग देने से प्राणदश का ध्रुवक होता है। उसके बादृ पूर्वति ६१-६७श्लोकों) के अनुसार सुक्ष्मशाँ और प्राणदशा का साधन करना चाहिये ।६९-७० उदाहरणः बुध को महादशा में शनि की अन्तरदशा में गुरु की प्रत्यन्तर दशा में स्त्र प्रह को सूक्ष्मदशा का ज्ञान करना है तो बुध की सहादशा का वर्षी १७, शनि की मद्द दशा का वर्षी १९ और गुरु की महादश का वर्षे १६ है । इनका आपस में जुष्मन फल निकाल के ८० का भाग दिया तो गुरु की प्रत्यन्तर दशा में सब ग्रहों को सुक्ष्मदशा लाधन के लिये घटादि भूवक =q* ?y* १६ ८० = ६४ घ५ ३६ परु = १ दि९ ४ घ• ३६ पर हुआ इस पर से पूर्वं विधि के अनुसार प्रत्येक ग्रहों की सूक्ष्म दशा का ज्ञान करना चाहिये एवं प्राणदशनयनार्थं ध्रुवक का भी ज्ञान होता है । ५२ जन्मपत्रदीपकः } स्यैकी महादशाले सूर्यके अन्तए | सूर्य को महादशा में बह्म के अन्तर { में सचों का प्रयन्त्र में सबों का प्रत्यन्तर स्. व , संर. वृ. श. ङ. के. }ध्रु. लं. सं. २. वृ.श, बु.के. शु. सू. खुदशेश • } १ \ ० २ | स ९ ४ | ६ |१६१४१७१९ ६ १४ २ १९१०२७२४२८२११२९१ दिन २४ २ १८l१२२ ४ ६ |१८१८| ० |६४० ! B3 ० ० ० |३०|३२|३० ० ० ३० घटी स्रों को महाशामें भौन के मस्तर सूर्य को महादशा में राहु के अतर में सब क अत्यन्तर में सयों क प्रत्यन्तर संरा) बृ.श. खु, के.सू. चं भृ.रा. वू, श. सु.के.झ. सू.चं संधै दशेश • ° ° [ ° } ° ] ° } ° } ° | ° • } १ \ १ \ १ \ १ \ ° } १ ! ° | ° } ° } ० | मास ७ |१८१६१९९७ ७ २१ ६ १० १ १८१३२११११८२४ १६२७१८ २ दिन २१|९४४८१७११२ १० १ ८ ३ ३ ६|१२|१८५४|८४| ० १ २ ० १९४|४२| घटी स्यैकी महादशा में गुरु के अन्तर धुएँ की महादशा में शनि के अन्तर मे ग्रहों का प्रत्यन्तर में ग्रहों का प्रयन्तर |खु, श. खु, के. श. सू• स्.सी.र. बृ.श. उ.के.. सू.व.| मे.श. छ । ध्रु.| दशेश १ १ { १ | ० | १० | २ | २ | १ | २ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | ०| १ | १ | ० | मार्च ८ |१६१०|१६१८१४२४१६१३२ २४१८१९५७१७|२८|१९|२११६ | २ | दिन २४३६|४८|४८]० २४| ० ४८|१२२४| ९ |२७|१७| • ६ ३०२|१७१८३६६१| घटी सूर्यको महदशा में बुध के अन्तर सूर्य की महादशा में केतु के अन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर ङ. के . छ. सु. चं. म.रा.ड्, | श ४ के. छ, ख. चं, सेरा , वु,श. ड. था. दशेश १० १० | ९ | • \ १ | १ \ १ | ° * ° \ २ \ २ | २| ९ | २ | ८ | ० | सास १३१७२११९२११११११११८ २ ७ २१ ६ १२७ १८१६|१९१७| १ | दूिन २१६१० १८३०१११४४८२७३ ३ २ ० ११८३०|२१|६४४८६७६१ ३ घटी खर्च की महादशा में शुक्र के अन्तर में सब प्रहों का प्रत्यन्तर |सः च, . . सं.रा. बुश डंकङ. दशेय २ } ० \ १ \ १ \ १ \ १ \ १ | १ | १ | २ | मास • १८ १ |२१२४१९२७३१२१ | ३ दिन ७ । ० ०७ सुदाहरणकटिप्पण्हन्दो टीका लहितः । 25 ग्द्ल् ब

- - | gनय की दृश्शायें चन्द्रः । अस्ट ४" ५६ दछु में दिन देः अनर के अन्दर से ग्रह का । प्रवेश * श्र जी ! इन्ट यत्र ३ ' इ.१. श . दुवे . छे छ . , सु. मू चे, ४.अनेन } १ }} ११७१ ११ २१७ १ २ १५ २ २१५. २ देन २ ३ ११ e २; < • ३० १३,४५१ ४ ६ वर्षक

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चन्द्रकीमहाशमें राहुके अन्तर त्रद्र को महइश में शुरू के अन्तर में ग्रह का अत्यन्तर में अहं का अस्थम्त र . ट्. श ङ. के. ऊ, म्भू ' चै, में, छं. वृ. श४. डु, के, ङ सू . घे., म.र, ध्रु. वे शंश ० १ १ « २ २ २ १ साल चन्द्रकी महादामें शनिके सस्त चम्द्र को महादशा में बुध के अन्तर में ग्रहों कः प्रत्यन्तर में हां का प्रयन्तर = =, श, इ. के. यु. स्. चं, से, रा, इ. धु . के. शं. स्सू चं. में, रा. नुशशु. देश ३ ३ २ १ १३ ° } १ \ १ २ २ \ २ २ २ २ २ २ १) २ २ २ } २ • . मास ९ ३० ३ ९ २८१७ ३ २५/१६ ५ ३ २ २९२ ९ २ २ ९.१ ८ ६ २ ४ दिन १६४१'१३ २ ३ २/३०११ ३ २ ९ ४११ ६ ४९ ० ३०j३ २४९३० २ (४५१९ वटा --


- -- - - - - चन्द्र की महादशामें केनु के अस्तर चन्द्र कं महादशा में क्र के अन्तर में ग्रह का प्रत्यन्तर में ग्रह से प्रत्यन्तर के. शु.स्.चं. मं. ग. वृ.श. ङ. खु, सु. सू. म., .श. सु.के. धु! दशेश • खं ? खु ? १ | २ | १ ३ ११ १ ३ | १ | ३ १ मास १२ ६ १e|१७|१२ १ २८ ३ ३ ९ १ १० ° २०' १ \ २ २७ ९ २३ ९ ६ दिक्ष १९ २ ३ ३ १६३० ९ १६४६४२, ९ • घड़ी ॥ चन्द्रमा की मददशा में सूर्य के अन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर | सू चं, सें. श. वृ.श, ड. के. , | भृ. }दशेश। • | | | ° • 5 • ° १ \ ° } मास ९ १११०२७२४२८२९१९; ° } १ | दिन ० ० ३० ० ७ ३०३०३२ ० {३० बटी जन्मशीलकः मङ्गल भौम महदशा में भौम के अन्तर भौम महाश में राहु के अन्दर में ग्रहों का प्रयहए में ग्रहों के प्रस्तर स. २३. ठे श! डके , छ. ४.वं. झु.२, थू २.बु, क. यु. लं.चं. से , ध्र.शेश भाल १६२३२० ८ १२४ ७ १२ १ २६|२०३ ९|२३२ २ ३ १०| १ २ ३ ३ ढ्न ३४] $ |३६|१६४३५|३०|२१|१६|१३४२|३४२११३ ३ ३ ० |१६४|३२| ३ \ ९ \ < ३०३०३ •]० ३ = ० भौम मुहबश्व में गुरु के अन्तर भीम महादशा में शनि के अन्तर में

