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अथर्ववेदमाष्यभूमिका। अथर्ववेद संहिता भट्ट आर० रोष साहिय और अविल्यू० डी० बिहटनी साहिब [Professors R. Roth and V. D. Whitney] ने जर्मनी देश के यर्लिन नगर में सन् १८१६ ईस्वी में छपवाई थी [Seo Page 10, Critical Notes on Atharva Samhita with theCommentary of Sayana- charra, Government Central Book Depot, Bombay; and page XIII, Griffitbh's English Translation of the Atharva Veda.71 अथर्ववेद संहिताय तो और भी छप गयी है। श्री सागणाचार्यकृत भाष्य केरल गवर्नमेन्ट सेन्टल बुक रिपो चंबई की ओर से छपा है, वह भी असंपूर्ण [लगभग आधे वेद का भाय] और केवल संस्कृत में है भौर उसके चार वेष्टनों का मूल्य ४०) चालीस रुपया है। इस से बड़े धनी विद्वान ही उस को देख सकते हैं, सामान्य पुरुषों को उसका मिलना और समझना कठिन है। -अथर्ववेद विस्तार ॥ हमारे पास तीन अथर्य संहिता पुस्तक हैं, १-सायणभाष्य सहित यंबई गवर्नमेन्ट मुद्रापित, २-५० सेबकलाल कृष्णदास मुद्रापित, और ३-अलमेर पैदिक यन्त्रालय मुद्रित । हम ने तीनों संहिताओं को मिलाकर अध्ययन किया है। विस्तार का विवरण अजमेर पुस्तक के अनुसार अन्य पुस्तकों से मिलान करके आगे लिखा है। अथर्ववेद (ये निपप्ताः परियन्तुि ) इस मन्त्र से लेकर (पुना- य्य तदश्विना कृतं वा..] इस मन्त्र तक है। इस में २० बीस काण्ड, ७३ सात सौ इकतीस सूक्त, और ५,६७७ पात्र सहसा नौ सौ सतहत्तर मन्त्र है। यह गणना भागे भूमिका के अन्त में चक्रों में वर्णित है। उक्त तीनों पुस्तकों को मिलाने से मन्त्र संख्या में यह भेद (अ) पं० सेवकलाल के पुस्तक से मिलान । उक्त पुस्तक में मन्न अन्य दो पुस्तकों में मन्त्र मेद काण्ड । सूक्त पर्याय मन्त्र १से ७%७ - १३ ३ म०१८ से १४ - 2 ,, म०२२ से २५%D४ = ५। म०२६ से २४ = योग --१२ --१२ --३४