पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/१३

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. अथर्ववेदभाष्यभूमिका। काण्ड है। • सूक्त ६ । पर्याय ४। म०४० से ४४-५ = १ " , ५। म०४५. से ४-४ - योग २० काण्ड १४। TIFT*** सूक्त ३। - म.१ से २- २ म०१ से १०=१०. "५४। "५५। २४ २० म०१ से ७ - ७ - म०१ से ६ % ६ = योग ७ कारड २०। सूक्त ६। म० १-२३३२३ - २४ सूक्त १३१॥ म०१-२३-२३ - योग ४६ महा योग १०१ र -४० सब मिलाकर पं० लेवकलाल कृष्णदास के पुस्तक में जो ४० मन्त्र घटते हैं, (हृदयात् ते परि क्लो म्नो हलौक्षणात् पार्खाभ्याम् । यक्ष्म मंतस्नाभ्यांनी हनी युतस्ते विवृहामशि)वस्तुतः यह एक मन्त्र अन्य दोनो पुस्तकों के का0 २० सू० ६६ का म० १६ उस में नहीं है। अन्य ३६ मन्त्रों की न्यूनता केवल भन्न भागों के छोटे बड़े और आगे पीछे होने से है, इन का पूरा पाठ तो मिलाक्तर अन्य पुस्तकों के तुल्य है। इस गणना से इस पुस्तक के समग्र मन्त्र ५,६७७-४0%D५,९३७ होते हैं। +२ - (आ)-वैदिक यन्त्रालये के पुस्तक का सायणभाष्य सहित चंबई के पुस्तक से मिलान। सायणभाष्य वाले पुस्तक में इतना अधिक है कि काण्ड १६ के अन्त में ७२ मम्भ का एक पाय है, जो १८ मन्न इस पुस्तक के काएक ११ सूत ४