  • श्रहों का प्रत्यन्तर श्रद्दों को प्रत्यन्तर

यू. श. सु. के छ. , न, च, शृ.श, ङ, के. कुछ, सू.चे,मं, रा. चू, खै. दशेश १११३९०१०३ |१ ३ २ १० ११०मास । १४२३१ ७|१९९६|१९६२८१९२ ० ३ \ ३ २६ २ ३ १९ ३ २३२९२३ ३ दिन ४८१२३६ |३३ २ १४८१० ३६२४४४१०३११६३०६७ | १६१६११l१२१९ घटी ३०३०|३० ० ० |३०} e ० |३९| पल भौम महादशा में बुध के अन्तर भौम महदशा मे केतु के अन्तर में ग्रहों का प्रयन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर उ, क.छ. सू.चं. म. रा. खू. श, ध्रु ,के. छ, .च. म.रा.वु, श, बु. ध्रु. }दशेश १०१eje०१३३ठee० ० ० ० ० ००० | मास २०२ २२९१७२९२०२३१७२६ ८ २४ ७ १३२ ८ २ २१९२३२० १ दिन |३५४९३८|६१|४१|४९३३|३६३११८३४३ ०|२११९|३४३ |३६१६४९१३घटणे ३०३० ० * } © ९ |३०३०३० ० ० ३ ० ० ३०३०|३० पत भौम महदशमें क के अग्तर भौम महादशा में सूर्य के अन्तर में में ग्रहों का प्रत्यन्तर ग्रहों का प्रत्यन्तर छ.|स्.|चं, म, ग. घ, छ. ड. क. ध. |ख च. म.रा. ध. श, उ. कि. छ. धु। दशेश • } मस | क्षेत्र ३० ० ०३०३०३०३०|१८३०२१|६३४८|१७६१२ १० ३ घटी भौम महाद्णा में चन्द्र के अन्तर में प्रहों का प्रत्यन्तर | में, 1. वृ.क. ङ. । |००१०१००१०० } मोस । १७१२ १ २८ ३ १९१२ ५ १०| १ | दिन ३०१६३० ० १४१११९ ३०४१ | घटी । खोदाहरणसटिपणशहिन्दी टीका सहितः । ५५ राहु राहु महदशा में राहु के अन्तर | राहुमहामें गुरुके श्रन्तरमें } नै' ग्रह का प्रत्यन्तर श्रवों प्रत्यन्तर - - - - - |र. ड. द, ड. के, सु. “सू. ई.स. ४. टी. क. ङ.के. थ. . उं. सं. राम, ध्र. , देश ४ : ४ \ १ \ ४ १ ९ १ ३ ४ ५ ९ १ १ १ २ । १ । ४ २ लाख २५ १ ३ १७२३६१२ १८३१|२३ ६ ८ २ ९१६ ३ २° २४ १३१२ दि |४८|३६६ ४४ ४ २ ० ३ ६ २ ४ २ ६ १२ ३८ ४ २ ४ ३ १२ २ २ ४३३१ २) वटों राहु नहादा में शनि के अन्तर राहुमहादशा में बुधके अन्तर→ } में श्रहों को प्रत्यन्तर ग्रहों का प्रत्यन्तर क. ङ. के. छ. ध. ६. सं. रा. . श्रु.ड. के. '. ड.चं.सं.रा.छ. म. . दरवेश ६ ४ १६१२१६ | ४ : ०/४१, ६ १२ १३ ४ .४२माप दिन |१६६२६६७६| २७२१९१ ९४,३०३ ३४१/२४ २ १३ १ वर्ड राहु महादश में केतु के अन्तर राहुमहादशामें शुक्रके अन्तरमें } मे ग्रह का प्रत्यन्तर ग्रह का प्रयन्तर क.छ. सू.चं. मं.रा. यू. श. ङ. . चं.ग. रा, यू. श. ङ.के, छं. दशेश ० १ २ २ १ ९ १ १ १ १ २६ , १ | ३ २ ९ ५ ९ ९ १ २. • सूत्र २२ ३ १ ८ १ २२ २६२०२९२३| ३ २ २ ४ ३ १२२४२१ ३ ३ ९ दि ३ १४ १३० ३ ४ २२४/६ १३३ ९ • राहु महाशा में ले सूर्य के अन्तर राहुहृदशा में चन्द्रके अन्तरमें में प्रहों का प्रत्यन्तर ग्रहों का प्रत्यन्तर सू. द. म. रा. वृ. श. ङ.के. श्रु .चं म. रा. वृ.श.उ.के. छ. सु.भू. दोश ० ० \ ० १ १५१० १० ११ २ २ २ ! २ १ ३ ९ } असे |१२ ९ १६४३६१२१८६८६४ ० }४२० ३० ० ० ३०३०|३० ० ० ३० घटी | राहु की महादशा में भौम के अस्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर म.रा.वु. श. ड. | के. शु.स्. चं.g. दोश ०| १ | १ | १ | १ | १ | २ ९ १ | २ | भास १२२६ २०२९२३ २ ३ १८ १ ३ दिन ३ ४२ २४६१|३३ ३ • }६४३० ९ घटी ५६ अनङ् ४१ शुशुरू सुरुमहाशा ले शुरू कै दश तर रुमर्हथति से अन के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों क शर्त यू. श. ङ. क. इ.सू.व.न. तू? . . . • सू (च.सी. छै. दशेश ३ ४ ३ ११ ४ १ २ | १ | ३ | २ | ४ | ४ | १ | १ | १ ||१ ४ ४ । ४ । १२ १ १८१४ ८ ४ ४ १४२ ६ ६ २ ४ ९ २३ ३ १६१६२३/१६ १ ८ हूिन ३ ४३६|४८४८ ९ २४/० (४८११ २ ३ ४ ४११ ] ° ३६ १२४८l३ ६३६) बेटी गुरुमहदशा में दुध के अस्तर गुरुमहदशा में केतु के अन्तर मे ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर = | ङ.छ.पू. च. सं.रा. ड. श.श्रकञ्च सू. चं. सं. - चू श| ङ.छ. दशेश ३ १४ | १ | २१ | ४ | ३ | ४ |° } ०| १ । १ | १ | ११ | १ | १ | १ | • } मास |२६११६१० ८ १७ २ १५ ९ ६ १२ ६ १६२८१९२०१४२ ३१७ २ दिन ३६|३६| ० ४ ८ ९ ३ ६ २ ४३८/१२/४८३६ ४| ९ |३६२४४८१२|३६|४८ घटी गुरुमहदशा में शुक्र ,के अन्तर | गुरुमहादशा में सूर्य के अन्तर मे ग्रहों के प्रयतर में ग्रहों के प्रत्यन्तर | चं.