पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/१६

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• अथर्ववेदभाष्यभूमिका । ६-नावश्यक टिप्पणी, संहिता पाठान्तर, अनुरूप विषय और अन्य वेदों में मन्त्र का पता आदि विवरण । ७-शब्दार्थ व्याकरणादि प्रक्रिया-व्याकरण, निघण्टु, निरुक्त, पर्यायादि । सहज पते के लिये काण्ड काण्ड के विषय श्रादि , और अथर्ववेद के अन्य वेदों में मन्त्रों की सूची भी दिया है। -ऋषि, देवता, कुन्द।। ऋषि वह महात्मा फहलाते हैं जिन्हों ने वेदों के सूक्ष्म अर्थों को प्रकाशित किया है [निरु० १ १ २०॥ तथा २१११], देवता उसको कहते हैं जिस के गुणों का वर्णन मन्त्र में प्रधानता ले हो [निरु०७॥ १], मिताक्षर वाक्य छन्द कहाते है। जिस प्रकार अग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में सूक्त इत्यादि के साथ प्रापि, देवसा और चन्द लिखे हैं, उस प्रकार अथर्ववेद संहिताओं में नहीं हैं। हम ने इस भाष्य में सूत्रों के शीर्षक पर देवता , छन्द और प्रकरण दिये हैं । ऋपियों फा निपघय नहीं हो सका। १०-निवेदन । निःसन्देह अब बा समय है कि सब स्त्री पुरुप घर घर में वेदों का श्रथ जाने और धर्म होकर पुरुषार्थी बनें । भारतीय और अन्य देशीय विद्वान् भी वेदों फा अर्थ खोजने और प्रकाशित करने में बड़ा परिश्रम उठा रहे हैं। मेरा भी संकल्प है कि अथर्ववेद फा यथाशक्ति सरल, स्पष्ट, प्रामाणिक, और अल्प- मूल्य भाष्य एक एक पूरे फाएस के पुस्तक रूप में प्रस्तुत फळं, जिससे सब लोग स्वाध्याय [वेद के अर्थ समझने और विचारने] में लाभ उठायें। और यदि वैदिक जिशानु वेदों के सत्यार्थ और तत्वज्ञान प्रप्ति में कुछ भी सहायता पावेंगे तो मैं अपना परिश्रम सफल समदूंगा। क्षेमकरणदास विवेदी। ५२ लूकरगंज, मयाग (अलाहाबाद)। जन्म,फार्तिक शुक्ला ७ संवत् १६०५. विक्रमीय, जन्मापा भाद्र कृष्ण जन्माष्टमी १६६६वि (ता०३ नवम्बर १८४८ ईस्थी.) जन्मस्थान, ग्राम शाहपुर मडराक, ५ सितम्बर १९१२। ज़िला अलीगढ़।