पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/७

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aruwaundred- अथर्ववेदभाष्यभूमिका। वद्धि वाले ,(ऋपयः) वेद का तत्त्व जानने वाले ऋषि , (विदुः) शान रनले हैं , (तया) उस ( मेधया ) अचल बुद्धि से (माम) मुभा को (अध ) श्राज (मेधाविनम्) अचल बुद्धि वाला ( कृणु) कर ॥ __हे सर्वविद्यामय जगदीश्वर ! आप के अनुग्रह से यह पढ़ निश्चल बुद्धि हमारे हृदय में विराजमान रहे जैसी धार्मिक , विवेकी, परोपकारी ऋषि महा- त्माओं की होती है, जिस से दमें वेदों का यथार्थ ज्ञान हो और एम संसार भर में उसका प्रकाश करें। स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरुषेभ्यः । विश्व सुभूतं सुविदत्रै नो अस्तु ज्योगे व दृशेम सूर्यम् ॥ ३ ॥ . अथर्व० का० १ सू० ३१ ग०४॥ (नः) हमारी (मात्रे ) माता के लिये ( उत ) और ( पित्रे) पिता के लिये (स्वस्ति) अानन्द (अस्तु) होवे , और ( गोभ्यः ) गौओं के लिये, (पुरपेभ्यः) पुरुषों के लिये और (जगते) जगत् के लिये (खस्ति) आनन्द होये । (विश्वम ) संपूर्ण (सुभूतम् ) उत्तम ऐश्वर्य और (सुचिदत्रम् ) उत्तम मान वा कुल (नः) हमारे लिये (अस्तु ) हो, (ज्योक) बहुत काल तक (सूर्यम् ) सूर्य को (एच) ही (दृशेम ) हम देखते रहें। __ हे परम रक्षक परमात्मन् ! हमें वेद विज्ञान दीजिये जिस से हम अपने कर्तव्य को समझे और करें , अपने हितकारी माता पिता आदि सब परिवार, सव मनुष्यों , सव गौ श्रादि पशुओं , और सब संसार की सेवा कर सफें, और सब के आनन्द में अपना श्रानन्द जाने , और जैसे सूर्य के प्रकाश में सब कामों को सुख से करते हैं, वैसे ही, हे प्रकाशमय, शान स्वरूप, सर्वान्तर्यामी प्रभु! आप के ध्यान में मग्न होकर हम सदा प्रसन्न चित्त रहें । २-वेद ॥ तस्माद यज्ञात् सर्व हुतु ऋचः सामानि जज्ञिरे । 'छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तस्मादजायत ॥१॥ . . . ऋ० १० । ६० । ६, यजु० ३१ ॥७, तथा अथर्व ० १६ ॥ ६ ॥१३