भ. शहै. वृ. रा. ड चं. म. र. ध. श. ख. अश्रुदशेश ६ \ १ | २ | १४ | ४ | १४ १० ° ] ° ] ° | १ | १ | १ | १ | १ | १ | ० | मम |१०१८२०|२ ६|२४| ८ | २ |१६२ ६| ८|१४|१४|१६१३| ८ |११|१९|१६१४| २ | दिन ७ / ० ० \ ० \ ० ० \ ० { ० ० \ ० ॥२४ ७ ४८१२३४३ ३६|४८४८० २ ४ घटी शुरुमद्ददशा में चन्द्र के अन्तर | गुरुमहदा में भौम के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर ६म..वृश .रा. .पू. के.. स्. झु.मं.श. छ. श. ड. के.छ.| सु |चं.|ञ्चदशेश १ \ १ \ २ \ २ \ २ \ २ \ ° | २ | २ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १० \ ० ० \ साल |१०२४१२| ७ १६८ |२८१०२४४ १९२ ०|१४२३१७१९२६|१६२५२ | दिन ७ / ० ० ० | २ | ° } ° { ° } ° } ० ३६|२४|४८|१२|३६|३६) ० ४८ ० ४८ | घटी गुरुमहद्शा में राहु के अस्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर रा. ध. श.|४. | के.छ. (ख. |चं.स. ४. | दशेश ४ | ३ | ४ | ५ | १ } ४ \ १ २१ | ० { सास ९ २३१६ ३ २०२४१३१३२ २ ७ दिन ३६|१२|४८|२४२४| ७ |१२| ० २४१२/ घटी सोदाहरणसटिप्पणहिन्दी टोका सहितः । ५७ शनि शनि महादश में शनि के अन्तर शनि महदश में बुध के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर रा.ड.के. छ. सू. च. सं. रा. चू. ४. डु. के. छ. सू. चं. स्, र.ध.श. श्रु-शश ० मस २१ ३ ३ २ २४ ३ १२ २ ४ ६ १७२६ १११८२० २ ६३६, ९ ३ ८ दिन २६२६१०३० ९ १६१०२७२४ १ १६३१.३०२७५६३१२११२२६ ४ ' बढी ३०३ ० ० ० ७ ३ ० ० ९ ३०३०३० २ ९ ३० ० ९ ३० ३ a' पळ se २ ३२३°३२ घट शनि महादशा में केतु के अन्दर शनि महादशा में शुक्र के अन्तर में प्रकी के प्रत्यन्तर मे ग्रह के प्रयन्तर के. छ.स.चं.सं.र. वृ. श. चु. ४.छ. पु. चं. म.रा.वु. २. ६ के .मु. दशश १ १ १ २ । १ ° २ ३ ६ १३ ३ २३२६ ३ ३ ३ १२६ ३ १८ ३ १ ६ २ १ २ ८ ११ ६ ९ दिन , १६ ३ १७१९१६६ ११ २ १२'३११९२ ३० ० ० २ ३ = ० ० ३० ३०३८ ९ १ & ० ० ० ० ० ० ० ० । पल शनि महादशा में सूर्य के अन्तर शनि महदशा में चन्द्र के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर - च. मं. श.वु. श .के. चु.धृ.चं. सं. र. वृ.श.E. { के. शं. सू. छं. ) देश ० १ \ १ \ २ \ १ & २ १. ० १ २ १ २ २ १ ३ २ १ ३ मल १७२ ८ १९२१|१५२४१९१९२७ २ १७ ३ २५१६ ९ २० ३ ३ २८ ४ दिन ६ ३१९७१८३६ ९ ७ ७ ३ ७ ८ ९१३०१ २१३° ० १९४९१९ ६ ३०४६ बी शनि महादशा में भौम के ? शनि महादशा में राहु के अन्तर अस्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर = == = = == == = = = | - "| - |-- -- - -- - - मं. रा.यू. श. ङ. के.शु.सू.चं. ड. रा.वृ. श. डु.क.यु.सू. चं. सं. ४. दशेश २ १ १ \ २ \ १ २ २ ! २ १ २ ३ ४ ६ ४ १ ९ १ , २ | १ २ आस २३|२९२३ ३ २ ६ २३ ६ ११९ ३ ३ ३ १६१२ २६२९३१२१ २९२९ ८ १६|९१|१२|१९|३१|१६३०९७१९१९६३७८१२७ ११६१ ° १८३२६ १३ ३ बढी ७ ७ ७ ३०३०|३ ० } ० \ ० { ० ३० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० } पछ शतैर्द्दृश में गुरु के अस्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर ६. |श.ड. क. यु. सू.|चं. स.श.|खु- | दोश ४ } ४ \ ४ | १ | १ \ १ \ २ \ १ \ ४ | ० | मास १ २ ४ ९ २३ ३ १११६९३१६ ७ दूिन ३६२४१२१३ } ७ |३६ १३ २४८३६ | घटी | ५E जन्मएत्रदीपकः बुधमहादशा में बुध के अन्तर | बुधमहाश में केतु के अन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर के.झ. सू. च. म. रा. वृ. ग. ४. के.गु. स. चं. म. रा. . ङ ञ्च. दोश |४|१||१२|१|४ | ३ | ४००|१०| ० ० १ १ \ १ \ ११०माप्त २ २०२४|१३१२९०|१०|२९१७ ७ २०५९|१७१९२०|२३१७२६२० २ दिन | बटी ३३३३३३३३३३३३३३३३३३३३ । बुधमहाश में शुक्र के अन्तर बुधमहादश में सूर्यों के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर शं. सू.|चं. सं. K. चूं. श. उ.के.४.सु. चं, म. रा. कृ. श. ङ. के छ• शृ. दशेश ११२१ १ | ४ | ६ | ४ | १२०९२|१११०|२० । । २२३१२६२९ ३ १६|११२४२९ ८ १९२६१७१६ १०१८१३१७२१ २ दिन ९ ३० ० ३०३०३e|३२१८३०६१५४४८२७२१६ १ २ ३३ बढी बुधमहादशा में चन्द्रके अन्तर | बुधमहादशा से भौम के अन्तर में प्रहों के प्रत्यन्तर मे ग्रहों के प्रत्यन्तर == =

