पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/१०

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अथर्ववेदभाष्यभूमिका। द्विजों [ ब्राह्मण, क्षत्रिय , घेण्या ] में श्रेष्ट पुरुष, [ ब्रह्मचर्य श्रादि ] तप तपना हुना, बेद हो का लदा शभ्यास करे। वदों का अभ्यास ही पण्डित पुरुष का परम तप यहां [ इस जन्म में ] कहा जाता है ॥१॥ चातुर्वपद त्रयो लोसाश्चत्वारश्चानमा: पृथक । भूतं भव्यं अविष्यं च सर्व वेदात् प्रसिध्यनि॥२॥१२॥ चार वर्ण [ ब्रमण , क्षत्रिय , वैश्य , शद्र . ] तीन लोक [ स्वर्ग, अन्तरिक्ष, भूलोक ] , चार श्राश्रम [ ब्रह्मचर्य , गृहस्थ वानप्रस्थ , सन्यास ], और भूत, वर्तमान शोर भविष्यन् , अलग अलग सब वेद से प्रसिद्ध होता है ॥२॥ सैनापत्यं च राज्यं च दण्डनेतृत्वमेव च । सर्वलोकाधिपत्यं च वेदशासविदहति॥३॥१२॥१०८।। घेद शास्त्र का जानने वाला पुरुष, सेनापति के अधिकार, और राज्य, और भी दगड देने के पद, और सब लोगों पर आधिपत्य [चक्रवर्ति राज्य के योग्य होता है ॥३॥ वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो पत्रतत्रानमे वसन् । इहैव लोके तिष्ठन् स ब्रह्मसूयाय कल्पते ॥४॥१२।१०।। घेद शास्त्र के अर्थ का तत्त्व जानने वाला पुरुष चाहे किसी आश्रम में रहे , यह इस लोक [जन्म में ही रहकर मोक्ष [ परम श्रानन्द ] पद के लिये योग्य होना है ॥४॥ इसी प्रकार सब शास्त्रों में वेदों की अपूर्व महिमा का वर्णन है। इन दिनों प्रत्येक मनुष्य वेद वेद पुकार रहा है । जर्मनी, इंग देश आदि विदेशों में वेदों का चर्चा फैल रहा है। घेदों के भिन्न २ भागों के अनुवाद भी अंग्रेज़ी , लेटिन , जर्मन श्रादि भाषाओं में यहां के विद्वानों ने अपनी अपनी गति के अनुसार किये हैं । भट्ट ग्रिफ़िथ साहिब ने चारों घेदी का अंग्रेज़ी अनुबाद वैदिक छन्दों में छन्दोबस किया है। महर्षि श्रीमद्दयानन्द सरस्वती का चेद विषयक परिश्रम सुप्रसिद्ध है। उन के रचे निम्नलिखित चौदिक ग्रन्थ महा उपकारी है।