पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम्-काण्डम् १ (क्षेमकरणदास् त्रिवेदी).pdf/८

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प्रयर्ववेदमाष्यभूमिका। (तस्मात् ) उस ( यज्ञात् ) पूजनीय और ( सर्वहुतः) सब के ग्रहण करने योग्य परमेश्वर से (ऋचः ) ऋग्वेद [ पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्या ] के मन्त्र और (सामानि ) साम वेद [ मोक्ष विद्या ] के मन्त्र (जशिरे) उत्पन्न हुये । (तस्मात् ) उस से ( छन्दांसि ) अथर्ववेद [ आनन्ददायक विद्या ] के मन्त्र (जशिरे) उत्पन्न हुये, और (तस्मात् ) उस से ही (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का मान ] (अजायत ) उत्पन्न हुआ है। यस्मादी अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकेषन् । सा- मानि यस्य लोमान्यथर्वाङ्गिरसो मुखम् । स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥ २॥ अथर्च० का० १० । सू०७ । म० २० ॥ (यस्मात् ) जिस परमेश्वर से प्राप्त करके (ऋचा) पदार्थों के गुणप्रकाश मन्त्रों को (अप-प्रतक्षन् ) उन्होंने [ऋपियों ने] सूक्ष्म किया [ भले प्रकार विचारा ], ( यस्मात् ) जिस ईश्वर से प्राप्त करके ( यजुः) सत्कौं के ज्ञान को ( अप-अरूपन् ) उन्होंने कस, अर्थात् कसौटी पर रक्खा, ( सामानि ) मोक्ष विद्यायें ( यम्य) जिस के (लोमानि ) रोम के समान व्यापक है, और (अथर्व- अनिरसः) अथर्व अर्थात् निश्चल जो परब्रह्म है उसके शान के मन्त्र (मुखम् ) मुग्त्र के समान मुख्य हैं. (सः) वह ( एव ) निश्चय करके (फत्तमाःखित् ) कौन सा है। [इसका उत्तर ] (तम् ) उसको ( स्कम्भम् ) खंभ के समान ब्रह्मांड का सहारा देने वाला ईश्वर (ब्रूहि ) तू कह ॥ इस से सिद्ध है कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ईश्वरकृत हैं,और चारों वेद सामान्यता से सार्वलौकिक सिद्धान्तों से परिपूर्ण होने के कारण मनुष्य मात्र और सब संसार के लिये कल्याणकारक हैं। उस परम पिता जगदीश्वर का अति धन्यवाद है कि उसने संसार की भलाई के लिये सृष्टि के आदि में अपने अटल नियमों को इन चारों वेदों के द्वारा प्रकाशित किया । यह चारों वेद एक तो सांसाररिक व्यवहारों की शिक्षा से परमात्मा के ज्ञान का, और दूसरे परमात्माके शान से सांसारिक व्यवहारों का उपदेश करते हैं । संसार मैं यही दो मुख्य पदार्थ हैं जिन की यथार्थ प्राप्ति और अभ्यास पर मनुष्य मात्र की उन्नति का निर्भर है। इन चारों वेदों को ही त्रयी