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१०४ अग्निपुराणो १४५ अध्यायः । जोवे श परमाख्या स्याद् र प्रागो पाम्पिका स्मता । - दक्षत ने छ शरीरा न वामे पूतना स्तमे ॥ १४ ॥ अस्त नक्षौर आ मोटो लम्बीदर्युदरे च छ । भाभी संहारिका ६ स्याम् महाक.ली नितम्बम ॥ १५॥ गुह्य स कुसुममाला ष शुक्र शुक्रदेविका । उरुपये त ताराभ्याइ जाना दक्षजामुनि ॥ १६ ॥ बामे स्यादी क्रियाशक्तिरो गायत्री च अगा। श्री सावित्री वामजसा दक्षे दी दोहमी पदे ॥१७॥ फ फेत्कारी वामपादे नवात्मा मालिनी ममः । आ श्रीकण्ठः शिखायां स्यादायक स्यादनन्तकः ॥ १८ ॥ इ मूमो दक्षनेत्रे म्यादी त्रिमूर्तिस्त बामके । उ दचकोऽमरोश ऊ कर्णोघांशकोऽपरे ॥ १८ ॥ भाषभूतिर्नासाग्रे वामनासा तिथीश ऋ । रस स्थााई क्षगगड़े स्याहामगगड़े परस ल ॥ २० ॥ कटोशो दन्तपङनावे भूतीशयोईदन्त ऐ। सद्योजात श्री अधरे जौं ठेऽमुग्रहीश श्री ॥ २१ ॥ भं करो घाटकायां स्यादः महामेनजिन्या । क क्रोधीशो दक्षस्कन्धे सधगडीशष बाहुषु ॥ २२ ॥ पचासकः कूपरे गो ध शिखी दक्षकसे। एकपादशाजत्यो वामस्वन्धे च कर्मकः ॥ २३ ॥ छ एकनेत्री बाहो स्थाचतुर्वको ज कूपरे । झ राजसः कङ्गणमा नासर्वकामदोऽङ्ग लौ ॥ २४ ॥ ट सोमेगो नितम्वे स्थाइच जरुठे साहसी ।