= = • } स |चं. म.रा. डू श. ङ- के. शु. सू. ४./ म. वृ. च. ड.के. इ.सू.च. छं. दशेश • \ १ \ १ \ ५ \ १ \ १ \ १ } ° १३२|१६८ |२२१२२९२१२६ ४ २०२३१७२६२०२०२९१७२९ २ दिन ३९|३९९ ४९१६४९ ० |३०११४९ ३ ३३६३ १३४|४९|३०६१४५६८ घटी • \ ० \ ० \ ० \ ० \ ० ० \ ० ० ० |३०} ° ९ |३९३९३० • }३ ० पल बुधमहाशा में राहु के अन्तर | बुधमहदशा में गुरु के अन्तर में ग्रहों का प्रत्यन्तर में झाड़ों के प्रत्यन्तर |ा. . . .सु. लं. स. ४. .श. ड्. के.. स. चे मरा: –. दोश |४४४४१६|१||१३४| ३| १४ |१ | २३ | १ | ४ | ०| मास | १७२ |१९१|२३ ३ १६१६२३|५|१८ ९ २६१७१६१०| ८ |१७२| ६ | दिन ४२२४२१ ३ ३३० ६४३०३३३९४४१२३६३६| २ |४८ ० ३६२४४८वटी | बुधमहादशा में शनि के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर |श च.के.| . सं.रा. ४. छं. |१४१५|१२|१|४४|७| मास | ३ १७२६११|१४२२६२६ ९ ८ दिन |१४३१३०२७४६३१२११२ ४ | वडी ३|३९|३०} • ३० ५ ० ॥३० पल सोदाहरणकटिप्पणहिन्दी टीका सहितः । ५३ कंतु केतु महादशा में केतु के अन्तर केतु महादशा में शुक्र के अन्तर मे प्रश्नों का प्रत्यन्तर ग्रहों के प्रत्यन्तर के. सु..ग. ऋ| श. डु . घ्र.श. स. | चं. मं. ग. वृ.श. ङ. के. भुवनेश ६०० ० ० ० ० ० ० ०२२०० । मात्र १२४ ३ | दिन • }३ ३०| • | ७ | २ |३०] % | ० |३०|३२३२ २ \ २ \ ० { ० { ० केतु महादशा में सूर्य के अन्तर केतु महाशा में चन्द्रके अन्तर में प्रहों के प्रत्यस्ता में प्रद्द का प्रत्यन्तर ११७९९३६ ३०३ • ९ / पल सू च. म.रा. वृ.श. ङ. के. शु.भु. चं.म.रा. ब्र.श. बुभुके छ. चू.भु दशेर ०९०९:०२००,०३१.१० मान ६ १० ७ ११६१९|१| ७ २२ १ १७१ २ १ २८३ ९१२ ९ १० १ दिन |१८|३०|२१|१४|५८|६|११|२१j ० | ३ |३ १३ १६४३११ ३०४३ घटी केतु महाश में भौम के अन्तर केतु महादशा में राहु के अन्तर मे ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रयन्तर म.रा.| बृ.श. ङ.क. झ. सू. च. सु.रा. चु.श. चु.के.छ। सू.चं. म. भू. दोश १ | १ | १ | १ मान ०|३०| ० ! पाठ ८ २९१९२३२ ८ २४ ७ १३ १ १६२०२६३३२२ ३ १८ १२२ ३ दिन् ३४ ३ ३६१४९|३४३२११६१३४२२४६१३३० ६ भ३० ३ ९ घटी ३२० ३०३०/३० ० केतु महावशा में गुरु के अन्तर | केतु महादशा में शनि के अन्तर में प्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर रुत्तकुशलाकुशलजमरा. चू.|खें दशेश |१११० मास १४२३१५१९२६|१६२८१९२| २३ २६२३ ६ ९ ३ २१९२३ ३ दूिन ४८१३३३३०४७० |३६१४४४१३३६ ११६६६ १३१९ घटी ३ ३ २३० • }३० पछ ||||| केतु महादशा में बुध के अन्तर में प्रद्दों के प्रत्यन्तर |डु.| के. . सू.व, स.रा.| वृ.श.: छं. दशेश |१|०१००|०११ १० मारू २०|२०|२९१०२|२०२३|१०|२६| २ | दिन ३४|४९२०६१८६४९/३३३६/३१६८घटी ३०३० ० १३०३ ३० • ३०३० पद्ध ६० जन्मश्चकः शुक्र शुक्र महदशा में शुत्र के अन्तर शुक्र ग्रहदशा ’ ” के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर भ ग्रहों के क्षेत्र आ.सू. च, मं. | ह् |श इ. के. चू. सू. चं. सं. र, सू. क.। यु, के. ङ. छं. श ० | ५ ) ० | १९ | १ | १ | १ } ० \ २ \ ० ' ३० ० १०१२ ० १०१०|२०१०१ ०१४| ० |२१|२४१८२७२१|२१| ० ३ ) दिन

  • \ २ ० ० ० ० \ ० ० धर्ट

शुक महशामें चन्द्र के अन्तर | शुक्र महादशा में भौम के अन्तर में में ग्रहों के प्रत्यन्त ग्रहों के प्रत्यन्तर चं.में. रा.वु. २. ङ. क शु. सू.चें.म, कि.ङ. च. डु. कि. ५. सू. च , छं.शेश १ | १० ९ २० ६ २ ५ ५ १ ६ १४ ३ २ ६ ६ २ ६२४ १०५२१ ६ ३ ड्रिल वटी 0 | } ० | ५ | २ | ० ० ० ०३० ३०३ ० ० ० ० ० शुक्र महादशा में राहु के अन्तर शुक महादशा में शुरु के अन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर में ग्रहों के प्रत्यन्तर रा.तृ. का.वु. क. यु- सू. चं. म. ४. ६. (श ङ. क. , सू. च, म. रा.धु.) दशेश १ ४ | ६ | १ | २६ | १ | ३ | २ | ० ४ | ६ | ४ | १ \ १ \ १ \ २ | १४ | ० । भस १३ २२४२२३३ ° २४ ० ३ | २८ | १ |१६२६ १०१८२०२६२४ | ८ डूिन ० ० \ ० } ० ० ० ० । व शुक्र महादशा में शनि के अन्तर } शुरू महादशा में बुध के अन्तर में ग्रहों कें प्रत्यन्तर मे ग्रहों के प्रत्यस्तर |ा.चु.किक.यु.सू, च.|सं |. चू. छं. ङ. के. शु, सु. चंसश. वृ.श. ४. दशेश ६ | १ | २| ६ | १ | ३ | २ | १ | ६ ४ | ५ | १ | १ | २ | १ | ३ | ४ | १ मास • ११ ६ १०२७ ९ ६ २१ ३ ९ २४२९२०२ १३६२९ ३ १६११| ८ दिन ०३०३० ० ० ० ३०|३०}३ • } * - ३०} • } © ३०३० वट शुक्र महादशा में केतु के अस्तर में ग्रहों के अत्यन्तर । के. छ. सू.चे. सरा. वृ.श. ड. छु, दोश १ \ ० \ २ \ १ \ २| १ | २ | माप्त २४१०२३ ५ २३ ३ २६ ६२९ ३ दिन = } * ० १३ ० } = } ० ३२३ ३० घंटी चट्टरप्रस्रटिश्पणहिन्दी टीका लइितः । यगिनी दशानयन जल्दर्भ त्रियुतं तष्टमष्टभिः शोषन्नो दशा इङ्गलाद्य ददृ सङ्कदष्ट क्षमा भुता }} ७१ ! असामीशः क्रमाच्चन्द्रभान्येऽघवस्द्ज्ञ{ः । मन्दाऽऽस्फुजिदैहिकेया विज्ञेया हरिकोत्तमैः ॥ ४२ ॥ जन्म नक्षत्र का संबंध में ३ जोड़ के ८ का म म ईंन्ये हे व मङ्गला यदि ८ दरें होती है और उनके क्रम से चन्द्रमःजू, धूहस्त, नङ्गल, बुध, शनि, शुक्र और राहु-केतु नानी देते हैं : फुटन लिये चक्र देखिये १-६२ निश छन् + ० ० अश्वि. ' भरी छेदत्त मेहिशी ढंग. 'अत्र सुन. पुध्य श्रश्ने मया .यू. * 3. क इस्त नक्षत्र चित्र स्वार्ता विशा । ग्रनु। ज्येष्ठः मूल पू. न उ. न श्रवण बनष्ठा शत पू' 'उमर 'रेवती == = =

