पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/१५

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- - - - - - अपर्ववेदभाष्यभूमिका। प्रतीत नहीं होता। इस पुस्तक में केवल दर काण्डों से कुछ अधिक का भाष्य इस प्रकार है-काण्ड १, २, ३, ४, ६, ७, ८ [सूक्त ६ तक] ११, १७, १८, १६, २० सूक्त ३७ तक] [इतना भाष्य नहीं है कण्ड ५८ (खुक्त ७-५,६,१०, १२, १३,१४, १५, १६, २० (सूक्त ३५- १४३ )]॥ ८-अथर्ववेद पुस्तकें और अपना भाष्य । १-अथर्ववेद संहिता श्री सायणाचार्यविरचित भाष्य सहित,गवर्नमेन्ट बुक डिपो, चंबई,चार वेष्टन । चेष्टन १ तथा २ सन् १८६५, घेटन ३ तथा ४ सन् १८६ ईसवी। २-अथर्ववेद संहिता मूल,पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित-बंबई, सन् १८६३ [पत्थर का बापा] | - ३-अथर्ववेद संहिता,मूल,वैदिक यन्त्रालय,अजमेर, संवत् १६५- विफ्रामीय (सन् १४०१ ईखी]1 ४-अथर्ववेद संहिता, अंग्रेजी अनुवाद, भट्ट ग्रिफ़िथ साहिय कृत दो वेष्टन,पेष्टन १ सन् १८६५,वेष्टन २ सन् १८४६ ई०॥ इस भाष्य के बनाने में यह सव पुस्तकें और श्री सायणाचार्य श्त ऋग्वेद और सामवेद भाष्य, श्री महीधर कृत शुक्ल यजुर्वेद भाप्य, श्री मदयानन्द सरखती छत ऋग्वेद और यजुर्वेद भाष्य, पण्डित तुलसी राम कृत सामवेद भाष्य,यास्क मुनि कृत निघण्टु और निरुक्त,और पाणिनि मुनि कृत श्रष्टाध्यायो व्याकरण, सर राजा राधाकान्त देव वहादुर कृत शब्द कल्प हुम कोप, और अन्य ग्रन्थ मुझे बहुत उपयोगी हुये हैं, इस लिये उन अन्य कर्ता महाशयों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है। ___ हमारे भाप्य में संहिता पाठ चैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तक का है, पदपाठ इस पुस्तक और सायण भाष्य के अनुसार है। पाठान्तर टिप्पणियों में दिखाया है । स्पष्टता और संक्षेप ने ध्यान से भाग्य का क्रम यह रक्या है। । १-देवता, छन्द, उपदेश। २-मूलमन्त्र-खरसहित । ३-पदपाठ-खरसहित । ४-सान्वय भाषार्थ।

५-भावार्थ।