पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/६

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अथर्ववेदमाध्यममिका॥ १-ईश्वरस्तुतिप्रार्थना। यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति । स्व १' यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥१॥ अथर्व० का० १० सू० म० १ ॥ ( यः ) जो परमेश्वर ( भूनम् ) अतीत काल (च) और (भव्यम् ) भविष्यत् काल का, (च) और ( यः ) जो (सर्वम् ) सब संसार का (च) अवश्य (अधितिष्ठति ) अधिष्ठाता है । (च) और ( स्वः ) सुग्न ( यस्य ) जिस का ( केवलम् ) केवल स्वरूप है , (तस्मै ) उस ( जेष्ठाय ) सव से बड़े (ब्रह्मणे) ब्रह्म, जगदीश्वर को ( नमः) नमस्कार है ॥ हे परमपिता , परमान्मन् ! श्राप, भून , भविष्यत् , वर्तमान और सब जगत् के स्वामी हैं, आप केवल श्रानन्द स्वरूप और अनन्त सामर्थ्य वाले हैं। हे प्रभु! आप हमारे हृदय में सदा विराजिये , आप को हमारा बारम्बार नम- स्कार है। यामृर्पयो भूतकृते से धां मेधाविनी विदुः। तया मामद से धयाग्ने मेधाविन कृणु ॥२॥ . अथर्व० फा० ६ सू० १०८ म० ४ ॥ (अग्ने ) हे सर्वव्यापक, प्रकाश स्वरूप परमेश्वर ! (याम् ) जिस (मेधाम् ) धारणवती बुद्धि का (भूतकृतः ) यथार्थ काम करने हारे, (मेधाधिनः ) सड़