== ==

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दश मङ्गल विज्ञळ वान्या नम्री भद्रिक उत्का सड़ लङटt दशेश चन्द्र सूर्य शुरू 'स बुध अनि 'शुक , जे. - - - ---


--- - --- - - - -- - योगिन्यन्तरदशा झान --- दश दशाहत कार्या शिवनेत्र विभाजित । लब्धं मासादिकं ज्ञेयं योगिन्यामन्तरं स्फुटम् ! ७३ ॥ महादश वर्ष को अन्तरदशेश के वर्षों से गुणकरके ३ का भग देने से लब्धि सासादिक अन्तरदशा(१) होती है । ७३ ।। सिद्धा महादशा में सङ्कट की अन्तरदश निकलती है तो सिद्ध के वर्ष ४ को

  • X ८

सक्छूट के वर्षे ८ से गुणा करके ३ से भाग दिय ते ~~= १८ मास २० ईदेन ( अर्थात् १ वर्षे ६ महीना २० ) सिद्ध में सकृद्वा का अन्तर ( अथव झटा में सिद्ध का अन्तर ) हुवा । १ मङ्गता में अन्तर २ पिङ्गलां में अन्तर मं. पि .घ.ना. भ.उ.सि, सं. पिं. धाम्र. भ. उ.सि. में , में. दशा चं, सु. भौ. ड. श.श.ग. के. सू. वृ. भौ. ब्र.श. शु.रा, के चं. दशेश |--



० वय • ° | 1 } १ । १ । २ २ ! २ १ २ २ ३ ४ ४ ५ ° ! सख १०२ • }१०२० ० १० २ ० २ ० १० ० २० १० c = दिन २. योगिनी दश के शुक्ल और अन्य वर्षादि को भी ५३-५४ श्लोको के अनुसार ही स्पष्ट कर लेना चाहिये | ६ ज० ई० अकर्त्रीयकरें ३ धन्य? म अन्तर ॐ भ्रामरी में अन्तर घ.|श्न. की .उ.वि. सं. { मं.वि.ना. भ. उ.वि. सं. } मं. पि.घ. दशा वृ.श्रौ, वु. २.. स.के चं. ३.भै. सु. श. शु. र.के चं, सु. ब्र. दशेरा ०) वर्षे ३ | ४ | ५ ६ ७ ८ } १ \ २ \ ५ ६ ८ ६ १० | १ २ ४ मास ० १०२० ० १० २० १०२० ० दिन ५ भद्रक में अन्तर ६ उलूक झी अन्दर भ.उ.सि. स. मंपिध.प्रा. उ.चि. स. में.पि.धा.भा. भ. दशा | ङ.श.यु. श.स्. चू.भ. श. शु. रा के चं. सू. चू.भौ. सु. दशेश = = }

= = = = ० १ \ ० ८ ११ १ | ३ | ४ | ६ १०२०l२० १० २०१ २० ० दिन ७ सिखा में अन्तर ८ सङ्कटा में अग्नर |सि. 8. मं•|पिं.धा.झ. | भ. | उ. सं. [मं.पि.धा त्रिा. भ. उ.सि.| दशर |शु- रा.के चं. सू. इ.भ. सु. श. रा -के . स. ब्र. भ. बुशशुदशेश eि " tabas इन द्रव ० | १ | १ ११ वर्षे ४ | ६ २ | ४ |७| ६ ११ २ ६ | २५ ८ }१०| १ | ४ | ६ | मास १० २ १० २ ० ० १०५२ ०| १ | १ २०j१० ० २०११ ० ० २० दिन होशलग्नानयन द्विचेष्टनाडयः पञ्चासो मं शैवं च पलीकृतम् । दशप्तमंशस्ते योज्या रवौ होरोदयं भवेत् । विषमेऽक्षे रवौ योज्यं समेऽद्रे लग्नभादिषु ।। ७४ ॥ इष्ट घटी पळ को २ से गुणा करके ५ का भाग देने से लब्धि राशि होती है। शेष का पल बना के १० से भाग देने पर लब्धि अंश होते हैं । यदि जन्मलग्न विषससख्यक हो तो राश्यादि सूर्य में एवं यदि जन्मलग्न खम संख्यक हो तो राश्यादि जन्मलग्न में पूर्व उब्धि को जोड़ देने से स्पष्ट होरा लग्न होती है ।। ७४ उदाहरण इष्टकाल १३११ को २ से गुणा किया तो (१३९१) २ = २०९० गुणन को छ हुआ । इस २०६० में १ का भाग दिया तो लठ्धि ३ शशि हुई । शेष २१० का पळ बना १७० कै १० का भाग दिया वो लब्ध १७ अंश हुए। इस लब्ध राशरदि ९१५ को जन्म दर मिथुन) विषम संख्यक होने के कारण स्पष्ट सूर्य ११।२। १८१० में जोड़ दिया तो राधयदि स्पष्ट होरा लखन ९॥७६८१० हुई ॥

  • किसी २ का मत है कि सर्वदा सूर्य ही में जोड़ना चाहिये परन्तु अनार्य होने के कारण

यह मत देय है । स्लोदाहरणदटिप्पणहिन्दी टीका सहितः । ६३ जैमिनि के अनुसार अयुदय साधन-- लग्नेशरन्ध्रपत्योश्च लग्नेन्द्वोर्लग्नशुरयोः । स्वस्राण्येवं प्रयुञ्जीयात्संत्रद्दयुषां त्रये ।। ७५ ! लग्ने च मदने चन्द्रे चिन्सयेल्लग्नचन्द्रतः। अन्यथा शनिचन्द्रभ्य चिन्तनीयं विचक्षणैः ॥ ७६ ॥ (१) लग्नेश और अष्टमेश से (२) लग्न और चन्द्रमा से और (३) लग्न तथा हरालग्न से वक्ष्यमाण प्रकार से आयु का साधन करना चाहिये। द्वितीय प्रकार में यदि चन्द्रम या लग्स सप्तम में बैठा हो तो लग्नचन्द्रमा वर से अन्यथा ( लग्न या सप्तम में न पड़ हो तो ) शनि-चन्द्रमा पर से आयु साधन करना चाहिये ।। ७५-७६ ।। अयुदय ज्ञान का प्रकार अरे चरस्थिरद्वन्द्वाः स्थिरे द्वन्द्वचरस्थितः । इन्द्रं स्थिरोयचरा दीर्घमध्याल्पकायुषः ! ७७ ।। जिन दो प्र के द्वारा यु देखन्ह है। इनमें यदि एक चराशि में दूसरे चर, स्थिर या द्विस्वभाव में हो तो क्रम से दीर्घ, मध्य और अल्प आयु जानन्ना । यदि रक धिर में दूसरा क्रम के द्विस्वभाव, चर ओर स्थिर में हो तो ये दीर्घ, मध्य और अरब आयु समझता । एवं यदि एक द्वि स्वभाव में दूसरा क्रम से स्थिर, द्विस्वभाव तथा चर में हो तो दीर्घ, मध्य और अल्प आयु का योग होता है । स्पष्टता के हेतु नीचे का चक्र देखिये ७७ दीर्घायु भरपयु अरे लग्नेश: १ बरे लग्नेशः १ चरे अह्मेशः ८ चरे लग्नेशः । द्विस्वभावेऽष्टमेशः ८ स्थिरेऽष्टमेशः ८ स्थिरे लग्नेशः १ स्थिरे लग्नेशः १ } स्थिरे कश्लेशः १ द्विस्वभावेऽष्टमेशः ८ च्रे अष्टमेशः ८ स्थिरे अष्ठमेशः ८ द्विस्वभवे लडनेशः ० } द्विरवभावे लग्नेशः १ द्विस्त्रभावे लग्नेशः १ त्रेि अष्टमेशः ८ / द्विस्वभावे अष्टमेशः ८ ३ चरे अष्टमेशः आयु स्पष्ट करने का प्रकार रसा४९६गीजात्रेन्दुभिः १०८चून्यमासै १२० स्त्रिधा दीर्घमायुः कलौ सम्प्रदिष्टम् । चतुष्षष्टि ६४बाहद्रय७२शीति ८०प्रमाणे र्मतं मध्यमायुनृणां वसरैः स्यात् ॥ ७८ ॥ जन्मशुशदीद्यक तथा द्वित्रि ३२धवह्नि ३६शूज्याधि४०वर्षे मैत्रेदरूपमायुर्नराणां युगान्ते ॥ ९ ॥ उपर्युक्त तीनों रीतियों में से दोनों प्रकारों से भिन्न २ आयु श्रवे ते ठर न हो लत पर से आई हुई आयु समझना ! ९६, १०८, १२० बर्षे की दीर्घायु, ३४, ७२५ ८० वर्ष तक मध्यायु एवं ३२, २६, ४० व धे तक अल्पायू योग कहा जाता है। इन में ३२ ३६५१ वर्ष के खण्ड होते हैं। यदि तीनों प्रकार से दीर्घायु हो तो १२० , दो प्रकार से दीर्घायु हो ते १९८ वर्ष, एक प्रकार से दीर्घायु हा तो १६ वर्ष आयु जानना । पर्व हीनों प्रारों से अल्पायु योग हो तो ३२ वर्षे दो प्रकार से अल्पायु हो तो ३६ वर्प, एक ही प्रकार से अल्पायु योग आवे तो ४० वर्षे आयु खण्ड समझना। लग्नेश-अष्टमेश के सम्बन्ध से मध्यमायु हो ते ८० वर्ष, लग्न-चन्द्रमा य शनि-चन्द्रमा के सम्बन्ध से मध्ययुयोग आता हा ते ७२ वर्ष और लग्न होरादून द्वारा मध्ययुयोग निश्चित हुआ हो तो ६४ वर्षी आयु जानना (अर्थात उक्त खण्डों कों ग्रहण करके आयु स्पष्ट करना ) चाहिये. उपर्युक्त विधि से अयदय विधायक ग्रहों का निश्चय हो जाने पर यदि एक ही प्रकार से साधन करना हो तो दोनों योग कारक ग्रह के अंशादि का योग करके २ से भाग देने पर जो लब्ध हो, उसको अंशादि जानना । एवं यदि दो प्रकार से आयुह्य निश्चित हुआ हो तो चारो योग कर्ताओं के अंशादि का योग करके ४ का भाग देकर लब्धि अंशादि बना लेता । एवं यदि तीनैं प्रकार से आयु का निश्चय किया गया हो तो छयो योगकर्ताओं के अंशादि का योग करके ६ का भाग देना जो लठ्धि आवे उसको आयुः य धन के योग्य अंशादि जाने । उसके बाद इन लब्ध अंशादियों को योगप्राप्त ३२, ३६ या ४० खण्डों से गुणा करके ३° का भाग देना तो लब्ध वर्षादि होग इन लब्ध वर्षा- दिकों को अल्पायु हो तो अल्पायु के धूम्रखण्ड में, म्ध्यायु साधन करना हो। ते मध्यायु के प्राप्तखण्ड में और दीर्घायु प्राप्तखण्ड लाना हो तो दीर्घायु के में घटा देने से स्पष्ट आयुय का मान होता है। किसी २ आचार्यों ने ३२, ६४ औ १६ रूप अल्पायु मध्ययु और दीर्घायु का खण्ड कल्पना करके आयुट्रय खधन करना लिखा है द्वात्रिंशत्पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततो भवेत् । चतुष्टयष्टया पुरस्तातु ततो दीर्घमुदाहृतम् । पूर्णमादौ हानिरन्तेऽनुपातो मध्यतो भवेत् । राशिद्वयस्य योगाद्धं वर्षाणां स्पष्टमुच्यते ॥ अत एव द्वात्रिंशद्रप खण्डा पर से आयु साधन करने के लिये नीचे सारणी दी जाती हैं ।। ७८-७९ ।। । प्री | आरू

  • ५. , अंशफलसारणी---

ववुaः | अंश ने १ | २ | ३ ||५६ |७| ८ | ९ |१०|१११२१३१४१५६१|१८०|१९२ २न १२२२३२४२५२६३७२८२९ शं , | वर्षे |३३| १ | २ | ३ | ४ |५| ६ |७| ८ | ९ |१०१७१२११६१ज़्व्वरत्रज्ञ२ २२६२६२७२४२९३० मg | ० ] ० | १ | ३ | ४ | ४ | ५ ६ ७ ८ | ८ | ९ |१०११ १ | २| ३ | ४ | ४ | ५ ६ ७ / ८ / ८ / ९ १०११ ४८ दिन १० २|१८|१२ ६ १४|१८|१२| ६ ० १ ४|१८|१२६ २४१८|१२| ६ २४१८|१२६ |२४|१८|१२६ कलफ़तसारणे कुश |१ २३|४ | ५ | ६ |७ |८|९|१०|११११२१३१४१५|१६११८१९|२०२१|२२|२३२४२५|२६१७२८२|३० १ १ | १ | १ | १ | २ | २ | २३ | २ | ३ | ३ | ३ | ३ | ४|४|४| ४ | ४ | ५ ५ ५ ५ ५ | ६ | ६ झ | दिन | ६ |१२१९२५ २ ८ |१४२१|२७४ |१२१६२३२९| ६ |१२१०|२५ १ | ८|१४२०२७३ |१०१६२२|२९| ५ १२ |२|४०|१२३६ ४|४६१२३६| |२४| १२३६ २४४८१२३६| |२४|४८j१२]३६ छ , छं हैं, g| कळा |३१|३२|३३||१५३६३७३८३९|1|४१४२१४३|८४४५६ ४७४८४९५०|५१|५२|५३५५५५५५८५ ५६६ 9! माश्व | ६ | ६ |७| ७|७| ७ | ७|८| ८ | ८ | ८ | ८ || ९ | १ | १ |१०|१०|१०१०१०|११११११|११|११|१२१२}१२ १२ ७ |१३|२०२६| २९ |१५२२|२८| ४ |१११७१५ *यू, घटी |२४|८|१२१६ |२४|४८|१२|३६| ९ |२|४८|१२३६ २४|४८१२|३५ • १४४८|१३३६ |२४|४८१५३६ वफलफ़तुलारण- , श ४ श्री चिकला) १||३ |५६| ८ ||१०१११२१३११५|१६११८१२०२|२२|२३२४२५२६२७२८२३२ भ्र ० \ ० \ ० | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | २ | २| २ | २ | २ | २२| २ | २ | २ | ३ | ३ घटी | ६ |१२१०||३२|३८||५१|५७४ १०|१६२३|३९|३६|४२|४८|५५ १ | ८ १४२०२७३३|४०|४६|५२५ ५ १२ वे । षक २४८८|१२३६ • |२४४८|१२|३६| २४४८१२}३६ |२४|४८|१२३६| २४४८१२३६ २६४०|१२|३ ६ ", “ , " विकला|३३३३३३३५३७३८३४ |४१|४२|४३|२५४४ऽ|४९|५०५१५२५५४५५५६५५८५९६ • दिन | ३ | ३ | २३ ५ ३ ३ ३ ४ ४ ४ ४ . ४१ ४ ४ | ४ | ४ | ४ | ५ ५ ५ ५/ ५/ ५ ५ ५ ५ ६ & } ६ & घटी |१९२|१|३७||५९|५६३ |९|१६|२२२८३५४२|४८५४° ७|१३२०२६३१|३९|४५५२|५९| ४ |१११०७२४ पर २४|४४|१२३६ • \४४|९८|१|३६१४४८|१२|३६ |२५४८|१२|३६ |२४|४८|१२३६ १४|४८|१२३६| । ॐ ॐ ॐ ॐ,

  • ऊ = X'हैि | ६६

मेषशदधकः अन्यथा ( न बैठा हो ते ) कक्ष्य हस होता है । एवं योगकारक बृहत् िलग्न वा सप्तम् में पुड़ा हो अथवा केवळ शुभ अह से ही युक्त व । ईष्ट हो तो कक्ष्यावृद्धि होती है अन्य प्रकार से आयु विद्यार - पितृलाभरोगेशप्रणिनि कण्ठकदिस्थे स्वतश्चैत्रं त्रिधा । लग्न विषमसंख्यक हो तो क्रम से जो अष्टभेश और द्वितीयेश हे उनमें जो बलवान् हो वह ग्रह यदि लग्न से केन्द्र १I४१७१०] में हो तो दीर्घायु, पएफर [२५८११] में हो तो मध्यायु और आयोक्लिम [३/६९१२] में हो तो अल्पायु जानन । यदि लग्न समसंख्यक हो तो उक्रम से जो अष्टमेश और द्वितीयेश { अर्थात् षष्ठेश और द्वादशेश } झे उन दोनों में जो प्रह बी हो वह यदि केन्द्र में हो तो दीर्घायु पणफर में हो तो सध्यायु और अपोक्लिम में हो तो अपाय स्म झन } रत्यादिक ग्रहों में जो सबसे अधिक अंकाला हो उसको आत्मकारक कहते हैं। आरमकारक से भी इसी प्रकार विचार करना चाहिये अर्थात् आत्मकारक ग्रह यदि विषम राशि में स्थित हो तो अष्टमेल और द्वितीयेश में, यदि समसंख्या की राशि में पड़ा हो तो षष्ठे और द्वादशेश में जो ग्रह बती हो वह यद्वि कारक से केन्द्र में हो तो दीर्घायु. पणफर में हो तो मध्यायु, आपोक्लिम में हो तो अल्पायु होती है। परन्तु लग्न विषम संख्यक हो और करक तृतीय में हो तो केन्द्र में रहने पर हीनयुपणफर में मध्ययु और आपेक्लिन में दीर्घायु जननम् तथा लग्ने समसंख्याक और व्झाक ९ादश में हो तो भो पूर्ववत् केन्द्र में हीनयु, पणफर में मध्यायु और आपोक्लिम में दीघयु] जानना । इन दोनों योगों में अष्टमेश-द्वितीयेश अथवा घटेश-द्वादशेश यद्रि कारक के साथ बैठा हो वा स्वयं कारक हो जाय तो मध्यमयु हो जानना। ग्रन्थसमाप्तिकाल- हिमकरखगखेटेळा१९९१मिते विक्रमाब्दे शिवतम इषमासे स्वच्छूपक्षे वलथे । शशितनुजनुषो बारे तिथौ सूर्यवनो रंगमदषि सुपूर्ति जन्मपत्रपदीषः ॥ ८० ॥ श्रीविक्रम सं० १९९१ आश्विनशुक्ल विजया १० बुधवार को यह जन्म पत्रदीपक समाप्त हुआ । ८१ ।। इत्याजसगढ़मॅण्डलान्तर्गतत्रपुराभिजनूEरयूपारीएपण्डित श्री धर्मेतद्विवेदितनुजन्मना ब्यौतिषाचार्यश्रीवैिन्ध्येश्वरीप्रसाद- द्विवेदिना विरचिते जन्मपत्रदीपकः समाप्तः । पतत्सुदीपपरिंदीपनतोऽपि नतोऽज्ञानान्धकारनिचयो बुधद्वतश्चेत् । न स्याज्ञदैनकिरणामसुप्रकाशझुकाक्षिदोष इव मै किलकोडित दोषः ॥ श्रीगुरवः शरणम् । मुञ्जकः-विद्याविलाल प्रैव । १६४६ ताजिलकण्ठी जलदगर्जन7-उदाहरणचन्द्रिका दंस्कृतtइवेटीकथा, गूढग्रन्थिबमैचिनी-घखन्ध चश्च सहिता । टीकाकारः--यौ० आई० मी० १० कक्यतीर्थे पं० गङ्गधरमिश्र जी यह परीक्षार्थियों के लिये अत्यन्त उपयुक्त और आदरणीय व्याख्या है । देश भर में इसकी प्रशंसा हो रही है, कि हमारे योग्य संपादक ने उपर्युक्त सभी टीकाओं में अपने २ नाम के अनुकूल पन्थ के परीक्षोपयोगी समस्त विषयों और कठिन स्थलों को इतनी सरलता से सिद्ध किया है कि प्रत्येक सुकोमलति चालक भी थोड़ा सा अनुगम करके अपने आप भी उन विषयों का ज्ञान और अभ्याख कर सकता है । इसकी प्रशंस। स्वयं वय। लिखी जावे जब प्रथ आप के हाथ में आयगा। आप भी प्रशंसा किये बिना नहीं रहेंगे । ३) चैनल सान्वय-‘अमृतधरा’ हिन्दी टीका साहिब } पं. जीवनाथ झा विरचित फलित प्रन्थों में यह सर्वं श्रेष्ठ प्रन्थ है। इध्र प्रन्थ में प्रश्न के आधार पर, प्रहं की स्थितेि धर, वायुी परिस्थिति पर तथा प्राकृतिक अनेक लक्षणों से वृष्टि का विचार एवं फखल का परिणाम तथा धान्य के व्यापार आदि विषयों का भी विचार सुचारु रूप से किया हुआ है । लघु होने पर भी सर्वोपयोगी होने से अड़े ही महत्व का यह प्रन्थ है। षट्पञ्चाशिका भट्टोस्पय्कृत संस्कृती युक्त-विभू'हिन्दीटीकासहितू प्रज तक इस प्रन्थ की अन्य जितनी हिन्दी टीकाएँ प्रकाशित हुई प्रायः वे सब मनमानी होने के कारण ही फलादेश में उपयुक नहीं होती थीं, अतः जनता के आग्रह से योग्य विद्वानों द्वारा भीरपल क्रुत संस्खू त टीका के ध्रथ २ डल्फी छयान्नखर ही सरल भाषा टीका खहित यह संस्करण प्रकाशित हुआ है |=) ‘सुबोधिनी’ भाष टीका सहितम् । यदि आप रत्नगर्भा भगवती वसुन्धरा के अन्त:प्रदेश के महान की गवेषण करने के इच्छुक हों तो महर्षिलोमश प्रणीत इव “श्वराचऊ" नामक ग्रन्थ को एक बार अवश्य ही देखियै । इसी स्रर ‘पुयोधिनी| भाषा टीका को पड़ने सै आपको स्वयं ही इस बात का ज्ञान हो जाया कि अमुक अमुक जगह पृथिवी के नीचे रन, महारत्न आदि हैं । जैमिनिसूत्रम् सेदहर-विमलर संस्कृत-हिन्द टीक वयोपेतम्। अन्य प्रकाशित संस्करण में जो कुछ अधूरापन और त्रुटियां थीं उन खभी परीक्षोपयोगी विषयों का समावेश प्रस्तुत संस्करण में कर दिया गया है १। ) प्राप्तिस्थानम्-चौखम्बा-संस्कृत-पुस्तकालय, बनारस खिटी । २. •४, ५ ? &भने अझ४४२/ अथ < 43 } १ अर्धत्रिकोणगणितं-विविध-वसन-सललंकृतम् २ गोटोयोलागणितम्। परिशिष्ट सहितम् । ३ स्कन्छनकलन -अश्नठरधिवरणम् । ५ तिथिचक्रामतिः । विजयलक्ष्मी’ हिंदीका-ईदाहरण वर्छितः । १ arञ्जकनीलकण्ठ-गंगाधरमिश्रकृत ‘जलदगङ्गना’ सं.इ.टी लाद्वयोपेत ३) ६ चलथजम् । सम्पादक ज्योतिषाचर्य पं• श्रीमुरलीधरठकुरः ॥ ७ ७ गणितम् । षष्ठाध्याय-परिभाषारूपपञ्चमाध्यायसहित Te). लङधारणशरी-मध्यपराशर-योदाहरण-‘सुबोधिनी’ सँ०हि० टीका = ९ प्रलभइबोधकम् । गंगाधरमिश्रकृतादर्शतलसंज्ञकतिलकेनाऽलङ्कृतम् ) १० श्लषणम् १ विमला-सरला संस्कृत हिन्दी टीकाद्वयोपेतम् । ११ अजय सन (खोपपत्तिक बीजगणित) सम्पादक ज्यो. आ. गङ्गाधरभिश्च |=} १२ भृहज्जातकम्। भवेत्पलटीका नवीनगणितोपपत्यादि टिप्पणी सहितो २) १३ घुइज्यलक » ! सोदाहरणेषपति ‘विमर” हिंदीडका स्वहित २) १४ लीलावती । पं ० श्रीमुरलीधरठक्कुर कृत' नवीनवासना सहिता । २) ५ भावप्रकाशः ! अमृतान्वय-भावबधिनी भाषाटीला प्रश्नपत्र सहित l १६ शस्तुनयल -‘सुबोधिनी’ सं० हि० टीका, परिशिष्ठ स्खहित १) १७ रेव्रणितम् ! ११-१२ अध्याय सुधाकरद्विवेदि विरचितं । १) १८ शिक्षुब्धः। विमल आ.ट.!) १९ येनिनजातकः - ‘चिमल्ल भा.टी, k) २० ऑबोध्यः ! अनूपमिश्रकृतस्वरला’ हिन्दी टीका सहितः २१ रात्रिकोणमितिः । म. म. वायुदेव शात्रि संकलिता खटिप्पण ३) २२ सरलरेखागणितम् । १-२ अध्यायौ विन्ध्येश्वरीप्रखाद द्विवेदि कृतं । २३ लिखन्तशिरोमणिः । वास्खनाभाष्य तथा टिप्पणी खड़ित सम्पूर्ण ५) १४ करङ्काशः । श्रीब्रह्मदेवविरचितः । १) २५ दैवकामधेनुः । म० म० पें• अनवमशसंवराजचरेण सङ्कलितः ४) २६ चमत्कारचिन्तामणिः । स्वान्वथ-‘भावप्रबोधिनी’ हिन्दी टीका सहित ।) २७ जैमिलिधदम्-खौदाहरण विमद्या संस्कृतं हिन्दी टीकाद्वयोपेतम् . १) १८ लग्नशत्नाकरः । चान्वय-शिशुबोधिनी’ हिन्दी टीका वञ्चित २९ चास्तुरत्कर-अहिबलचकयु ! विन्ध्येश्वरीप्रखादकृत हि० टीका १ ३० जातकपरितः ‘सुधाशालिनः संस्कृत-हिन्दी टीकाद्वरोपेशः ) प्रह्लाघवम् विश्वनाथकृत याख्योदाहरणयुत्-तन्वाहरणपति संवलित मधुरं नमक संत वेन्टीना आष तक इस्र श्रन्थ की कोई भी ऍखी ख़रक ही नहीं थी जिस्र विद्यार्थः सुलभता पूवक ग्रन्थ का आशय शमश कर परीक्षामें पूरी सफलता प्राप्त करनॐ t; विश्वनाथी टेक के साथ इसकी माधुरी नामक परीक्षोपयुक्त संस्कृत हिन्दी'डीकानें प्रन्थाशथ को अत्यन्त र शब्दों में समझाया। भय है एवं विश्वनाथी उदाइ के अतिरिक्तं नवीन खदाहरण तथा उपपत्ति भी यथा स्थान दे दी गई है जिघायै इस्र संस्कार को महत्व और भी बढ़ गया है। ३) प्राप्तिस्थानम-चौखम्बा संस्क्रुत पुस्तकालय, बनारस खिटी । २.

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